पहली बार वास्तविक भारत मुखर हो रहा है .जनता की आवाज़ को पहचाने साईं नाथ जी व् अपने साम्यवादी मित्रों को राह दिखाएँ : P Sainath @ JNU: ‘You are fighting criminalisation of dissent’- rediff
अक्सर यह प्रश्न पूछा जाता है कि मोदी जी के प्रधानमंत्रित्व काल मैं मीडिया इतना बिफर क्यों गया है .क्या वास्तव मैं भारत मैं विरोध का दमन हो रहा है ?
सच्चाई इससे कहीं दूर है और यह वास्तव मैं एक षड्यंत्र है.. भारत मैं आज भी अभिव्यक्ती की सबसे अधिक स्वतंत्रता है.इसका सबसे बड़ा साक्ष्य तो स्वयं भारत के बिकाऊ मीडिया का झूठ प्रचार है जिसे कोई नहीं रोक रहा . जनता भोंकने वालों की परवाह नहीं करती जैसा की उसने चार चुनावों मैं दिखा दिया है.सारा अंग्रेज़ी मीडिया एक सुर मैं दस साल पुराने गुजरात का राग अलाप रहा था पर जनता है की सुन ही नहीं रही . क्या इंदिरा गाँधी के ज़माने मैं इतना दुष्प्रचार हो सकता था?
परन्तु एक झूठ को सौ बार बोलने से वह सच प्रतीत होने लगता है .इसलिए झूठ का पर्दाफ़ाश करना भी प्रजातंत्र मैं आवश्यक होता है.अभिव्यक्ति की आजादी की सीमा का भी निधारण करना होता है.
गिरीश कर्नाड का यह कहना की वह देश के टुकड़े करने की आवाज़ उठाने को उचित मानते हैं ठीक नहीं है . इस पर देश मैं सवेक्षण करा कर देख लें . जनता उन्हें दुत्कार देगी .जनता देश की अखंडता को सर्वोपरी मानती है और उस पर कोई समझौता नहीं चाहती .
पर अब ही इतना हंगामा क्यों हो रहा है वाजपेयी जी के समय मैं क्यों नहीं हुआ ?
वास्तव मैं हंगामा साम्यवादियों व् अंग्रेज़ी परस्तों का आर्तनाद है.उनका भारतीय संस्कृतक संस्थाओं व् मीडिया पर अपनी वास्तविक शक्ति से कहीं अधिक कब्ज़ा था . नेहरु जी स्वयं समाजवादी विचारधारा के थे क्योंकि रूस एक नया उभरता आदर्श था जो औपनिवेशवादी विचारों का समर्थन नहीं करता था . इसलिए नेहरूजी ने साम्यवादियों को भारतीय इतिहास व् संस्कृति की संस्थाओं की बागडोर सौंप दी.वाजपेयी जी ने भी इन को नहीं छेड़ा और उन्होंने वाजपेयी जी को नहीं छेड़ा .
मोदी जी कार्यकाल मैं पहली बार भारत की जनता मुखर हुयी है.वह अब साम्यवादियों व् अन्ग्रेज़ी परस्तों की विचारधारा को खुल कर चुनौती दे रही है.साम्यवादी इतने वर्षों के अखंड सांस्कृतिक साम्राज्य को टूटते देख बौखला रहे हैं .उन्होंने उपनिवेशवादियों के साथ गठबंधन कर लिया है.इसमें बाकि वह सब जुड़ गए हैं जिन को भारत फूटी आँख नहीं सुहाता .इसमें इस्लामिक आतंकी व् जोशुआ वादी ताकतें भी हैं .सब मिल कर प्राचीन भारतीय संस्कृति को पुनः स्थापित होते नहीं देखना चाहते. भारत अब आर्यों के बाहर से आने की धारणा को तिलांजली दे चुका है.
उधर मोदी जी टीवी चैनलों को काले धन से खरीदने की पिछले शासन की परम्परा को तिलांजलि दे चुके हैं .इसलिए वह समाचार चानेल जो कालेधन पर आश्रित हैं ,जो सिर्फ देश द्रोही ही दे सकते हैं ,मोदी जी का विरोध करने के लिए मजबूर हैं .
इसलिए देश प्रेमियों का यह कर्तव्य है की जनता को सच्चाई बता कर विदेशी दुष्प्रचार को नाकाम बनाएं .
हमारा सदियों का इतिहास गवाह है की इस देश को लालच व् मित्रघात ने ही गुलाम बनाया है .पहले वह आम्भी , मीर ज़फर व् जयचंद थे आज वह मीडिया व् राजनीती मैं सक्रीय है .सिर्फ तरीका पुराना है , देश को अन्दर से तोड़ कर कमजोर करना जिससे विदेशी घुस सकें .
जनता को इन जयचंदों को पहचानना व् बेनकाब करना चाहिए .
P Sainath @ JNU: ‘You are fighting criminalisation of dissent’
Condemning the arrest of JNU students union president Kanhaiya Kumar in a sedition case, eminent journalist P Sainath on Friday took a “nationalism” lecture in the varsity’s courtyard and advised the students to let their movement continue against “criminalisation of dissent”.
Sainath, who is a JNU alumni, while addressing the students said, “always remember you are fighting criminalisation of dissent. It will get much worse before it gets better. Which way things will go will depend on how all of us handle the ‘lawsuits'”.
Expressing his solidarity with the students, Sainath said he “learnt on this campus, living for something beyond yourself”.
“People in rural India have been facing this kind of persecution for years. For the first time you have a RSS pracharak as a PM with a majority. Now they can truly express their inner selves, but let me tell you, that you all should not ‘lose the unity’ with which you have risen to this latest challenge,” he said in the lecture titled “life in times of fundamentalism and inequality”.
Sainath was third in the series of the “nationalism” open-air lectures which are being organised at the varsity in protest of the branding of the university as “anti-national” in wake of an event against hanging of Parliament attack convict Afzal Guru where anti-national slogans were allegedly raised.
Professors from various universities are taking the nationalism lectures at JNU where students are protesting against the arrest of the varsity’s students’ union leader Kanhaiya Kumar in a sedition case in connection with the February 9 event.