The way and the speed with which Russia has merged the Russian speaking Crimea in it, defying the world opinion and sovreignity of Ukrain , it has sent a loud and clear message that it is ready and planning to enter the vacated superpower arena again . It has been helped by skyrocketing oil and gas prices which is the main stay of Russian economy . Europe to a large extent is dependent on Russian gas for its winter . A large part of American navy will be rendered obsolete in next fifteen years and USA does not have plans to replace them . It is readying for a smaller military presence and China is very keen to enter the vacant space . China will beat Russia in military strength soon . Japan is no more confident of its security by just US guaranty and is increasing its army . ASEAN nations are scared of China and are looking to US but in vain . The expected oil in South China Sea is the source of trouble . China does not want to share it the way Europe has shared North Sea oil. European Economy is in doldrums and cannot face Chinese might .
Is it that the world needs American dada for peace ?
For India rise of China as superpower is inauspicious but just as in 1962 Russia will not help us against China . The next decade is crucial as we must grow at ten percent so that we can give our defence the priority it deserves .
The article below from Pravakta . com highlights some of the ironies being faced by us .
रूस का पुनर्जन्म
by प्रवक्ता.कॉम ब्यूरो
अमेरिका एवं विश्व के अन्य देशों के कड़े विरोध के बावजूद रूस ने जिस प्रकार से यूक्रेन के रूसी भाषा बोलने वाले भाग क्रिमिया को अपने देश का भाग बना लिया, जो साफ तौर पर संदेश दे रहा है कि रूस एक बार पिफर से विश्वशक्ति के रूप में अमेरिका को चुनौती देने के लिये बेकरार है और विश्व पर एकछत्र साम्राज्य चलाने वाले अमेरिका का दिन लदने वाला है और विश्व एक बार फिर से अमेरिकी मनमानी से आजाद होने के कगार पर आ गया है। रूस के बदलते रंग का संदेश रूस के सिरिया में राजनीति हस्तक्षेप ने पहले दे दिए थे। अमेरिका ने सिरिया पर आक्रमण की पूरी तैयारी कर ली थी, मगर रूस के कठोर चेतावनी के कारण अमेरिका सिरिया पर आक्रमण नहीं कर सका था। रूस ने स्पष्ट कर दिया था कि यदि सिरिया ने परमाणु हथियारों का प्रयोग किया है तो विश्व समुदाय का कर्तव्य बनता है कि वह इस विनाशकारी हथियार को तबाह कर दे और रूस के हस्तक्षेप के कारण ही सिरिया ने परमाणु हथियारों को नष्ट करने की पहल कर दी थी और अमेरिका के पास सिरिया पर आक्रमण करने का काल समाप्त हो गया था। रूस ने क्रिमिया को अपने अधीन उसी आधार पर मिलाया है जिस आधर पर अमेरिका कई भागों को अपने साम्राज्य में मिलाता आया है। अमेरिका अन्य देशों में हस्तक्षेप तीन आधरों पर करता आया है। किसी भाग पर आतंकवादियों का आधिपत्य हो। अथवा मानव अधिकार के हनन और सुरक्षा के नाम पर किसी भी देश के आन्तरिक को बिगाड़ना, सरकारों को अस्थिर करना आदि। रूसी राष्ट्रपति विलादीसीर ने यही कारण विश्व विरादरी के सामने रखी है। उन्होंने वर्क के रूप में कहा है कि यूक्रेन पर धार्मिक कट्टरपंथियों और आतंकवादियों ने कब्जा जमा रखा है और वहां के राष्ट्रपति जो प्रजातांत्रिक रूप से निर्वाचित थी, उसे बर्खास्त कर दिया है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से ईराक और अफगान में हस्तक्षेप की गई उसी प्रकार से यूक्रेन में हस्तक्षेप करने का आधर बनता है। इतिहास के पन्नों में क्रिमिया हमेशा से रूस का भाग रहा है और 1956 में खरोशेप ने यूक्रेन में मिला दिया था। रूस लम्बे समय से विश्व महाशक्ति रहा है और रूस का इतिहास विश्व पटल पर महान इतिहास माना जाता है। रूस ने नेपोलियन को परास्त करके यूरोप को उनसे मुक्ति प्रदान की थी। नेपोलियन को परास्त करने के लगभग डेढ़ सौ वर्ष के बाद हिटलर के ऐतिहासिक आक्रमण को विपफल करने का काम किया था। अगर रूस ने हिटलर को परास्त नहीं किया होता तो द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम इतिहास में कुछ और ही होता। मगर, वर्तमान समय में रूस का सैनिक शक्ति मजबूत क्यों न हो, मगर आर्थिक रूप से रूस आज अमेरिका और यूरोपीये देशों की तुलना में कमजोर ही है और रूस के बिखरने और महाशक्ति से नीचे आने का सबसे प्रमुख कारण ही यही रहा। रूस में समाजवाद का प्रयोग नया था। रूस ने समाजवाद के अध्ीन प्रारंभिक समय में बहुत प्रगति की, तीसरी दुनिया ने रूस को अपने विकास और प्रगति के लिये रोल मॉडल बनाना चाहा था। रूस और अमेरिकी के मध्य आर्थिक सिद्धांत और पालीशियों में कुछ अन्तर था और यूरोप के अनेकों देश उनके प्रभाव से निकलता गया। यह कारण रूस के बिखरने का था। जब रूसी सेना अफगानिस्तान से निकल रही थी और राष्ट्रपति गर्खाचोब के समय में रूस ने अन्य प्रान्तों को स्वतंत्रा कर दिया था। गर्वाचोब के बाद राष्ट्रपति बोरिस यलसन का शासन आया, रूसी शासन ने वलीदीमीर के समय में प्रगति और विकास एक बार फिर से इतिहास रचा। आज सैनिक रूप से न केवल बड़ा देश है, बल्कि आर्थिक रूप से प्रगति और महाशक्ति बनने की क्षमता रखता है। रूस सोना और तेल के उत्पादन में आज भी विश्व का नम्बर एक देश है। आज भी यूरोप के बहुत से देश उसके द्वारा उत्पादित किए गये गैर पर जीवन जी रहा है। रूस औद्योगिक क्षेत्रा में अमेरिका और यूरोपीये देशों के करीब आ पहुंचा है और भविष्य रूस का दिखाई देने लगा है कि आनेवाला समय रूस का है और वह यूरोप का प्रमुख साझेदार देश होगा।