भारत १९ वें नंबर पर विश्व निर्यात मैं बहुत पीछे है
राजीव उपाध्याय
भारत २०१४ मैं ३१७ बिलियन डॉलर ( १ बिलियन = १०० करोड़ ) के निर्यात पर विश्व का उन्नीसवें नंबर का देश रहा और उसका आयात ४६० बिलियन डॉलर रहा . यह स्थिति चिंताजनक ही है . हमारी आर्थिक आज़ादी निर्यात के आयात से ज्यादा होने पर ही होगी .चीन विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक देश रहा और अमरीका सबसे अधिक आयात करने वाला देश रहा .चीन का का निर्यात २३४० बिलियन डॉलर का था जो हमसे आठ गुना था . चीन की यह ताकत हमारे लिए बडा ख़तरा है .देशों की वास्तविक ताकत अब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मैं है . हमारी स्वतंत्रता निर्यात को आयात से डेढ़ गुना कर ही अक्षुण्य रह सकती है अन्यथा गरीब की लुगाई सब की भौजाई ही बनी रहेगी .पर इससे महंगाई बढ़ेगी . परन्तु विदेशी मुद्रा भण्डार से देश की अर्थ व्यवस्था पर विश्वास बढ़ता है . कुछ दिनों बाद उसका उपयोग बिजली व् विदेशों मैं तेल के कुँए ढूँढने के लिए किया जा सकता है जिससे हम सस्ता तेल पा सकें .
हमें अपनी नीतियों मैं परिवर्तन की आवश्यकता है .चुनावों के चलते हम आर्थिक स्थिति को सुधरने के कठोर कदम नहीं उठा पा रहे . मनरेगा , खाद्य सुरक्षा जैसे अनेक भूत कांग्रेस अगली सरकार के लिए छोड़ गयी .दस साल मैं यह सिद्ध हो जाएगा की मोदी सरकार बहुत कुछ नहीं बदल सकी .
वाजपेयी जी की तरह मोदी सरकार भी तीन या चार साल मैं आठ प्रतिशत की विकास दर प्राप्त कर पायेगी . त्वरित प्रगति के लिए सरकार को अब तक कोई मार्ग नहीं मिला है . परन्तु सरकार भी बाबुओं की मुठ्ठी मैं पूरी तरह है . किसी को नए रास्ते पर चलने का साहस नहीं है. विदेशों से पैसा अभी नहीं आना शुरू हुआ है क्योंकि भूमि सुधार पर विपक्ष के पैंतरों ने सब को डरा दिया है . औद्योगिक प्रगति बहुत सुस्त है. टैक्स वाले अपनी दुनिया मैं ही हैं . वह सब को डरा रहे हैं . रिज़र्व बैंक ब्याज की दर नहीं घटा रहा है . कोई संगठित प्रयास नहीं दीख रहा . बाबूराज सब पर हावी है .
यदि बीजेपी की विफलता से कांग्रेस दस साल बाद यदि आ भी गयी तो फिर पहले की भांति सब सरकारी कोष कोष दुर्योधन की तरह लुटा देगी .
तो बीजेपी मेहनत करे और कांग्रेस उसकी मेहनत पर ऐश करे . मोदी सरकार को सोचना चाहिए की
इस प्रजातान्त्रिक जाल से आर्थिक उन्नति को कैसे निकाला जाय ?
चीन के शंघाई शहर का दृश्य चित्र मैं देखिये
rediff’s article is given below
India ranks 19th among world’s top exporters – Rediff
India’s rank remained unchanged at 19th in 2014 among the top 30 merchandise exporters of the world, while China continues to hold the top slot, according to World Trade Otganisation report.
Similarly, New Delhi’s rank as a leading importer too has not changed in 2014 at 12th position. In imports, the US topped the list.
In 2014, India’s exports stood at $317 billion while imports were $460 billion. In 2013, the country’s outbound and inbound shipments aggregated at $312 billion and $466 billion respectively.
“India suffered a bit of a slowdown in 2013 but recovered in 2014. So its import demand has picked up and its exports are holding up,” Economic Affairs Officer Coleman Nee told PTI.
India’s exports by volume fell from 8.5 per cent in 2013 to 3.5 per cent in 2014 while 2013 had been a bad year for India in terms of imports by volume rebounded from – 0.3 per cent in 2013 to 2.9 per cent in 2014.
Further India has slipped to 8th and 10th rank last year amongst the top 30 leading exporters and importers of commercial services respectively. Its position was 6th and 7th in 2013. This list was topped by the US in both exports and imports.
In 2014, India’s commercial services exports aggregated at $154 billion while imports were $124 billion.
Indian government has recently announced incentives and new institutional mechanisms as part of the new Foreign Trade Policy to nearly double country’s goods and services exports to $900 billion by 2019-2020.
India figured fifth for exports and sixth for imports for commercial services excluding intra-EU trade for 2014.
The report said that China registered the highest merchandise trade by value in 2014 with $2,343 billion worth of exports but the US sustained the world imports at $2,409 billion.
The total world merchandise exports were $18,427 billion whereas imports were $18, 574 billion.
“South-South trade represented 52 per cent of developing countries’ exports in 2014 which mean developing countries today trade on average more with other developing countries than rich, industrialized countries…It shows a shift in the economic but also the political governance of the world economy,” said chief statistician of WTO, Hubert Escaith.