खाड़ी वर्चस्व व् अफगान संपदा कौन जीतेगा ? : भारत ,रूस व् ईरान का चहबर या पाकिस्तान व् चीन का ग्वादर बंदरगाह
शायद ही विश्व मैं दो इतने बड़े बंदरगाह मात्र चालीस मील की दूरी पर बने हों जितनी दूर पाकिस्तान व् चीन का ग्वादर बंदरगाह तथा भारत, रूस व् ईरान का चहबर बंदरगाह . इन दो बंदरगाहों पर दांव पर लगी हैं एशिया की दो संस्कृतियाँ भारत व् चीन . चीन ने अभी हाल ही मैं ४६ बिलियन डोलर ( बिलियन =१०० करोड़) पाकिस्तान मैं निवेश करने की घोषणा की है . वह चीन से ग्वादर तक रेल , सड़क व् हवाई मार्ग खोलेगा ,बिजली बनाएगा ,व् अन्य विकास करेगा . उसे बदले मैं खाड़ी से तेल व् अन्य सामान चीन से लाने व् भेजने मैं दूरी हजारों किलोमीटर कम हो जाएगी और महीने का सफ़र चन्द दिनों मैं तय हो जाएगा . उसे तो बहुत फायदा है . फिर चीन की सीमा से कश्मीर व् बाद मैं सिर्फ पाकिस्तान से रास्ता गुजरेगा . पाकिस्तान अफगानिस्तान से ज्यादा सुरक्षित है इस लिए चीन आश्वस्त है व् इतना बड़ा निवेश कर रहा है . दूसरी तरफ है ईरान का चाह्बर बंदरगाह जिसे भारत अफगानिस्तान मैं जाने का अन्यत्र मार्ग बना रहा है क्योंकि पाकिस्तान भारत का सामान अफगानिस्तान नहीं जाने दे रहा . कुछ साल; पहले भारत ने अमरीकी प्रतिबंधों की फ़िक्र न करते हुए एक लाख टन गेंहूँ अफगानिस्तान को चाह्बर से ही भेजा था . पाकिस्तान अफगानिस्तान पर भारत की बजाय अपना गेहूं खरीदने का दबाब बना रहा था .
उधर रूस की हिन्द महासागर मैं घुसने की पुरानी इच्छा है .उसके ईरान व् भारत से अच्छे सम्बन्ध हैं . इसलिए वह ईरान के चाह्बर बंदरगाह का समर्थन कर रहा है . भारत ने तालिबान के हमलों के झेलते हुए २०० किलोमीटर की सड़क बना अफगानिस्तान को चाह्बार से ईरान के रास्ते जोड़ दिया है . इस मैं कई भारतीय व् अनेकों अफगान सिपाही मारे गए . पाकिस्तान अफगानिस्तान मैं तालिबान का व् भारत व् रूस नोर्थरन अलायन्स का सर्थन कर रहे हैं . पर तालिबानी लडाके जिहादी हैं जब की दूसरी तरफ सिर्फ वैतनिक सैनिक हैं . तालिबान की जीत से भारत को बहुत नुक्सान पहुँच सकता है . पहले तो चाह्बार ज्यादा विकसित था पर बीच मैं ईरान की परमाणु आकान्शाओं ने सब विकास रोक दिया था . अब ग्वादर ज्यादा विकसित हो गया है .चीन के राष्ट्रपति की घोषणा के तुरंत बाद मोदी सरकार ने चहबार के लिए ८५ मिलियन डोलर की घोषणा कर दी . इससे मध्य एशिया के भूतपूर्व रूस के देशों से भी माल भेजने मैं सुविधा हो जाएगी .ईरान चाह्बार की क्षमता को ढाई लाख टन सालाना से बढ़ा कर बारह लाख टन करना चाह रहा था . उधर अफगानिस्तान मैं बड़ी मात्रा मैं लोहा व् ताम्बे के अयस्क हैं जिन पर भारत व् चीन की नजर है . फिर भारत चाह्बर से गैस पाइप लाइन समुद्र के नीचे से बिछाना छह रहा है जिससे पाकिस्तान से छुट्टी मिले .इसे वह तुर्कर्मिन्स्तान की गैस से जोड़ना चाहता . भारत व् चीन दोनों तुर्मिनास्तान की गैस चाहते हैं .
बात सिर्फ व्यापार की नहीं बल्कि सामरिक वर्चस्व की भी है .पाकिस्तान ने चीन को तीस साल के ग्वादर दे कर खाड़ी पर चीन का वर्चस्व कायम करने की कोशिश की है . जब अमरीका यहाँ से हटेगा तो चीन का राज्य हो जाएगा . इधर भारत अपनी नौ सेना को विकसित कर रहा है जिससे चीन भारत पर दबाब न डाल सके . पश्चिमी ताकतें चीन से शंकित हैं व् भारत की पहल से खुश हैं .पर इन सब मैं बेहद पैसा लगता है . भारत से चीन छः गुना पैसा लुटा सकता है . वह चाह्बार मैं भी भारत को निकल कर अपने पैर ज़माना चाहता है .इधर रूस भारत के पश्चिमी खेमे की तरफ झुकने से पाकिस्तान की तरफ मेहरबान होने लगा है . अंततः प्रश्न अफगानिस्तान व् पाकिस्तान मैं से जो अधिक सुरक्षित होगा वह जीतेगा . अभी तक तो लड़ाई बराबर की ही है जिसमें ईरान प्रतिबंधों के चलते पिछड़ गया है . भारत को शीघ्र अफगानिस्तान की सड़कों की तरह ही जल्दी से चाह्बर बंदरगाह को पूरा कर लेना चाहिए . इस लडाई मैं जो पहले पहुंचेगा वही जीतेगा .