नारी मुक्ति आन्दोलन व् अमरीका की छिन्न भिन्न पारिवारिक व्यवस्था : भारतीय पारिवारिक व्यवस्था को तोड़ने का अंग्रेजी मीडिया का षड्यंत्र

नारी मुक्ति आन्दोलन व् अमरीका की छिन्न भिन्न पारिवारिक व्यवस्था : भारतीय पारिवारिक व्यवस्था  को तोड़ने का अंग्रेजी मीडिया का षड्यंत्र

राजीव उपाध्याय RKU

जब मैंने ‘ वैवाहिक बलात्कार ‘ पर पश्चिमी तर्ज़ पर , जिन्हें श्री शरद यादव जी की संसद मैं कभी  तथा कथित ‘ बल्कटियों ‘ कहा था , टीवी पर वीत राग सुना तो मैं दुःख से भर गया . सीता के देश मैं भारतीय नारी व् परिवार का इतना पतन करने की कुत्सित चेष्टा वह भी खुले आम ! यह किसकी शह  पर थी ? भला हो मोदी सरकार का जो उनके दबाब मैं न आ कर यह स्पष्ट कर दिया की यह विषय भारतीय संस्कृति के अनुरूप नहीं है. परन्तु जैसे धीरे धीरे नया साल व् बच्चों का ‘ बर्थ डे ‘ मानने लगे, पश्चिम के अन्धानुकरण मैं श्रेष्ठता मानने वाले लोग इसे इतनी जल्दी नहीं छोड़ेंगे और हमें अपनी संस्कृति को बचने मैं सचेत रहना होगा. पहले हम एक बार अमरीका की नारी मुक्ति आन्दोलन से छिन्न भिन्न पारिवारिक व्यवस्था को देख लें फिर इस विषय व् अन्य सांस्कृतिक विषयों पर भारत को जो संयुक्त प्रयासों से वैश्विक अगुआई करने की आवश्यकता है उसे समझें .

अमरीका मैं नारी मुक्ति आन्दोलन साठ के दशक मैं प्रारम्भ हुआ था व् सत्तर के दशक मैं पूर्णतः परिपक्व हुआ था . इससे सन साठ से अब तक जो अमरीकी समाज में विशेषतः उनकी पारिवारिक व्यवस्था की छिन्न भिन्न होने का प्रभाव हुआ उसे अच्छी तरह समझ लें . आसानी के लिए तथ्य एक एक कर नंबर वार प्रस्तुत किये जा रहे हैं . सन साठ से अमरीकी पारिवारिक व्यवस्था पर कुप्रभाव :

१. सन साठ में मात्र पांच प्रतिशत बिना शादी शुदा लड़कियों के बच्चे होते थे जो १९९५ मैं बढ़ कर ३२ % व् आज ४८ % से भी अधिक हो गए हैं . अफ्रीकी मूल के काले गरीब लोगों मैं यह समस्या ज्यादा विकराल है . प्रति वर्ष लगभग दस लाख बिन ब्याही माओं के बच्चे  पैदा हो रहे हैं . लड़कियों मैं बिना विवाह के रहने की संख्या १९७० से बहुत बढ़ गयी है .

२. सन साठ  से अमरीका मैं तलाकों की संख्या दुगनी हो गयी है .यह अस्सी के दशक मैं अपनी चरम सीमा पर थी

. ३. सन साठ से बिना विवाह के स्त्री पुरुषों के साथ रहने की संख्या मैं सत्रह गुनी बढ़ोतरी हुयी है

४. सन साठ मैं ७२ % विवाह योग्य लोग विवाहित थे जो आज घट कर पचास रह गए हैं .

५. बिना विवाह के साथ रहने वाले आधे दम्पतियों के बच्चे हो जाते हैं .

६. ऐसे दम्पतियों मैं से ३९% बच्चा होने के बाद अलग अलग रहने लगते हैं .

७. बिना विवाह के साथ रहने वाले दम्पतियों मैं तलाक की संभावना ४६% अधिक होती है .

८. अपने विवाह को सुखी मानने वाले परिवारों की संख्या घटी है .परन्तु जिन परिवारों मैं इस्वर पर आस्था है वह ज्यादा सुखी हैं .

९. पुरुषों मैं जो जल्दी शादी कर लेते हैं उनकी आय पैंतीस वर्ष की आयु तक देर से शादी करने वालों से अधिक होती है . स्त्रियों मैं इसका उलटा है क्योंकि देर तक प्रोमोशन ले कर शादी मैं आय ज्यादा होती है .

१०. आज अमरीका मैं आधे से अधिक शादियाँ टूट जाती हें . आधे बच्चों के माता पिता उनके अठ्ठारह वर्ष की आयु से पहले तलाक ले अलग हो जाते हैं . आज अमरीका का विवाह की दर ६.८/१००० व् तलाक की दर ३.६/१००० है .

११. एकल माओं की आय व् जीवन स्तर वैवाहिक महिलाओं से कम होती है.

प्रश्न है यह है की पश्चिम जगत अपनी संस्कृति की  श्रेष्ठता के मद मैं चूर चूर है. जैसे सम लैंगिकता पर रूस , बहरत व् ईरान ने पश्चिम का संयुक्त राष्ट्र मैं मिल कर विरोध किया उसी तरह अपनी संस्कृति को संयुक्त राष्ट्र मैं मिल कर बचाने मैं भारत को पूर्व के सब बड़े राष्ट्रों के के साथ मिल कर संयुक्त प्रयास करने मैं पहल करनी चाहिए .

जैसा की लोक मान्य तिलक ने मेकुले के अनुयायियों को ‘ बत्तीस शुचियों ‘का उत्तर दिया था उसी तरह हमारी व् पूर्व की प्राचीन संस्कृति व् सभ्यता को बचाने के लिए मोदी सरकार को अंतर्राष्ट्रीय पहल करनी चाहिए .

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