The hindu dharm story of ten incarnation of god called Dashavtaar has some scientific basis . The first avtaar was Matsya ( Fish ) which saved the living beings from a massive flood . Obviously it can be linked to the period when earth was cooling down and life was possibly emerging . The second avtaar was Kachchap ie tortoise . This possibly was the ambhibian phase . The third avtaar was a boar which possibly was the next stage of evolution . The article below gives the scientific basis of ‘ Dashaavtaars”
दशावतारों की वैज्ञानिकता
हमारे 18 पुराणों में दशावतारों की कथा आती है। लेकिन पढे-लिखे लोग इसे काल्पनिक मानते हैं। इसमें उनकी कोई गलती नहीं हैं, क्योकि जो लोग इन दस अवतारों महिमा मंडन करते है, तब यह नहीं बताते कि यह दस अवतार कब हुए और इसका वैज्ञानिक आधार क्या हैं।
आइए, इसे वैज्ञानिक दृष्टी से समझने का प्रयास करते है। इसके लिए हमें पुराणों के साथ-साथ आधुनिक जीवविज्ञान और भुगोलका भी सहारा लेना होगा।
- विष्णु पुराण एवं अन्य पुराणों के अनुसार सबसे पहला अवर है- मत्स्य अवतार। अब देखते है कि आधुनिक जीवविज्ञान और भुगोल का अध्ययन क्या कहता है इसके बारे में। भुगोल/जीवविज्ञान के अनुसार पृथ्वी सूर्य से आज से 4 अरब वर्षों पहले अलग हुई। प्रारंभ में यह पृथ्वी सूर्य के समान आग का एक गोला ही थी। धिरे-धिरे यह ठंडी होनी शुरू हुई और आज से तकरिबन 2 अरब वर्षों पहले पृथ्वी पर जल की उत्पत्ति हुई। वैज्ञानिक दृष्टी से आग से ही पानी की उत्पन्न होता है। पानी का रासायनिक सूत्र है – H2O अर्थात पानी का एक अणू और हवा(ऑक्सीजन) के दो अणूओं से पानी तैयार होता है। आज भी हम जब पानी को गरम करते है तो उसमें से भाप अलग होती है और आग अलग होती है और वह नष्ट हो जाता है अर्थात अपना रूप बदल लेता है। क्योंकि पृथ्वी पर पानी सबसे पहले बना इसलिए सबसे पहले पानी में जीवन जीने वाले जीव ही उत्पन्न हुए होगे अर्थात मछली आदी जीव। सबसे पहला अवतार जो है वह है– मत्स्य अवतार । अर्थात सबसे पहले मछली आदी जीवों की उत्पत्ति की बात पूर्णत: वैज्ञानिक धरातल पर सही बैठती है। अर्थात इसमें कोई भी अवैज्ञानिकता नहीं है।
- दूसरा अवतार है- कच्छ अवतार। जैसे-जैसे पृथ्वी पर पानी की मात्रा कम होने लगी और उसमें से जमीन भी अलग होने लगी तो ऐसे जीवों की उत्पत्ति हुई होगी जो जल और जमीन दोनों पर जीवन जीने की क्षमता वाले जीव/प्राणी थें। कछुआ एक ऐसा प्राणी है जो उभयचर हैं। उभयचर अर्थात वे जीव जो जल और जमीन दोनों पर जीवन जीने की क्षमता रखते हों। कछुआ जल और जमीन दोनों पर जीवन जीने की क्षमता रखते हैं। इसलिए दूसरा अवतार कच्छ अवतार पूरी तरह से वैज्ञानिक धरातल पर सही बैठता है।
- तीसरा अवतार है- वराह अवतार। जैसे-जैसे पानी और जमीन अलग होने लगे वैसे वैसे जीवसृष्टी का भी विकास होने लगा और विशेष क्षमता के जीव जो केवल जमीन पर जीवन जी सकते थें, उनकी उत्पत्ती होने लगी। जैसे की वराह अर्थात- सूअर प्रजाति के प्राणी। सूअर पूर्ण रूप से जमीन पर जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इसलिए यह अवतार भी वैज्ञानिक दृष्टी से सही है और आगे जीवों के विकास की यात्रा भी जारी रही।
- चौथा अवतार है- नृसिंह भगवान का । जो पशु(सिंह) और इन्सान का मिश्रण है। भूगोल के अनुसार एक समय ऐसा था जब केवल मानव-सदृश प्राणी और प्राणी-सदृश मानव हुआ करते थें। नृसिंह भी इसी श्रेणी के अवतार थे जो मानव के विकास यात्रा का महत्वपूर्ण पडाव थें। जब प्राणियों से मानव बनने की विकास यात्रा का सफर तय कर रहें थें। तो यह अवतार भी बिलकुल सही है और वैज्ञानिक धरातल पर पूरी तरह से सही बैठता है।
- पांचवा अवतार हैं– बटू वामन का। इन्सान का जब जन्म होता है तो वह बच्चा होता है बाद में धीरे-धीरे बढते हुए छोटा बालक बनता है। उसका कद छोटा होता है अर्थात वह बडों की तुलना में बटु(छोटा) ही होता है। बटु वामन ने दान में बली से सब कुछ दान में ले लिया था ताकि उसका अभिमान नष्ट हो । बाद में उसके विकास की यात्रा भी जारी रही।
- छठवां अवतार है- परशुराम का। भारत में एक समय ऐसा था जब सभी लोग आपस में केवल लड़ने-भिडनें का ही काम करते रहते थें। जैसे कि अन्य पशू। इसलिए परशुराम का स्वभाव भी हथियारों से लैस और आक्रामकता से परिपूर्ण हैं, जिसने कितनी ही बार पृथ्वी को नि:क्षत्रीय किया था। यह आक्रामकता एवं मार- काट मनुष्य जीवन के विकास का अभिन्न अंग रही है। तो यह अवतार भी वैज्ञानिक दृष्टी से बिलकुल सही लगता हैं। आगे विकास होता गया।
- सातवां अवतार हैं- दशरथपूत्र श्रीराम का। राम को मानवीय इतिहास एक महत्वपूर्ण पडा व माना जाता है, क्योंकि राम ने बहुत से नीति मूल्यों की स्थापना में मानवता अपना योगदान दिया है। आज तो रामसेतु और अन्य हजारों प्रमाणों से यह सिद्ध भी हो रहा है कि राम भारत में आजसे लगभग 9100 वर्षों पूर्व हो चुके है। अर्थात इसापूर्व 7100 वर्ष पूर्व। जिसके लाखों प्रमाण भी है। राम ने मानव जीवन के विकास के क्रम को और भी गति दी न केवल भौतिकता से उपर उठकर जीना सिखाया बल्कीं मानवीय मूल्यों की स्थापना करते हुए मानव के जीवन विकास को गतिी दी। जो पूर्णत: वैज्ञानिक धरातल पर सत्य प्रतीत हो रहा है।
- आठवा श्रीकृष्ण का। श्री कृष्ण आज से लगभग 5200 वर्षों पूर्व हुआ, जिन्होंने मानवीय मूल्यों की स्थापना के साथ-साथ राजनीतिक दावपेचों और नैतिकता की शिक्षा दी और दोनों की बीच तालमेल बिठाया।। जिनकी द्वारका आज भी गुजरात(कच्छ) के पास के समुद्र में है। जो मानवीय इतिहास का एक महत्वपर्ण पडाव है, जो विकासवाद की भी पुष्टी करता हैं।
- नौवा अवतार है- भगवान गौतम बु्द्ध का। भगवान गौतम बुद्ध ने अहिंसा के माध्यम से संपूर्ण विश्व को शांति का संदेश दिया। विकासवाद में एक और महत्वपूर्ण पडाव है भगवान गौतम बुद्ध। यह वैचारिक विकास केवल भौतिकता के क्षेत्र में नहीं मानवता के इतिहास में भी मायने रखता है।
- दसवां अवतार है- कल्की अवतार। यह विकासयात्रा के अंतीम पडाव का अवतार है। जो समस्त मानव जीवन को एक-साथ लाएगा और संपूर्ण मानव जाति के लिए कार्य करेगा और विकास की यात्रा को पूर्ण विराम लगाएगा। मनुष् य को उनके जीवन का वास्तविक उदयेश्य से परिचय करवाएगा।
- डार्विन के विकासवाद को ठीक से पढे, तो उसमें बंदरों से मानव के विकास की जो बात कही है वह कुछ हद तक ठीक है क्योंकि बंदर और और मनुष्य में काफी साम्यताएं दिखाई देती है। यदि हम यह माने कि मनुष्य के जन्म से ठीक पहले का यदि कोई जन्म होगा तो वह बंदर का ही हो सकता है। बंदरों की शारीरिक रचना और मनुष्य की शारीरिक रचना में काफी साम्यता पायी जाती है। बौद्धीक विकास और शारीरिक रचना का थोडा विकास हो तो बंदर के बाद मनुष्य का शरी उसके लिए उचित लगजा हैं। मनुष्य के शरीर की रिढ की हड्डी में अभी भी वह निशान मिलता है जहां बंदरों को पूंछ होती है। विकास की इस यात्रा में मनुष्य से पुंछ पीछे छुंट गई।
- पुराणों के अनुसार 84 लाख योनियों के बाद मनुष्य का जीवन प्राप्त होता हैं इसको वैज्ञानिक दृष्टी से जांच कर देखें तो इसमें 21 लक्ष जारज, 21 लक्ष अंडज, 21 लक्ष उद्भीज और 21 लक्ष जलज जीव है, जिसे ‘योनियां’ कहा गया है। यदि धरती पर जीवशास्त्र की दृष्टी से देखें तो पायेंगे कि यह सभी प्रजातियां आज भी उपलब्ध है। कुछ की संख्याओं में कमी आयी होगी। लेकिन उनके जीवाश्म अभी भी जल और मिट्टी में मौजूद हैं। मनुष्य प्राणी मां के पेट में जितने दिन रहता है, उसे यदि सेकंदों में विभाजित किया गया, तो वह लगभग 84,00,000 ही आता है। यदिं हम यह माने की प्रकृति हमें सभी फल, फुल और अन्य जीवों की सेवा इसलिए मिल रही है, क्योंकि हम भी कभी यह सब कुछ रह चुके हो, तभी तो हमें यह सब कुछ प्रकृति ने देखने का मौका दिया है। अपने विचार अवश्य बताए