मीडिया के पक्षपात पूर्ण होने की खबर पुरानी हो चली , अब तो इस के देश द्रोह कि चर्चा करने की आवश्यकता है . कभी अंग्रेजों के ज़माने मैं सत्य को समर्पित, त्याग व् बलिदान का प्रतीक पत्रकारिता अब ब्लैकमेल को समर्पित हो , पैसे की रखेल हो गयी है. सुनने मैं आता है की बिना ब्लैकमेल केअच्छा चैनल चलाना संभव नहीं है. खर्चे ही इतने ज्यादा हैं . जी समाचार के संपादकों की गिरफ्तारी पहला किस्सा नहीं था. वह तो दो हाथियों कि लड़ाई थी जिसमें सम्पादक मारे गए . इस खतनाक धरना का अंत कहाँ होगा सोचिये?
यह और खतरनाक हो जाता है जब विदेशी धन को भी गले लगाया जाता है चाहे वह कितनी देश विरोधी क्यों न हो. .
मोदी के काल मैं गोधरा दंगों को किसी प्रकार कोई भूल न जाए इसलिए हर संभव तरीके से उसके घावों को कुरेदा जाता है. भारत मैं कम से कम शंकराचार्य की रिहाई पर तो टीवी चैनल पर उतनी ही चर्चा होनी चाहिए जितनी उनकी गिरफ्तारी पर. आज कल इन्टरनेट परकुछ लेख प्रचलित हैं जिनके पूरे सच होने का पता लगाना हमारे लिए संभव नहीं है . पर वह सच प्रतीत होती हैं क्योंकि उनमें से सत्य की गंध आ रही है.
जहां शंकराचार्य की गिरफ्तारी पर तीन सौ घंटे की कवरेज़ थी वहां उनकी रिहाई को जी समाचार ने एक मिनिट की कवरेज़ दी.
मोदी पर सदा बोलने के लिए तैयार मीडिया ने अमरीकी अदालत के सोनिया को नोटिस पर चुप्पी साध ली.
इसलिए यह आवशयक है की देश की जनता को गुमराह करने के संभवतः विदेशी शक्तियों के इन प्रयासों को रोकने की आवश्यकता है.