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पर्यावरण को सत्ताधारियों की नयी कामधेनु नहीं बनाएं : गंभीर विषयों को नीतिगत दूरदर्शिता से देखें

pollution-in-delhiपर्यावरण को सत्ताधारियों की नयी कामधेनु नहीं बनाएं : गंभीर विषयों को नीतिगत दूरदर्शिता से देखें
राजीव उपाध्याय
देश की राजधानी दिल्ली आज कल पर्यावरण के नाम पर अनेकों धमाके झेल रही है . अब तो विश्वास ही नहीं रहा की कल क्या हो जाएगा .आज कल रोज़ तारीख की सम व् विषमता को देख कर कार से चलें या टैक्सी बुलाने का निर्णय लेना पड रहा है . और अनेकों मुसीबतों मैं पिसती जनता एक नयी मुसीबत झेल रही है . इससे कुछ दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय ने २००० सीसी से बड़ी डीजल गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन पर रोक लगा दी . उससे पहले राष्ट्रीय हरित कोर्ट ने दस साल से पुरानी डीजल व् पंद्रह साल से पुरानी पेट्रोल की कारों पर रोक लगाई थी . उससे कई वर्ष पहले पहले सर्वोच्च न्यायालय ने सी एन जी बसों को लाने की जल्दी मैं दिल्ली की जनता को अपार दुःख दिया था . दिल्ली की कनाट प्लेस से लाल किले तक की फट फट सेवा ( पुरानी मोटर साइकल के स्कूटर ) को हटा कर मोटर कारों से बदला .
कहने को यह भी कहा जा सकता है की इन सीएनजी की नीति से दिल्ली मैं कई वर्षों तक प्रदूषण कम हुआ था जो बहुत स्वागत योग्य कदम था .इस लिए सरकार के सभी क़दमों का स्वागत करना चाहिए . परन्तु इस सब का एक दुखद पहलु भी है .
पर्यावरण आज एक सत्ताधारियों की नयी कामधेनु बन गया है जिसका उपयोग कोई वोट लेने के लिए कर रहा है तो कोई धन उगाहने के लिए या फिर कोई नव जन सेवक अपनी छवि निखारने के लिए. इसके कारण जनता को आज इन सब बातों मैं लालच की बू आनी लगी है .
इसका एक उदाहरण था आम भाषा मैं कहे जाने वाला जयंती नटराजन टैक्स . पर्यावरण के नाम पर देश मैं एक नयी रंगदारी चल रही है . बड़े बड़े प्रोजेक्ट पर्यावरण के नाम पर रोक दिए जाते हैं जब तक उन्हें पर्यावरण शुल्क न दिया जाय .इससे देश को बहुत नुक्सान हो रहा है.
इसी तरह सी एन जी बसों के आने के जमाने मैं सर्वोच्च न्यायलय के मुख्य न्यायधीश के लड़कों के पास इकलौती सी एन जी किट की एजेंसी के होने की खबर बहुत गरम हुयी थी. इसी तरह अभी कुछ वर्षों के फैसले सामान्य ज्ञान की जांच पर खरे नहीं उतरते .
दस साल से अधिक पुरानी डीजल कारों व् पंद्रह साल से अधिक पुरानी पेट्रोल कारों पर रोक का कोई औचित्य नहीं लगता . जब हर कार तीन महीने मैं प्रदूषण सर्टिफिकेट लेती है तो उससे प्रदूषण को क्या ख़तरा हो सकता है .इसी तरह वर्षों से सरकार ने डीजल को सस्ता रख उसके उपयोग को बढाया .वैसे भी सब जानते हैं की डीजल इंजन पेट्रोल इंजन से कम तेल मैं चलता है . इसलिए सारे ट्रक बस इत्यादि विश्व भर मैं डीजल से चलते हैं . संसार के किसी विकसित देश मैं डीजल कारों पर रोक नहीं लगी थी फिर भारत मैं डीजल का यह हौआ क्यों बनाया गया . डीजल मैं पार्टिकल प्रदूषण ज्यादा होता है पर नयी बी एस ४ मानकों मैं प्रदूषण काफी कम किया गया है .पेट्रोल मैं भी बेंजीन का प्रदूषण ज्यादा होता है . प्रश्न है की भारत मैं मारुती ने हाल ही मैं एक बड़ा डीजल इंजिन बनाने का कारखाना खोला है . ऐसे ही महिन्द्रा की २००० सीसी की डीजल एसयूवी बोलेरो इत्यादि बहुत लोकप्रिय हैं .
इन पर अचानक रोक देश के हित मैं नहीं हैं क्योंकि इससे सरकारी नीतियों की अस्थिरता झलकती है और उद्योगों का सरकार पर विश्वास कम होता है . इससे देश के आर्थिक विकास मैं रुकावट आयेगी ऐसी नयी नीतियों को लाने मैं पांच वर्ष का समय तो तैयारी के लिए देना चाहिए .
पर इससे भी बड़ा एक और प्रश्न है ?
देश के आर्थिक विकास से भविष्य मैं तेल व् कोयले की खपत बहुत बढ़ेगी. इसके अगले दस साल मैं दुगना होने की उम्मीद है. ऐसे ही यदि भारत मैं कारें व् मोटर साइकलें बनेगीं तो शहरों मैं प्रदूषण भी बढेगा . जंगल की भूमि पर खनन या खेती हो सकती है. तो क्या पर्यावरण के नाम पर विकास बंद हो जाएगा या हर छोटा सरकारी कारिन्दा जयंती टैक्स लेने लगेगा जो जानकारों के संज्ञान मैं है.
इस सबसे निपटने के लिए देश को एक बड़ी सोच समझ से पर्यावरण नीति बनानी चाहिए. जिससे विकास का रास्ता अवरुद्ध नहीं हो. ऐसी नीति सिर्फ विशेषग्य समिति बना सकती हैं . कोई कोर्ट इस नीति को बनाने मैं सक्षम नहीं है न ही कोर्ट्स को नीतियों मैं दखलंदाजी करनी चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय खुद सरकारी नीतियों मैं दखल देने के पक्ष मैं नहीं है. बाकी कोर्ट्स को भी इससे दूर रहना चाहिए .
दिल्ली अपने मैं एक विशेष दर्जा रखती है . २०१४ मैं इसे विश्व का सबसे अधिक प्रदूषित शहर बता दिया गया है. इस लिए हर कोई उसे सुधारने के लिए आगे आ कर अपनी छवि कुछ कर दिखा के चमका रहा है. कोई सम विषम की कारें चलवा रहा है तो कोई डीज़ल कारों के पीछे पड़ रहा है तो कोई पुरानी कारों को रोक रहा है.
सच यह है की दिल्ली ५५ लाख दुपहिये व् २७ लाख कारें हैं . परन्तु ३२ % प्रदूषण दुपहियों से होता है. २८% प्रदूषण ट्रकों से होता है . सिर्फ २२% प्रदूषण कारों से होता है. इनमें डीजल की कारें तो बहुत कम होती हैं. इसके अलावा दिल्ली मैं ८१२६९ तिपहिये हैं व् ४७०० बसें हैं . चीन की राजधानी बेजिंग मैं हमसे दो गुना ज्यादा कारें हैं पर हमारा प्रदूषण वहां से डेढ़ गुना ज्यादा है.
फिर यह भी ध्यान रहे की ट्रांसपोर्ट मैं तो सिर्फ ४०% तेल खर्च होता है .अगर पंद्रह साल से पुराने के ट्रक बंद किये गए तो पचीस लाख ट्रक हट जायेंगे जिसका देश के आर्थिक विकास पर बहुत खराब असर होगा .देश मैं अधिकाश जनता लकड़ी , गोबर के उपले इत्यादि जला कर खाना बनाती है जिससे बहुत धूंआ होता है .खेती की पुरानी फसल को जलाया जाता है जो दिल्ली मैं धुएं की चादर पहना देता है . उसका इलाज़ भी जरूरी है.
इस लिए आवश्यक है की एक अच्छी सोच समझी रणनीति बनाई जाय और जिसको सार्वजानिक किया जाय . परन्तु नीतियों को बदलने से पहले सबको उचित समय दिया जाय . देश के आर्थिक विकास को पर्यावरण के नाम पर नहीं रोका जा सकता .
इससे भी अधिक आवश्यक है की पर्यावरण को सत्ता की कामधेनु न बनाया जाय .

Filed in: Articles, Economy

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