National Defence : Resolute Pakistan and Pusillanimous India : हम तीस साल मैं हवाई जहाज नहीं खरीद सके उसने परमाणु बम , मिसाइल और जे फ़ – १७ हवाई जहाज बना लिए – क्यों ?
भारत १९६२ और पाकिस्तान १९७१ – दो देश दो हारें और इतनी भिन्न प्रतिक्रया !
क्या भारत अगली बड़ी लड़ाई मैं फिर हारेगा ? संभवतः हाँ पर क्यों ?
कभी कभी तो अपने देश पर दया आती है और कभी अत्यधिक क्रोध भी क्योंकि कभी एक रहे भारत व पाकिस्तान की युद्ध मैं शर्मनाक हार झेलने के बाद इतनी भिन्न प्रतिक्रया क्यों हुयी . बंगला देश कि हार के एक महीने मैं पाकिस्तान के प्रधान मंत्री भुट्टो ने देश के वैज्ञानिकों , सेना व सिविलियन अफसरों कि एक मीटिंग मुल्तान मैं बुलाई और पूछा क्या पाकिस्तान परमाणु बम बना सकता है ? न किसी के पास पैसा था ,न तकनीक ,न सामान ,न ज्ञान पर भुट्टो के पास एक नेता का राष्ट्र को प्रेरित करने का हुनर था और लौह समान इच्छा शक्ति .
पहले भुट्टो पैसे के लिए इस्लामिक देशों के दौरे पर निकल गए . अबू धाबी के शेख जायद व लीबिया के कर्नल गद्दाफी ने हिम्मत बढ़ाई और मदद का आश्वासन दिया . एक वैज्ञानिक ए क्यू खान ने परमाणु बम की तकनीक चुरा कर दे दी और सारे पुर्जे स्मग्गल किये गए. बहुत मदद भारत के दुश्मन चीन से ली. इस सब के लिए बहुत से पैसे की आवश्यकता थी और पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था मैं इतने पैसे खर्च करने की गुंजाइश नहीं थी .
इसलिए मजबूरी मैं अनेक बुराईयों वाली , पर एक दृढ संकल्प आई एस आई के एक फ़ौजी जनरल ने अफीम और हेरोइन के पैसा कमा कर बम बनाने का बेहद कठिन परन्तु एकमात्र संभव फैसला ले लिया . मनी लौन्दियारिंग के लिए एक बैंक BCCI कि स्थापना की गयी . अफ़ग़ान पाकिस्तान सीमा पर दो सौ हेरोइन बनाने की फक्ट्रियाँ लगाई गयीं . दक्षिणी अमरीका के कोलंबिया , पनामा इत्यादि देशों के अन्तराष्ट्रीय Drug Smugglers को पैसा लौंडर करने के बीसीसीआइ बैंक की सहूलियतें दीं और इस तरह एक पूरा अंतर्राष्ट्रीय ड्रग नेटवर्क बना लिया . अमरीका को रूस के विरुद्ध अफ़ग़ान लड़ाई मैं मुजाहिद दिए और उसके परमाणु बम के विरोध को समाप्त कर दिया . इसी तरह ओसामा बिन लादेन के समय दोहरी चाल मैं अमरीका को फंसा लिया .
इस तरह १९९८ मैं जब भारत ने चार परमाणु बम फोड़े पाकिस्तान ने जबाब मैं पांच बम फोड़ दिए . शीघ्र ही पाकिस्तान ने गजनवी मिसाइल व जे ऍफ़ – १७ कि फक्टारियां लगा लीं . अब अमरीका भी पाकिस्तान से डरता है.
पाकिस्तान की १९७१ की तरह हमने तो हर लड़ाई मैं हारने की परिपाटी बनाली चाहे वह अँगरेज़ हों या गौरी या गजनी . हज़ार साल की गुलामी भी सही पर कुछ नहीं सीखा ! १९६२ मैं हम Ordnance Factories मैं काफी मशीन बनाने व सैनिकों से घर बनवाने मैं व्यस्त थे और चीन हमारी ९०००० किलोमीटर ज़मीन ले गया . भारत अपनी रक्षा करने मैं पूर्णतः असमर्थ था . चीन ने अपने आप युद्ध विराम घोषित कर हमारी जान बचाई .नेहरु व कृष्णा मेनन अपनी Diplomacy के विकल्प के स्वपन लोक मैं ही विचरते रह गए और चौऊ एन लाइ व माओ ने हमारी सब इज्ज़त सदा के लिए धुल धूसरित कर दी.
पिछले साठ सालों मैं सिर्फ नेताओं के नाम ही बदले , देश की रक्षा की उपेक्षा बरकरार रही . जब मुंबई व संसद पर हमला हुआ तो टैंक व तोपों के गोले नहीं थे . जब अभिनन्दन उड़ा तो पाकिस्तान ने हमारी संचार लाइन काट दी क्योंकि किसी बाबू को कंप्यूटर लिंक आयात करने की आवश्यकता नहीं लगी. जीडीपी का ढाई प्रतिशत रक्षा पर खर्च करने के बजाय मुफ्त का राशन बंटते रहे !जिन तीस सालों मैं पाकिस्तान ने परमाणु बम और मिसाइल बना लिए हम ११४ हवाई जहाज का टेंडर पर फैसला नहीं ले सके . हमारे अधमरे मिग २१ आज भी हाँफते हुए उड तो रहे हें पर अब तो उनसे चील कौए भी नहीं डरते !
इस द्वन्द का अंत वही होता है जो सदियों से होता आया है . न चीन न ही पाकिस्तान हमें कुछ समझते हें न ही बिलकुल डरते हें . राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने तो सार्वजानिक तौर पर कह दिया कि युद्ध करना है तो कर लो ! हम ही सीमा पर आठ महीने सेना रख हट गये . चीन ने लद्दाख , अरुणांचल , दोक्लम इत्यादि पर समय समय हमले किये और धीरे धीरे थोड़ी थोड़ी कर जमीन हड़पता गया . चीन सिर्फ शक्ति की भाषा समझता है . चीन छोडिये हम तो अब पाकिस्तान को भी नहीं हरा सकते. इंग्लॅण्ड के प्रधान मंत्री चेम्बर्लेंन व नेहरु जी की तरह हम आज भी अपनी सैन्य शक्ति के बजाय अपनी Diplomacy पर अधिक विश्वास कर रहे हें जब कि देश के हर तरफ खतरे बढ़ रहे हें .
फिर किसी न किसी दिन किसी आगामी युद्ध मैं हमारा यह भ्रम टूटेगा !
दिनकर ने कहा था कि क्षमा शोभती उस भुजंग को जिस के पास गरल हो !
भारत की रक्षा उसकी सेनायें ही कर सकती हें . अभी भी समय है कि हम अपनी प्राथमिकताएं बद्लें और देश के रक्षा पर उचित खर्च कर देश को सुरक्षित करें .