Karnatak Defeat : क्या बीजेपी सब को साथ लेकर सामंजस्य बनाने व आर्थिक विकास की कला भूल गयी है ?
कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छत्र छाया मैं बड़ी हुई बीजेपी दो कलाओं में माहिर थी। अपने आदर्शों के प्रति पूर्ण समर्पण के कारण ,एक तो वह संयुक्त नेतृत्व में विरोधियों में सामंजस्य बना कर सब को साथ लेकर चलने की कला में पारंगत थी और दूसरा उसको देश का आर्थिक विकास करना अधिक आता था. अब वह सत्ता हासिल करने की कला को अधिक समझ गयी है और संभवतः अपनी पुरानी आदर्शों से प्रेरित राजनीती करने की कला को भूल गयी प्रतीत होती है। पहले शासक व कार्यकर्ता दोनों शाखा मैं साथ मिलते थे और उनमें दूरियां बहुत कम थीं। अब तो रेडियो टेलीविज़न से भाषण सुन कर संतुष्टी करनी पड़ती है। शासक वर्ग बहुत सुकड़ गया है और उसका जनता से संपर्क भी टूट गया है। । इन नयी नीतियों के परिणाम चुनावों में देखने को मिल रहे हैं।
इस नयी बीजेपी ने देश को कई उपलब्धियां भी दी हैं। सड़कों का जाल ,अयोध्या , कश्मीर ,सफल विदेश नीति , रक्षा में स्वाबलंबन को प्रोत्साहन इ सकी कुछ प्रमुख उपलब्धियां हैं जिनकी प्रशंसा करना स्वाभाविक है।
पर इनके लिए जो कुछ उसने खोया है वह कहीं अधिक है और उसका दुबारा बनना कठिन है । पिछले दस सालों में आर्थिक प्रगति की दर बहुत कम हो गयी है.अधिनायक वाद को बढ़ाते हुए अपना संघ से अलग कार्यकर्ताओं का समूह बनाना शुद्ध व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए आये लोगों का समूह बन गया।इस समूह का कोई विशेष आदर्श नहीं है। यह समूह येन केन प्रकरेण अपना हित साधना जानता है और नेतृत्व को चापलूसी से गुमराह कर देता है जो की हर सरकार के लिए घातक होता है और अंततः सरकार के पतन का कारण बन जाता है।।
राज्यों में श्रीमती इंदिरा गांधी ने जो गलती कमजोर नेतृत्व को स्थापित कर की थी वही अब पुनः परिलक्षित हो रही है। कर्णाटक में येदुरप्पा का कोई विकल्प नहीं था । यह कितना भी दुर्भाग्य पूर्ण हो पर सच है। यही हाल अन्य राज्यों का है। मोदी जी का कद अब इतना बड़ा है की येदुरप्पा जैसे उनके मित्र भी उनकी अवहेलना नहीं कर पाएंगे। समस्या छूट भइये चापलूसों की है। अगर सोनिआ गाँधी जी ने चमचों की बात मैं आ कर UPA 2 में श्री मनमोहन सिंह को दरकिनार नहीं किया होता तो देश की अर्थ व्यवस्था और पार्टी की इतनी दुर्गति न होती। BJP को इतिहास की इस पुनरावृति को रोकना होगा।सरकार मैं हर स्तर पर घमंड व भिन्न विचारों के प्रति असहनशीलता बढ़ गयी है. सब काम दिखावे के लिए ज्यादा किया जा रहा है। इसके अलावा पहले घटा हुआ भ्रष्टाचार भी धीरे धीरे बढ़ गया है जो नेताओं के जनजीवन में आदर्शों के पुनर्स्थापन से कम होगा डर बढ़ाने से नहीं। सीवीसी /सीबीआई /ई डी के अत्यधिक डर ने तो विकास का बंटा ढार किया है। टीवी या अखबारों पर चर्चा न होने पर भी जनता सच जानती है।
बीजेपी को २०२४ के लिए समय रहते चेतावनी मिल गयी है। इसको अपने पुराने आदर्शों को पाना होगा और जनता व कार्यकर्ताओं का पुनः विश्वास जीतना होगा। मंहगाई , नौकरियों का अकाल ,घटती आय अब सर्व विदित है। मध्यम वर्ग तो दस वर्षों से उपेक्षित है वह अब हताश हो कर निष्क्रीय हो गया है। । इनका समाधान ढूंढना होगा। चापलूस तो सच झुटलायेंगे और नेताओं को दिग्भ्रमित करेंगे। उन्हें दूर कर अप्रिय सच कहने वालों को सहना होगा।
धर्म का अब अधिक राजनितिक उपयोग संभव नहीं है। उसको त्यागना तो एक दम आत्मघाती होगा पर धर्म के आदर्शों को सार्वजनिक जीवन पालते दीखना भी आवश्यक है।
देश एक आदर्शवादी सरकार को सशक्त नेतृत्व प्रदान करते हुए लोक नायक मोदी जी को चाहता है परन्तु विचार शून्य ,अधिनायक वादी, आर्थिक विकास की समस्यायों को न सुलझा पाने वाली आदर्श हीनता की तरफ धीरे धीरे खिसकती हुई सरकार को नहीं।
कर्णाटक की हार वास्तव मैं देश को पुनः आदर्शों की तरफ मोड़ने का माध्यम बन सके यही देश भक्तों की कामना है।