असम में बांग्लादेशी घुसपैठ का आतंक
विवेकानन्द ने एक बार कहा था कि भारत की धरती पर कश्मीर के बाद असम ही सबसे सुन्दर स्थान है, दुर्भाग्य से आज दोनों राज्यों की सुंदरता किसी शैतानी साये की गिरफ्त में हैं। और भी अधिक भयभीत करने वाली बात यह है कि यह शैतानी साया मात्र सुंदरता अथवा शांति को को ही नष्ट नहीं करता वरन इन राज्यों राष्ट्रीयता को भी निगलने की चेष्टा में है। गत 19 जुलाई से असम जल रहा है किन्तु देश नीरो की बंसी बजा रहा है और संभवतः हमारे कर्णधारों के चैन में तब तक खलल पड़ता भी नहीं जब तक गोधरा के बाद के गुजरात की लपटें नहीं उठने लगतीं.! सदैव गोधरा एक सुनियोजित षड्यंत्र होता है और सदैव इस षड्यंत्र की उपेक्षा की जाती है। असम के संदर्भ में भी यह अपवाद नहीं है। असम पश्चिम बंगाल के साथ वह राज्य है जो दशकों से बांग्लादेशी घुसपैठ का आतंक झेल रहा है और यदि भाजपा नीत सरकार द्वारा समस्या पर गंभीरता दिखाते हुए सीमा पर बांड़ लगवाने के कार्य को छोड़ दें तो यह स्वीकारने में किंचित भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि बाकी की सरकारों ने इस राष्ट्रघाती समस्या की घनघोर उपेक्षा की है। असम और पश्चिम बंगाल में तो कॉंग्रेस और वामपंथियों ने बांग्लादेशी घुसपैठ को न केवल को पूरा संरक्षण दिया वरन अपना राजनैतिक वोटबैंक सुदृढ़ करने के लिए उन्हें थोक के भाव मतदाता पहचानपत्र भी उपलब्ध कराये। विगत वर्षों में असम मतदाता सूची मे रेकॉर्ड वृद्धि हुई है जिसमें सबसे अधिक बांग्लादेश से सटे जिले आगे रहे हैं। 2010 में धुबरी में मतदाता सूची में 6.81% तक की आश्चर्यजनक वृद्धि अंकित की गई थी जबकि 13 अन्य जनपदों में 3.13% से लेकर 6.79% तक की जबर्दस्त वृद्धि देखने को मिली थी। सरकार कई बार दबे मुंह स्वीकार कर चुकी है कि देश में 20 लाख से 30 लाख बांग्लादेशी घुसपैठिए अवैध रूप से रह रहे हैं जबकि अन्य स्पष्ट सूत्रों के अनुसार इस समय कम से कम 2 करोड़ से 3 करोड़ बांग्लादेशी घुसपैठिए पूरे देश में फैले हुए हैं, असम व पश्चिम बंगाल बांग्लादेश सीमा से लगे होने के कारण सबसे अधिक चपेट में आए हैं। 1971 में बांग्लादेश के स्वतन्त्र होने के बाद से 1991 तक असम में हिंदुओं की जनसंख्या में 41.89% की वृद्धि हुई जबकि इसी अंतराल में मुस्लिम जनसंख्या 77.42% की वृद्धि बेलगाम वृद्धि हुई। 1991 से 2001 के मध्य असम में हिन्दुओं की जनसंख्या 14.95% बढ़ी जबकि मुस्लिमों की जनसंख्या में 29.3% की वृद्धि दर्ज की गई। यद्यपि मुस्लिमों की जनसंख्या पूरे भारत में हिन्दुओं की अपेक्षा काफी तेजी से बढ़ रही है और 2001 की जनगणना में आँखें खोलने वाले आंकड़े सामने आए थे कि 1961-2001 के बींच मुस्लिमों की जनसंख्या में 2.7% की वृद्धि हुई थी जबकि हिन्दुओं की जनसंख्या में 3% की कमी आ चुकी थी, किन्तु असम के संदर्भ में ज्ञात आंकड़े और भी गंभीर हैं क्योंकि सम्पूर्ण भारत में 1971-91 की हिन्दू मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि में जहां 19.79% का अंतर रहा वहीं असम में यह अंतर 35.53% था। 1991-2001 में भी यह अंतर 9.3% की अपेक्षा 14.35% रहा। असम के बांग्लादेश से सटे अथवा निकटवर्ती 9 जनपदों के 2001 के जनसंख्या आंकड़े बताते हैं कि इन जिलों में मुस्लिम वृद्धि-दर न्यूनतम 24.6% से लेकर अधिकतम 32.1% तक रही जबकि हिन्दुओं की वृद्धि-दर न्यूनतम 7.1% से लेकर अधिकतम 16.3% तक ही थी। अर्थात हिन्दुओं की अधिकतम वृद्धि-दर इन जनपदों में मुस्लिमों की न्यूनतम वृद्धि-दर से भी 8.3% कम थी। पश्चिम बंगाल के भी बांग्लादेश से सटे अथवा निकटवर्ती लगभग 18 जनपदों में इसी प्रकार का जनसांख्यकीय असंतुलन पैदा हो चुका है। वर्तमान में असम में फैली अनियंत्रित हिंसा के लिए, जिसमें अभी तक कम से कम 44 लोगों के मारे जाने व 1.75 लाख लोगों के विस्थापित होने की सूचना है, यही अनियंत्रित घुसपैठ उत्तरदाई है। हमें इस अवैध घुसपैठ के दूरगामी दुष्परिणामों को समझना होगा। एक ओर जहां ये घुसपैठिए असम की संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर राष्ट्रद्रोह व आतंकवाद के बीज भी बो रहे हैं। 2008 में असम के सोनालीपाड़ा और मोहनपुर में मुस्लिम घुसपैठियों द्वारा पाकिस्तानी झण्डा तक फहरा दिया गया था। इसे इन घुसपैठियों के दुस्साहस की पराकाष्ठा कहा जाए अथवा भारतीय अन्धस्वार्थ व उपेक्षापूर्ण नीतियों की पराकाष्ठा कि ये घुसपैठिए पहले तो अपने देश से बेधड़क भारत में घुसते चले आते हैं और उसके बाद AAMSU जैसे संगठन बनाकर बेधड़क भारतीय संविधान, व्यवस्था व नागरिकों को चुनौती देते हैं। विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली देशों में गिने जाने वाले भारत के नागरिकों के साथ इससे भद्दा और बेहूदा मज़ाक कुछ और नहीं हो सकता कि बांग्लादेश जैसे एक अदने से देश के लोग घुसपैठ करके पहले बेधड़क उनके इलाकों में रहते हैं और फिर उन्हीं के घरों को जलाते हैं और उनके सर कलम करते हैं! असम दशकों से, विषेशरूप से 1979 से, बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष कर रहा है किन्तु घुसपैठियों की संख्या अनियंत्रित रूप से बढ़ती जा रही है और परिणाम स्वरूप जनसंहार और त्रासदी का वे परिदृश्य पैदा हो रहे हैं जिनसे आज असम गुजर रहा है! प्रश्न यह उठता है कि क्या भारत के अतिरिक्त विश्व के किसी अन्य सार्वभौमिक देश में भी देश के संविधान व संप्रभुता को तमाचा मारता हुआ ऐसा फूहड़ मज़ाक देखने को मिल सकता है? हमें समझना होगा कि बांग्लादेशी घुसपैठ न केवल असम या बंगाल जैसे राज्यों की संस्कृति व शांति के लिए एक बड़ा संकट है वरन पूरे देश के लिए एक विभीषिका है। सड़कों पर भीख मांगने व व सीमा पर तस्करी करने से लेकर हरा झण्डा फहराने व बम फोड़ने तक हर काम ये घुसपैठिए भारत में कर रहे हैं। अभी कुछ ही समय पूर्व इलाहाबाद में हुए बम विस्फोट में बांग्लादेशी घुसपैठियों का हाथ होने की बात फिर सामने आई थी। 2 करोड़ से 3 करोड़ तक बढ़ चुके ये घुसपैठिए भारत की लगभग 2 प्रतिशत जनसंख्या का हक मार रहे हैं और बदले में देश को खूनखराबा, बम-विस्फोट और वैश्विक पटल पर बदनामी दे रहे हैं। दुर्भाग्य देश का कि यह सब जानते हुए भी विदेशियों की नाजायज बाढ़ को हमारे घर में दामाद बनाकर रखा जा रहा है। सीमाएं तो तब टूट जाती हैं जब तथाकथित मानवता के कुछ ठेकेदार मानवाधिकारों का बेसुरा शोर मचाते हुए बिना किसी झिझक के इन घुसपैठियों के अधिकारों की बात करने लगते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले माकपा नेता प्रकाश करात ने सभी बांग्लादेशियों को भारतीय नागरिकता देने की मांग कर डाली है, इससे पहले कुछ मुस्लिम नेता बर्मा के रोहिंग्यार मुसलमानों को भारत में शरण दिये जाने की वकालत कर चुके हैं। असम में जारी दंगों में बांग्लादेशियों की सुरक्षा को लेकर चिन्तित सात मुसलमान सांसद, जिनमें से तीन केन्द्र व असम में सत्तारूढ़ कॉंग्रेस के ही सांसद थे, गृहमन्त्री पी चिदम्बरम से मिले और अपनी चिंताएँ व्यक्त कीं, हाँलाकि बोडो आदिवासियों के सर कलम किए जाने व घरों को जलाए जाने तक विषय उनकी चिन्ता का नहीं था। इन मानवाधिकारवादियों व मुस्लिम उम्मह के ठेकेदारों को समझ लेना चाहिए कि आज बांग्लादेश से लेकर म्यांमार और इंडोनेशिया तक और पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान से लेकर इराक, मिस्र, लीबिया, सीरिया व सोमालिया तक समूचे इस्लामिक विश्व में मुसलमान जीने के लिए तरस रहा है, भारत इनका ठेका नहीं ले सकता। क्यों नहीं तथाकथित मानवाधिकार व मुस्लिम भाईचारे के ठेकेदार अपनी संपत्ति से इन देशों में अपनी सेवाएँ देने निकल जाते? जहां तक बांग्लादेश का प्रश्न है तो यह ऐसा डूबता हुआ जहाज है जिसे सहारा देने का प्रयास करने वाला भी सुरक्षित नहीं रह सकता। बांग्लादेश में भयंकर अत्याचार के शिकार हिन्दू भले 27% से 9.5% रह गए हों किन्तु उसकी कुल जनसंख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। बांग्लादेश लगभग 15 करोड़ की आबादी के साथ विश्व में आठवें स्थान पर है जबकि इसका प्रति वर्गकिलोमीटर घनत्व 1033.5 है जोकि विश्व में सर्वाधिक है। बांग्लादेश सरकार के एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2017 तक बांग्लादेश में रहने के लिए स्थान की भीषण मारामारी हो चुकी होगी। अतः भीषण गरीबी से जूझते एक देश के नागरिकों के लिए ऐसी स्थिति में भारत एकमात्र विकल्प है और बना रहेगा, यद्यपि यह बात और है कि भारत आकर भी उनकी मानसिकता व प्रवत्तियाँ न बदली हैं और न भविष्य में ही बदलेंगी। यदि हम इस धीमे जहर का आक्रामकता के साथ प्रतिरोध नहीं करते तो यह भविष्य में भारत के एक और विभाजन की पृष्ठभूमि सिद्ध होगा। सम्पूर्ण विश्व के साथ-साथ भारत का इतिहास साक्षी है कि जब जब मुस्लिम बहुसंख्यक हुआ तब तब भीषण रक्तपात की त्रासदी के साथ विभाजन हुआ फिर चाहे वह अतीत का अफ़ग़ानिस्तान रहा हो या 1947 का पाकिस्तान अथवा आज का कश्मीर! बांग्लादेश के संदर्भ में तो यह और भी सुनियोजित है। पाकिस्तान के निर्माण के समय से ही असम व देश के कुछ अन्य हिस्सों पर पाकिस्तानियों/बांग्लादेशियों की गृद्धदृष्टि गड़ी हुई है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री रहे ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी किताब “Myths Of Independence” में लिखा था कि कश्मीर ही भारत और पाकिस्तान के मध्य झगड़ा नहीं है, एक और लगभग उतना ही महत्वपूर्ण है- असम और भारत के कुछ अन्य राज्य जिनपर पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश का मजबूत दावा है। ऐसा इसलिए क्योंकि विभाजन के समय असम को एक षड्यन्त्र के अंतर्गत बंगाल के साथ पूर्वी पाकिस्तान के हिस्से में रखा गया था और काँग्रेस इस पर पूर्ण सहमत भी थी किन्तु गोपीनाथ बोरोलोडोई के तीव्र विरोध व गांधीजी के गोपीनाथ को समर्थन ने मुस्लिम लीग की इस चाल को सफल नहीं होने दिया। इसके बाद शेख मुजीबुर रहमान ने भी असम पर बंगलादेशी दावा ठोंका था। आज भी कई बंगलादेशी बुद्धिजीवी बांग्लादेश की बढ़ती जनसंख्या के समाधान के रूप में असम को बांग्लादेश में मिलाये जाने का मार्ग सुझाते हैं। निश्चित रूप से यह अभी असंभव सा लगता है किन्तु हमें कश्मीर को नहीं भूलना चाहिए जहां बहुलता होते ही रातों रात कश्मीरी पण्डितों के घरों को जलाकर औरतों की इज्जत लूटकर उन्हें कश्मीर से भगा दिया गया और आज पूरा कश्मीर मात्र मानचित्र पर ही भारत का अंग दिखता है। राष्ट्र की संस्था अपनी मौलिक संस्कृति व अपने नागरिकों की राष्ट्रभक्ति पर टिकी होती है और इनके कमजोर पड़ते ही राष्ट्र की जड़ें स्वयमेव उखड़ जाती हैं। असम की हिंसा पर कुछ राजनेता और पत्रकार भले ही जातीय संघर्ष का छद्म पर्दा डालने का प्रयास कर रहे हों किन्तु सत्य यह है कि यह जातीयता का नहीं राष्ट्रीयता का संघर्ष है और इसमें हर हाल में भारत को जीतना ही होगा अन्यथा स्वामी विवेकानन्द का कथन कि- “कश्मीर के बाद असम ही भारत का सबसे सुंदर स्थान है”, “कश्मीर के बाद असम ही भारत का सबसे सुंदर स्थान था” में परिवर्तित हो जाएगा.! हमें याद रखना होगा कि अब यदि भारत की सीमाएं जरा भी सिमटीं तो यह भारत के प्रत्येक नागरिक की स्वतन्त्रता व भारत के सनातन अस्तित्व पर संकट सिद्ध होगा। . -वासुदेव त्रिपाठी