5:32 pm - Monday November 24, 8425

भारतीय अर्थ व्यवस्था का फिर से मंदा होना : बिना बड़े सुधारों के पेट्रोल के कैसे और कब तक सरकार की धीमी गाडी चलेगी ?

भारतीय अर्थ व्यवस्था का फिर से मंदा होना : बिना बड़े सुधारों के पेट्रोल के कैसे और कब तक सरकार की धीमी गाडी चलेगी ?

राजीव उपाध्याय RKU

देश कांग्रेस के भ्रष्टाचार व् कुशासन से दुखी था . उसने यह भी मन बना लिया की एक मजबूत इमानदार सरकार केंद्र मैं होना आवश्यक है .इसलिए भारतीय जनता पार्टी की अप्रत्याशित जीत ने शेयर मार्किट को अभूतपूर्व ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया . देश हर्षित था . बहुत दिनों बाद आशा की किरण देखी थी .

पर अब इसे सात महीने बीत गए हैं . नौ महीनों मैं तो बच्चा भी पैदा हो जाता है . भारतीय जनता पार्टी के चुनाव मैं जीतने से जो अर्थव्यवस्था मैं उछाल आया था वह सितम्बर मैं समाप्त ही नहीं बल्कि उल्टा हो गया . जो आंकड़े अभी प्रकाश मैं आये हैं उनके अनुसार हमारी अर्थ व्यवस्था हर क्षेत्र मैं पीछे हो गयी है . दूसरी तिमाही मैं विकास दर ५.७ प्रतिशत से घाट कर ५.३ प्रतिशत हो गयी है   ख़राब मानसून ने कृषि खेत्र की विकास दर को ३.२ प्रतिशत कर दिया जो पिछले साल पांच प्रतिशत थी . मैन्युफैक्चरिंग का औद्योगिक उत्पादन जुलाई से सितम्बर मैं सिर्फ ०.१ प्रतिशत बढ़ा जबकि पिछले साल यह १.३ प्रतिशत बढ़ा था . न नए उद्योग न ही नया निवेश अभी तक कहीं शुरू हुआ इस लिए नौकरियां नहीं बढ़ रहीं . बिजली जल व् गैस की स्थिति पहले से थोड़ी अच्छी है जिसकी विकास दर ८.७ प्रतिशत रही पर न कोयले की न ही गैस की समस्या का कोई समाधान दीख रहा है . निर्माण क्षेत्र जिससे बहुत आशाएं थीं मात्र ४.८ प्रतिशत की वृद्धी दर्ज पाया.होटल , व् यातायात क्षेत्र ३.८ प्रतिशत .

कुल मिला कर छः प्रतिशत की विकास दर भी दूर दीख रही है और आठ प्रतिशत विकास दर तो अभी सपने मैं भी होती नहीं दिखाई दे रही .

इस गिरावट को अस्थायी भी बताया जा रहा है .परन्तु बात स्थायी या अस्थायी की नहीं है .

लोग अभी चुप हैं पर सच है की देश की पढ़ी लिखी जनता कुछ हतोत्साहित होने लगी है . जिस शेर मोदी को वोट दिया था वह नौकरशाही के सर्कस के चक्रव्यूह मैं फंस गया प्रतीत हो रहा है .पिछले सात महीने मैं सरकार ने ऐसा कुछ ठोस कार्य नहीं किया न ही कोई ऐसा निर्णय लिया जिससे देश की अर्थ व्यवस्था के शीघ्र सुधरने के आसार दीखते हों . काम की कुछ बात नहीं हो रही सिर्फ मोदी जी को उलटा पुल्टा समझा कर बाबु राज़ को चुप चाप बढाया जा रहा है . प्लानिंग कमीशन बंद करने से न कुछ होना था और न ही कुछ हुआ न होगा . अगर उद्योगपतियों या विचारकों को ही जगह देनी थी तो कौन रोक रहा है राहुल बजाज या रतन टाटा को डिप्टी चेयरमैन बनाने से . मोटेक सिंह भी कोई राजनीतिज्ञ तो नहीं थे आई एम् ऍफ़ से लाये गए थे .ऐसा ही व्यर्थ का अच्छी  खासी चलती भारतीय रेलवे पर बयान बाज़ी हो रही है . रेलवे की जो व्यवस्था देश की सेना की तरह सर्वोत्तम संस्था की तरह चल रही है उसमें भी बिना विचारे बाबु राज लाने के ही उपक्रम हो रहे हैं . नए उद्योंगों के लगाने की प्रक्रिया को कोई आसान नहीं बना रहा क्योंकि उसमें बाबुओं का निहित स्वार्थ है . नए उद्योगों के लिए ज़मीन खरीदना तो अब सपना बन गया है पर किसे चिंता है .हमारे श्रमिक कानून १८५७ के इंग्लैंड के लिए बने हैं .सात महीने इस के लिए कम समय नहीं था जब की यह प्रधान मंत्री की विशेष प्राथमिकता हैं .

पिछले साल चीन मैं हम से दस गुना विदेशी निवेश हुआ किसे चिंता है .

भारत मैं बाबु सिर्फ कागजी पुलाव पकाए जा रहे हैं .

जो बात नहीं समझ आ रही की खेती के लिए नयी सिंचाई परियोजनाओं की आवश्यकता है जिसके लिए बहुत धन की आवश्यकता है .उद्योगों के लिए बिजली व् ज़मीन की आवश्यकता है . निर्यात के लिए देश के उत्पाद का सस्ता होना आवश्यक है .कंस्ट्रक्शन उद्योग से बहुत रोज़गार बढ़ता है . पर उसे बढ़ने के लिए पैसे चाहिए वह न सरकार खर्च कर रही न जनता .जनता के लिए मकान खरीदने के लिए ब्याज दर बहुत ज्यादा है इस लिए लाखों घर बिना बिके खड़े हैं . इसी तरह पिछले शासन मैं जो कार, फ्रिज इत्यादि की जो मांग बड़ी थी उसमें ब्याज दर के कम होने का प्रमुख हाथ था .और ब्याज दर को  रिज़र्व बैंक ने रोका हुआ है .रिज़र्व बैंक पहले महंगाई को कम करना चाहता है उसे आर्थिक विकास से ज्यादा सरोकार नहीं है .किसी आर्थिक मंत्रालय ने कुछ भी ऐसा नहीं किया जिससे कुछ विकास होने की संभावना बढे .हाँ सरकार मैं बेईमानी मैं कमी हुयी है व् कोयले से बिजली के उत्पादन मैं जरूर कुछ बढ़ोतरी हुयी है .अन्यथा सब कुछ काग्रेस के शासन काल जैसा ही वही बाबु सरकार चला रहे हैं जिसे किसी ने बीजेपी के बजट को चिदंबरम की चाय को जेटली की केतली मैं कहा था .

महंगाई कम करने के क्षेत्र मैं कुछ सफलता मिली है पर जो इसके लिए जो कीमत चुकाई है उससे बहुत कम . सरकार जानती है की जब तक खाद्यान पर सट्टा समाप्त नहीं होता तब तक कुछ नहीं होगा . बैंकों का अनाज के जमा करने के लिए व्यापारियों को क़र्ज़ देना सारे फसाद की जड़ है जो इंदिरा गाँधी ने बंद कर दिया था .पर सरकारें व्यापारियों के चंदों पर आश्रित होती हैं . इसलिए वाजपेयी जी की तरह ही यह सरकार भी महंगाई को कम करने के लिए गेहूं व् चावल के समर्थन मूल्य को कम बढायेगी . पहले ही की तरह इसका बुरा असर कृषि व् किसान पर पडेगा . पर फिर भी आशा है की अगले छः महीनों मैं मंहगाई शायद और कुछ कम हो क्योंकि तेल के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों मैं कुछ कमी आई है जिससे भारत को बहुत मदद मिलेगी.

पर यदि अब भी रिज़र्व बैंक ब्याज दर पर कुंडली मार के बैठ जाता है तो फिर हमें त्वरित विकास को भूल ही जाना चाहिए . डरने की भी एक सीमा होती है..

गिरते हैं शाह सवार ही मैदाने जंग  मैं ,वह तिफ्ल क्या गिरेंगे जो घुटने के बल चलें .

सरकार घुटनों के बल चल इस त्वरित विकास की लड़ाई को जीतना चाहती है .

पेट्रोलियम के दाम कम होने का तो कुछ फायदा आर्थिक विकास को तेज़ करने के लिए ले सकते थे. परन्तु सरकार की भी कुछ मजबूरियाँ हैं . राज्य सभा मैं सीटों के लिए राज्यों के चुनाव जीतने आवश्यक हैं . इस लिए मंहगाई कम करना सरकार के लिए अति आवश्यक है . सरकार स्वयं  आर्थिक विकास को प्राथमिकता नहीं दे रही है . वह यथास्थिति को डिस्टर्ब नहीं करना चाहती क्योंकि चुनाव अधिक आवश्यक हैं . ऊपर से देश का ध्यान बंटाने के लिए सफाई इत्यादि की बातें कर रही है . आशा करते हैं की एक बार मंहगाई काबू मैं आ जाए तो शायद सरकार का साहस बढ़ जायेगा  और वह त्वरित विकास पर भी ध्यान देगी .

वास्तव मैं अभी तक तो मोदी सरकार भी बिहार की पहली नितीश सरकार की तरह काम कर रही है . लालू ने बिहार की इतनी दुर्गति कर दी थी की मात्र पुलिस को ठीक कर , स्कूल व् कोलिजों  परीक्षाओं को समय पर करा कर व् कुछ सड़कें बना कर नितीश को इतनी वाह वाही मिल गयी को वह अगला चुनाव आसानी से जीत गए . उन्होंने कोई बड़ा परिवर्तन करने का प्रयास भी नहीं किया .पर उसके बाद बिना कृषि बिजली व् उद्योगों के विकास संभव नहीं था सो नहीं हुआ .अगला चुनाव वह हार जायेंगे और इस लिए पहले ही खिसक लिए .यही केंद्र मैं होता प्रतीत हो रहा है .

मोदी सरकार भी सिर्फ मंत्रियों की व्यक्तिगत इमानदारी , महंगाई व् आर्थिक विकास के ठीक होने के कारण अगला चुनाव जीत जायेंगी  पर सरकार इस प्रकार आर्थिक व् सांस्कृतिक मंदी की रफ़्तार पर ही चली तो २०१९ मैं बीजेपी मुंहकी खायेगी . उससे ज्यादा बुरा यह होगा की देश की जनता ने जिस परिपक्विता से जो एक दल को अप्रत्याशित जीत  दिलाई थी वह गलत सिद्ध हो जायेगी और देश पुनः कांग्रेस के कुशासन शिकंजे मै आ जाएगा. यह देश की जनता के साथ विश्वासघात होगा .

हम तो जामवंत ही हैं जो मोदी रूपी हनुमान को मंथर विकास के सागर पर छलांग लगाने के लिए प्रेरित ही कर सकते हैं . हम सिर्फ सरकार को आगाह कर सकते हैं की विकास की कार बिना बड़े व् कठिन फैसलों के पेट्रोल के  नहीं चलेगी . बिना विकास के नयी नौकरियां नहीं आयेंगी . युवा वर्ग बिना नयी  नौकरियों के कैसे मोदी जी को समर्थन देगा . कांग्रेस सरकार की अक्षमता व् भ्रष्टाचार की बातें और बहुत दिन तक सहायक नहीं होंगी क्योंकि कुछ दिनों मैं जनता उन्हें भूल जायेगी.

इस लिए मोदी जी अपनी विकास पुरुष की छवी को शीघ्र सिद्ध कीजिये नहीं तो बाज़ी हाथ से निकल जायेगी .

Filed in: Articles, Economy

No comments yet.

Leave a Reply