India has paid a heavy price by letting foreigners control TV/ news media .
Foreigners are controlling what we read see or know . Look at the shameful way in which Narndra Modi was hounded in elections after elections by over dramatizing the muslim sufferings and ignoring hindu killings completely in Gujrat and communal riots elsewhere .
The increasing influence of petro dollars on USA and decreasing Church goers in West has made the Christian clergy and hierarchy very disturbed . There is a silent war reportedly going on between Christianity and Islam in increasing its followers . On the other hand, USA’s economy is becoming more and more dependent on oil trade being done in dollars . Saudi Arabia is exporting Wahabi islam in a big way and a lot of funding in west and elsewhere is being done by Islamic organisations . Even heavy foreign contributions were allegedly made in the election campaigns of Clinton , Tony Blair and Sarkozy . Libyan attack is rumored to have been made as Gaddafi had started threatening Sarkozy.West is mortally scared of terror . An informal understanding seems to be getting developed in letting religious organisations have a free run in third world including India while western governments will control the governments in these countries the way Drone attacks have been permitted in Pakistan . Unfortunately muslims are a big loser as in Iraq , Afghanistan , Libya etc which have been colonized effectively via proxy rulers . The same attempt is being made in India via blackmailable corrupt rulers . Since Modi and RSS cannot be blackmailed and hindu culture is what really unites the country , bold attempts are being made to destroy these institutions . Almost entire big media in India has come under foreign control and only parrots his masters voice . This paid reporting cannot be proved easily . Some day like match fixing we may know the entire story.
The common methodology being followed is by equating the unequals . Bangaru Laxamn’s case will be used to equate monumental coal gate and 2g embezzlements with some small bribes . or land allotments.
Till the Indian media is liberated from foreign control then we should not lose faith in pro hindu leaders , hindu institutions , sants and RSS due to adverse propaganda by HMV ( his masters voice ).
Saffron terror , defamation of hindu sants and RSS needs to be viewed in this perspective .
Hindu population must unite to save the country from the imminent neo colonization .
Two articles below illustrates these widespread feelings amongst hindus .
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सनातनी संतो पर सुनियोजित आक्रमण
भारत वर्ष में अनन्त काल से साधू सन्यासियों का अपना एक विशेष महत्व रहा है. अपने जीवन का सर्वस्व ,समाज को अर्पित करने वाला यह वर्ग भारत के महान इतिहास का कारण भी रहा है. जिसने दान ,दया ,त्याग तपस्या , अध्यात्म, धृति क्षमा,विवेक आदि गुणों को समाज के उत्कृष्टता के लिए समाज में रहने वाले व्यक्तियों के अन्दर डालने का कार्य किया. जिससे हमारा एक गौरवपूर्ण अतीत प्राप्त हुआ और भारत के अन्दर रहने वाले हर एक व्यक्ति के मन मष्तिष्क में इन साधू संतो सन्यासियों के प्रति सदैव से एक आदर का भाव रहा है.
पर वर्तमान के सन्दर्भ में हम बात करे तो यह पता चलता है की आज हम एक दुसरे स्थिति में खड़े है जहां पर भगवा वश्त्र को बदनाम करने के लिए अनेकानेक लोग इसका दुरुपयोग करने के लिए दिखाई देते हैं. ऋषि मुनियों की वैज्ञानिक , तार्किक , शाश्त्रसम्मत बातो को आगे बढाने वाले संत समाज में भारत के गुलामी के समय में आरोपित किये तमाम बुराई के चिन्ह आज उन पर दिखाई पड़ते है.पर फिर भी अनेकानेक साधू संत , राष्ट्रपुरुष भारत में हैं जो की सदैव राष्ट्र के चरमोत्कर्ष के बारे में न केवल सोचते है बल्कि कार्य भी करते हैं.
भारत में साधू संतो की संख्या बहुत भारी मात्रा में है , कुम्भादि विशाल समागम के मौको पर इस संख्या का प्रकटीकरण भी होता रहता है पर हम देखते हैं की ऐसे लोगो की संख्या अत्यल्प है जी की आज के समय में भी भारत के महान ऋषियों द्वारा निर्मित उस महान परंपरा के निहित उद्देश्यों को पाने का कार्य कर रहे हैं. परंपरा को ढ़ोने के लिए तैयार अनेक मठ, मंदिर, अखाड़े, पंथ हमे दिखाई देते हैं पर उन्हें मानो उस मठ मंदिर अखाड़े के अन्दर ही धर्म के अंतर्गत आने वाली परम्पराओं की चिंता है पर उस परंपरा का वास्तविक उद्देश्य यानी की व्यक्ति व्यक्ति के अन्दर धर्म के सभी दस लक्षनो की प्रबलता , राष्ट्रीय सोच का निर्माण, समाज के सुख में अपना सुख और उसी के दुःख में अपना दुःख देखने की प्रवृत्ती पैदा करने का मूल भाव और मूल लक्ष्य भूल बैठे हैं या जान बुझकर अनजान हैं. इस कारण ऐसे कमी ही साधू संत सन्यासी बचते है जो की ऊपर बताये उद्देशो के लिए कार्य करते हों.
कुल मिलकर कहा जाय तो अच्छे और राष्ट्रीय कार्यो को करने का प्रयत्न करने वाले साधू संतो सन्यासियों की संख्या अत्यल्प है. जो लोग कुछ कर रहे हैं उन्हें दो तरफ़ युद्ध लड़ना पड़ रहा है. पहला यह की की हिन्दू समाज के अन्दर विद्यमान धार्मिक जड़त्व के कारण जब कोई धर्मपुरुष कुछ राष्ट्रीय कार्य करता है तो अपने ही हिन्दू समाज के अनेकानेक लोग कहना शुरू कर देते हैं की बाबा , स्वामी , साधू ,संत ,सन्यासी आदि का कार्य राजनीति या राष्ट्रनीति निर्धारण करना नहीं है बल्कि उन्हें अपने मठ मंदिर में रहना चाहिए और फिर यही हिन्दुओं का जड़ समाज बैठकर उन सन्यासियों को गाली देना शुरू करता है की ये बाबा साधू संत आदि किसी काम के नहीं , ये केवल बैठकर खाते है ये पूरी तरह से राष्ट्र पर बोझ हैं.यानि की वो कुछ करे तो भी परेशानी और न करे तो भी परेशानी.
दूसरी लड़ाई उनकी उन विदेशी पन्थो से है जो महान हिन्दू संस्कृति को निगलने के लिए अपनी अनेकानेक शताब्दिया भारत में खपा चुकी हैं. अनेकानेक कोटि मुद्राए लूटा चुकी हैं पर आज भी पूरी तरह से भारत को अपना धार्मिक गुलाम बनाने में असफल रहीं हैं. पर फिर भी अपने समाज के जड़त्व के कारण माँ भारती के बड़े हिस्से को खा चुकी हैं और बचे हुए हिस्से को भी मनो क्षय रोग की भाति धीरे धीरे ही सही पर विनष्टीकरण के राह पर ले जाने में कामयाब होती दिख रही हैं. वर्तमान भारत के सभी सात पूर्वोत्तर राज्य , जम्मू कश्मीर का कश्मीर प्रांत , केरल का दक्षिन हिस्सा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के आठ जनपद इस समस्या के गंभीर स्थिति की और इशारा करते हैं.
इन सब परिस्थितियों में ऐसे लोग जो की जो की हर तरफ से निराश हो बैठे है या जिन्हें आजकल तथाकथित सेक्युलरवादियों मानवतावादियों विशाल बौद्धिकता वाले लोगो ने मुर्ख बना अपने बुद्धि का दास बना रक्खा है उनके लिए तो कोई चिंता का विषय नहीं है पर जो लोग अपने राष्ट्र ,संस्कृति ,सभ्यता , धर्म ,पहचान , अपने सम्पूर्ण समाज को समेकित राजनैतिक ,आर्थिक की चिंता करके उस पर कुछ कर्तव्य करने वाले है उन्हें आज तमाम संकतो का सामना करना पड़ रहा है. यह एक नितांत सामान्य सी बात है.
आज के समय में सत्ताधीश से लेकर न्यायाधीश तक , समाचार पत्र से लेकर आम आदमी तक जब मुद्रा के मुल्य के महत्व को नैतिकता और सामाजिक मुल्य से ज्यादा आंक रहा है तब की परिस्थिति में राष्ट्रीय चिंता से युक्त साधू सन्यासियों संतो को अपना राष्ट्रीय यग्य करना और मुश्किल बना दिया है. वे सभी संत जो अकर्मण्य बन मात्र थोथे पूजा पाठ और रीती रिवाज पालन में लगे है उन पर न तो कोई आरोप लगता है न कोई न्यायलय पूछता है न कोई सत्ताधीश गाली देने वाला न ही आम जनता आरोप प्रत्यारोप करने वाली न कोई मीडिया उनके पीछे पड़ने वाली, पर ऐसे लोग जो कुछ भी हिन्दू समाज के जागरण और राष्ट्र के उत्थान के लिए कार्य कर रहे उन्हें आज के समय में भारत के लोकतंत्र पर कब्जा कर चुकी तीन शक्तियां सताधीश , तथाकथित बुद्धिजीवी , और मीडिया तीनो मिलकर तरह तरह से बदनाम करने की साज़िश रचती हैं और न्यायालयों के निर्णय आने से पहले ही इस तरह का दुष्प्रचार का एक क्रम शुरू करते हैं मानो न्यायालय की कोई आवश्यकता ही नहीं. धीरे धीरे मुझे तो ऐसा लगाने लगा है की जिस जिस साधू संत के ऊपर ये नेता , तथाकथित बुद्धिजीवी और मीडिया एक साथ मिलकर आक्रमण करे तो यह समझ जाना चाहिए की उस संत ने जरुर कोई राष्ट्र एवं धर्म जागरण का वास्तिवक लक्ष्य पूर्ति का काम किया है. वरन इन तीनो के समेकित आक्रमण का कोई और कारन ही नहीं. हाल के दिनों में घटी ऐसी अनेकानेक घटनाएं मेरे संदेह को विश्वाश में बदलने का पूर्ण आधार प्रदान करती हैं.
गुजरात भारत का एक ऐसा राज्य है जहा पर हमारे वनवासी बंधू अत्यधिक संख्या में हैं. ऐसे स्थान ईसाई मिशनरियों के लिए अपनी मगरमच्छी संस्कृति को फ़ैलाने की मुफीद जगह होती हैं. वनवासी बंधुओं के गरीबी का फायदा उठाकर उन्हें उनके मूल से काटकर ईसाई बनाने का महान षड्यंत्र अनेक दशको से हमारे देश में चल रहा है इसे हम सभी जानते ही हैं. गुजरात के वनवासी बहुल जिलो में इन ईसाई मिशनरियों के कार्य को जडमूल से ख़तम करने और अपने धर्म संस्कृति की रक्षा के भाव से स्वामी असीमानंद नामक श्रेष्ठ संत ने अपना पूरा जीवन खपा दिया. उन वनवासी बंधुओं के मन से छोटापन का भाव निकाल कर उन्हें स्वाभिमान युक्त जीवन जीने की राह दिखने का कार्य स्वामी जी ने किया. उनके बच्चो को पढाना , उनको रोजगार के लिए तैयार करना , उनके इलाज़ की चिंता करना. ऐसी एक एक जिम्मेवारी लेने वाला यह व्यक्तित्व आज सम्मान पाने के बजाय अपना जीवन एक बंदी के रूप में व्यतीत कर रहा है. और भारत के एक बड़े नेता ने हिन्दू आतंकवाद शब्द का जन्म देकर उन्हें उसका जनक तक बताने की कोशिस की. वहीँ इंडियन एक्सप्रेस नामक समाचार पत्र ने झूठी खबर फैलाई की स्वामी जी को आतंकवादी घटना में शामिल होने का बड़ा भरी दुःख है और वो सभी तथाकथित निर्दोष मुस्लिम युवाओं से माफ़ी चाहते है जो उनके कारण परेशानी झेले.
और कई वर्षो तक सरकारी एजेंसियों के जांच के बाद एन आई इ ने अब जाकर यह साबित कर दिया की स्वामी जी पूरी तरह से निर्दोष हैं और उनका आतंकवाद से कोई लेना देना नहीं है. पर मीडिया सत्ताधीश और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने अपने दुष्प्रचार के बल पर आज उनको आतंकवाद का प्रतीक बना दिया पर अब इन तीनो को इन्ही के जांच संस्थाओं का रिपोर्ट पढ़ने का समय नहीं है.
पिछले कई शताब्दियों से भारत के श्रेष्ठतम ज्ञान में से एक योग विद्या का लोप सा हो गया था , जो की भारत के व्यक्ति व्यक्ति को जोड़ने और उनमे राष्ट्रीय भावना का संचार करने का काम करती थी. पर अब हम सभी को यह दिखाई देता है की पिछले चार पांच वर्षो से नगर नगर , ग्राम ग्राम में हर व्यक्ति योग विद्या के किसी न किसी को विधि को न केवल जान रहा है बल्कि कर भी रहा है. आज भारत में योग विद्या के प्रतीक के रूप में बाबा रामदेव को हम सभी जानते हैं. जब बाबा रामदेव ने योग विद्या के प्रथम चरण यानि की व्यक्ति के शरीर के लाभ की बात की तब तक तो यहीं सत्ताधीस उनके चरणों में उनके अभिवादन के लिए अग्रसर थे पर जैसे ही उन्होंने आगे बढ़कर समाज और व्यक्ति को राष्ट्र से जोड़ने का महान कार्य शुरू किया ये तीन शक्तिया एक साथ कड़ी हो गयीं. सबसे पहला वार तथाकथित बुद्धिजीवियों ने मीडिया के सहायता से करना शुरू किया की उनके द्वारा निर्मित औषधियों में पशुओं की हड्डिया मिलायी जाती है और इस विषय को वृंदा करात ने बड़े जोर शोर से उठाया और सरे कम्युनिस्ट उनके पीछे पीछे चिल्लाने लगे हलाकि बाद में जाँच के बाद सारी बात गलत साबित हो गयी. बुद्धिजीवियों पर इस नीचता के लिए प्रश्न न उठा मीडिया ने अपना कार्य किया. अगले क्रम में जब उन्होंने इस राष्ट्र के खजाने को विदेशियों के द्वार पर रखने यानि कालेधन का मुद्दा उठाया तो सरकार ने न केवल उन्हें तरह तरह से लन्क्षित करने का प्रयास किया बल्कि रात्रि में बल प्रयोग कर उनके एक समर्थक की ह्त्या भी कर डाली और उसी भगदड़ में उन्हें भी मारने की साज़िश रची पर भला हो एक स्वदेशी पैसे से चलने वाले मीडिया चैनल के प्रस्तुतकर्ता का जिसने बाबा जी को पहले से ही आगाह कर रक्खा था. इस घटना में बाबा जी को मारने की साज़िश थी या नहीं नहीं इस प्रश्न को भुलाकर मीडिया ने यह प्रश्न उठाना शुरू किया की बाबा जी की भागते समय कौन से कपडे पहनने चाहिए थे कौन से नहीं. बांग्लादेश के करोडो विदेशियों को रहने की मौन सहमती देने वाले मीडिया , बुद्धिजीवी और सत्ताधीशो ने उनके सहयोगी के नेपाली जन्मपत्री का प्रचार करने में लग गए. उन पर भ्रष्टाचार का निराधार आरोप लगाने की की भी कोशिस की.
दक्षिन भारत कई हिस्से जो की इसाई मिशनरियों के लिए बड़े ही शानदार सफलता के केंद्र बने वहा पर कई दशको के बाद एक ऐसा युवा संत आया जो की उनकी नीव हिल कर रख दी थी. उस संत का नाम है स्वामी नित्यानंद. और हम सभी अच्छी तरह से यह जानते हैं की स्वामी नित्यनन्द का कोई भी आज नाम ले ले बस सबके मन में एक ही विचार कौधता है “अरे वह सेक्स सीडी वाला”. जिस नित्यानंद को आज हिन्दू समाज स्वीकार करने तक को तैयार नहीं है उसने अपने जीवन का तीन दशक भी पूरा नहीं किया था तभी उसने लाखो ईसाइयों को उनके मूल हिन्दू धर्म में मिलकर उन्हें उतना ही राष्ट्रीय कर दिया जितना की उनके पूर्वज हुआ करते थे. कई लाख लोगो को नित्यानंद ने अपने प्रवचन शक्ति के बल पर , अपने सहयोग शक्ति के बल बार इसाई बनकर अराष्ट्रीय होने से रोक लिया. इसलिए सत्ताधीशो का ऐसे लोगो से डरना नितांत जरुरी ही था. इन लोगो ने उस व्यक्ति के खिलाफ एक सीडी जरी करावा दी और फिर उस सीडी को मीडिया ने बड़े मेहनत से अपने चैनलो पर दिखाया और प्रचारित किया और घोषणा भी कर दी की यह व्यक्ति चरित्रहीन है. पर जब विभिन्न ख्यातिप्राप्त प्रयोगशालाओ से यह बात निकल कर आई की वह सीडी नकली है और स्वामी नित्यानंद के बार बार मांग की कि सीडी कि सच्चाई लोगो को बतायी जाय और उसे सार्वजनिक किया जाय. पर न तो किसी मीडिया चैनल को यह फुर्सत है और नहीं किसी नेता को. ऊपर से कुछ समाचार पत्रों ने यह खबर जरुर प्रचारित कर दी कि नित्यानंद को अपनी गलती का भान हो गया है इसलिए वो पश्चाताप के लिए हठयोग कर रहे है और इस समाचार को इतने विश्वाश से लिखा गया था मानो उस पत्रकार के ही सलाह से स्वामी नित्यनन्द हठयोग के लिए बैठे थे..
इसी तरह कांची मठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती के ऊपर बलात्कार का आरोप लगा दिया गया और उनके गिरफ्तारी न होने न जाने कौन संकट खड़ा हो जाने वाला था कि जब पूरा देश दीपावली मना रहा था तब आधी रात्रि में हिन्दुओ के एक शंकराचार्य कि गिरफ्तारी कि जाती है. उन पर लगा आरोप झूठा निकला. कुछ इसी तरह का प्रयास इस समय आशाराम बापू के ऊपर भी चल रहा है. उनके ऊपर कभी तंत्र विद्या से बच्चो के हत्या का आरोप लगता है तो कभी बलात्कार का पर उनके ऊपर लगे सरे आरोप अदालतों में जाकर झूठे ही सिद्ध हुए हैं. अभी एक ताज़ा मामला है जिसमे उन पर बलात्कार का आरोप लगा है. मामला पहले ही दृष्टि में संदिग्ध है क्योकि तथाकथित भुक्तभोगी रहने वाली उत्तर प्रदेश की है. रिपोर्ट दिल्ली में लिखवाई गयी है जहां पर बिना जांच के पहले ही बलात्कार की रिपोर्ट लिखी जा सकती है , मामला राजस्थान का का है जांच अधिकारी एक इसाई है , दोनों राज्यों में अहिंदू , अराष्ट्रीय सोच वाली सरकार है.
आशाराम बापू के ऊपर लगा यह आरोप उनके द्वारा चलाये गए बाल संस्कार केन्द्रों का परिणाम है जिसने इसाइयो के गाल पर करार तमाचा जड़ा है, साथ ही उनके अहिंदू , नेताओं , नेत्रियो उनके पुत्रो पर दिए गए मुहफट और तीखी प्रतिक्रियाओं का परिणाम है. हिन्दू समाज को तोड़ने में लगी तीनो शक्तिया सत्ताधीश तथकथित बुद्धिजीवी और मीडिया ने एक मजबूत भ्रम जाल तैयार कर रक्खा है. जिससे हमे बाख कर रहना होगा. हमे अपने लोगो पर विश्वाश करना होगा. ऐसी परिस्थितिया हमे अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने का एक मौका जैसा ही होती है. ये सब बाते ध्यान में रख कर हमे एक लक्ष्य हो ऐसी सभी अराष्ट्रीय अहिंदू असामाजिक, विधर्मी शक्तियों से लड़ने के लिए एक जुट हो सदैव तत्पर रहना होगा. इसी में हमारे राष्ट्र का मंगल है और राष्ट्र मंगल में अपने जीवन का होम ही अपने जीवन के लक्ष्य की पूर्णता है.
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http://www.pravakta.com/union-to-discredit-conspiracy
प्रवीण दुबे-
ओछी, स्तरहीन और झूठी बातों का सहारा लेकर कोई भी व्यक्ति, राजनीतिक दल अथवा पत्रकार कुछ समय तक तो वाहवाही लूट सकता है लेकिन इसके सहारे लंबे समय तक अपना अस्तित्व कायम नहीं रख सकता। विश्व के सबसे बड़े सामाजिक और सेवाभावी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक डॉ. मोहन भागवत पर असीमानंद के एक कथित साक्षात्कार का हवाला देकर झूठे आरोप लगाने वाली कैरावन पत्रिका पर यह बात पूरी तरह लागू होती है। इस पत्रिका ने असीमानंद के साक्षात्कार के माध्यम से दावा किया है कि समझौता एक्सप्रेस धमाकों की मंजूरी डॉ. मोहन भागवत ने दी थी। लोकसभा चुनाव नजदीक आते देख अब उन सारी ताकतों को बदनाम करने का षड्यंत्र बड़े स्तर पर चल रहा है जो इस राष्ट्र के लिए समर्पित हैं। चूंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की मजबूती के लिए समर्पित ढंग से कार्य कर रहा है। अत: ऐसी ताकतें जो भारत को कमजोर करना चाहती हैं घबराई हुई हैं, उन्हें भय सता रहा है कि यदि केन्द्र में एक मजबूत राष्ट्रवादी विचारों वाली सरकार सत्ता में आती है तो उनके मंसूबे कामयाब नहीं हो पाएंगे। यही वजह है कि इस देश की एकता अखंडता के लिए कार्यरत संगठनों पर कीचड़ उछाला जा रहा है, उन्हें बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। यूं तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गैर राजनीतिक संगठन है लेकिन वह सदैव इस बात का प्रबल समर्थक रहा है कि इस देश की सत्ता ऐसे दल के हाथ में जिसे इस देश से प्यार हो, देश की एकता अखंडता और समरसता के लिए वह समर्पित हो। यही वह कारण है कि संघ सदैव निशाने पर रहा है। इस बार भी कुछ ऐसा ही षड्यंत्र रचा गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कैरावन पत्रिका के इस साक्षात्कार को बकवास करार दिया है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जिन असीमानंद के साक्षात्कार को प्रचारित कर संघ प्रमुख को बदनाम करने का षड्यंत्र रचा गया उन्हीं असीमानंद और उनके अभिभावक ने उसे झूठ का पुलिंदा बताकर सब कुछ साफ कर दिया है। असीमानंद के अभिभावक जे.एस. राणा का तो यहां तक कहना है कि यह साक्षात्कार मानवाधिकार और विचाराधीन कैदी के हितों के खिलाफ है और एक बड़ी साजिश का प्रमाण है। उन्होंने यह भी खुलासा किया है कि असीमानंद ने ऐसे किसी भी साक्षात्कार से इंकार किया है। पूर्व में असीमानंद न्यायालय में भी यह कह चुका है कि संघ का इसमें कोई लेना-देना नहीं है। अब सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि जब स्वयं असीमानंद न्यायालय में इस तरह के किसी भी आरोप से इंकार कर चुका है तो फिर सम्पूर्ण घटनाक्रम को क्या माना जाए? उत्तर साफ है कि यह संघ को बदनाम करने का षड्यंत्र है। जो राजनीतिक दल बिना तथ्यों की गहराई में जाए संघ पर निशाना साध रहे हैं उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले अठासी वर्षों से राष्ट्रसेवा के कार्यों में समर्पित रहा है। अनगिनत सेवा प्रकल्पों के माध्यम से संघ कार्य करता रहा है। समरसता का भाव लेकर देश की एकता और अखंडता को कायम रखना संघ का मूल मंत्र रहा है। देश विभाजन की प्रतिकूल परिस्थितियां हों, चीन युद्ध का समय हो, पाकिस्तान से लड़ाई का वक्त हो अथवा समय-समय पर देश में आई भीषण प्राकृतिक अपदाएं हों संघ स्वयंसेवक की राष्ट्र निष्ठा को पूरे देश ने देखा है। ऐसे संगठन के प्रमुख पर एक साक्षात्कार का हवाला देकर झूठे आरोप लगाना पूरी तरह से बेबुनियाद और संघ के खिलाफ षड्यंत्रकारी गतिविधियों का एक हिस्सा है। यह कोई पहली बार नहीं है जब संघ को बदनाम करने के प्रयास हुए हैं। गांधी हत्या का झूठा आरोप भी संघ पर लगाया गया था, इसकी आड़ में संघ को प्रतिबंध का सामना भी करना पड़ा लेकिन संघ सदैव इससे बेदाग साबित हुआ है। किसी ने सच ही कहा है, सांच को आंच नहीं।