5:32 pm - Wednesday November 25, 1564

मल्लिका, शहज़ादा और समलैंगिकता – Bipin Kishor Sinha

The Queen Empress,  who rarely speaks on topics of even national importance , was amongst the first one committing herself and Congress party to reverse the Supreme Court Judgement on scction 377  on homosexuality . It was followed by the Prince himself supporting the High Court Judgement over the Supreme Court. Paty leaders like Sibal , Shinde promptly went into retreat mode . They dare not reverse  the Congress culture of silence and nodding of heads in unison after the queen empress has spoken .

BJP however struck a discordant note and  was far closer to Indian masses . Gaan-u , a close equivalent of homosexuality is the most popular hindi abuse for boys. Homosexuality is an abuse.

Incident revealed the dangers of keeping nation’s intelligence in Italian Safety vaults.

There is a case for visiting section 377 to the extent a natural deviant  inclination between consenting adults need not be criminalized . The section also criminalises anal and oral sex between husband and wife , which is so common these days . The first complaint lodged  after the Supreme Court judgement was of a Indian  wife on honeymoon in Thailand.

In India Allauddin Khilji who fell for Rani Padmini , had a very brave but homosexual slave  partner in his general  Malik Kafur .Many Nababs practiced it .  Alexender too had a male friend . Homosexuality is unnatural , deviant but not dangerous . But who knows it may bring Aids or some sexually transmitted diseases.

But no one can or should  bring ordinance to permit gay marriage freedom , soliciting gay partner , adopting child for running family etc . But they should not be treated as in Pakistani film ‘ Bol’ where a father kills a15 yrs old  tansexual son due to feeling of shame . A decent life to handicapped is often considered a liberal dream . It is no fault if one is born transsexual or Lesbian or Homosexual . Possibly giving them a life of dignity is OK . But overstretching the word ‘ Dignity ‘ may remain criminalized .

There is need to remain balanced and not swayed by paid media on TV.

The views expressed by author are his personal views not that of editors

 

मल्लिका, शहज़ादा और समलैंगिकता

      समलैंगिक संबन्धों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के खिलाफ़ एक बार सारी अनैतिक शक्तियां एकजूट हो रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को विवादास्पद बनाने की मुहीम में समलैंगिकों के साथ मल्लिका-ए-हिन्दुस्तान, शहज़ादा-ए-हिन्दुस्तान और दिल्ली के बेताज़ बादशाह भी शामिल हो गये हैं। नीचे पेश है, उनके वक्तव्य –

‘दिल्ली हाईकोर्ट के फ़ैसले को पलटने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश से निराशा हुई है। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि संसद इस मामले को सुलझायेगी और देश के सभी नागरिकों के (विशेष रूप से समलैंगिकों के) अधिकारों की स्वतंत्रता की रक्षा करेगी, जिसमें वे नागरिक भी शामिल हैं जो इस फ़ैसले से सीधे प्रभावित हुए हैं’।’

–सोनिया गांधी, अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, नई दिल्ली, दिनांक १२-१२-२०१३

‘वे दिल्ली हाईकोर्ट के उस फ़ैसले से सहमत हैं, जिसने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया था। सरकार दिल्ली हाईकोर्ट के भारतीय दंड संहिता की धारा ३७७ पर दिए गए फ़ैसले को बहाल करवाने के लिए सभी विकल्पों पर विचार कर रही है।”

—- राहुल गांधी, उपाध्यक्ष,  भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, नई दिल्ली, दिनांक १२-१२ २०१३

‘आम आदमी पार्टी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से सहमत नहीं है। यह फ़ैसला संविधान के उदार मूल्यों के विपरीत और मानवाधिकारों का हनन करने वाला है। आप ने उम्मीद जताई है कि शीर्ष अदालत अपने फ़ैसले की समीक्षा करेगी और साथ ही संसद भी कानून को बदलने के लिये कदम उठायेगी।”

—- प्रवक्ता, आप, नई दिल्ली, दिनांक १२-१२-२०१३

उपरोक्त अधिकृत वक्तव्यों की विस्तार से व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है।  देश का अनपढ़ आदमी भी उनके संदेश और मन्तव्य को समझ सकता है। ये वक्तव्य देश के उन नेताओं के हैं जो देश की सरकार चला रहे हैं या जनता की नई आवाज़ होने का दावा कर रहे हैं। मेरे इस लेख का मकसद देश के इन शीर्ष नेताओं की मानसिकता से देश को अवगत कराना है।

कांग्रेस ने आरंभ से ही अपने देश की संसकृति, सभ्यता और अखंडता को खंड-खंड करने का कभी सफल, तो कभी असफल प्रयास किया है। बांग्ला देश और पाकिस्तान १४ अगस्त, १९४७ के पूर्व अखंड भारत के ही हिस्से थे। देश के विभाजन का अक्षम्य अपराध कांग्रेस ने किया, सज़ा तीनों देशों के बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक, आज तक भुगत रहे हैं। कांग्रेस ने इस पाप के लिये आजतक न माफ़ी मांगी है और न खेद प्रकट किया है। भारतीय सभ्यता, संस्कृति और भाषा से इनका रिश्ता हमेशा छ्त्तीस का रहा है। बड़े दुःख के साथ इतिहास के पुराने पन्ने खोलने पड़ रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू की रंगीन मिज़ाज़ी के प्रमाण अनेक पुस्तकों और लेडी माउन्टबैटन के साथ उनके प्रकाशित प्रेम-पत्रों में दर्ज़ है, जिन्हें नेट पर जाकर कोई भी पढ़ सकता है। पत्नी कमला नेहरू के देहान्त के बाद भारत कोकिला सरोजिनी नायडू की पुत्री पद्मजा नायडू से नेहरूजी के रिश्ते की तरह थे। उनके प्रधान मंत्री बनने के बाद वे उनके साथ त्रिमूर्ती भवन में ही रहती थीं। नेहरूजी ने उनसे वादा किया था कि देश आज़ाद होने के बाद वे उनस। लेकिन लेडी माउन्ट्बैटन के भारत आगमन के बाद सारे समीकरण बदल गये। जैसे-जैसे नेहरूजी और लेडी वायसराय के संबन्ध अन्तरंग होते गए, पद्मजा दूर होती गईं। एक दिन पद्मजा ने रोते हुए त्रिमूर्ति भवन हमेशा के लिये छोड़ दिया। नेहरूजी की बेवफ़ाई को जीवन भर सीने से लगाकर उन्हों एकाकी जीवन ही व्यतीत किया। और भी किस्से हैं ………..चर्चा फिर कभी।( यह लेखक के निजी विचार हैं  – संपादक )

इन्दिरा गांधी ने नेहरू जी की इच्छा के खिलाफ़ विधर्मी से व्याह रचाया। महात्मा गांधी ने नव दंपत्ति का गांधीकरण किया, सिर्फ़ नाम से, जो आज भी चल रहा है। एक पुत्र की उत्पत्ति के बाद यह संबन्ध भी सिर्फ कागज पर ही रह गया। फ़िरोज़ गांधी को अकेले ही जीना पड़ा। विवाहेतर संबन्धों पर मौन ही रहा जाय तो अच्छा।

युवा हृदय सम्राट राजीव गांधी को कोई स्वदेशी लड़की कभी भायी ही नहीं। खानदान में अबतक हिन्दू और मुसलमान का ही प्रवेश हुआ था। अब विदेशी क्रिश्चियन की बारी थी। उन्होंने इस कमी की पूर्ति की। धर्म निरपेक्षता के लिये यह आवश्यक भी था। सोनिया गांधी भारत की राजमाता (खुर्शीद आलम के शब्दों में) बनीं। शहज़ादा पीछे क्यों रहते? उन्हें हार्वार्ड यूनिवर्सिटी के अपने असफल शिक्षा-अवधि के दौरान कैलिफोर्नियायी गर्ल-फ्रेन्ड पसन्द आई। शादी हिन्दुस्तान के शहन्शाह बनने के बाद होनी थी। फिलहाल नमो ने सारा खेल बिगाड़ दिया है। अब आशा के केन्द्र समलैंगिक रह गये हैं। आम जनता ने तो चार राज्यों में धूल चटा दी है, अब समलैंगिक वोट-बैंक ही शायद नैया पार लगाये।

इस मामले में सपनों के सौदागर अरविन्द केजरीवाल पीछे क्यों रहते। उनके प्रवक्ता कहते हैं कि युगों-युगों से विश्व के हर कोने में समलैंगिक संबन्ध रहे हैं। अतः इसे वैधानिकता प्रदान करना आवश्यक है। कोई इनसे पूछे कि क्या युगों-युगों से बलात्कार, वेश्यावृत्ति, हत्या, लूटपाट और भ्रष्टाचार का अस्तित्व नहीं रहा है? क्या इनको वैधानिक मान्यता देना आवश्यक नहीं है? केजरीवाल पिछले चुनाव में भाजपा से ४ सीटें कम पाकर दूसरे नंबर पर हैं। सरकार बना नहीं पा रहे हैं। शायद समलैंगिक वोट-बैंक पर उनकी भी नज़र हो।

देश के हिन्दू और मुसलमान किसी विषय पर विरले ही एकमत होते हैं। अगर ये दोनों समुदाय समलैंगिक संबन्धों की एकसाथ मुखालफ़त कर रहे हैं, तो इसे नज़र अन्दाज़ करना पूरे समाज और संस्कृति के लिये घातक होगा। इस देश के हिन्दू और मुसलमानों का मूल (Origin) एक ही होने के कारण उनकी मौलिक संस्कृति एक है। सामाजिक और जीवन-मूल्य भी एक ही है। ये दोनों समुदाय जिनकी इस देश में संयुक्त आबादी ९६% है, कभी भी समलैंगिकता की वैधानिकता को स्वीकर नहीं कर सकते। यह अप्राकृतिक संबन्ध विकृत मानसिकता की उपज है। मनुष्यों के अतिरिक्त किसी भी योनि – पशु-पक्षी, पेड़-पौधे में ऐसे संबन्ध आज तक प्रकाश में नहीं आये हैं – होते ही नहीं हैं। ऐसे संबन्ध प्रकृति द्वारा प्रदत्त सृष्टि को निरन्तर आगे बढ़ाने के लिये पुरुष और स्त्री के नैसर्गिक संबन्धों को खुली अनैतिक चुनौती है। इसका पूरी शक्ति से विरोध होना चाहिए। उन अनैतिक शक्तियों को, जो इसे संवैधानिक जामा पहनाने की खुलेआम मांग कर रहे हैं को बेनकाब और ध्वस्त करने का समय भी आ गया है। सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला संविधान सम्मत, मानवाधिकार सम्मत, धर्म सम्मत, लोक सम्मत और सर्वजनहितकारी है। इस फ़ैसले के लिये सुप्रीम कोर्ट की जितनी प्रशंसा की जाय, कम होगी। जजों को कोटिशः बधाई। सभ्यता, संस्कृति, जीवन-मूल्यों और नैतिकता विरोधी ताकतों को आन्दोलन, जनजागरण और चुनाव के माध्यम से सबक सिखाना सभी हिन्दुस्तानियों का दायित्व और पुनीत कर्त्तव्य है।

 

 

 

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