RAJIV UPADHYAY
२० नवम्बर को रूस के रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान के साथ रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर कर भारत के विदेश मंत्रालय को हतप्रभ कर दिया . इसके पहले उसने पाकिस्तान को बीस हमलावर हेलीकाप्टर बेच कर चालीस वर्षों की परम्परा को तोड़ कर भारत को चेताया पर लगता है की भारत रूस के सम्बन्ध अब पुरानेवाले नहीं हो पाएंगे . बांग्लादेश के निर्माण मैं रूस की मदद के बिना अमरीका को रोकना संभव नहीं था . रूस ने हमें परमाणु सामग्री व् अन्तरिक्ष मैं जाने मैं बहुत मदद की .कश्मीर पर वर्षों अमरीका व् पश्चिमी राष्ट्रों के प्रयासों को रूस अपने वीटो से नाकाम करता रहा है .पाकिस्तान को कुछ हेलीकाप्टर बेच रूस हमारे से संबंधों को क्यों खतरे मैं डाल रहा है .
वास्तव मैं पिछले कुछ् वर्षों से भारत रूस के बजाय अमरीकी हथियार खरीद रहा है . गत वर्ष भारत ने सबसे ज्यादा हथियार अमरीका से खरीदे जो कभी रूस की मिलकियत होती थी . फ्रांस से हवाई जहाज खरीदने के फैसले ने रूस को बहुत नाराज कर दिया . उसने कई बार भारत को चेताया पर भारत अमरीकी कैम्प मैं प्रवेश करने को आतुर था . अंतर्राष्ट्रीय संबंधों मैं कोई सदा का दोस्त या दुश्मन नहीं होता . रूस अफगानिस्तान मैं जिस मंशा से गया था वह गरम पानी का बंदरगाह पकिस्तान के ग्वादर मैं मिल रहा है . पाकिस्तान के सिंध जिले के थार मैं कोयले के बहुत बड़े भण्डार हैं जिन्हें रूस विकसित करना चाहता है . सबसे ज्यादा महत्त्व की बात है की अमरीका के अफगानिस्तान से हटने पर रूस को पाकिस्तान के रास्ते बंद करने का मौका मिल जायेगा . ईरान से रूस की पहले ही मित्रता है .इसलिए अफगानिस्तान पर रूस का पाकिस्तान के जरिये फिर शिकंजा कस जाएगा जो अभी अमरीका का है .
भारत को जितनी टेक्नोलॉजी व् पैसे की जरूरत है वह रूस उसे नहीं दे सकता . भारत पाकिस्तान के मुकाबले चीन को बड़ा ख़तरा मानता है .१९६२ मैं भी रूस ने चीन के विरुद्ध हमारी मदद करने से इनकार कर दिया था .भारत अपने दस प्रतिशत के आर्थिक विकास के लिए रूस पर आश्रित नहीं रह सकता . इसलिए भारत पाकिस्तान के मुकाबले के लिए इजराइल की तरफ झुक रहा है और चीन के विरुद्ध अमरीकी कैंप मैं जा रहा है .ओबामा का २६ जनवरी को भारत आना रूस को नागवार गुजरेगा . जवाहर लाल नेहरु के समय जो भारत था वह अब बदला गया है . परन्तु पश्चिम के मुकाबले रूस ज्यादा विश्वसनीय मित्र था . यदि रूस पाकिस्तान , चीन व् ईरान के साथ मिल जाता है तो भारत को अमरीका जापान व् ऑस्ट्रेलिया का साथ मिलने से बहुत फायदा नहीं होगा . ये सब देश बहुत दूर हैं .रूस पहले भी अमरीका को पाकिस्तान पर हमले के विरुद्ध चेता चुका है . अमरीका १९७१ मैं पाकिस्तान के समर्थन मैं खुल कर नहीं आया जबकि रूस खुल कर भारत का साथ दे रहा था . क्या यही स्थिति दुबारा नहीं आयेगी .
यदि भारत रूस समेत अमरीका व् पश्चिम का सबसे मित्रता व् साथ साथ चाहेगा और उन्हें सब को अपना मित्र समझेगा तो वास्तव मैं कोई सच्चा मित्र नहीं मिलेगा . मित्रता के लिए भारत को मिस्र की तरह पूरी तरह अमरीकी खेमें का सदस्य बनना पडेगा जो शायद भारत को मंजूर न हो . इसके बिना अमरीका भी पूरी तरह हमारा विश्वास नहीं करेगा . परन्तु भारत एक चीन की तरह स्वतंत्र शक्ति बन्ना चाहता है किसी का पिछलग्गू नहीं .इसके लिए मित्रता की नयी परिभाषाएं बनानी पड़ेंगी जो अभी तैयार नहीं हैं . हालाँकि रूस पाकिस्तान संबध बहुत दिनों से बढ रहे थे .
बेनजीर भुट्टो व् नवाज शरीफ ने अपने पिछले कार्य काल मैं भी काफी कोशिश की थी .भारत रूस के दस बिलिओं डालर के व्यापार के बदले २०११ मैं रूस पकिस्तान का व्यापर ३४८ मिलयन डोलर था जो अगले साल २०१२ मैं ५४० मिलयन डोलर हो गया . परन्तु भारत का व्यापार का २०१५ का लक्ष्य बीस मिलिओं डालर था जो आधा ही है . गत वर्ष रूस से भारत के आयत मैं चौदह प्रतिशत की गिरावट आई है . इसिविफलता का फायदा पाकिस्तान उठा रहा है .२००८ – ११ मैं पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़रदारी छः बार रूस के राष्ट्रपति से मिले थे . रूस के प्रधान मंत्री २००७ मैं पाकिस्तान गए थे .पर इन सब के उपरान्त भी कुछ भारत विरोधी विशेष कार्य नहीं हुआ था . रूस का पाकिस्तान के साथ खुला सुरक्षा करार मोदी सरकार की विदेश नीती की यह दूसरी विफलता है .
हमें अभी तक अमरीका से कुछ हासिल नहीं हुआ है और हम खो ज्यादा बैठे हैं . इससे अमरीका से लेन देन की बात चीत मैं हमारी स्थति कमजोर होती है . सरकार को इस को सुधारना होगा .
सरकार को याद रखना चाहिए
एक ही साधे सब साधे सब साधे सब जाय See More