क्या रिज़र्व बैंक को विशेष दिव्य दृष्टि से अंडमान मैं तेल के बजाय नौकरी के कुँए दीख गए ?पददलित वेतन भोगी मध्यम वर्ग के घावों पर धन्ना सेठों के बनाए झूठे आंकड़ों की मिर्चें लगाना बंद होना चाहिए
मंहगाई , बेरोजगारी और भयंकर सरकारी अवहेलना से जूझते हुए वेतन भोगी मध्यम वर्ग पर रिज़र्व बैंक ने एक और झन्नाटे वाला चांटा मारा है .
जिस देश मैं लाखों रूपये कोचिंग और फीस पर बर्बाद कर आई आई टी के मेधावी छात्रों को नौकरी नहीं मिल रही , जहां करोड़ों रूपये कि केपिटैशन फीस देकर एम् बी बी एस पास डोक्टरों को नौकरी नहीं मिल रही , उस देश के अंधे रिज़र्व बैंक ने धृतराष्ट्र के सारथी संजय समान दिव्य दृष्टि से शायद अंडमान मैं तेल के बजाय नौकरी के कुँए ढूंढ लिए हें . उसके अनुसार देश मैं २२-२३ के मुकाबले २३ – २४ मैं 4.67 करोड़ अधिक नयी नौकरियां बनी हें !
वाह रे रिज़र्व बैंक तुझ पर वारि जाऊं !
यह नौकरियां उन करोड़ों नौजवानों को जो सरकारी कृपा कि बारिश की आशा मैं आकाश पर टिक टिकी लगाए देख रहे हें उन्हें क्यों नहीं दीखीं ? क्योंकि यह सिर्फ एक झांसा है , मरीचिका है सत्य नहीं !
पिछले अनेक सालों से समस्त सरकारी आर्थिक आंकड़ों को बर्बाद कर अबोध जनता को झूठे आंकड़ों के सब्ज़ बाग दिखाने कि श्रंखला मैं यह पतन की एक नयी गहराई है .
दूसरी तरफ रिज़र्व बैंक के इस जादुई खोज से अनिभिग्य भारत मैं एक और अमरीकी सिटी बैंक ने हमारी खोखली अर्थ व्यवस्था कि सारी पोल खोल दी है .
सिटी बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत को नोट बंदी और जीएसटी से ११ लाख करोड़ का नुक्सान हुआ है. नोट बंदी की बर्बादी तो मनमोहन सिंह जी ने संसद मैं बता दी थी पर जी एस टी से भी कम बर्बादी नहीं हुई है . पिछले सात सालों मैं देश के ११ लाख छोटे व माध्यम उद्योग बंद हो गये हें . इससे ५४ लाख लोग बेरोजगार हो गए हें . देश का औद्योगिक उत्पादन गिर गया और रोज़गार १५ % कम हो गया है .इस कारण से भारत का GVA ( gross value added ) आज भी २०१५ के स्तर पर है जब कि बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ गयी है . कोविद से पहले देश के २४ प्रतिशत लोगों को मासिक वेतन वाली नौकरी थी जो अब २०२४ मैं भी मात्र २१ प्रतिशत है . गाँवों से शहरों मैं नौकरी ढूंढने के लोए लोग नहीं आ रहे हें .आई टी सेक्टर मैं सालाना नयी नौकरियां निम्नतम स्तर ६०००० पर हें जो २ लाख हुआ करती थीं और बहुत लोगों को नौकरी से निकाला गया है .
सिटी बैंक अमरीकी है और हो सकता है कि इसके आंकड़े भी पूरे सही न हों या सरकार को बदनाम करने के लिए हों . परन्तु जनता को रिज़र्व बैंक से अधिक इन पर विश्वास है क्योंकि यह जग विदित वास्तविकता के अधिक पास हें.
कुछ सात से दस हज़ार रूपये मासिक के डेलिवरी बॉयज की नौकरियां बढी हें और अब बाज़ार जाने के बजाय घर बैठे चीजें आ जाती है . पर शिक्षित बेरोजगार युवक के लिए कुछ नहीं है और उसे पकोड़े बेचने की सलाह दे दी जाती है.
उद्योगपतियों के लाखों करोड़ के कर्जे माफ़ कर और कॉर्पोरेट टेक्स मैं छूट दे कर बेहद धन खर्च किया जाता है . गरीबों का राशन खुले आम बिक रहा है पर तब भी चल रहा है. पर वेतन भोगी वर्ग पर टैक्स कम करने के दस साल पुराने वायदे को पूरा करते समय सब रूपये आने पाई गिनने लगते हें . देश का बजट सेठों के लिए सेठों द्वारा ही बनाया जाता प्रतीत होता है . अन्यथा सिर्फ मध्यम वर्ग से सरकार की दुश्मनी का औचित्य नहीं समझ आता . देश कि प्रगति इसी वर्ग के काम से होती है पर भीख की लाइन मैं आखिर मैं खड़े इस वर्ग तक पहुँचते पहुँचते पैसा खतम हो जाता है .
देश का इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ रहा है पर इसमें बढ़ता भ्रष्टाचार रोज़ टूटते पुलों से जग जाहिर है.
इस पर रिज़र्व बैंक के तुर्रे पर सिर्फ यही कहा जा सकता है
अंधेर नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा