उपेक्षित बहुसंख्यक समाज का दर्द तो जानो…?
by विनोद कुमार सर्वोदय
स्वतंत्रता के बाद से विशेषतः पिछले दशक में हिन्दू विरोधी और मुस्लिम हितैषी राजनीति में भारत का बहुसंख्यक समाज जिस तरह से विवशता व आत्मग्लानि से जी रहा है और अल्पसंख्यकों व झूठे धर्मनिरपेक्षता के ठेकेदारों की धौंस या कहें दादागिरी सहन कर रहा था, जिसमें उसकी बहन-बेटी लूटती रहे, अपमानित होती रहे, दंगों के नाम पर मकान-दुकान लूटी जाती रहे और बम-विस्फोट करके आतंकवादी अपना नंगा नाच करते रहे, आदि अत्याचारों के वशीभूत समाज जाये तो जाये कहां की सोच से घिरने लगा था। सरकारी तंत्र व नकली धर्मनिरपेक्षता, मानवाधिकार व अल्पसंख्यकवाद के नाम पर एकतरफा निर्णय लेने की तानाशाही पर चल पड़ा था। ऐसे में अंधा क्या चाहे… एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता मोदी जी के रुप में जो गुजरात की धरती पर अपनी प्रतिभाशाली छाप बिखेरकर भारतभक्ति का परिचय करा रहा था उसको नेतृत्व की शून्यता में तिरस्कृत बहुसंख्यक समाज ने स्वीकार किया।
हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि जिस प्रकार सन् 2004 में भाजपा ने इंडिया शाइनिंग का नारा लगा कर परन्तु बहुसंख्यक समाज की इच्छाओं की दोहन करके चाल, चेहरा और चरित्र को झूठलाकर चुनावों में जीती हुई बाजी थाली में परोसकर सोनिया गांधी को सौंप दी थी, उसके उपरांत भाजपा विपक्ष में बैठकर भी स्पष्ट राष्ट्रवाद व सशक्त भारत के लिये कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई। सन् 2004 से 2014 तक लगातार बीजेपी ने विपक्ष में बैठकर सोनिया गांधी व उसकी मंडली द्वारा देश को लुटते देखा व बहुसंख्यक समाज की निरंतर उपेक्षापूर्ण योजनाओं द्वारा ठगते रहने का भी मर्म नहीं समझा।
क्या ऐसी दयनीय व प्रताड़नापूर्ण स्थिति में बहुसंख्यकों की कहलाने वाली पार्टी बीजेपी के किसी भी नेता ने महसूस किया या विरोध करने की भी इच्छा व्यक्त की? बड़ा अफसोस होता है कि क्या हम अपने ही देश में दोयम दर्जे के नागरिक बनकर मुगलकालीन युग में जीने की विवशता की ओर बढ रहे है? ऐसा सब कुछ कब तक चलता आखिर भगवान भी तो अपने भक्तों के दर्द व उनके हृदय की वेदना को समझ रहे थे।
इतनी विकसित पृष्ठ भूमि पर मोदी जी व उनके श्री अमित शाह जैसे साथियों ने अपने एक वर्ष के सतत् व अथक धुआंधार प्रचार व प्रसार से राष्ट्रवादियों के दिलों में पैठ बनाकर ‘कमल’ के फूल को पूर्णतः खिलाकर ही सत्यमेव जयते का संदेश चरितार्थ किया। आज किसी भी प्रकार से कोई भी यह भ्रम न पाले कि यह जीत किसी पार्टी विशेष की है? यह जीत उस तिरस्कृत व उपेक्षित राष्ट्रवादी बहुसंख्यक समाज की है जिसने मोदी जी के रुप में एक जन नायक को राष्ट्रोन्नायक बनाने का प्रयास किया है।