भारत पाकिस्तान शांति संवाद : पठानकोट के आगे क्या ? मोदी जी शिवाजी से सीखें

भारत पाकिस्तान संवाद : पठानकोट के आगे क्या ? मोदी जी शिवाजी से सीखें

राजीव उपाध्याय  RKU

प्रधान मंत्री मोदी को लाहौर जाने से पहले पता था कि राष्ट्रपति ज़रदारी के ज्यादा मित्रता का हाथ पढ़ाने से नाराज़ आइ एस आई ने मुंबई काण्ड करवाया था . उसके पहले वाजपेयी जी की पहल का उत्तर कारगिल मिला था .उससे भी पहले पूर्ण व्यापार व् बिलकुल खुली सीमा के फायदे को नकारते हुए , अयूब खान ने सिर्फ अपनी गिरती साख को बचाने के लिए व् हिन्दुओं को कायर समझ कर पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया था . यही विश्वास मुशर्रफ का था और राहिल सह्रीफ का भी होगा .इस सब के बावजूद ये मोदी जी लाहौर रुके तो उसका कारण अमरीका का दबाब ही हो सकता है . पाकिस्तानी आई एस आई के पठानकोट के हमले के बाद यह तो साफ़ हो गया की पाकिस्तानी सेना नवाज़ शरीफ को भारत से कोई शांति समझौता नहीं करने देगी .

प्रश्न है की भारत को इसका क्या उत्तर देना चाहिए ?

मुग़लों को यदि किसी ने ठीक तरह समझा वह शिवाजी थे . औरंगजेब ने उन्हें आगरा बुला कर कैद कर लिया और वह चालीस दिन की कैद के बाद टोकरी मैं छुप कर निकल पाए . इसी तरह आदिल्शाह  के सेनापति अफज़ल खान ने राजा कस्तूरी रंगन को रात्रि भोज पर आमंत्रित किया और आलिंगन मैं दबा के उसके प्राण हर लिए . इन को जानते हुए भी जब अफज़ल खान ने शिवाजी को आमंत्रित किया तो उन्होंने उसे स्वीकार कर लिया .परन्तु अफज़ल खान को जानते हुए उन्होंने बाघ नख पहन लिए व् पीठ पर कवच पहन लिया. जब अफज़ल खान ने गले मिलने के बहाने उन पर कटार से वार किया तो उन्के कवच ने उसे रोक लिया और इतने मैं बघ नख से उन्होंने अफज़ल खान का पेट फाड़ दिया . तो शिवाजी ने निमत्रण अस्वीकार नहीं किया बल्कि उसे अपने उपयोग मैं लिया .

अब हम पाकिस्तान से आगे के रिश्ते की बात करें .

पाकिस्तान की भली जनता असहाय है और उसे भी सेना की पठानकोट चाल समझ आयेगी . हमें राजनीतिज्ञों व् जनता के इस असंतोष को भड़काना चाहिए .विश्व के प्रमुख नेताओं को पाकिस्तानी विश्वास मेंले कर पाकिस्तान के व्यवहार से रुष्ट करना चाहिए . परन्तु हमें पकिस्तान से बातचीत चलने देनी चाहिए इससे वहां के सभ्य समाज को बल मिलेगा और बातचीत तोड़ कर हमें कुछ हासिल नहीं होगा .

नवाजशरीफ राहील शरीफ से भारत के लिए उलझेंगे नहीं बल्कि अपनी जन बचायेंगे .यह स्पष्ट है की सेना अब सत्ता परिवर्तन कराना चाहेगी और कादरी सरीखों की मदद लेगी . चीन सेना का साथ दे सकता है क्योंकि सेना ग्वादार बंदरगाह बनाने मैं चीन को पूरी मदद दे रही है .अमरीका पाकिस्तान से अफगानिस्तान से निकलने मैं सहायता चाहता है .वह भी बहुत आगे नहीं बढेगा .रूस सीरिया मैं तुर्की से उलझा है और वह भी भारत के अमरीका प्रेम से रुष्ट है . वह एक और बांग्लादेश बनने मैं हमारी मदद नहीं करेगा . वास्तव मैं १९६२ की तरह हम आज भी अकेले हैं . विश्व मैं कोई हमारा सच्चा मित्र नहीं है .

परन्तु अब हम एक बड़े देश हैं . इसका उत्तर इजराइल की तरह हमी को देना होगा पाकिस्तान की सेना व् आई एस आई को एक जबर्दस्त सबक हमें ही सिखाना होगा .इसलिए फिल्म शोले के वीरू जय के अंदाज़ मैं ‘ तुम हमारा एक मारोगे तो हम तुम्हारे तीन मारेंगे ‘ वाला जबाब अब कर के देना होगा क्योंकि अच्छे दिन की तरह ही बलूचिस्तान का व्यक्तव्य दे कर हम अपने मंशा बता कर फंस चुके हैं .और बयानबाजी की जरूरत नहीं है .

मोदी सरकार को अभी जल्दी मैं दबाब मैं न आ के पूरी तैयारी के साथ ही इस हमले का भयंकर प्रत्युतर देना चाहिए जो पाकिस्तानी सेना को याद रहे .

मनमोहन सिंह की तरह चुप्पी या वाजपेयी की तरह सेना को वापिस बुला लेना बहुत बड़ी भूल होगी और भारत की ससख हमेशा के लिए खत्म हो जायेगी .

मोदीजी को शिवाजी से ही प्रेरणा लेनी होगी ,

जय भवानी !

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