पाकिस्तान : मित्रता के प्रयास अवश्य पर पृथ्वीराज ,राजा कस्तूरीरंगन , शिवाजी व् वाजपेयी जी व् मुंबई के अनुभवों को याद रख कर होने चाहिए
भारत व् पाकिस्तान की सांप सीढी जैसी मित्रता की प्रगति अपने आप मैं एक रोचक कहानी है . बहुत नेताओं ने सीढी बनाने की कोशिश की परन्तु पाकिस्तानी सेना के छुट्टे सांप ९९ के खाने मैं काट कर पुनः गोटी को ९ पर ला फेंकते हैं . ऐसा ही उन्होंने २००८ मैं मुंबई मैं किया . राष्ट्रपति ज़रदारी ने सेना से बिना पूछे भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया और भारत की तरह ही पहले आणविक हथियार न चलाने की बात कह दी .फिर क्या था भारत को उनकी इस गलती की सज़ा भारत को मुंबई मैं १६४ हत्यायों व् ३०८ घायलों से चुकानी पड़ी . भारत ने तो कुछ पहल भी नहीं की थी सिर्फ ज़रदारी साहेब को रास्ते पर लाने के लिए पकिस्तान की सेना की आई एस आई ने भारत पर बिना डरे यह हमला करवा दिया.
प्रश्न यह की इस पकिस्तान से सांप सीढी के खेल को हम क्यों फिर भी खेलते रहते हैं . उत्तर स्पष्ट है की इसमें बुद्धिमत्ता है . अगर इंग्लैंड जर्मनी व् फ्रांस आज यूरोप मैं एक हो सकते हैं तो इसके प्रयास बुद्धिमान नेताओं को करते रहने चाहिए . वैसे भी पडोसी से बातचीत व् दुआ सलाम तो रहनी ही चाहिए चाहे मित्रता न हो . सिर्फ गलती यह हुई की हम रामायण की लक्ष्मण की सागर तट की यह बात भूल गए ‘ भय बिन प्रीत न हो गोसाईं “. हमारी लगातार असफलताओं का कारण है कि पाकिस्तान को हमसे भय नहीं है . कुटिलों के साथ व्यापार . मित्रता , सद् गुण भय का विकल्प नहीं होते .प्रश्न यह नहीं है की पाकिस्तान हर युद्ध मैं हम से हारा है .प्रश्न यह है की हर युद्ध पकिस्तान ने जीतने के स्वपन व् विश्वास से किया . उसे यह विश्वास या स्वपन कैसे आया इसका उत्तर देश के नेताओं ने जनता को कभी नहीं दिया.
सन १९४७ मैं जिन्नाह ने कश्मीर नरेश के भारत मैं विलय के बाद भी हमला किया क्योंकि डायरेक्ट एक्शन डे की सफलता ने उन्हें पकिस्तान दिला दिया था. उन्हें झूटा गुमान था की कश्मीरी मुसलमान पकिस्तान आना चाहेंगे परन्तु शेख अब्दुल्ला के समर्थन न देने से उनकी दाल नहीं गली .परन्तु हम भी आधा कश्मीर तो खो ही बैठे .
सन १९६५ मैं भारत पाकिस्तान अफगानिस्तान मैं खुला व्यापार था , सीमाएं खुली थीं परन्तु अयूब खान को भारत को हरा कर कश्मीर जीतना संभव लगा और उन्होंने कश्मीर पर हमला कर दिया. उनके जनरलों को हिन्दुओं की कायरता पर पूर्ण भरोसा था . यही कहानी कारगिल की है . जनरल मुशरफ को भारत की कायरता पर पूर्ण भरोसा था . मुंबई व् संसद हमले के पीछे भी यही विश्वास था .
इसलिए पकिस्तान से छः गुने बड़े भारत को अपनी दब्बू छवि को बदलना अति आवश्यक है अन्यथा हमारे लोग आतंकवादी हमलों में मरते रहेंगे और हम पर कारगिल सरीखे युद्ध लड़ते रहेंगे . इसमें सिर्फ सेना व् हथियार होना काफी नहीं है बल्कि हमारे उनके प्रयोग करने की संकल्प शक्ति का जगत विदित होना भी आवश्यक है . पकिस्तान को लगना चाहिए अब इसराईल की तरह भारत उनकी हरकतों को चुप चाप नहीं सहेगा. .परमाणु बमाँ के बाद भी पाकिस्तान मैं बदले की क्षमता व् नीयत का यह खौफ पैदा करना आवश्यक है.
अफज़ल खान ने राजा कस्तूरीरंगन को खाने पर बुलाया व् उनकी आलिंगन मैं दबा कर ह्त्या कर दी .शिवाजी चौकन्ने थे उन्होंने बाघ नख से अफज़ल खान की उन्हें छुरी मारने से पहले ही ह्त्या कर दी . गौरी के क्षमादान की आठ सौ साल की गुलामी की कीमत चुकाए देश को इतिहास से यह सबक तो ले ही लेना चाहिए की दुश्मन के पास भरोसे से नहीं बल्कि तैयारी के साथ जाना चाहिए .
प्रश्न यह है की इस क्षमता विकसित करने के बाद हमें क्या करना चाहिए ?
शक्ति प्रदर्शन के बाद तो शांतिप्रयास ही करना उचित है . अभी हमने आतंक वाद के आतंकवादी जबाब की क्षमता पकिस्तान के बराबर विकसित नहीं की है . पकिस्तान को भारत के प्रजातंत्र व् जनसंख्या के एक हिस्से के झुकाव का लाभ है . इसका काट निकालना आवश्यक है . जब पकिस्तान की सेना को को युद्ध व् आतंकवादी प्रयासों की अनावश्यकता का भान हो जाएगा तो वह वार्ता के प्रति गंभीर हो जाएगा .
परन्तु हम पिछले चालीस सालों मैं बंगलादेश से कुछ भी नहीं पा सके . अमरीका भी मेक्सिको . क्यूबा , वेंज़ुएला से कुछ भी नहीं पा सका . सिर्फ यूरोप द्वितीय विश्व युद्ध की विभीषिका से सीख कर आगे बढ़ सका है . इसलिए सार्क मैं भी कुछ शीघ्रता से नहीं होगा . इन प्रयासों मैं सफलता बहुत मंथर्गति से मिलती है .
मोदी जी के प्रयास इस दिशा मैं उत्तम हैं परन्तु अभी चीन की शह व् परमाणु बम के अभिमान ने पाकिस्तानी सेना मैं भारत से बराबरी का दंभ भर रखा है . इस् लिए वह वहां के राजनीतिज्ञों को शांति प्रयासों मैं गंभीर नहीं होने दे रही . इसका काट सरकार को सोचना होगा .
पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से अभिमान रहित होने पर ही भारत से मित्रता होने देगी .