डी आर डी ओ के अध्यक्ष का निकाला जाना : ‘ मेक इन इंडिया’ या ‘ मेड इन इंडिया : खतरे की घंटी बज गयी है

 

डी आर डी ओ के अध्यक्ष का निकाला जाना : ‘ मेक इन इंडिया’ या ‘ मेड इन इंडिया : खतरे की घंटी बज गयी हैtejas rediff

राजीव उपाध्याय

डी आर डी ओ के अध्यक्ष श्री अविनाश चन्द्र का जो कभी मिसाइल प्रोग्राम के करताधर्ता थे , इतनी जल्दी और इस तरह से निकाला जाना बेहद अपमानजनक व् खेद जनक है . क्योंकि उनके कार्यकाल को इसी सरकार ने बढाया था इस लिए यह निर्णय और भी आश्चर्य जनक है .किसी नीति का इस सब के बीच मैं घुसाना गलत होगा . इस लिए रक्षा मंत्री का यह कहना  कि वह डीआरडीओ मैं ठेके के अध्यक्ष नहीं चाहते आधारहीन है . यदि यह ही सच है तो यह ज्ञान अभी ही क्यों आया जब अविनाश चन्द्र साहिब  नवम्बर मैं रिटायर हो रहे थे तब ही क्यों नहीं आया . क्यों व्यर्थ मैं उनके सेवाकाल को बढाया था .

रक्षा मंत्रालय के मामले इतने संवेदन शील होते हैं की कोई उन पर नहीं बोल सकता . कहते हैं कि जनरल वी के सिंह के पास तो कई गोपनीय रिकॉर्डिंग थी इस लिए बच गए नहीं तो श्रीलंका के सेनाध्यक्ष की तरह मक्खी की तरह निकाल दिए गए होते . डीआरडीओ के अध्यक्ष के पास तो यह नहीं था इसलिए मक्खी की तरह निकाल दिए गए .

प्रश्न यह है की ऐसा कौन सा मुद्दा था की प्रधान मंत्री को वह अचानक इतने नागवार लगने लगे . हमारे पास कोई तथ्य नहीं हैं इस लिए रीडिफ़ इत्यादि मैं प्रकाशित समाचारों के आधार पर ही अनुमान कर सकते हैं . यह अनुमान पूर्णतः आधारहीन भी हो सकता है .

२६ जनवरी को राष्ट्रपति ओबामा आ रहे हैं . ‘ मेक इन इंडिया ‘ मोदी जी की व्यक्तिगत मुहीम है . वह बहुत बड़ा विदेशी निवेश इसमें देखना चाहते हैं . इसके विपरीत डीआरडीर्ओ एक ‘मेड इन इंडिया’ मुहीम चला रहा है . साधारण भाषा मैं यदि अमरीकी कंपनी लॉक हीड भारत मैं एक शाखा खोले और  आधुनिकतम लड़ाकू हवाई जहाज बनाये तो वह ‘ मेक इन इंडिया होगा ‘ .वह कार कंपनियों की तरह अधिकाँश हवाई जहाज भारत मैं बेचेगी पर कुछ हवाई जहाज निर्यात करेगी . दोनों देशों को इससे फायदा होगा .  इसके विपरीत डी आर डी ओ ने वर्षों के मेहनत से तेजस हवाई जहाज बनाया है . वह कहेगी की इसकी और उन्नत किस्म बनाई जाय और इसका निर्यात किया जाय .यह ‘मेड इन इंडिया होगा ‘. मेक  इन इंडिया’ से आधुनिकतम तकनीक मिलेगी जैसा कारों मैं हो रहा है .मेड इन इंडिया से स्वाबलंबन  मिलेगा जिसकी देश को उतनी ही आवश्यकता होगी . अब तक देश’ मेड इन इंडिया’ की नीति पर चल रहा था . भारतीय मिसाइल कार्यक्रम के आधार स्तम्भ अविनाश चन्द्र  साहिब पुराने अनुभवी इंजिनियर हैं . उनको अपने ऊपर भरोसा होगा . उन्होंने स्वाबलंबन पर ही जोर दिया होगा जिस मैं बहुत समय लगता है .trainer aircraft 2

बहुत वर्षों के प्रयास के बाद अब भारत अपने टैंक , हवाई जहाज , मिसाइल, पनडुब्बी व् युद्धपोत बनाने की अवस्था मैं आया है . डीआरडीओ इस मेहनत को बेकार नहीं होने देना चाहता होगा .

दूसरी ओर कॉर्पोरेट जगत विदेशी पूंजी निवेश व् अपना फायदा देखना चाहता है और ‘मेक इन इंडिया ‘ को चाहता होगा .

पिछले बीस वर्षों के इतिहास को देखें तो विदेशी निवेश से देश को फायदा ही हुआ है . इस लिए इस लड़ाई मैं दोनों ही ठीक हो सकते हैं . सेनाएं भी अधुनिकतम हथियार चाहती हैं . उन्हें डीआरडीओ सदा राह का रोड़ा लगता रहा है क्योंकि न तो हमारे टैंक , न हवाई जहाज न युद्धपोत आधुनिकतम हैं क्योंकि वह इतनी देर से बनते हैं की बनते ही पुराने हो जाते है. सेना की दृष्टि मैं यदि पाकिस्तान व् चीन के हथियार हमसे अच्छे हैं तो हमारा स्वाबलंबन किस काम का ?

रक्षा मंत्री की मुश्किल इन सब मैं समन्वय बनाने की है ..

परन्तु अमरीका या रूस कभी किसी का सगे  नहीं हुए हैं .सब भारत अपने हित के लिए आते हैं . वह सदा से हमें तब तकनीक बेचने आते हैं जब हम खुद उसे स्वयं विकसित करने के करीब आ जाते हैं जैसा की अभी हुआ है  .

प्रधान मंत्री का निर्णय सर्व मान्य  है .अविनाश चन्द्र साहिब को निकाल दिया तो वह बदल नहीं सकता .परन्तु  इससे समस्त डीआरडीओ व् राष्ट्रप्रेमियों का बहुत अपमान हुआ है जो देश के लिए अहितकारी होगा . जिस बड़े बाबु ने भी प्रधान मंत्री को डीआरडीओ अध्यक्ष की लाश को बहादुरशाह ज़फर के लडकों  की तरह लाल किले पर टांगने की सलाह दी है उसने घोर देश द्रोह ही किया है . अविनाश चन्द्र वैज्ञानिक हैं बाबु नहीं . उन को ईरान या नार्थ कोरिया ले लेंगे नहीं तो कोई कंपनी ले लेगी . परन्तु राष्ट्रिय सुरक्षा को ऐसे असंतोष से बहुत खतरा हो सकता है. आज भी कितने भारतीय रक्षा वैज्ञानिक रहस्यमय ढंग से मारे जा रहे हैं . बाबुओं को मारने मैं क्यों कोई अपनी गोली बेकार करेगा .‘रक्षा व् खाद्यान मैं स्वाबलंबन’ जो आज तक इस देश की नीतियों का मूलभूत आधार था और इसका गौरव था उसका इस निर्ममता से समाप्त करना गलत होगा . विशेषतः जो ज्ञान भारतीय वैज्ञानिकों ने वर्षों की मेहनत व् तपस्या से पाया है उसका इतना घोर अवमूल्यन राष्ट्र के हित मैं नहीं होगा .

भारतीय वैज्ञानिकों को निरुत्साहित करना प्रधान मंत्री का मंतव्य कभी नहीं हो सकता . यह तो हमारे बाबुओं की सोच है . विदेशी कंपनियां लाइसेंस मैं रक्षा सामग्री बनाना तो सिखा देंगी पर वास्तविक डिजाईन का ज्ञान नहीं देंगी . टाटा की कारों की तरह विदेशी कंपनियों के आने के बाद देश के वैज्ञानिकों का अवमूल्यन स्वाभाविक है. परन्तु यह ज्ञान एक बार चला गया तो फिर कितना प्रयास करते रहना यह फिर नहीं आयेगा . टाटा की कारें बिकें या न बिकें परन्तु कंपनी के इन्जिनियरों  को कार बनाना तो आ गया . धीरे धीरे उनकी क्वालिटी भी अन्तराष्ट्रीय स्तर की हो जाएगी. रक्षा मामलों मैं स्वाबलंबन की अपनी विशेष कीमत होती है . हमारे बाबु सदा अपनी प्रभु सत्ता बढ़ने के लिए ही उत्सुक रहते हैं चाहे देश का कितना ही अहित क्यों न हो जाए. ऐसे ही एक बाबु ने जनरल वी के सिंह के खिलाफ सैनिक क्रांति की झूटी खबर उडाई थी और भ्रष्ट कांग्रेस सरकार ने उसे ऊंचा पद इस झूट के पुरूस्कार स्वरुप दे दिया . परन्तु देश की सजग जनता ने भी चुनाव मैं अपना फैसला सुना दिया जो सर्व विदित है .

इसलिए हम रक्षा मन्त्री से आग्रह करेंगे की इस निर्णय का सच तो आप ही जानते हैं और हम तो केवल अटकलें ही लगा सकते हैं . परन्तु जो देश के वैज्ञानिकों ने वर्षों की तपस्या से पाया है उसे किसी बाबु के घमंड , विदेशी के छलावे मैं या भारतीय सेठों के लालच मैं न गंवा दें . यह जो अविनाश चन्द्र साहब व् डीआरडीओ का आप से अनजाने मैं अपमान हुआ है इसे किसी तरह से ठीक करें .

‘ मेक इन इंडिया’ व् ‘ मेड इन इंडिया ‘को साथ साथ चलने दें इसी मैं राष्ट्र का भला है .

How a ‘Made in India’ project was scuttled – रीडिफ़

January 07, 2015 11:43 IST

                       

Instead of the Hindustan Turbo Trainer-40, which Hindustan Aeronautics Limited could build, export, overhaul, upgrade and even modify into a light-attack aircraft, powerful lobbies have promoted a Swiss trainer — the Pilatus PC-7 Mark II. Ajai Shukla reports.

Prime Minister Narendra Modi’s ‘Make in India’ vision faces powerful opposition, including within the military, which sees greater benefit in importing costly foreign weaponry.
This is evident from the successful scuttling of a Hindustan Aeronautics Limited project for designing and building a basic trainer aircraft named the Hindustan Turbo Trainer — 40 (HTT-40) for training rookie pilots of the Indian Air Force.
Instead of this aircraft, which HAL could build, export, overhaul, upgrade and even modify into a light-attack aircraft, powerful lobbies have promoted a Swiss trainer — the Pilatus PC-7 Mark II.
Business Standard has learnt, and the IAF has confirmed, that the MoD has directed HAL to close the HTT-40 project.
Instead, HAL will build 106 PC-7 Mark II trainers in India.
In 2009, the defence ministry had ruled that the IAF’s requirement of 181 trainers would be met through two simultaneous channels — 75 aircraft will be bought from abroad while HAL designed and built 106 HTT-40 trainers in India.

Accordingly, the IAF contracted on May 24, 2012 with Pilatus for 75 PC-7 Mark II trainers for Swiss Francs 557 million (Rs 3,600 crore/Rs 36 billion). With that done, the IAF began a shrill campaign demanding 106 more Pilatus in place of the HTT-40.

Business Standard has identified a four-pronged campaign that promoted the Pilatus trainer, while blocking the HTT-40 programme.
This included a letter from a serving IAF chief to the defence minister that knowingly understated the cost of the Swiss trainer, to argue that the indigenous trainer is too expensive; a letter from a Bharatiya Janata Party member of Parliament to the Chief Vigilance Commissioner alleging corruption in selecting an engine for the HTT-40, delaying the engine purchase; another letter from a shadowy non-governmental organisation to the CVC, also alleging irregularities in HAL’s engine selection and levelling charges against HAL’s design chief; and repeated attempts by the IAF deputy chief, who sits on HAL’s board, to choke off funding for the HTT-40.
CVC investigations have found no wrongdoing but the investigation has delayed HAL’s purchase of an engine for the HTT-40. Such delays strengthens the IAF’s case for buying more Pilatus.
Business Standard had earlier reported on the letter written by then IAF chief, Air Chief Marshal N A K Browne to then defence minister, A K Antony.
Browne’s five-page letter argued for scuttling the HTT-40 and buying more Pilatus, falsely stating that the Pilatus costs only Rs 30 crore (Rs 300 million) per aircraft, significantly cheaper than the HTT-40.
In fact, due to the rupee’s decline, the IAF was paying Pilatus almost Rs 40 crore (Rs 400 million) for each PC-7 Mark II trainer being delivered.
Browne also stated incorrectly that the Pilatus’ cost would remain Rs 30 crore per aircraft till 2017.
In fact, the next 38 trainers will cost Swiss Francs 6.09 million (Rs 39.3 crore/Rs 393 million today) each under the ‘options clause’ of the contract.
The cost of the following 68 aircraft (adding up to 106 additional PC-7 Mark II) would be negotiated afresh and would almost certainly be higher, due to inflation.
The MoD ignored Browne’s letter, being disinclined then to scupper an indigenous project.
However, with the IAF blocking funding for the HTT-40, HAL was forced to commit Rs 180 crore (Rs 1.8 billion) of company funds in July 2013.
In early 2014, that was upped to Rs 350 crore (Rs 3.5 billion), with three prototypes to be built for accelerated flight-testing.
With the HTT-40 on track, and racing towards its first flight next year, two corruption allegations mysteriously popped up, stalling the project.
Both alleged wrongdoing in HAL’s selection of the Honeywell TPE 331-12B engine after an open tender, when the alternative supplier, Pratt & Whitney, refused to allow licensed manufacture in India.
With the first flight looming, Honeywell agreed to provide a ‘Category B’ engine — a used engine with more than 80 per cent of its service life remaining.
The first complaint came in early November from the BJP MP from Jaunpur, Krishna Pratap Singh, who complained to the CVC about the engine selection and blamed HAL’s design chief, T Suvarna Raju, who oversees the HTT-40 project. Investigation began and the MoD halted engine procurement.
Contacted by Business Standard, Krishna Pratap Singh claimed that he knew nothing about the HTT-40 or the issues involved.
“About three to four months ago, a sajjan (person of good character), who I don’t remember now, came to me and said there was corruption. I only wrote that the matter be investigated, and any wrongdoing corrected,” said Singh.
The second allegation came almost simultaneously from an NGO called Rashtriya Mukti Morcha. The RMM has neither expertise nor previous interest in aerospace. It has earlier filed petitions against Sonia Gandhi’s right to hold Constitutional office, and in the Jharkhand Mukti Morcha bribery case.
Contacted by Business Standard, RMM chief Ravindra Kumar acknowledges filing a complaint. He said details are in his files, but he repeatedly denied requests to visit his office to ascertain the basis for his complaint.
CVC investigations into the complaints unearthed no wrongdoing; It is not unusual for ‘Category B’ engines to be chosen for prototypes, while buying new engines for the production aircraft.

HAL had powered the intermediate jet trainer prototype with a ‘Category B’ Larzac engine, until new engines became available.
Even so, engine procurement was halted. Meanwhile the IAF repeatedly petitioned the MoD that Swiss trainers should be quickly bought since the HTT-40 would be late.
Meanwhile, the deputy chief of air staff, who sits on HAL’s board, steadfastly opposed funding for the HTT-40.
When the board allocated Rs 180 crore in July 2013, the DCAS dissented in writing, something that the IAF now denies.

The IAF has sought to associate the PC-7 Mark II with the ‘Make in India’ drive by seeking to build it in India to blueprints provided by Pilatus.
Yet that would essentially remain a foreign aircraft, with intellectual property, technology and licensing residing abroad.
In contrast, a ‘Make’ category project like the HTT-40 would involve far more expansive indigenisation — including ground-up design and integration, test flying and certification and eventual manufacture.
In 2013, the IAF asked HAL to scrap the HTT-40 and instead build 106 PC-7 Mk II from technology transferred by Pilatus.
“However, in their own interest, HAL declined to participate in license manufacture of the PC-7 Mk II,” the IAF told Business Standard.

Rebuffed by the HAL, but insistent on providing a veneer of indigenisation, Browne bizarrely declared on October 8, 2013, that the IAF’s base repair depots, which maintain and overhaul aircraft and engines, could build the PC-7 Mark II.

The IAF’s maintenance chief, Air Marshal P Kanakaraj, quickly contradicted him, while the MoD simply ignored the proposal.
Now, however, battered to a halt by groundless complaints and unable to buy an engine, HAL has buckled under the pressure.
Last month HAL Chairman R K Tyagi agreed to build the PC-7 Mark II, while developing the HTT-40 as an HAL project.
Now even that is seen as a threat.
At HAL’s board meeting on December 20, P K Kataria, an MoD financial advisor, questioned why the HTT-40 project should continue, since HAL would be building the PC-7 Mark II.
Defence Minister Manohar Parriker will pronounce final sentence on the HTT-40, in the apex Defence Acquisition Council.
Asked when this would happen, he indicated that the die was not yet cast: “There are issues (relating to the Pilatus) that were raised and which have to be addressed. I think every query and every difficulty has to be properly addressed.”
The MoD and HAL did not respond to a request for comments for this report.

 

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