India with its huge population has limitation on total agricultural exports as it remains a huge importer of edible oils , lentils etc . Its population is still increasing . Our water resources are getting stretched .But simultaneously it has emerged as the largest exporter of rice in recent years. It has started exporting flowers , fruits and vegetables in a big way . Our farmers get better returns on these exports . However west blocks Indian exports which does not suit it . America placed a lot of restriction in export of Indian wheat to Iran /Iraq . Europe had got scared by our White revolution and had invented problem of Indian cows having too much methane in flatulence due to eating grass rather than wheat. Residual pesticides in our agricultural products is an area of our weakness . Even our milk was found having more traces of pesticides ingressed by cows from grass, fodder etc . At present it may look an esoteric problem. But once pollution was also considered rich men’s problem but it is not so any more .Our wheat quality is also not very high. Low quality of our drugs is another such area. Residual pesticide could be another such problem as they do cause cancer etc .
There is need to increase our agricultural products’ export potential. The article below in Pravakta deals with this from the recent EU ban on our mangoes .
from Pravakta.com
कृषि निर्यात में फिसड्डी साबित हो रहा भारत
रमेश पांडेय
मई की तपती गरमी से लेकर अगस्त की सिंझाती सांझ तक पूरे देश में क्या राजा क्या रंक सबका मुंह मीठा करवाने के कारण ही शायद यहां आम को श्फलों का राजाश् कहा जाता है। लेकिन इस बार मई की शुरुआत में ही आमों के सरताज श्अल्फांसोश् का स्वाद श्फीकाश् पड़ गया है। खबर है कि 28 देशों के यूरोपीय संघ (इयू) ने भारत से ‘अल्फांसो’ के आयात पर पहली मई से 20 महीनों के लिए पाबंदी लगा दी है। इस तरह आमों का यह सरताज यूरोपीय बाजार को जीतने से पहले ही मैदान से बाहर हो गया है। इयू की स्वास्थ्य समिति ने भारत से चार सब्जियों बैंगन, करेला, अरबी और चिचिण्डा के आयात पर भी रोक लगा दी है। तर्क है कि 2013 में इन उत्पादों की 207 खेप कीटनाशकों के प्रयोग के मामले में दूषित पायी गयी और अगर आयात जारी रखा गया तो इयू के देश, खासकर ब्रिटेन के फल व सलाद उद्योग को खतरा पैदा हो सकता है। कोई यह कह कर संतोष कर सकता है कि जिन कृषि उत्पादों पर इयू ने पाबंदी लगायी है, वह यूरोप को निर्यात होने वाले भारतीय कृषि उत्पादों का महज पांच फीसदी है, पर यह नुकसान कम नहीं है। क्योंकि अकेले ब्रिटेन हर साल करीब 1.5 करोड़ अल्फांसो आयात करता है, जिसकी कीमत करीब 62 करोड़ रुपए है। इसे देश की कृषि नीति के लिहाज से देखें, तो स्थिति की गंभीरता का पता चलता है।
आशंका यह भी है कि इयू की राह पर चलते हुए अरब देश भी भारतीय फल-सब्जियों पर पाबंदी लगा सकते हैं। दूसरे, भारत अपने कृषि-उत्पादों को निर्यात योग्य बनाने की नीतिगत तैयारी में फिसड्डी साबित हो रहा है। फिलहाल फल-सब्जियों और जैविक उत्पादों के आयात-निर्यात का नियमन दो पुराने कानून डिस्ट्रक्टिव इन्सेक्ट एंड पेस्ट एक्ट (1914) और लाइव स्टॉक इम्पोर्टेशन एक्ट (1898) के तहत हो रहा है। जैव-विविधता से जुड़ी नई चिंताओं और कृषि-उत्पादों के बाजार की जरूरत के मद्देनजर ये कानून अप्रासंगिक हो चुके हैं। नया कानून एग्रीकल्चर बायोसिक्योरिटी बिल (2013) नाम से बनाने की कोशिश फिलहाल लंबित है। ऐसे में इयू के प्रतिबंध से निपटने के लिए भारत की तैयारी कुछ खास नहीं है। इस प्रकरण से सीख लेते हुए भारतीय कृषि-उत्पादों को विश्व बाजार की प्राथमिकताओं के अनुकूल बनाने की कोशिशें तेज होनी चाहिए। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने 2 मई को संवाददाताओं से कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि यूरोपीय संघ भारत के साथ आर्थिक भागीदारी की ताकत के मद्देनजर समझदारी से काम लेगा और इस मामले को इतना नहीं बिगड़ने देगा कि बात डब्ल्यूटीओ तक पहुुंच जाए। शर्मा ने कहा कि उन्होंने यूरोपीय संघ के व्यापार आयुक्त कार्ल डे गुश को इस मामले में पहले ही पत्र लिख रखा है। ब्रिटेन, भारत से करीब 160 लाख आमों का आयात करता है और इस फल का बाजार करीब 60 लाख पाउंड वार्षिक का है। भारत दुनिया में आम का सबसे बडा निर्यातक देश है जो विदेशों में करीब 65,000-70,000 टन सभी किस्म के आमों की बिक्री करता है। भारत का कुल आम उत्पादन करीब 15..16 लाख टन है।