Reality Check हमलावर कौन ? : नेपोलियन व् हिटलर ने रूस पर हमला किया था पर पांच सौ सालों में रूस ने पश्चिम पर हमला नहीं किया
भारत यूक्रेन युद्ध में निष्पक्ष है जो की उचित है।
अमेरिका समेत सभी पश्चिमी देशों ने १९७० तक भारत की काफी मदद की थी विशेषतः १९६५-६६ के अकाल काल में पी ऐल – ४८० का गेहूं भेज कर जिसकी न हम कीमत चुका पाए न ही जहाज का किराया। इसके अलावा बहुत वर्षों तक इन देशों ने भारत की आर्थिक मदद भी की थी.रूस ने हमारी औद्योगिक प्रगति मैं बहुत योग दान दिया है। बांग्लादेश की लड़ाई ने व्यर्थ में पश्चिमी देशों के सामने खड़ा कर दियाऔर रूस ने हमारी अनमोल सहायता की थी जिसका हिसाब हम आज रूस के साथ खड़े हो कर दे रहे है।
पर इस युद्ध मैं दोनों पक्ष अपने स्वार्थ के लिए लड़ रहे है। परन्तु पश्चिम का रूस का रूस को आदमखोर राक्षस सिद्ध करना भी उचित नहीं है। रूस की तेल की पाइप लाइन को उड़ाना गलत था जिसके लिए राष्ट्रपति ट्रम्प ने भी दबे शब्दों में अमरीका को दोषी ठहराया है। रूस भी इंग्लैंड की नार्थ सी की पाइप लाइन उड़ा सकता है पर उसने इस का बदला नहीं लिया है।
परन्तु यदि हम पिछले पांच सौ वर्षों का इतिहास देखें तो रूस ने कभी भी पश्चिमी यूरोप पर हमला नहीं किया परन्तु हर बड़े युद्ध में नेपोलियन से लेकर हिटलर तक सब ने रूस पर आक्रमण किया है। रूस की लड़ाइयों का इतिहास विकिपीडिया मैं देखा जा सकता है। List of wars involving Russia – Wikipedia .
रूस इतना बड़ा देश है की उसके विस्तार से सब उससे डरते हैं। यहाँ तक की १७५७ से अँगरेज़ भी रूस के भारत तक आने से डरते थे। हर बड़े देश की तरह रूस की भी अपने पड़ोसी देशों तुर्की , स्वीडेन इत्यादि से युद्ध हुए हैं पर रूस ने कभी विश्व विजय का अभियान नहीं छेड़ा था जैसा हिटलर या नेपोलियन ने किया था। प्रथम विश्व युद्ध ऑस्ट्रिया के Arch Duke Fratz की १९१४ की ह्त्या से शुरू हुआ था। प्रथम व् द्वितीय विश्व युद्ध में रूस फ्रांस व् इंग्लैंड एक साथ लडे थे। द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर ने रूस पर हमला किया और इस युद्ध में रूस के २ करोड़ सत्तर लाख लोग मरे गए थे। रूस की इस बहादुरी व बलिदान से आज फ्रांस एक आज़ाद देश है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जीतने वाली शक्तियों ने विश्व का विभाजन कर युद्ध की कीमत वसूल ली. रूस ने अपने हिस्से के इलाके को दबा कर रखा जिसमें पोलैंड , हंगरी व चेकोस्लवाकिया भी थे।
१९४५ से विश्व में उपनिवेशवाद समाप्त होने लगा। भारत के बाद इंडोनेशिया , मलेशिया, मिस्र ,अफ्रीकी राष्ट्र भी एक के बाद एक स्वतंत्र होते गए। इन नए राष्ट्रों का साम्यवादी रूस की तरफ स्वाभाविक रुझान था। रूस व् नवोदित राष्ट्र गरीब थे पर संख्या में अधिक थे। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ मैं अपना दबदबा बनाये रखने के लिए अमरीका ने शीत युद्ध की शुरुआत कर दी और रूस को पुनः घेरना शुरू कर दिया जबकी रूस ने न तो अमरीका को कभी नुक्सान पहुंचाया न ही उसकी इतनी शक्ति थी.
परन्तु रूस में साम्यवाद का प्रयोग फ़ैल हो गया। १९८० आते आते रूस की प्रति व्यक्ति आय व् जीडीपी अमेरिका से आधा हो चुका था। अमरीका आर्थिक लड़ाई जीत चुका था। परन्तु सैन्य शक्ति मैं रूस व् अमरीका बराबर थे। १९९० आते आते गोर्बाचेव ने साम्यवाद में ढील देनी शुरू कर दी। वह सोवियत यूनियन का विघटन नहीं चाहते थे पर येल्स्तिन व् अंदरूनी राजनीती के कारन रूस टूट गया। उसके बाद रूस का बहुत पतन हुआ जो पुतिन ने जा कर रोका। परन्तु रूस के पतन ने पश्चिमी देशों विशेषतः अमरीका को बहुत निरंकुश बना दिया व् इराक , लीबिया, सीरिया में उन्होंने बहुत अत्याचार किये।
पुतिन रूस के खोये स्वाभिमान को वापिस पाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जैसे हम भारत के विघटन से पीड़ित हैं उसी तरह पुतिन रूस के विघटन से दुखी है। परन्तु आज भी रूस टेक्नोलॉजी मैं पिछड़ता जा रहा है। पुतिन रूस की तकनीकी उन्नति नहीं कर पा रहे हैं। टेक्नोलोजी पर पश्चिम का प्रभुत्व है.उसको उम्मीद थी की साम्यवाद छोड़ने विघटन के बाद पश्चिमी देश उसकी मदद करेंगे परन्तु यूरोप ने रूस को नहीं अपनाया और अमेरिका के लिए रूस को व्यर्थ ही दुश्मन माना। रूस की लड़ाई में चीन को भस्मासुर बना दिया। अब चीन से युद्ध मैं पश्चिमी राष्ट्र भी समाप्त हो जायेंगे।
आज भी यूक्रेन युद्ध से पश्चिमी देशों को बहुत नुक्सान हो रहा है। पर वह व्यर्थ में रूस की हार को अपनी जीत मान रहे हैं जब की रूस की हार भी चीन की जीत है। । अगर वह रूस से मित्रता कर लें तो सब को फायदा है। पर अब रूस की हालत भी पाकिस्तान की तरह है। उसकी अर्थ व्यवस्था इतनी छोटी हो गयी है की पश्चिम को उसकी आवश्यकता नहीं है और वह संधि के मूड में भी नहीं है। यूक्रेन मूर्खता पूर्ण नेतृत्व से पीड़ित है और ज़ेलेन्स्की भी संधि नहीं कर पा रहे है ।
जीत के बाद भी रूस को अपनी अर्थ व्यवस्था व् टेक्नोलॉजी को विकसित करना होगा पर भारत की तरह ही राष्ट्रवाद रूस की आर्थिक प्रगति नहीं करवा पा रहा। युद्ध के बाद पश्चिमी देश रूस को खा जायेंगे।उनमें उपनिवेशवादी चिंतन बढ़ रहा है.चीन भी बहुत स्वार्थी देश बन रहा है और एशिया के देशों के लिए बड़ा ख्र्तरा है ,. एशिया , अफ्ररीका व दक्षिण अमरीकी देशों को अपनी स्वतंत्रता के लिए रूस व उसकी अर्थव्यवस्था को बचाना आवश्यक है. कोई चाणक्य ही इसका समाधान निकाल सकता है पर ऐसा चाणक्य कहीं दीख नहीं रहा है।
भारत को अपने को चीन से सुरक्षित करना है और पश्चिमी देश भी भारत को दुसरा चीन नहीं बनने देंगे। वह अब चीन से कुछ ले देकर संधि करने के मूड मैं हैं .बल्कि वह चीन के बाद अंततः भारत को भी रूस की तरह तोड़ना चाहेंगे।
विश्व की राजनीती बेहद स्वार्थी हो गयी है। भारत को अगले बीस सालों तक अपनी रक्षा के लिए बहुत सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता हैऔर वह किसी युद्ध मैं नहीं जा सकता। पाकिस्तान को उपयोग कर भारत को युद्ध मैं घसीटने का प्रयास भी हो सकता है । पश्चिमी देश योगी आदित्यनाथ सरीखे सशक्त नेतृत्व को नहीं उभरने देंगे। पर रूस ही की तरह वर्तमान राष्ट्रवाद हमें आर्थिक रूप से कमजोर कर रहा है और हम चीन से पिछड़ते जा रहे हैं और बुद्धिमत्ता पूर्ण चिंतन के अभाव में इसका कोई समाधान भी नहीं दीख पा रहा। परन्तु यह स्थिति भी भविष्य मैं बहुत दुःख देगी।चीन सरीखी आर्थिक प्रगति हमारे अस्तित्च के लिए बहुत आवश्यक है। ।
हम भी रूस की ही तरह किसी कृष्ण के अवतार लेने की आशा में जीवित हैं पर कोई नहीं जानता की अवतार कब होगा।