आर्थिक विकास अवरुद्ध क्यों ?
ज़मीन पर रही धूल उडती ही वैसी, गगन मैं चमन खिल लिया तो हुआ क्या ?
भारतीय आर्थिक विकास अभी तक अवरुद्ध क्यों है ?इस प्रश्न का उत्…तर इतना सरल नहीं है जितना लगता है. मनमोहन सिंह एक विद्वान् अर्थशास्त्री थे . वह पांच साल कुछ नहीं कर सके . चिदंबरम सबसे अनुभवी वित्त मंत्री थे वह भी कुछ नहीं कर सके . जनता को लगा की कांग्रेस का महा भ्रष्टाचार आर्थिक विकास रोक रहा था . उसने उसे जड़ से उखाड़ फैंका . इसे भी नौ महीने हो गए . विकास की गंगा अभी भी कहीं नहीं बहती दीख रही . इधर उधर ध्यान बंटाने के लिए कुछ भी कीजिये पर सत्य यह है की आर्थिक विकास की कोई कुंजी सरकार को नहीं मिली है .जमीन पर वही धुल उड़ रही है सिर्फ आशा के आकाश मैं चमन खिलाये जा रहे हैं . पर सत्य कुछ इतना अप्रिय है की कोई उसे बोलने का साहस नहीं कर पा रहा ! परन्तु किसी को तो इसे बोलना होगा नहीं तो यह देश को ले डूबेगा ! आज हम यही प्रयास करेंगे . कांग्रेस इतनी पुरानी पार्टी है की उसे भ्रष्ट सरकार चलाने मैं महारथ है . वह भ्रष्टाचार को सीमित करना व् उसका केन्द्रीयकरण करना जानती है . सता के पूर्ण केन्द्रीय करण के कारण वह रिश्वत को ज्यादा बाँटने नहीं देती इस लिए उसकी जरूरत की रिश्वत की मात्रा कम होती थी .परन्तु गठबंधन की सरकार मैं अचानक हर दल कांग्रेस की देखा देखी भ्रष्टाचार की गंगा मैं डूबकी लगाने को आतुर हो गया. हर छोटा गठबंधन का दल कांग्रेस की बराबरी करने पर ही नहीं बल्कि उससे आगे निकलने पर आमदा हो गया . इनमें शरद पवावार व् डीएमके प्रमुख थीं . एयर इंडिया का पतन व् 2 G तथा टी आर बालू के कार्य काल मैं सड़क बनाने का काम रुकना इसका एक छोटा उदाहरण हैं .
पहले प्रधान मंत्री का सब दलों पर अंकुश होता था . सोनिया गांधी ने अपनी व्यक्तिगत सता के लिए वह अंकुश भी हटा दिया इसलिए सरकार निरंकुश व् दिशाहीन हो गयी. सोनिया गाँधी के बहुत निम्न स्तर के सलाहकार थे . वह सिर्फ प्रधान मंत्री को छोटा दिखा कर अपने को बड़ा सिद्ध करना चाहते थे . उनमें किसी मैं भी मनमोहन सिंह का अनुभव या ज्ञान नहीं था . उन्हें सरकार चलने का भान नहीं था . सारी औद्योगिक प्रगति को अवरुद्ध करने वाला पर्यायवरण मंत्रालय इसका एक ज्वलंत उदाहरण था . देश विनाश के कगार पर पहुँच गया . इस भयंकर लूट का जब सी डब्लू जी से शुरू हो कर कोयला घोटाला तक भंडा भोड हुआ तो कांग्रेस बदहवास हो गयी .देश मैं अराजकता फ़ैल गयी . जब देश का सरकार से विशवास उठ गया तो जो भी सरकार को गाली दे सकता था वह राजा बन गया. छोटे छोटे सरकारी मुलाजिम जैसे महा लेखाकार , सीबीआई प्रमुख,सीवीसी ,और संवैधानिक पदों पर आसीन सभी लोग सरकार व् प्रधान मंत्री को नाचीज़ मानने लगे . सरकार को बचाने के लिए रिश्वत लेने वालों ने रिश्वत देने वाले बड़े उद्योगपतियों को फंसाना शुरू कर दिया . उद्योगपति बचने के लिए विदेशों मैं जाने लगे . देश मैं पूँजी लगना बंद हो गया और जितनी पूंजी विदेशों से भारत आ रही थी उतनी ही बाहर जाने लगी. वोडाफोन व् २ जी केस ने विदेशों मैं भारत की साख को बहुत गिरा दिया. इतने मैं किसी ने डरी हुयी कांग्रेस अध्यक्षा को यह सलाह दे दी की भ्रष्टाचार से पुती कांग्रेस के लिए जीत पैसे से जनता के वोट खरीदने मैं है . इस सलाह मैं आन्ध्र के भूतपूर्व मुख्य मंत्री ही प्रमुख थे .इसके बाद सरकार एक तरफ और भ्रष्ट हो गयी दूसरी तरफ हार से बचने के लिए खाद्यान्न सुरक्षा बिल , मनरेगा , शिक्षा का अधिकार इत्यादि विनाशकारी बिल लाने लगी . किसानों के वोट के लिए जो भूमि अधिग्रहण का कानून बनाया उसने तो हमेशा के लिए देश के औद्योगिक विकास को अवरुद्ध कर दिया . उधर सर्वोच्च न्यायालय ने एक बे बाद एक फैसला ऐसा दिया जिससे देश का आर्थिक विकास और अवरुद्ध हो गया . इनमें लौह अयस्क ( आयरन ओर) के खनन पर रोक लगाना , २ जी के अल्लोत्मेंट को रोकना व् रद्द करना , बाद मैं कोयले के बलॉक्स को ख़ारिज करना इत्यादि थे . देश और विदेशों मैं भारत की सरकार से विश्वास उठ गया . देश की अर्थ व्यवस्था रसातल मैं पहुँच गयी . जनता ने मोदी को पूर्ण बहुमत मैं लाने के लिए वोट दे कर अपना कर्तव्य निभा दिया . पर नौ महीनों मैं हनुमान मोदीजी को कोई जामवंत नहीं मिला जो उन्हें समुद्र लांघने की सलाह दे पाता . इसलिए मोदी जी अब भी पशोपेश मैं पड़े हनुमान जी की तरह सागर के किनारे ही खडे हुए हैं . मोदीजी मनमोहन सिंह की तरह अर्थशास्त्री नहीं थे . पर नरसिम्हा राव की तरह उन्हें कोई ठीक आर्थिक सलाहकार भी नहीं मिला . एक श्री सुब्रमण्यम स्वामी मैं वह राजनितिक व् आर्थिक योग्यता थी जो इस कठिन समय मैं देश की आर्थिक व्यवस्था को रस्ते पर ला सकते थे . पर उनका कोई विश्वास नहीं कर पाया . बीजेपी के और किसी कद्दावर नेता को इस चक्रव्यूह से निकलने के बारे मैं कुछ आता ही नहीं था .आर्थिक विकास के अवरोधों को हटाने मैं जितने राजनितिक साहस व् पटुता की आवश्यकता थी वह किसी मैं नहीं थी . सरकार अभी भी फूंक फूंक कर कदम रख रही है. उधर कांग्रेस बीजेपी को असफल सिद्ध करने मैं जुट गयी , इसलिए राज्य सभा की सीटें आवश्यक हो गयीं . राज्यों की चुनावी राजनीती फिर देश की अर्थ नीति पर हावी हो गयी . पिछले दस महीनों मैं सरकार नौ दिन चले अढाई कोस सी ही रही . ज़मीन पर कोई ऐसा वास्तविक काम नहीं हुआ जिससे आर्थिक विकास मैं मदद मिलती. कुछ अध्यादेश पास हुए हैं जो जरूरत से बहुत कम हैं और अभी कार्यान्वित भी नहीं हुए हैं . देश को इससे कहीं अधिक साहस की आवश्यकता है. विदेशी पूँजी अभी कहीं नहीं आती दीख रही है. त्वरित आर्थिक प्रगति के लिए अभी बहुत अवरोधों को हटाने की आवश्यकता है . समय तेजी से बीतता जा रहा है . देखते देखते बिना कुछ किये सरकार का एक वर्ष पूरा हो जाएगा . दो साल बाद फिर अगले चुनाव की चुनावी राजनीती शुरू हो जायेगी. दिल्ली की बीजेपी की गरीबों की मुफ्तवादी मसीहा पार्टी से हार ने एक बार स्थिति को और खराब कर दिया है. हालंकि वित्त मंत्री ने कहा है की आर्थिक सुधार जारी रहेंगे परन्तु हार की चोट उनके साहस को और कम कर देगी. मोदी जी की छवि भी धीरे धीरे और धूमिल हो जायेगी . इस लिए इस बजट मैं सरकार को पूरे जोर शोर से आर्थिक सुधार घोषित कर देने चाहिए . एक बात और आवश्यक है . कुछ बड़े भ्रष्टाचारियों व् विदेशी खाते वालों को तुरंत दण्डित करना चाहिए . परन्तु अब भ्रष्टाचार की बातों को को अब अति सार्वजानिक रूप से प्रचारित करना बंद करना चाहिए . इससे देश का वातावरण दूषित होता है और उसके प्रगति शील होने मैं रुकावट आती है. सच यह है की भ्रष्टाचार नहीं होता तो सस्ती २ जी व् कोयले की दरों से देश के आर्थिक विकास को मदद ही मिली थी . उनके सार्वजानिक नीलामी से यदि एक लाख करोड़ रूपये मिल भी गए तो भी उससे भारतीय उत्पाद की कीमत ही बढ़ेगी जिससे हमें अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करना पडेगा . हमारा निर्यात बहुत तेजी से गिरा है. उदाहरण के लिए ३ जी की ऊंची दरों पर नीलामी ने टेलेफोन कंपनियों को दिवालिया ही बना दिया वही कोयले के ब्लोकों की नीलामी से होगा . वास्तव मैं रेल के किरायों की तरह सस्ती दरों ही मैं राष्ट्र हित था. सस्ते रेल किराये दूर से शहरों मैं काम करने वालों के लिए वरदान हैं .सच्ची सलाह देने व् कार्यान्वयन के लिए कांग्रेस ने जो सरकारी बाबुओं को सीबीआई से कानूनी संरक्षण दे रखा था उसे पुनः वापिस लाया जाय . सरकारी नीतियों के तुरंत कार्यान्वन और अवरोधों को हटा कर सफल बनाने के लिए अफसरों मैं बहुत साहस व् विश्वास की आवश्यकता होती है.एक डरे हुए बाबुओं की सरकार कुछ हासिल नहीं कर सकती. इसके लिए सर्वोच्च न्यायलय , सीबीआई , सीवीसी , महालेखाकार , मीडिया इत्यादि के महत्व को श्रीमती इंदिरा गाँधी के काल के बराबर कम करना होगा . आज कल तो भेडें कम गडरिये ज्यादा हैं .आर टी आइ कानून का उपयोग कम दुरोपयोग ज्यादा हो रहा है. देश साधू तो नहीं चला रहे . जो कठोरता से काम करेगा वही फंसेगा. एक प्रधान मंत्री अकेला देश व् सरकार नहीं चला सकता . देश की पूरी सरकारी तंत्र को सुदृढ़ व् सशक्त करना होगा. इस लिए भ्रष्ट कांग्रेस के अविश्वास के युग को साहस व् सूझ बूझ से पूरी तरह ध्वस्त करना होगा . उद्योगपति व् निष्टावान सरकारी बाबु देश की पूँजी हैं. उन्हें मात्र चंदे की दुधारू गाय समझना गलती होगी. उनकी जगह जेल नहीं है. उन्होंने सिर्फ वह किया जो उस समय की सरकार ने चाहा .मोदी जी को भी उन्हीं के कन्धों पर चढ़ ऊपर उठना होगा. तेल की गिरती कीमतों से विश्व मैं आर्थिक मंदी के आसार हो रहे हैं . आयात व् विदेशी पूँजी को आकर्षित करने के लिए हमें निर्यात भी तेजी से बढ़ाना होगा. उसके लिए उद्योगपतियों व् व्यापारियों के प्रयास की भी बहुत आवश्यकता है. सॉफ्टवेर की तरह नए सेक्टरों जैसे रक्षा , मेडिकल टूरिज्म , शिक्षा व् स्वास्थ मैं विदेशी निवेश को पांच वर्ष के किये टैक्स मुक्त कर दिया जाय. भारतीय विदेशी भाषाएँ सीख कर विदेशों मैं शिक्षा के क्षेत्र मैं हावी हो सकते हैं .प्रारंभ मैं अगले तीन वर्ष के लिए सौ मिलियन डोलर या ६००० करोड़ रूपये निवेश करने वाले उद्योगों को विशेष सुविधाएं दी जाएँ व् उन्हें ज़मीन बिजली समेत सब सुविधाएँ प्रस्ताव के अनुमोदन के साथ ही दे दी जायें जिससे लालची राजनीतिग्य व् बाबु उनका खून न चूस सकें . इससे चीन से दुखी पूंजीपति भारत आ सकेंगे. परन्तु उद्योगों पर सारा ध्यान केन्द्रित नहीं किया जा सकता . पिछले दस वर्षों मैं कृषि का विकास बहुत कम हुआ है . दस से पंद्रह साल मैं भारत मैं खाद्यान विशेषतः गेहूं की कमी हो सकती है .इसके लिए सिचाई की सुविधाएं विकसित करने के लिए बहुत धन राशि की आवश्यकता है जो रोकना मुर्खता होगी . चीन कभी भी समुद्र पर आने जाने को रोक सकता है . पुरनर ज़माने मैं दुर्ग को घेर कर जनता की भूख से राजाओं को पराजित कर दिया जा सकता था . खाद्यान मैं आत्म निर्भरता रक्षा का ही हिस्सा है. इसी प्रकारसड़क , रेल इत्यादि बनाने वाली कंपनियों को लाभ नहीं हो सकता . अंग्रेजों ने रेल बनाने पर कंपनियों को लाभांश खुद सरकार से दिया था . यही फिर करना होगा . विदेशी पूँजी को लाभ व् निवेश के अति सरलीकरण से ही आकर्षित किया जा सकता है . इसके लिए राजनितिक पटुता व् साहस की आवश्यकता होगी . भारत की पुरानी कांग्रेस युग की खराब छवि को बदलने के लिए भारत को बहुत कम समय मैं बहुत सुविधायें दे कर आगे बढना होगा नहीं तो विकास की गाडी फिर छूट जायेगी.
वास्तविक समस्या बुद्धिमान व् विश्वसनीय जामवंत के न मिल पाने की है ! See More