जब भगवान शंकर ने मां पार्वती की परीक्षा ली तो जानें आगे क्या हुआ
अपने को तपस्या के पत्थर पर घिसने से आत्मशक्ति का उद्भव होता है। समुद्र को मथने से चौदह रत्न मिले। दूध के मथने से घी निकलता है। काम- मन्थन से प्राणधारी बालक की उत्पत्ति होती …है। भूमि- मन्थन से अन्न उपजता है। तपस्या द्वारा आत्ममन्थन से उच्च आध्यात्मिक तत्त्वों की वृद्धि का लाभ प्राप्त होता है। पत्थर पर घिसने से चाकू तेज होता है। अग्रि में तपाने से सोना निर्मल बनता है। तप से तपा हुआ मनुष्य भी पापमुक्त, तेजस्वी और विवेकवान बन जाता है।
मां पार्वती ने भगवान शंकर को तप करके खुश किया शंकर जी प्रकट हुए और पार्वती के साथ विवाह करना स्वीकार कर लिया और उसे वरदान देकर कैलाश पर्वत को लौट गए। इतने में पास के सरोवर में एक मगर ने छोटे से बच्चे को पकड़ा। बच्चा रक्षा के लिए चीखने लगा। पार्वती ने गौर से देखा तो बच्चा बड़ी दयनीय स्थिति में था और चिल्ला रहा था,” मुझ अनाथ को बचाओ वे चीख रहा था।”
पार्वती का ह्रदय पसीज गया वह भाग कर तालाब के पास पंहुची मासुम से बालक का पैर एक विशाल मगर ने पकड़ रखा था और उसे खिंचते हुए तालाब में लिए जा रहा था। वह बच्चा पार्वती को देख उससे मदद की गुहार करने लगा बोला,” मुझे बचाओ मेरी न माता है न पिता है। कृपया मेरी रक्षा करों।”
पार्वती कहती है,” हे ग्राह! हे मगर देव! कृपया करके बच्चे को छोड़ दो।”
मगर बोला,” क्यों छोड़ दूं? दिन के छट्टे भाग में मुझे ये आहार प्राप्त हुआ है। इसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना ऐसी मेरी नियती है। ब्रह्माजी ने मेरे लिए इस बालक को मेरा भोजन बना कर भेजा है अब मैं इसे क्यों छोड़ दूं।”
पार्वती ने कहा,” तुम इसे छोड़ दो। बदले में जो तुम चाहते हो वो मैं दूंगी।”
मगर बोला,” तुमने जो तप किया और भगवान शिव को खुश करके जो वरदान मांगा है उस तप का फल मुझे दे दो तभी मैं बच्चे को छोड़ूगा।”
पार्वती बोली,” केवल इतनी सी बात तो ले लो मेरी तपस्या का फल। यह ही नहीं मैंने पूर्व जन्म में जो भी जो तप किए हैं उन सब का पुण्य भी मैं तुम्हें दे रही हूं।
मगर बोला,” जरा सोच लो आवेश में आकर संकल्प मत लो।”
मैंने सब सोच लिया है पार्वती ने हाथ में जल लेकर अपनी तपस्या का पुण्य फल ग्राह को देने का संकल्प किया। तपस्या का दान होते ही ग्राह का तन तेजस्विता से चमक उठा। उसने बच्चे को छोड़ दिया और कहा,” हे पार्वती! देखो तुम्हारे तप के प्रभाव से मेरा शरीर कितना सुंदर हो गया है। मैं कितना तेजपूर्ण हो गया हूं और तेजपुंज बन गया हूं। अपने सारे जीवन की कमाई तुमने एक छोटे से बालक को बचाने में लगा दि।”
पार्वती बोली,” हे ग्राह! तप तो मैं फिर से कर सकती हूं लेकिन इस प्यारे से छोटे बालक को तुम निगल जाते तो।”
देखते ही देखते बालक और मगर दोनों लुप्त हो गए। पार्वती ने सोचा मैंने अपने सारे तप का दान कर दिया है। अब फिर से तप करूंगी। वे तप करने बैठी। थोड़ा सा ही ध्यान किया और देवाधिदेव भगवान शंकर प्रकट हो गए और बोले,” पार्वती! अब क्यों तप करती है?”
पार्वती बोली,” प्रभु! मैंने अपने तप का दान कर दिया है इसलिए अब आप को पाने के लिए फिर से तप कर रही हूं।”
भगवान शंकर बोले,”मगर के रूप में भी मैं था और बालक के रूप में भी मैं ही था। तेरा चित्त प्राणिमात्र में आत्मीयता का एहसास करता है कि नहीं यह परीक्षा लेने के लिए मैंने यह लीला की थी। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक का एक हूं। अनेक शरीरों में शरीर से न्यारा अशरीरी आत्मा हूं। मैं तुझ से संतुष्ट हूं।”
– सरोज बाला
मां पार्वती ने भगवान शंकर को तप करके खुश किया शंकर जी प्रकट हुए और पार्वती के साथ विवाह करना स्वीकार कर लिया और उसे वरदान देकर कैलाश पर्वत को लौट गए। इतने में पास के सरोवर में एक मगर ने छोटे से बच्चे को पकड़ा। बच्चा रक्षा के लिए चीखने लगा। पार्वती ने गौर से देखा तो बच्चा बड़ी दयनीय स्थिति में था और चिल्ला रहा था,” मुझ अनाथ को बचाओ वे चीख रहा था।”
पार्वती का ह्रदय पसीज गया वह भाग कर तालाब के पास पंहुची मासुम से बालक का पैर एक विशाल मगर ने पकड़ रखा था और उसे खिंचते हुए तालाब में लिए जा रहा था। वह बच्चा पार्वती को देख उससे मदद की गुहार करने लगा बोला,” मुझे बचाओ मेरी न माता है न पिता है। कृपया मेरी रक्षा करों।”
पार्वती कहती है,” हे ग्राह! हे मगर देव! कृपया करके बच्चे को छोड़ दो।”
मगर बोला,” क्यों छोड़ दूं? दिन के छट्टे भाग में मुझे ये आहार प्राप्त हुआ है। इसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना ऐसी मेरी नियती है। ब्रह्माजी ने मेरे लिए इस बालक को मेरा भोजन बना कर भेजा है अब मैं इसे क्यों छोड़ दूं।”
पार्वती ने कहा,” तुम इसे छोड़ दो। बदले में जो तुम चाहते हो वो मैं दूंगी।”
मगर बोला,” तुमने जो तप किया और भगवान शिव को खुश करके जो वरदान मांगा है उस तप का फल मुझे दे दो तभी मैं बच्चे को छोड़ूगा।”
पार्वती बोली,” केवल इतनी सी बात तो ले लो मेरी तपस्या का फल। यह ही नहीं मैंने पूर्व जन्म में जो भी जो तप किए हैं उन सब का पुण्य भी मैं तुम्हें दे रही हूं।
मगर बोला,” जरा सोच लो आवेश में आकर संकल्प मत लो।”
मैंने सब सोच लिया है पार्वती ने हाथ में जल लेकर अपनी तपस्या का पुण्य फल ग्राह को देने का संकल्प किया। तपस्या का दान होते ही ग्राह का तन तेजस्विता से चमक उठा। उसने बच्चे को छोड़ दिया और कहा,” हे पार्वती! देखो तुम्हारे तप के प्रभाव से मेरा शरीर कितना सुंदर हो गया है। मैं कितना तेजपूर्ण हो गया हूं और तेजपुंज बन गया हूं। अपने सारे जीवन की कमाई तुमने एक छोटे से बालक को बचाने में लगा दि।”
पार्वती बोली,” हे ग्राह! तप तो मैं फिर से कर सकती हूं लेकिन इस प्यारे से छोटे बालक को तुम निगल जाते तो।”
देखते ही देखते बालक और मगर दोनों लुप्त हो गए। पार्वती ने सोचा मैंने अपने सारे तप का दान कर दिया है। अब फिर से तप करूंगी। वे तप करने बैठी। थोड़ा सा ही ध्यान किया और देवाधिदेव भगवान शंकर प्रकट हो गए और बोले,” पार्वती! अब क्यों तप करती है?”
पार्वती बोली,” प्रभु! मैंने अपने तप का दान कर दिया है इसलिए अब आप को पाने के लिए फिर से तप कर रही हूं।”
भगवान शंकर बोले,”मगर के रूप में भी मैं था और बालक के रूप में भी मैं ही था। तेरा चित्त प्राणिमात्र में आत्मीयता का एहसास करता है कि नहीं यह परीक्षा लेने के लिए मैंने यह लीला की थी। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक का एक हूं। अनेक शरीरों में शरीर से न्यारा अशरीरी आत्मा हूं। मैं तुझ से संतुष्ट हूं।”
– सरोज बाला