Ghrishneshwar jyotirling – 12

The twelth jyotirling of Ghrishneshwar ls located in near Elora  caves and Auragabad. It was restored by Grand Father of Shivaji and subsequently by Ahilya Bai. It is considered last jyotirling and often people go to Pashupatinath in Kathmandu from here .

 

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      Ghrishneshwar Jyotirling /  घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग: आस्था का सैलाब     

 

जय घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग

मेरी पिछली पोस्ट में मैंने आपको अवगत कराया था औरंगाबाद तथा आसपास के दर्शनीय स्थलों से, और आइये अब मैं आपको लिए चलता हूँ औरंगाबाद के ही समीप स्थित घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर तथा एलोरा की प्रसिद्द गुफाओं के दर्शन कराने के लिए.

 

जय घृष्णेश्वर

श्री घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर: एक परिचयघृष्णेश्वर या घुश्मेश्वर एक प्रसिद्द शिव मंदिर है तथा हिन्दू पुराणों के अनुसार शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. रुद्रकोटीसंहिता, शिव महापुराण स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगस्तोत्रं के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग बारहवें तथा अंतिम क्रम पर आता है. यह मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद शहर के समीप दौलताबाद से 11  किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. यह स्थान विश्वप्रसिद्ध एलोरा गुफाओं से एकदम लगा हुआ तथा वेलुर नामक गाँव में स्थित है.

इस मंदिर का जीर्णोद्धार सर्वप्रथम 16 वीं शताब्दी में वेरुल के ही मालोजी राजे भोंसले (छत्रपति शिवाजी महाराज के दादा) के द्वारा तथा पुनः 18 वीं शताब्दी में इंदौर की महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर के द्वारा करवाया गया था जिन्होंने वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर तथा गया के विष्णुपद मंदिर तथा अन्य कई मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था.

प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों में इसे कुम्कुमेश्वर के नाम से भी संदर्भित किया गया है. इस मंदिर को इसके चित्ताकर्षक शिल्प के लिए भी जाना जाता है. यदि क्रम की बात करें तो हिन्दुओं के लिए  घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा का मतलब होता है बारह ज्योतिर्लिंग यात्रा का समापन. घृष्णेश्वर दर्शन के बाद द्वादश ज्योतिर्लिंग यात्रा को पूर्णता प्रदान करने के लिए श्रद्धालु काठमांडू, (नेपाल) स्थित पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए जाते हैं. घृष्णेश्वर मंदिर एलोरा गुफाओं से मात्र 500 मीटर की दुरी पर तथा औरंगाबाद से 30 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है. औरंगाबाद से घृष्णेश्वर का 45  मिनट का सफ़र यादगार होता है क्योंकि यह रास्ता नयनाभिराम सह्याद्री पर्वत के सामानांतर दौलताबाद, खुलताबाद और एलोरा गुफाओं से होकर जाता है.

 

श्री घृष्णेश्वर मंदिर

 

श्री घृष्णेश्वर मंदिर के सामने विराजमान नंदी जी

 

कहाँ ठहरें:

यदि आप औरंगाबाद में ठहरना चाहते हैं तो यहाँ पर 300 रु. से लेकर 2500 रु. की रेंज में ढेर सारे होटल उपलब्ध हैं. यदि आप घ्राश्नेश्वर में रुकना चाहते हैं तो घ्राश्नेश्वर मंदिर ट्रस्ट के द्वारा संचालित यात्री निवास में ठहर सकते हैं, यहाँ एक कमरे का किराया 200 रु. तथा हाल का किराया 500 रु. है. घ्रश्नेश्वर मंदिर तथा एलोरा गुफाओं के समीप दो प्राइवेट होटल्स भी हैं जिंक किराया 800 से 2000 के बीच है.

घृष्णेश्वर मंदिर शिल्प: घृष्णेश्वर मंदिर बड़ा ही सुन्दर मंदिर है तथा इसके चारों ओर का वातावरण भी रमणीय है. यह मंदिर प्राचीन हिन्दू शिल्पकला का एक बेजोड़ नमूना है. इस मंदिर में तिन द्वार हैं एक महाद्वार तथा दो पक्षद्वार. मंदिर प्रवेश से पहले श्रद्धालु कुछ देर कोकिला मंदिर में रुकते हैं, यहाँ माता के हाथ ऊपर की ओर उठे हुए हैं जो भगवान शिव को श्रद्धालुओं के आगमन की सुचना देते प्रतीत होते हैं. गर्भगृह के ठीक सामने एक विस्तृत सभाग्रह है, सभा मंडप मजबूत पाषाण स्तंभों पर आधारित है इन स्तंभों पर सुन्दर नक्काशी की हुई है जो मंदिर की सुन्दरता को द्विगुणित करती है. सभामंड़प में पाषाण की ही नंदी जी की मूर्ति स्थित है जो की ज्योतिर्लिंग के ठीक सामने है.

मंदिर के अर्धउंचाई के लाल पत्थर पर दशावतार के द्रश्य दर्शानेवाली तथा अन्य अनेक देवी देवताओं की मूर्तियाँ खुदवाई गई हैं. 24 पत्थर के खम्भों पर सभामंड़प बनाया गया है. पत्थरों पर अति उत्तम नक्काशी उकेरी गई है. मंडप के मध्य में कछुआ है और दिवार की कमान पर गणेशजी की मूर्ति है.

श्री जयराम भाटिया नाम के गुजरती भक्त ने  मंदिर को सोने का पता लगाया हुआ ताम्र कलश भेंट किया है जो मंदिर की शोभा को चार चाँद लगाता प्रतीत होता है.

 

श्री घृष्णेश्वर मंदिर

 

श्री घृष्णेश्वर मंदिर

 

श्री घृष्णेश्वर मंदिर के सामने स्थित एक प्राचीन शिवलिंग.

गर्भगृह: घृष्णेश्वर मंदिर का गर्भगृह अपेक्षाकृत बड़ा है (17X17  फिट) जो की श्रद्धालुओं को पूजन अभिषेक करने के लिए पर्याप्त जगह प्रदान करता है. गर्भगृह के अन्दर ही एक बड़े आकार  का शिवलिंग (ज्योतिर्लिंग) स्थित है, ज्योतिर्लिंग पूर्वाभिमुखी है जो की अपने आप में विशिष्ट है. सभा मंड़प की तुलना में गर्भगृह का स्तर थोडा निचे है. गर्भगृह की चौखट पर और मंदिर में अन्य जगहों पर फुल पत्ते, पशु पक्षी और मनुष्यों की अनेक भाव मुद्राओं का शिल्पांकन किया गया है.

भक्तो के लिए नियम: यहाँ पर मंदिर में प्रवेश से पहले ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने के लिए पुरुष भक्तों को अपने शरीर से शर्ट (कमीज) एवं बनियान तथा बेल्ट उतरना पड़ता है. वैसे दक्षिण भारत के मंदिरों में यह प्रथ बहुधा देखने को मिलती है लेकिन उत्तर तथा मध्य भारत के मंदिरों में यदा कदा ही दष्टिगोचर होती है. इस परंपरा के पीछे क्या कारण है कोई नहीं जानता.

मंदिर समय सारणी: मंदिर रोज सुबह 5 :30 को खुलता है तथा रात 9 :30  को बंद होता है. श्रावण के पावन महीने में मंदिर सुबह 3  बजे से रात 11 बजे तक खुला रहता है. मुख्य त्रिकाल पूजा तथा आरती सुबह 6 बजे तथा रात 8 बजे होती है. महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान् शिव की पालकी को समीपस्थ शिवालय तीर्थ कुंड तक ले जाया जाता है. मंदिर प्रबंधन: श्री घृष्णेश्वर मंदिर का प्रबंधन श्री घृष्णेश्वर मंदिर देवस्थान ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है. स्थानीय पुरोहित एवं कुछ गणमान्य नागरिक इस ट्रस्ट के कमिटी मेम्बर्स हैं.

श्री घृष्णेश्वर मंदिर परिसर

पूजन अभिषेक:

मंदिर प्रबंधन समिति के द्वारा भक्तों के लिए कई  तरह के पूजन अभिषेक की व्यवस्था है. साधारण अभिषेक, रूद्र अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक आदि रुपये 250 से लेकर 500 तक में करवाया जा सकता है. भक्त गण तय शुल्क ट्रस्ट के ऑफिस में जमा करवा कर उसी दिन या अगले दिन अभिषेक करवा सकते हैं. यहाँ पर भक्तों को गर्भगृह में प्रवेश करके ज्योतिर्लिंग पर सीधे अभिषेक / पूजन की अनुमति है.

ये तो थी एक संक्षिप्त जानकारी श्री घृष्णेश्वर मंदिर के बारे में अब हम वापस लौटते हैं हमारी घुमक्कड़ी की ओर, सुबह नौ बजे के लगभग हम मंदिर के समीप पहुँच गए. मंदिर में प्रवेश करते ही मंदिर का शिल्प देखकर हम मंत्रमुग्ध हो गए, प्राचीन शिवमंदिरों की बात ही कुछ और होती है.

मंदिर का सुन्दर शिल्प, आस पास का शिवमय माहौल, परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा अन्य छोटे बड़े मंदिर, मन्दिर के समीप सजी छोटी छोटी पूजन सामग्री की दुकानें, स्थानीय महिलाओं तथा बच्चों के हाथ में बेचने के लिए बिल्व पत्र, आंकड़े के फूल आदि सबकुछ एक स्वप्न की तरह लग रहा था, एक शिवभक्त को आत्मा की ताजगी और क्या चाहिए?

खैर, जैसा की साथी घुमक्कड़ जानते ही हैं की शिव मंदिर में पहुँचने के बाद हमारा प्रयास होता है शिव जी का अभिषेक करना अतः हमने भी एक पंडित जी से रुद्राभिषेक के लिए 250 रुपये में बात कर ली. उन पंडित जी का नाम मुझे अभी भी याद है – पंडित सुधाकर वैद्य.

विदेशी महिला की शिवभक्तिएक घटना जो हमारे मानसपटल पर हमेशा के लिए अंकित हो गई:

दर्शन तथा अभिषेक के लिए तय किये गए पंडित जी के साथ गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए मंदिर के नियमों के अनुसार मुझे अपने शरीर के उपरी भाग के वस्त्रों (शर्ट तथा बनियान) को मंदिर के बाहर ही उतार कर रखना था अतः मैंने अपने कपडे बाहर ही रख दिए और मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किया.

अन्दर गर्भगृह में भक्तों की अच्छी खासी भीड़ थी, वहां पर एक विदेशी दम्पति (पति पत्नी) भी मौजूद थे, गर्भगृह में पूजन अभिषेक के दौरान हम क्या देखते हैं की वह विदेशी महिला ज्योतिर्लिंग को स्पर्श करने के लिए झुकी और अचानक ही ज्योतिर्लिंग से लिपट गयी और रोने लगी, उस विदेशी महिला का चेहरा तथा आँखें एकदम लाल हो गए थे और उसकी आँखों से लगातार आंसू बह रहे थे. मंदिर के पण्डे पुजारी उसे वहां से हटाने की कोशिश में लगे थे क्योंकि उसकी वजह से बाकी भक्त अपनी पूजा अभिषेक नहीं कर पा रहे थे. पुजारी तथा अन्य महिलाएं उसकी बाहें पकड़ कर उसे खींचकर ज्योतिर्लिंग से अलग करने में लगे थे लेकिन उसने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी थी की कोई उसे भगवान् से अलग न करे, पुजारियों के सारे प्रयास निष्फल हो रहे थे. उस विदेशी महिला का पति भी उसे छुड़ाने के सारे प्रयास कर चूका था लेकिन वह भी बड़ी ढीठ निकली किसी के हिलाने से नहीं हिली, हम सब गर्भगृह में खड़े भक्ति का यह अद्भुत मंजर देख रहे थे.

अंततः कुछ देर के बाद वह स्वयं ही रोते हुए खड़ी हुई और गर्भगृह से बाहर चली गयी. उस विदेशी महिला की भक्ति देखकर हम स्तब्ध रह गए, उसके बारे में जानने की इच्छा मन में लिए हम अपने पूजन अभिषेक के लिए पंडित जी के साथ ज्योतिर्लिंग के समीप बैठ गए.

कुछ देर के बाद जब हमारा अभिषेक सम्पन्न हुआ और हम भी बाहर आये तो वही विदेशी महिला अपने चेहरे पर मुस्कान लिए अपने पति के साथ हमने मंदिर के बाहर कड़ी दिखाई दे गई. उसके बारे में जानने के लिए हम पहले से ही लालायित थे अतः हम सब उस जोड़े के करीब पहुँच गए और मैंने उनसे अंग्रेजी में बात करना शुरू की तथा उनके बारे में जानने की चेष्टा जाहिर की, उन्होंने बड़े ही प्रेमपूर्वक मेरे प्रश्नों का जवाब दिया और बताया की वे लोग इंग्लैंड (यु. के.) के नागरिक हैं तथा शिव के भक्त हैं, उस महिला ने अपना मूल नाम बदल कर हिन्दू नाम शिवामी रख लिया था तथा वे प्रतिवर्ष भगवान् के दर्शनों के लिए इंग्लैंड से घृष्णेश्वर मंदिर आते हैं. यह सब सुनकर मैं तो अपने परिवार सहित उस महिला की भक्ति के आगे नतमस्तक हो गया. फिर हमने अपने बच्चों के साथ शिवामी के कुछ फोटोग्राफ्स भी लिए.

 

श्री घृष्णेश्वर मंदिर परिसर में शिवामी, शिवम् और संस्कृति

 

भगवान् शिव के संतोषजनक दर्शन तथा अभिषेक के बाद अब हमर अगला पड़ाव था विश्वप्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं का अवलोकन करना जो की घ्रश्नेश्वर मंदिर से पैदल दुरी (आधा किलोमीटर) पर स्थित है, है न फायदे का सौदा एक तरफ भगवान् शिव का ज्योतिर्लिंग और उसके इतने करीब विश्वप्रसिद्ध एतिहासिक महत्व की गुफाएं.

एलोरा की विश्वप्रसिद्ध गुफाएं:

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर से कुछ 500 मीटर की दुरी पर एलोरा की गुफाएं स्थित हैं. इन गुफाओं को यूनेस्को विश्व विरासत स्थल (Unesco World Heritage Site) का दर्जा प्राप्त है. वस्तुतः ये गुफा मंदिरों का एक समूह है जिसमें हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों के मन्दिर तथा मूर्तियाँ स्थित हैं.

एलोरा में कुल 34  गुफाएं हैं जिनमें से क्रमांक 1 से 12 गुफाएं बौद्ध धर्म की हैं, अगली 16 गुफाएं हिन्दू धर्म से सम्बन्धित हैं तथा क्रमांक 30 से 34 गुफाएं जैन धर्म का प्रतिनिधित्व करती हैं. ये गुफाएं 500 -700 ए.डी. में राष्ट्रकूट राजाओं ने बनवाई थीं.

 

एलोरा गुफाएं

 

एलोरा गुफाएं

 

एलोरा गुफाएं और कविता

 

एलोरा गुफाएं, कविता और संस्कृति

 

संस्कृति एलोरा गुफाओं में

 

इन गुफाओं का गहन अध्ययन तथा भ्रमण करने के लिए यात्री को एक पूरा दिन लगता है. यहाँ पर सशुल्क गाइड भी उपलब्ध हैं. अन्य प्रसिद्द गुफाएं अजंता की गुफाएं यहाँ से 106 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है.

गुफा नंबर 16 (कैलाशनाथ मंदिर):

गुफा नंबर 16 जिसे कैलाशनाथ या कैलाश भी कहते हैं, एलोरा गुफाओं का एक अद्वितीय, अतुल्य, अद्भुत केंद्र बिंदु है. विशेषकर हिन्दू यात्रियों के लिए एलोरा में यह एक मुख्य आकर्षण का केंद्र है. यह एक बहुमंजिला गुफा मंदिर है तथा भगवान् शिव के निवास स्थान कैलाश पर्वत का प्रतिनिधित्व करता है.

 

गुफा नंबर 16 (कैलाशनाथ मंदिर)

 

कैलाशनाथ मंदिर में शिवलिंग.

 

एलोरा की इन सुन्दर गुफाओं के दर्शनों के पश्चात लौटते हुए हमने खुलताबाद तथा दौलताबाद आदि के दर्शन किये जिनका वर्णन मैंने अपनी पिछली पोस्ट में किया है. और अंत में हम शाम तक औरंगाबाद स्थित अपने होटल पहुँच गए तथा अगले दिन बस के द्वारा अपने घर पहुँच गए.

महत्वपूर्ण जानकारी: 1 . घ्रश्नेश्वर से अन्य स्थानों की दूरियां इस प्रकार हैं – औरंगाबाद 30 किलोमीटर, मुंबई 422 कि.मी. और वेरुल केवल आधा किलोमीटर. 2  . नजदीकी रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा औरंगाबाद है. 3 . घ्रश्नेश्वर, परली वैजनाथ औ औंढा नागनाथ यह तीनों ज्योतिर्लिंग क्षेत्र एक ही मार्ग में होने के कारण एक साथ ही इन तीनों क्षेतों कि यात्रा कि जा सकती है. ४. औरंगाबाद बस स्टेंड से वेरुल के लिए भारी मात्र में एस. टी. बसें उपलब्ध हैं. औरंगाबाद में मध्यवर्ती बस स्थानक से वेरुल ट्रिप (घ्रश्नेश्वर, एलोरा, दौलताबाद, खुलताबाद, भद्र मारुती, पैठन दर्शन ) के लिए सुबह 7 .30 बजे से प्रारंभ होने वाली बस कि सुविधा गाइड के साथ उपलब्ध है जो कि शाम 5 .00 बजे वापस लौटती है. 5 . औरंगाबाद में ठहरने के लिए भारी मात्रा में गेस्ट हाउस, धर्मशालाएं और पांच सितारा होटलें उपलब्ध हैं.

इस पोस्ट को अब मैं यहीं समाप्त करने की आगया चाहता हूँ इस वादे के साथ की जल्द ही फिर उपस्थित होऊंगा अपनी अगली पोस्ट के साथ.

पाठकों की प्रतिक्रियाओं का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा.

About Mukesh Bhalse

Mukesh Bhalse has written 41 posts at Ghumakkar.

I am a Mechanical Engineer & Business Administration Graduate by education and a Quality Manager by profession. I stay near Indore (MP). Traveling, Music, Literature and natural beauty in rains are my passion. I am fond of knowing culture of different places, visiting new places. We (My family) are devotees of Lord Shiva and are extremely interested in visiting abodes of lord shiva (Shivalayas). We took a pledge to visit at least one Jyortirlinga each year and so far we have completed Ten (10). Our recent jyotirling visit was Bhimashankar Jyotirling and next we have planned to visit Rameshwaram Jyotirling. Visit My Blog: http://mukeshbhalse.blogspot.com

 

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