बारू का बारूद : सोनिया , मनमोहन व् राज कपूर की फिल्म श्री ४२०
प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के पुराने मीडिया प्रभारी संजय बारू ने एक किताब लिख कर विकी लीक की तरह देश मैं एक बम फोड़ दिया जिस ने पहले से ही चरमराती यु पे ए सरकार को एक और प्राणघाती झटका दे दिया .
पुस्तक मैं आधिकारिक रूप से वह सब भेद खोल दिये हैं जो अनाधिकारिक रूप से देश का बच्चा बच्चा जानता था . यह कौन नहीं जानता की सोनिया का त्याग का नाटक एक सिर्फ ढकोसला था . देश की गत दस वर्षों से वास्तविक शासक वही थीं . उन्होंने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को एक चाबी का खिलौना बना के रखा जो तब तक ही चलता था जब तक उसमें चाबी भर दी जाती थी . तो उन्हें हर समय अहसास दिलाते रखा गया की वह सिर्फ भरत की तरह अयोध्या के सिंहासन पर रखी खडाऊं मात्र हैं . खडाऊं कहीं अपने को सिंहासन का मालिक समझने की बड़ी गलती न कर बैठें .
मन मोहन सिंह ने चाबी का गुड्डा बनना स्वीकार कर देश के प्रधान मंत्री के पद की गरिमा को क्यों इतना बड़ा घात पहुंचाया यह तो शायद कभी नहीं पता चलेगा क्योंकि मनमोहन अपनी ख़ामोशी के कई राज़ पर पर्दा डालने पर देश को कई शेर चुना चुके हैं और शायद वह इस चुप्पी को तोड़ेंगे भी नही. पर पहले पांच सालों मैं तो उन्होंने देश को बहुत कुछ दे दिया. बाद मैं वह क्यों फिसल गए यह बारू ने बताया है .
परन्तु ऐसा नहीं है की विश्व के किसी राष्ट्र मैं यह द्विकेंद्रीय सता न हो . रूस के कम्युनिस्ट पार्टी प्रमुख बुल्गानिन व् ब्रेजनेव रूस के सबसे बड़े नेता थे . ख्रुश्चेव व् कोसिजिन सदा नंबर दो के नेता ही थे . पर रूस मैं पार्टी व् सरकार की जिम्मेवारियां स्पष्ट रूप से अलग अलग बंटी हुईं थीं .और कोई एक दुसरे के क्षेत्र मैं दखलंदाजी नहीं करता था .फ्रांस मैं राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नियुक्त करता है और सत्ता का स्पष्ट प्रमुख है .
परन्तु भारत मैं सोनिया की कोई आधिकारिक य न्यायिक अधिकार नहीं हैं .वह सत्ता का मात्र अनधिकृत केंद्र थीं और हैं . इसके लिए उन्होंने प्रधान मंत्री को समय समय पर नीचा दिखाया जिससे वह अपने मात्र खडाऊं के अस्तित्व को सदा याद रखें . राहुल द्वारा एक प्रेस कांफ्रेंस मैं एक कैबिनेट द्वारा पारित अध्यादेश की कॉपी को सरे आम फाड़ना एक बहुत बड़ी भूल थी जिसने देश की समझदार जनता को उनसे विमुख कर दिया . सोनिया तक भी ठीक था पर बच्चे की उम्र का राहुल ? सूप बोले तो बोले छलनी भी बोलेगी जिसमें बहत्तर छेद .
देश उस दिन सन्न रह गया था . देश के प्रधान मंत्री का इतना बड़ा अपमान शायद कभी नहीं हुआ था. चंद्रशेखर ,मोरारजी भाई , चरण सिंह इत्यादि ने सत्ता छोड़ी थी पर जब तक रहे गरिमा से रहे .यदि मन मोहन उस दिन अड़ जाते तो स्थिती बच जाती.
बारू ने इस स्थिति के इतना बिगड़ने का बारीकी से विश्लेषण किया है . प्रधान मंत्री की इमानदारी पर आज भी देश विशवास करता है . पर उनकी राजनितिक सता से पूरी तरह दूरी का सोनिया के चमचों ने पूरा दुरूपयोग किया . मनमोहन जितना दबे सोनिया ने उतना ज्यादा दबाया और आखिर मैं तो उनके मन के सचिव तक को हटा के पुलोक चत्तेर्जी को बिठा दिया जो कभी राय बरेली के कलेक्टर थे और सोनिया के सबसे विश्वास पात्रों मैं से थे . सब नियुक्तियां सोनिया के अनुमोदन से होने लगीं .प्रधान मंत्री सिर्फ नाम के प्रधान मंत्री रह गए ठीक वैसे जैसे कभी इसी दिल्ली मैं कभी बहादुर शाह ज़फर थे जिनकी सल्तनत लालकिले से महरौली तक ही सीमित रह गयी थी .
प्रश्न उठता है की प्रधान मंत्री ने यह सब क्यों स्वीकार कर लिया ?
एक सीमा के बाद तो जैल सिंह भी राजीव गाँधी को बोफोर काण्ड के बाद पद से हटाने का मन बना चुके थे . मनमोहन सिंह किस सीमा का अतिक्रमण करने का इन्तिज़ार करते रहे . राहुल के अध्यादेश फाड़ने के बाद तो उनकी लंगोटी भी उतर चुकी थी तो अब क्या खोने के लिए बचा था ?
बारू ने तो यह नहीं लिखा है पर डा स्वामी कई बार यह बोल चुके हैं मनमोहन सिंह ने त्याग पात्र न दे कर देश की बड़ी सेवा की है उनका वारिस तो सोनिया के कहने पर देश की नीलामी कर देता . मनमोहन फिर भी सोनिया की अनाधिकृत इच्छाओं पर एक बांध की तरह थे . परन्तु दस वर्षों मैं इस बांध की दीवारें इतनी गिर गयीं थीं की सोनिया की शायद ही कोई अनैतिक इच्छा को वह रोक सकने के सक्षम रह गए थे . आखिर मैं तो प्रधान मंत्री को कोयला घोटाले मैं गिरफ्तार करने की मांग होने लगी .सोनिया शायद उनकी बलि भी चढ़वाने मैं न झिझकती पर तब तक मोदी की सुनामी ने देश को ग्रसित कर लिया और सब कांग्रेसी अपनी जान बचाने मैं लग गए .
ठीक यही स्थिति राज कपूर की फिल्म श्री ४२० मैं आ गयी थी .
सेठ धरम चाँद सोना चाँद के लिए राज कपूर ने सब खोटे धधे किये पर जब उसने निकलना चाहा तो धर्म चाँद ने दर्शा दिया की सारे गलत धंधों पर राज कपूर के हस्ताक्षर हैं ,जाली शेयर , नकली कंपनियां , नकली सोने की खानें , नकली घर सब के सब सिर्फ राज कपूर ने बेचे हैं और सेठ धर्म चंद ने ही अंत मैं पुलिस बुलाई .
यही स्थिति प्रधान मंत्री की है . कोल् गेट , २ जी , सी डब्लू जी सब ही तो प्रधान मंत्री के संरक्षण मैं हुए . सोनिया तो साफ़ बच जायेंगी .
कहीं न कहीं इतिहास उन्हें भी दोषी मानेगा .कहीं न कहीं उनमें पद का लालच आ गया था . या उनमें नर सिम्हा राव की तरह चाणक्य बुद्धि नहीं थी जो वह सोनिया को उनकी सीमा मैं बाँध पाते.
.सोनिया तो सिर्फ राहुल को प्रधान मंत्री बनाना चाहती थीं .वह भी कांग्रेस का यह अंत नहीं देखना चाहती थीं पर उनमें इतनी बुद्धि नहीं थी की अपने चमचों की दुर्बुद्धि व् कुबुद्धि के दूर गामी परिणामों को समय रहते जान पातीं .उन्हें तो उनके चमचों ने देश के वोटों को खरीद लेने की क्षमता विकसित करने की सलाह दी जो उन्होंने मान ली .
फिर कोल गेट तो होना ही था .
अंत मैं यह शायद देश कि नियति थी की हम बड़ा विकास शुरू होते ही अटक गए .
पर यह भी कहा गया है
‘ A Nation Gets The Government It Deserves ’
शायद हम बटें हुए भारतीय ऐसी ही सरकार के लायक हैं
क्या देश मोदी को पाने लायक है ?