जापान : कर्मयोग का ज्वलंत आदर्श
(एक) प्रवेश: आज हम ऐसे मोड पर खडे हैं, जहाँ से दो रास्ते निकलते हैं। एक कठिन परिश्रम का। दूसरा फिरसे गत ६७ वर्षों की उदासीन और ढीली कार्यवाही का। इस दृष्टि से जापान का उदाहरण हमें काम आएगा, प्रेरणा भी देगा। हम अपनी भविष्य की पीढियों के लिए कुछ आमूलाग्र बदली हुयी परम्पराएँ छोडकर जा सकते हैं। कठिन रास्ता ही हमें समृद्धि की ओर ले जा सकता है।
(दो) कर्मठ नेतृत्व कुशलातिकुशल, संन्यासी जैसा, निस्वार्थ, स्वानुशासित दिनचर्यावाला, कठोर परिश्रमी, कर्मठ नेतृत्व हमें मिला है। मैं इसे, असंभाव्य ऐतिहासिक घटनाओं का शुभ संयोग मानता हूँ। ऐसा नेतृत्व खडा होना, विधि के संकेत बिना नहीं हो सकता। पर ऐसा नेतृत्व भी हमारे सहकार बिना सफल नहीं हो सकता। क्यों कि भारत जनतंत्र हैं। जनता का तंत्र, जनता के सहकार बिना, कैसे सफल होगा?
(तीन) दुर्लभ असामान्य अवसर दुर्लभ पर असामान्य अवसर है। करो या मरो की चुनौती है। समस्याएँ हैं। अकेला प्रधान मंत्री सब कुछ नहीं कर पाएगा।हर रेलगाडी में टिकट निरीक्षक को, छिपकर देख नहीं सकता।आप के घर के सामने का कूडा स्वच्छ भारत की घोषणा से साफ नहीं होगा। यह जनतंत्र है।जनता को भी अपने हिस्से का पूरक काम करना पडेगा। जनता अकर्मण्य हो कर बैठेगी तो कुछ उपलब्ध नहीं होगा। नहीं तो,और ६७ वर्ष हाथ मलते रहना पडेगा। भविष्य के गर्भ में जो घटनेवाला है, उसके हम-आप शिल्पी हैं।
(चार) जापान में कौनसा आरक्षण है? तनिक, जापान का आरक्षण ले। जापान ने मात्र कठिन परिश्रम को आरक्षित किया है। एक जापानी कर्मचारी ९ (9 Man Days) मानव-दिन में एक (ऑटोमोबाईल) स्वचल-यान निर्माण करता है, जब कि अन्य देशों को उसी प्रकार का वाहन निर्माण करने में औसत ४७ दिन लग जाते हैं। अर्थात जापान का कर्मचारी ४७/९=५.२ कर्मचारियों का काम अकेला करता है। विश्वास, मुझे भी कठिन लगा था; पर एक स्रोत से भी सुनिश्चित हुआ। इसी बात को कुछ आगे बढाता हूँ। यदि एक कर्मचारी पाँच गुना काम करेगा, तो, इसका परिणाम क्या होगा? देश की उन्नति पाँच गुना होगी। पाँच गुना समृद्धि होगी। पांच गुना लोगों के लिए सुविधाएँ होंगी। ये सुविधाएं जब सभीको मिलेगी तो जीवनमान ऊंचा उठेगा। देश आगे बढेगा, समृद्धि आयेगी; अच्छे दिन आएंगे।
(पाँच) समृद्धि उत्पादन क्षमता बढने से आती है। समृद्धि मात्र नौकरी पर समय काटने से नहीं आती। पर आज की कहानी क्या है? छात्र को शाला-महाविद्यालय पालक पिता भेजता है, एक प्रमाण पत्र के लिए; विद्या के लिए नहीं। शिक्षक भी पढाता नहीं, समय काटता है। कर्मचारी कार्यालय जाते हैं, आठ घंटे आसन पर बैठ कर वापस घर आते हैं. मेजपर कागज रोकने का वेतन खाते हैं। जब जापान ५ गुना स्वचल यान निर्माण करता है। तो पाँच गुना मुद्रा कमाता है। क्यों कि कर्मचारी समय नहीं काटता, कठोर परिश्रम करता है।
(छः) जापान में, औसत काम के घंटे: (6)सामान्य जापानी नागरिक कठिन परिश्रम करने वाला होता है। सामान्यतः जापान में प्रत्येक कर्मचारी प्रतिवर्ष २४५० घंटे, संयुक्त राज्य (USA) अमरिका का कर्मचारी १९५७ घंटे, संयुक्त राज्य U K का कर्मचारी १९११ घंटे, जर्मनी का कर्मचारी १८७० घंटे, फ्रान्स का कर्मचारी १६८० घंटे काम करता है। भारत का कर्मचारी, कितने घंटे? आप बताइए। हिसाब लगाइए। जापान का कर्मचारी अमरिका से २५% अधिक समय काम करता है; U K से २८% अधिक, जर्मनी से ३१% अधिक, और फ्रांस से ४६ % अधिक घंण्टे काम करता है। (सात) जापानी उन्नति का एक और रहस्य ! शीघ्र अनुवादित पुस्तकों का प्रकाशन है; जापानी उन्नति का रहस्य। जापान में बडा उद्योग शीघ्र अनुवादित पुस्तकों का है। जापान में परदेशी पुस्तकों के अनुवाद का ही पूर्ण विकसित उद्योग है, जो १७ वी सदी में प्रारंभ हुआ था।फ्रान्सीसी, जर्मन, अंग्रेज़ी इत्यादि ५ भाषाओं की शोध पुस्तकें, और सामयिक जापान ३ सप्ताह के अंदर जापानी में अनुवाद कर छापता था। और मूल कीमत से सस्ते दाम पर बेचता था।मूल पुस्तक के प्रकरण अलग कर, अलग अलग अनुवाद कर्ता अनुवाद करते थे। और छाप कर बेचते थे।
(आठ) जापान को लाभ: पराई भाषा सीखे बिना जापानी में, ५ -६ उन्नत भाषा की पुस्तकों का लाभ मिल जाता था। आज की स्थिति कुछ अलग हो सकती है।आलेख लिखते समय तक सुनिश्चित नहीं कर पाया।
जापान की साक्षरता ९९% (२००२) है क्यों कि शिक्षा का माध्यम जापानी भाषा है। और जापानी भाषा में ही कर्मचारी कार्यालय में काम करता है। वार्षिक कुल राष्ट्रीय उत्पाद (प्रति व्यक्ति) $३४,३०० है। Literacy: (15 years and older): 99% (2002) GDP- per capita (PPP): $34,300 (2011 est.)
(नौ) भारत का लाभ हम यदि ऐसी ५-७ उन्नत भाषाओं की पुस्तकें हिन्दी में अनुवादित करे, तो हमें लाभ हो सकता है। छात्र कम से कम ३-४ वर्ष बचाता है। अंग्रेज़ी के अतिरिक्त और ४-५ भाषाओं की अनुवादित शोध पुस्तकें सीधी हिन्दी में पढ सकता है। ३३% देश की मुद्रा बचती है। छात्र के ३-४ शाला वर्ष बचते हैं। बचे हुए ४ वर्ष विशेषज्ञ होने में लगा सकता है। या जर्मन, फ्रांसीसी, रूसी, चीनी, संस्कृत, पालि, फारसी, अरबी..अंग्रेज़ी भी,(हाँ अंग्रेज़ी भी) ,.. इत्यादि अपने चुनाव की भाषा पढ सकता है। (इसका विस्तार आगे किया जाएगा)
आजकल जापान का क्रम कुछ खिसक के थोडा नीचा आया है। विचार करें। मुक्त टिप्पणी दें।