राशन कार्ड का मुखिया मतभेद : क्यों मैं मुसलामानों के बरेली के फतवे से सहमत हूँ : भारतीय परिवारों को राजनीती की भेंट मत चढ़ने दो ?

राशन कार्ड मतभेद : क्यों मैं मुसलामानों के बरेली के फतवे से सहमत हूँ : भारतीय परिवारों को राजनीती की भेंट मत चढ़ने दो ?

RKUराजीव उपाध्याय

हाल मैं बरेली मैं एक फतवा जारी हुआ है जिसके बारे मैं किसी को विशेष पता नहीं था .

खाद्यान्न सुरक्षा कानून के तहत घर का मुखिया नारी को बनाया गया है . यह सिवाय केरल व् पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़ किसी हिन्दू समाज मैं नहीं है. मुस्लिम समाज मैं तो इसके होने का प्रश्न ही नहीं उठता . इस लिए भला हो मुसलामानों का जिन्होंने इस प्रश्न को खडा कर दिया और इसके  विरुद्ध फतवा जरी कर दिया.

प्रश्न है कि आखिर क्यों सदियों से चले आ रहे हमारे पारिवारिक जीवन को वोट की राजनीती की भेंट चढ़ाया जा रहा है .

हमारी पारिवारिक व्य्वास्था ही तो हमारी व् देश की वास्तविक ताकत है . हम तीस प्रतिशत बचत करते हैं .बाप जीवन भर की कमाई को दाँव पर लगा कर बच्चे को पढ़ाता है कि  किसी दिन वह उनके बुढापे का सहारा बनेगा . इसी तरह न जाने कितने भारतीय पिताओं ने जमीन बेच कर लड़कियों की शादी की . सारी आशा लड़के के बुढापे मैं संपन्न व् सशक्त देखने पर थी . पितृ ऋण उतरना लड़के का कर्तव्य था . माता तो सदासे पूजनीय ही थी .पत्नी सहर्ष इस को मानती थी और कालांतर मैं बुढापे मैं माँ बन कर वह भी इसका लाभ उठाती थी. हमारी पारिवारिक व्यवस्था ही हमारा बुढापे का इन्सुयोरांस थी.

अब यह व्यवस्था चरमरा रही है . क्योंकि अनेक पत्नियाँ पति के बूढ़े माँ बाप की सेवा नहीं करना चाहती और अब नारी के विरोध मैं बेटा भी चाह कर माँ बाप की उतनी देख भाल नहीं कर पा रहा जितना अपेक्षित है . जमीन व् सम्पत्ती का बेटे को जाना भी इसी कारण से था . अब बुढापे मैं घर गिरवी रखने की परम्परा पश्चिम मैं शुरू हो गयी है . कोई संतान पर भरोसा नहीं करता. स्पष्ट परम्परा ही सब के हित मैं होती हैं . यदि लड़का लडकी दोनों सम्पत्ती के हकदार हैं तो कौन माता पिता को देखेगा . अच्छे खासे समाज को तोड़ने से पहले व् अनन्त नए झगड़ों की शुरुआत करने से पहले सोच तो लें की क्या नयी पारिवारिक व्यवस्था होगी .क्यों इसमें बदलाव की आवश्यकता पडी है

क्या कोई पुरुष नारी के अधीन रहना चाहता है , यदि नहीं तो कानून तो उस पर मत थोपिए .दोनों को यह फैसला शादी के समय खुद करने दीजिये. नारी को पुरुष की सम्पत्ती पर कोई नैसर्गिक अधिकार थोड़ी है . यह अधिकार तो हिन्दू विवाह के सामाजिक नियमों को मानने से आता है और किसी ने इसका विरोध नहीं किया . यह तो अब ही वोटों कि खातिर परिवार को बलि चढाया जा रहा है . यदि नारी का वर्चस्व नहीं पसंद तो समर्थ  पुरुष भी अपनी पसंद की नारी चुन सकता है चाहे वह गरीब ही हो . उस पर कानून क्यों थोपा जा रहा है . उसका भी तो अपने जीवन व् खुशियों पर अपनी कमाई से पाने का अधिकार है .पुरुष भी चाहे तो बच्चा गोद ले सकता , दाई रख सकता है ,पाल सकता है . पर इस अब की जरूरत क्या है ? हमारा समाज तो अच्छा खासा चल रहा है . यदि विधवाओं व् तलाकशुदा औरतों को कानून बनाने को दिया जाय तो परिवार का यह विध्वंस तो होगा ही . उनसे सहानभूति अवश्य करें पर उन्हें कानून न बनाने दें .

इसके सब के विपरीत पश्चिम मैं १८ साल की आयु के बाद बच्चे को स्वाबलंबन  के लिए छोड़ दिया जाता था . उच्च शिक्षा लेनी हो तो बैंक से उधार ले लो .कोई पैसा बचाता ही नहीं . बुढापे तक सरकार उनकी देख भाल करती है . वहां बूढ़े माँ बाप बच्चों के साथ नहीं रहते हैं .वहां हमारी गरीबी की समस्याएं नहीं हैं .पश्चिमी प्रणाली को अन्धानुकरण कर अपने यहाँ अपनाने से पहले उसके दूरगामी परिणाम भी तो सोच लें !

पिछले कई वर्षों से एक के बाद एक ऐसे कानून बनाये जा रहे हैं जिनका भारतीय समाज से कोई नाता नहीं है . ऐसे इक तरफ़ा कानूनों मैं भारतीय परिवार की एकता को भंग करना शुरू कर दिया है . भारत मैं भी पढ़े लिखे वर्ग मैं तलाक बढ़ रहे हैं . पति पत्नी के झगड़ों मैं अनेकों बूढ़े माँ बाप झूठे दहेज़ नियमों मैं जेलों  मैं सड़  रहे हैं .इसका मुख्य कारण टीवी व् मीडिया द्वारा प्रेरित  भारतीय नारी की बढ़ती हुयी असहनशीलता है . यदि किसी एक नारी के साथ बलात्कार हो जाये या जला दिया जाये तो दोषी को तुरंत कडा दंड देना चाहिए .पर पूरा कानून ही नहीं तोड़ मरोड़ देना चाहिए . पचास साल कानूनों के बावजूद मैं दहेज़ बढ़ा है और अभी और बढेगा . बिहार मैं आई ए एस की नीलामी की बोली लगना ही शेष है .इसका कारण  हर माँ बाप का अपनी लडकी के लिए अति समृद्ध वर खोजना है . गरीब लड़कों से कोई शादी नहीं करना चाहता . इस लिए दहेज़ कानूनों  से नहीं रुकेगा .

एक अत्याचार कि अति का समाधान विपरीत अति मैं नहीं है .

यह जो करियर का बुखार है इसे समझना आवश्यक है . जब देश गरीब था तो दोनों पुरुष व् नारी सवेरे से शाम तक मेहनत मैं लगे रहते थे .तारों की छाओं मैं पुरुष खेत पर निकल जाता था . घर का सारा कामकाज औरत देखती थी . शारीरिक रूप से जब थका मांदा पुरुष लौटता था तो पत्नी की सेवा उसे अगले दिन के परिश्रम के लिए फिर तैयार कर देती थी . दोनों खेतों मैं बुवाई व् कटाई के समय काम करते थे . जब खेती करियर थी तो औरत भी तो उसमें सदा से हाथ बांटती थी . यह तो जब नौकरियां शिक्षा पर आधारित हो गयीं तो कुछ समय के लिए बदलाव आया जो की हिन्दुओं मैं बहुत पहले ही समाप्त हो गया है . हिन्दुओं ने तो अंग्रेजों के समय से ही औरतों को शिक्षा दी है . हाँ यदि पैसे की कमी हुयी तो लडकी की शादी व् लड़के की पढाई को प्राथमिकता दी जाती थी जो उचित था . प्रश्न है की क्या हम बच्चों को परिवार मैं अकेला छोड़ना चाहते हैं ?  इसे व्यक्तिगत फैसला बना लें जो शादी से पहले तय हो जाना चाहिए . जो नारी परिवार का मुखिया बनना  चाहती है वह शादी के समय बता दे जिससे शायद कोई ऐसा पति उसे भी मिल जाये . शादी के बाद आदमी की जिन्दगी नहीं बर्बाद होनी चाहिए .

अब कुछ अपवादों के लिए कानून को इस हद तक बदलना गलत होगा . कानून समाज को परिलिक्षित करता है उसका प्रतिबिम्ब होता है .उसे समाज बदलने का माध्यम बहुत सोच समझ कर बनाना चाहिए . छुआ छूत , सती   या विधवा विवाह पर रोक गलत थी . उनको कानून से रोकना ठीक था . पर पत्नी को कानूनन परिवार का मुखिया बनाने का कोई औचित्य नहीं है न ही इसकी कोई मांग है .

इस लिए खाद्यान सुरक्षा कानून का परिवार का मुखिया अंश गलत है और उसे बदल कर इसे परिवार को स्वयं के निजी  फैसले पर छोड़ना ही उचित होगा .

नीचे की खबर पढ़ें

 

Women can’t be head of family, fatwa asks followers not to fill new ration cards

The author has posted comments on this articlePriyangi Agarwal, TNN | Mar 17, 2015, 10.49PM IST

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BAREILLY: Under the Food Security Bill 2013, new ration cards are to be issued in the name of women. But a fatwa has now been issued by Sunni Barelvi Markaz of Dargah Ala Hazrat that asks followers to keep away from the ration cards as “it depicts women as the head of families, and that is against Indian culture and Islamic law.”

Maulanas and muftis of Dargah Ala Hazrat have also asked their followers across the country not to apply for ration cards and to stage a protest demanding that the Centre bring an amendment in the act in Parliament.

According to National Food Security Act (NFSA) 2013, new ration cards will be made in the name of the eldest woman member of the family provided she is above 18 years. She will be deemed as the head of the family in the ration cards while an adult male will be treated as the head of the family only in case of a household with no female member. The process of filling up of applications online is currently underway, with the last date for applying set for March 25, 2015.

Sunni Barelvi Markaz of Dargah Ala Hazrat on Tuesday passed the fatwa against the new format of ration cards. “We received a query from a Kanpur-based teacher Hasfiz Fahim on the online fatwa website of our shrine in connection with ration cards, which state women as head of families. However, I passed a fatwa against it on Tuesday as the format of the ration card is against Indian culture and Islamic law. We have asked our followers to not fill or apply for ration cards,” said Mufti Mohammed Saleem Noori of Dargah Ala Hazrat’s Darul Ista from where fatwas are issued. As per Dargah Ala Hazrat, nearly 80% Sunni Barelvi Muslims across the country are followers of the shrine.

Giving the reason for the fatwa, Noori said, “In both Indian and Islamic culture, male is regarded as head of a family. The duty of male and female members is different. Women should concentrate on creating an environment of heaven in the house rather than wasting their energies in outside work, while it is the responsibility of male members to provide comfort to women from any work which is outside their houses.”

He added that some clerics will also meet Prime Minister Narendra Modi and other senior leaders and ask them to introduce an amendment to the act in Parliament.

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