NITI AYOG Vs Planning Commission : क्या जंगल के शेर को सर्कस का शेर बना के देश को कुछ मिलेगा या देश खोएगा
सदस्य पहले नीचे के लेख से निति योग व् योजना योग के अंतर पढ़ लें .
कांग्रेस सरकार ने कई राष्ट्रीय संस्थाओं का इतना बुरा दुरूपयोग किया की लोगों का उस संस्थाओं से विश्वास ही हट गया . इसमें आई बी के अफसरों पर केस करनी वाली सीबीआई , पयावरण विभाग व् अंग्रेजी मीडिया तो था ही परन्तु एक जनता से दूर रहने वाली संस्था योजना आयोग भी था . संभवतः योजना आयोग ने गुजरात सरकार को बहुत तंग किया हो जो मोदी जी को खल गया हो . परन्तु देश के बड़े बाबुओं ने उसका फायदा उठा कर अपनी प्रभुसत्ता को बड़ा आर्थिक सुधार बता कर बढ़ा लिया .
योजना योग को पञ्च वर्षीय योजना पर अमल करने का अधिकार था. उसके उपाध्यक्ष मंत्री स्तर के होते थे और मुख्य मंत्रियों के समक्ष थे . वह राज्यों व् विभिन्न मंत्रालयों को सरकारी अनुदान किमात्रा तय करते थे . बड़े खर्चों के लिए योजना योग की अनुमति जरूरी होती थी जैसे रेल लाइन के पास इस्पात कारखना लगाना आवश्यक था. वित्त मंत्रालय व् योजना योग मैं कभी कभी ठन भी जाती थी . राज्यों की योजना पर योजना योग मैं चर्चा होती थी व् अनुदान की राशि निर्धारित होती थी .
बिना निहित शक्तियों के योजना योग अपनी योजनाओं पर कार्यान्वन नहीं करा सकता था.
योजना योग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह वित्त विभाग के सचिवों से बड़े थे . कई मामलों मैं वित्त मंत्री भी योजना योग को नहीं दबा पाते थे विशेषतः जब मोंटेक सिंह पर मन मोहन सिह का अधिक विश्वास था. मोंटेक सिंह स्वयं बहुत ज्ञानी व् बुद्धिमान व्यक्ति थे और उनको वैचारिक स्तर पर हरा पाना बड़े बाबूओं के बस की बात नहीं थी.
बड़े बाबुओं की जमात ने जो निति योग बनाया है वह मात्र जंगल के शेर को पिंजरे मैं डाल कर सर्कस का शेर बनाने जैसा है.
जब नए उपाध्यक्ष के पास अपने सुझावों को अमल मैं लाने की शक्ति ही नहीं होगी तो वह तो मात्र कागज़ पर प्रस्ताव ही लिख सकेंगे . सचिवालय के बाबु चाहेंगे तो मानेंगे नहीं चाहेंगे तो नहीं मानेंगे . कुछ मीटिंगें हो जायेंगी . कुछ समितियां बना दी जायेंगी . थोड़े दिनों बाद उपाध्यक्ष महोदय का मोह भंग हो जाएगा . वह सिर्फ टीवी इत्यादि पर दीखेंगे पर कुछ करा नहीं पाएंगे .
इसके विपरीत नर सिंह राव जी ने वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को पूर्ण अधिकार दे रखा था. परवेज़ मुशर्रफ़ ने भी शौकत अज़ीज़ को पूर्णतः स्वतंत्रता दे राखी थी. मनमोहन सिंह . मोंटेक सिंह व् शौकत अज़ीज़ ने अपने देशों की आर्थिक व्यवस्था को बदल कर रख दिया. मोंटेक सिंह को बाद मैं सोनिया गाँधी ने असरहीन कर दिया गया जिसकी देश ने बड़ी कीमत चुकाई .
प्रश्न है की नए निति आयोग मैं क्या ऐसा है जो देश के अधिक हित मैं है ?
मात्र सदस्यों की संख्या कम या ज्यादा करने सो तो कुछ नहीं बदलेगा . पुराने आयोग मैं विशेषग्य सदस्य थे इस आयोग मैं आई ए एस का अर्थ शास्त्रियों पर बोल् बाला होगा . वित्त मंत्री के पास इन्टने मंत्रालय हैं की उनका समय दे पाना लगभग असंभव है.उन्के बाबुओं को अर्थ व्यवस्था के बारे मैं क्या आता है यह जगत विदित है . देश ने उनके इस अज्ञान की पहले तीस सालों मैं बहुत बड़ी कीमत चुकाई है. अब फिर उसी घिसी पिटी व्यवस्था को वापिस लाया जाएगा जिससे मनमोहन सिह ने वित्त मंत्री कल मैं देश को मुक्त किया था. यदि राज्यों को अधिक महत्त्व देना था उसके तो अनेक और ढंग भी थे .
वास्तव मैं यह वित्त मंत्रालय को पूर्ण आर्थिक सत्ता देने का दूसरा ढंग है जिसकी देश को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी . वित्त मंत्रालय के पास न तो ज्ञान है न ही समय .
योजना आयोग के पास देश की अर्थ व्यवस्था के बारे मैं बहुमूल्य जानकारी है. उसका वित्त मंत्रालय से स्वतंत्र रहना बहुत आवश्यक है .
पाठक नीचे लिखे अंतर की अंतरहीनता को खुद ही समझ लें
5 things that differentiate NITI Aayog from Planning
Commission – रीडिफ़
State governments are expected to play a more significant role
Recently, the decades-old Yojana Bhavan wore a new look and feel, and the corridors of the five-storeyed building were painted afresh.
The body occupying the building, the Planning Commission, had been restructured and renamed the National Institution for Transforming India (NITI) Aayog.
Even as the employees of the erstwhile Planning Commission face teething troubles, with no clearly defined function or role, Business Standard takes a look at five key counts on which the new body differs from the Planning Commission of India.
Parameter | NITI Aayog | Planning Commission |
Financial clout | To be an advisory body, or a think-tank. The powers to allocate funds might be vested in the finance ministry |
Enjoyed the powers to allocate funds to ministries and state governments |
Full-time members | The number of full-time members could be fewer than Planning Commission | The last Commission had eight full-time members |
States’ role | State governments are expected to play a more significant role than they did in the Planning Commission | States’ role was limited to the National Development Council and annual interaction during Plan meetings |
Member secretary | To be known at the CEO and to be appointed by the prime minister | Secretaries or member secretaries were appointment through the usual process |
Part-time members | To have a number of part-time members, depending on the need from time to time | Full Planning Commission had no provision for part-time members |