इंग्लैंड मैं बसे भारतीय , पाकिस्तानी , बंगलादेशी ,अफ़्रीकी , चीनी , यूरोप के गोरों व् अंग्रेजों का तुलनात्मक अध्ययन
ब्रिटिश औपनिवेशवाद की समाप्ति के निकट इंग्लैंड मैं मजदूरों के कमी हो गयी थी. सन पचास मैं पहली लहर मैं भारत व् पाकिस्तान से बहुत लोग वहां काम करने के लिए गए थे . इसके बाद साठ के दशक मैं पंजाब के जल्लंधर के आस पास से बहुत लोग इंग्लैंड मैं मजदूरी के लिए गए. अफ्रिकन पालिसी के दौर मैं व् सन १९७२ के इदी अमिन के क्रूर निष्कासन से यूगांडा के भारतीय गुजराती वहां लगभग शरणार्थी बन कर वहां गए . पाकिस्तान से ५० व् सत्तर के दशक मैं बहुत नागरिक इंग्लैंड मैं बसने गए . बांग्लादेश की आज़ादी के समय किसी तरह वहां के लोग इंग्लैंड मैं जा बसे . अफ्रीका से १९४५ से कई वर्षों मैं काले लोग बड़ी संख्या मैं वहां बस गए . यूरोपियन यूनियन बनने से एक के बाद एक गरीब पूर्वी यूरोप के देशों के लोग लन्दन मैं बसते गए .
आज इंग्लैंड की ६.३ करोड़ आबादी का मात्र अस्सी प्रतिशत वहां के मूल गोरे निवासी हैं . इतनी संख्या मैं विदेशियों के आ जाने का वहां पहले सत्तर के दशक मैं एनोक पॉवेल ने और दूसरी बार अब आतंकी घटनाओं से आव्रजन का बहुत विरोध हो रहा है . बहुत से इलाके खास कर लन्दन शहर तो काले व् एशियाई लोगों से भर गया प्रतीत होता है . साउथ हॉल तो पंजाब का शहर लगता है .तीस साल पहले रंगभेद की भावना बहुत प्रबल थी परन्तु अंग्रेजों की मानवीय क्षमता की सराहना करनी होगी की आज वहां रंगभेद खुले रूप से बहुत कम है और अंग्रेजों ने विदेशियों की संस्कृति को विरोध या समाप्त करने का प्रयास भी बंद कर दिया है . बल्कि आज वहां ९००० भारतीय रेस्तौरेंट हैं जिनके आधे ग्राहक अँगरेज़ ही होते हैं ( वास्तव मैं बंगलादेशी चलते हैं ). हालही मैं दीवाली व् ईद की छुट्टी की मांग को वहां की संसद ने बहस कर आर्थिक कारणों से ठुकरा दिया.अब कुछ वर्षों से कंप्यूटर के लिए भारतीय जा रहे हैं . बहुत से डॉक्टर भारतीय व् पाकिस्तानी मूल के हैं.कुछ लोग जो उच्च शिक्षा के लिए वहां गए थे अंततः वहीँ बस गए हैं .
परन्तु कुल मिला कर जो भारतीय व् अन्य लोग साठ व् सत्तर के दशक मैं मजदूरी करने गए थे उनके आज क्या हाल हैं ?
क्या विदेशी अंग्रेजों पर या ब्रिटेन पर बोझ हैं ?
इसका तुलनात्मक अध्ययन कई शोध कर्ताओं ने किया है . जिसके परिणाम आश्चर्यजनक हैं .
आज इंग्लैंड की आबादी का लगभग दो प्रतिशत भारतीय मूल के हैं , १.५% पाकिस्तानी , ०.५% बंगलादेशी हैं . भारतियों मैं ५६ % हिन्दू , तीस प्रतिशत सिख १४ % मुसलमान हैं . सब देशों के मुसलमान लगभग २.५% हैं . बंगलादेशी विशेषतः लन्दन मैं , भारतीय व् पाकिस्तानी लन्दन , बरमिंघम , लेस्टर मैं हैं . अफ़्रीकी व् गोरे लन्दन मैं हैं . लन्दन तो विदेशियों ने ही हथिया लिया लगता है .लन्दन मैं साउथ हॉल व् वेम्बले तो करोल बाग़ ही लगता है .
अनेक सर्वों ने यह तो सिद्ध कर दिया है की विदेशी विशेषतः भारतीय बच्चे अनुपात मैं अंग्रेजों से ज्यादा कॉलेजों मैं पढ़ रहे हैं , लगभग चार प्रतिशत एशियाई जीडीपी का लगभग छः से आठ प्रतिशत पैदा करते हैं और इसलिए अंग्रेजों पर किसी तरह से बोझ नहीं हैं .मुश्किल सिर्फ इतनी है की इंग्लैंड का स्वर्णिम युग बीत चुका है .उसकी अर्थ व्यवस्था शेष यूरोप की तरह चरमरा रही है . विदेशियों के विशेषतः मुसलामानों के बच्चे अंग्रेजों से दुगने से भी अधिक पैदा हो रहे हैं . उन्हें अपने देश मैं ही पराये हो जाने का डर सता रहा है. यूरोप के यूराबिया होने का ख़तरा एक वास्तविकता है मात्र सपना नहीं .जब नौकरियों की इतनी कमी हो रही है तो विदेशियों को नौकरी मिलते देख स्थानीय लोगों को गुस्सा आना सहज ही है . लन्दन मैं तो लगभग पचास प्रतिशत विदेशी ही बस गए हैं और वह अंग्रेजों का शहर ही नहीं लगता.
आज लगभग २० प्रतिशत गोरे अँगरेज़ गरीब हैं जो की २५ % भारतीयों की संख्या से थोड़ी कम है परन्तु पाकिस्तानियों मैं यह ५५% ,कालों मैं ४५% व् बांग्लादेशियों मैं ६३% है. . भारतियों मैं सिखों की एक परिवार की सम्पत्ती लगभग २.२५ लाख पौंड हैं जो अंग्रेजों की औसत से ज्यादा है. हिन्दू भी आसपास ही हैं पर मुस्लमान पीछे हैं .७६ प्रतिशत भारतीय अपने घर के मालिक हैं ( सिख ८० प्रतिशत ) जब की मात्र ७१ प्रतिशत अँगरेज़ ,६६ % पाकिस्तानी व् ३७% बंगलादेशी ही अपने घर के मालिक हैं .
Ethnic group |
Median total wealth |
White British | £221,000 |
Indian | £204,000 |
Pakistani | £97,000 |
Black Caribbean | £76,000 |
Other Asian | £50,000 |
Black African | £21,000 |
Bangladeshi | £15,000 |
Educational and occupational indicators for the Indian-origin population reveal a fairly
positive picture. In 1999, 66 percent of Indian girls achieved five or more General Certificate
of Secondary Education (GCSE) passes at grades A to C. This was better than white girls at
55 per cent. Indian boys did best among males at 54 per cent, compared with 45 percent for
white boys. The results were worst for Pakistani and Bangladeshi girls (37 per cent), black
boys (31 per cent), and Pakistani and Bangladeshi boys (22 per cent) (Office for National
Statistics, 2002).
Data on unemployment rates reveals a similar hierarchy. In 2001 Bangladeshi women had
the highest unemployment rate at 24 per cent-six times that of white women. Indian women
had an unemployment rate of 7 per cent, while other ethnic groups ranged from 9 to 16 per
cent. Bangladeshi men had a 20 percent unemployment rate, four times that of white men (5
per cent). Indian men had only slightly higher unemployment than white men-7 per cent.
All other ethnic minority groups-both men and women-had unemployment rates two to
three times higher than whites (Office for National Statistics, 2002).
भारतीय बेरोजगार युवक ७% है जबकि पाकिस्तानी १३-१४% , बंगलादेशी २३% बेरोजगार हैं जबकि अँगरेज़ युवक की बेरोजगारी लगभग ५-६ प्रतिशत है. उच्च शिक्षा मैं दाखिलों के अनुपात मैं भारतियों ने बच्चों ने अंग्रेजों को पछाड़ दिया है परन्तु चीनी हम से थोडा सा आगे हैं .क्योंकि भारत का प्रबुद्ध वर्ग इंग्लैंड नहीं गया था इस लिए उच्च्च शिक्षा मैं अंग्रेजों के नंबर ज्यादा आते हैं जो अमरीका मैं नहीं है. चीनियों के नम्बर हमसे ज्यादा आते हैं . पाकिस्तानी , बंगलादेशी , अफ्रीकन हमसे बहुत पीछे हैं .परन्तु पिछले दस वर्षों मैं बहुत नए पढ़े लिखे पाकिस्तानी आये हैं जिनसे अब उनका पिछडापन बहुत कम हो गया .
अब वहां यह बात धीरे धीरे लोगों को समझ आने लगी है की भारतीय शांति प्रिय , मेहनती व् पढने वाले लोग हैं जो किसी से लड़ते नहीं हैं . उनको एशिया के अन्य देशों से मिलाना उचित नहीं है. भारत उच्चायोग व् सरकार को भी इस धारणा को मजबूत कराना चाहिए जिससे भारतियों को उचित सम्मान मिल सके व् उनको अधिक मात्रा मैं उच्च शिक्षा से सम्बंधित वर्क परमिट मिलें . हमारी जनसख्या के अनुपात मैं पाकिस्तानी व् बंगलादेशी यहाँ व् पूरे यूरोप मैं बहुत ज्यादा बस गए हैं और कई आतंकी गतिविधियों मैं संलग्न हैं . भारतीयों ने करीब ढाई सौ कंपनियां खोलीं हैं और भारत का इंग्लैंड मैं निवेश इंग्लैंड के भारत के निवेश के बराबर हो गया है .टाटा , हिंदुजा , लक्ष्मी मित्तल , स्वराज पॉल इत्यादि प्रमुख औद्योगिक घरानों की अपनी पहचान है .
अफ्रीकियों की मीडिया मैं हमसे ज्यादा उपस्थिति है. अरब पैसों के चलते इस्लाम व् मुसलमानों का सरकार और मीडिया पर प्रभाव हमसे कहीं अधिक है हालाँकि आतंकी छवि के चलते जनता उन्हें बहुत नापसंद करती है . परन्तु संयुक्त इतिहास के कारण यहाँ सरकार भी भारतियों को पाकिस्तानियों , बांग्लादेशियों के साथ जोड़ देती है जो अब अनुचित है .
शायद चीनियों की तरह भारतियों को भी अपनी अलग पहचान बनाने के लिए संयुक्त प्रयास करना चाहिए.