We have no resources to verify this information received from e mail. But it is important enough to be brought to nation’s knowledge . Readers should try to verify it before taking any action . As from these facts , huge conversions to Christianity in Andhra , Punjab etc in recent years could be funded from this money . The utilization of this money needs to be investigated . Another target could be the campaign to malign hindu saints as often alleged by VHP. Such orchestrated campaigns in media on Asa Ram , Padmnabhan temple , Kanchi Shankaracharya can also come from this type of funds . Also Narmada Dam delay , obstruction to Nuclear Plant in Tamil Nadu could be due to such funding . Even AAP is being accused of being foreign funded party .
राज्यवार सूची के अनुसार सबसे अधिक पैसा मिला है दिल्ली को (1716.57 करोड़), उसके बाद तमिलनाडु को (1670 करोड़) और तीसरे नम्बर पर आंध्रप्रदेश को (1167 करोड़)। जिलावार सूची के मुताबिक अकेले चेन्नै को मिला है 731 करोड़, बंगलोर को मिला 669 करोड़ एवं मुम्बई को 469 करोड़। सुना था कि अमेरिका में मंदी छाई थी, लेकिन “दान”(?) भेजने के मामले में उसने सबको पीछे छोड़ा है, अमेरिका से इन NGOs को कुल 2928 करोड़ रुपया आया, ब्रिटेन से 1268 करोड़ एवं जर्मनी से 971 करोड़… इनके पीछे हैं इटली (514 करोड़) व हॉलैण्ड (414 करोड़)।
दानदाताओं की लिस्ट में एकमात्र हिन्दू संस्था है ब्रह्मानन्द सरस्वती ट्रस्ट (चौथे क्रमांक पर 208 करोड़) इसी प्रकार दान लेने वालों की लिस्ट में भी एक ही हिन्दू संस्था दिखाई दी है, नाम है श्री गजानन महाराज ट्रस्ट महाराष्ट्र (70 करोड़)…एक नाम व्यक्तिगत है किसी डॉ विक्रम पंडित का…
इस भारी-भरकम और अनाप-शनाप राशि के आँकड़ों को देखकर मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी समझ सकता है कि इतना पैसा “सिर्फ़ गरीबों-अनाथों की सेवा” के लिये नहीं आता। ऐसे में ईसाई संस्थाओं द्वारा समय-समय पर किये जाने वाले धर्मान्तरण के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालों का पक्ष मजबूत होता है।
यहाँ सवाल उठता है कि गरीबी, बेरोज़गारी एवं अपर्याप्त संसाधन की समस्या दुनिया के प्रत्येक देश में होती है… सोमालिया, यमन, एथियोपिया, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे इस्लामी देशों में भी भारी गरीबी है, लेकिन इन ईसाई संस्थाओं को वहाँ पर न काम करने में कोई रुचि है और न ही वहाँ की सरकारें मिशनरी को वहाँ घुसने देती हैं। मजे की बात यह है कि ढेर सारे ईसाई देशों जैसे पेरु, कोलम्बिया, मेक्सिको, ग्रेनाडा, सूरिनाम इत्यादि देशों में भी भीषण गरीबी है, लेकिन मिशनरी और मदर टेरेसा का विशेष प्रेम सिर्फ़ “भारत” पर ही बरसता है। इसी प्रकार चीन, जापान और इज़राइल भी न तो ईसाई देश हैं न मुस्लिम, लेकिन वहाँ धर्मान्तरण के खिलाफ़ सख्त कानून भी बने हैं, सरकारों की इच्छाशक्ति भी मजबूत है और सबसे बड़ी बात वहाँ के लोगों में अपने धर्म के प्रति सम्मान, गर्व की भावना के साथ-साथ मातृभूमि के प्रति स्वाभिमान की भावना तीव्र है, और यही बातें भारत में हिन्दुओं में कम पड़ती हैं… जिस वजह से अरबों रुपये विदेश से “सेवा” के नाम पर आता है और हिन्दू-विरोधी राजनैतिक कार्यों में लगता है। हिन्दुओं में इसी “स्वाभिमान की भावना की कमी” की वजह से एक कम पढ़ी-लिखी विदेशी महिला भी इस महान प्राचीन संस्कृति से समृद्ध देशवासियों पर आसानी से राज कर लेती है। भारत के अलावा और किसी और देश का उदाहरण बताईये, जहाँ ऐसा हुआ हो कि वहाँ का शासक उस देश में नहीं जन्मा हो, एवं जिसने 15 साल देश में बिताने और यहाँ विवाह करने के बावजूद हिचकिचाते हुए नागरिकता ग्रहण की हो।
बहरहाल… दान देने-लेने वालों की लिस्ट में हिन्दुओं की संस्थाओं का नदारद होना भी कोई आश्चर्य का विषय नहीं है, हिन्दुओं में दान-धर्म-परोपकार की परम्परा अक्सर मन्दिरों-मठों-धार्मिक अनुष्ठानों-भजन इत्यादि तक ही सीमित है। दान अथवा आर्थिक सहयोग का “राजनैतिक” अथवा “रणनीतिक” उपयोग करना हिन्दुओं को नहीं आता, न तो वे इस बात के लिये आसानी से राजी होते हैं और न ही उनमें वह “चेतना” विकसित हो पाई है। मूर्ख हिन्दुओं को तो यह भी नहीं पता कि जिन बड़े-बड़े और प्रसिद्ध मन्दिरों (सबरीमाला, तिरुपति, सिद्धिविनायक इत्यादि) में वे करोड़ों रुपये चढ़ावे के रुप में दे रहे हैं, उन मन्दिरों के ट्रस्टी, वहाँ की राज्य सरकारों के हाथों की कठपुतलियाँ हैं… मन्दिरों में आने वाले चढ़ावे का बड़ा हिस्सा हिन्दू-विरोधी कामों के लिये ही उपयोग किया जा रहा है। कभी सिद्धिविनायक मन्दिर में अब्दुल रहमान अन्तुले ट्रस्टी बन जाते हैं, तो कहीं सबरीमाला की प्रबंधन समिति में एक-दो वामपंथी (जो खुद को नास्तिक कहते हैं) घुसपैठ कर जाते हैं, इसी प्रकार तिरुपति देवस्थानम में भी “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी ने अपने ईसाई बन्धु भर रखे हैं… जो गाहे-बगाहे यहाँ आने वाले चढ़ावे में हेरा-फ़ेरी करते रहते हैं… यानी सारा नियन्त्रण राज्य सरकारों का, सारे पैसों पर कब्जा हिन्दू-विरोधियों का… और फ़िर भी हिन्दू व्यक्ति मन्दिरों में लगातार पैसा झोंके जा रहे हैं… ========================== विषय से अपरोक्ष रुप से जुड़ी एक घटना –
संयोग देखिये कि कुछ ही दिनों पहले मैंने लिखा था कि “क्या हिन्दुत्व के प्रचार-प्रसार के लिये आर्थिक योगदान दे सकते हैं”, इसी सिलसिले में कुछ लोगों से बातचीत चल रही है, ऐसे ही मेरी एक “धन्ना सेठ” से बातचीत हुई। उक्त “धन्ना सेठ” बहुत पैसे वाले हैं, विभिन्न मन्दिरों में हजारों का चढ़ावा देते हैं, कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजन समितियों के अध्यक्ष हैं, भण्डारे-कन्या भोज-सुन्दरकाण्ड इत्यादि कार्यक्रम तो इफ़रात में करते ही रहते हैं। मैंने उन्हें अपना ब्लॉग दिखाया, अपने पिछले चार साल के कामों का लेखा-जोखा बताया… सेठ जी बड़े प्रभावित हुए, बोले वाह… आप तो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं… हिन्दुत्व जागरण के ऐसे प्रयास और भी होने चाहिये। मैंने मौका देखकर उनके सामने इस ब्लॉग को लगातार चलाने हेतु “चन्दा” देने का प्रस्ताव रख दिया…
बस फ़िर क्या था साहब, “धन्ना सेठ” अचानक इतने व्यस्त दिखाई देने लगे, जितने 73 समितियों के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी भी नहीं होंगे। इसके बावजूद मैं जब एक “बेशर्म लसूड़े” की तरह उनसे चिपक ही गया, तो मेरे हिन्दुत्व कार्य को लेकर चन्दा माँगने से पहले वे जितने प्रभावित दिख रहे थे, अब उतने ही बेज़ार नज़र आने लगे और सवाल-दर-सवाल दागने लगे… इससे क्या होगा? आखिर कैसे होगा? क्यों होगा? यदि हिन्दुत्व को फ़ायदा हुआ भी तो कितना प्रभावशाली होगा? इससे मेरा क्या फ़ायदा है? क्या आप भाजपा के लिये काम करते हैं? जो पैसा आप माँग रहे हैं उसका कैसा उपयोग करेंगे (अर्थात दबे शब्दों में वे पूछ रहे थे कि मैं इसमें से कितना पैसा खा जाउंगा) जैसे ढेरों प्रश्न उन्होंने मुझ पर दागे… मैं निरुत्तर था, क्या जवाब देता?
चन्दा माँगने के बाद अब तो शायद धन्ना सेठ जी मेरे ब्लॉग से दूर ही रहेंगे, परन्तु यदि कभी पढ़ें तो वे विदेशों से ईसाई संस्थाओं को आने वाली यह लिस्ट (और धन की मात्रा) अवश्य देख लें… और खुद विचार करें… कि हिन्दुओं में “बतौर हिन्दू” कितनी राजनैतिक चेतना है? विदेश से जो लोग भारत में मिशनरीज़ को पैसा भेज रहे हैं क्या उन्होंने कभी इतने सवाल पूछे होंगे? जो लोग सेकुलरिज़्म के भजन गाते नहीं थकते, वे खुद ही सोचें कि क्या अरबों-खरबों की यह धनराशि “सिर्फ़ गरीबी दूर करने”(?) के लिये भारत भेजी जाती है? यदि मुझ पर विश्वास नहीं है तो खुद ही केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा के दूरदराज इलाकों में जाकर देख लीजिये कैसे रातोंरात चर्च उग रहे हैं, “क्राइस्ट” की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ लगाई जा रही हैं। याद करें कि मुख्य मीडिया में आपने कितनी बार पादरियों के सेक्स स्कैण्डलों या चर्च के भूमि कब्जे के बारे में खबरें सुनी-पढ़ी हैं?
“राजनैतिक चेतना” किसे कहते हैं इसे समझना चाहते हों तो ग्राहम स्टेंस की हत्या, झाबुआ में नन के साथ कथित बलात्कार, डांग जिले में ईसाईयों पर कथित अत्याचार, कंधमाल में धर्मान्तरण विरोधी कथित हिंसा… जैसी इक्का-दुक्का घटनाओं को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मचे हल्ले को देखिये, सोचिये कि कैसे विश्व के तमाम ईसाई संगठन किसी भी घटना को लेकर तुरन्त एकजुट हो जाते हैं, यूएनओ से प्रतिनिधिमंडल भेज दिये जाते हैं, अखबारों-चैनलों को हिन्दू-विरोधी रंग से पोत दिया जाता है… भले बाद में उसमें से काफ़ी कुछ गलत या झूठ निकले… जबकि इधर कश्मीर में हिन्दुओं का “जातीय सफ़ाया” कर दिया गया है, लेकिन उसे लेकर विश्व स्तर पर कोई हलचल नहीं है… इसे कहते हैं “राजनैतिक चेतना”… मैं इसी “चेतना” को जगाने और एकजुट करने का छोटा सा एकल प्रयास कर रहा हूँ… “धन्ना सेठ” मुझे पैसा नहीं देंगे तब भी करता रहूंगा… ।
काश… कहीं टिम्बकटू, मिसीसिपी या झूमरीतलैया में मेरा कोई दूरदराज का निःस्संतान चाचा-मामा-ताऊ होता जो करोड़पति होता और मरते समय अपनी सारी सम्पत्ति मेरे नाम कर जाता कि, “जा बेटा, यह सब ले जा और हिन्दुत्व के काम में लगा दे…” तो कितना अच्छा होता!!!
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