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आखिर क्यों शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज ने शिर्डी साई का किया विरोध

The article by SH JITENDRA KHURANA explains the reasoning whu Shakracharya opposed Shirdi Sai Baba

जानिए आखिर क्यों शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज ने शिर्डी साई का किया विरो

दिल्ली-जून वर्ष 2014 में पूजनीय शंकराचार्य स्वामी श्रीस्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज द्वारा दियागया एक व्क्तव्य विभिन्न समाचार चेनलों व समाचारपत्रों में छाया रहा और वह विषय इस शताब्दी के सबसे अधिक बहुचर्चित विषयों में से एक हो गया। वह विषय था-साई बाबा का सनातन वैदिक धर्म अर्थात हिन्दू धर्म का भाग ना होना। उसके बाद यह विषय कई महीनों तक पूर्णतः चर्चा में रहा एवं विभिन्न समाचार चेनलों पर साई आलोचकों व साई समर्थकों के बीच सैकड़ों संवाद-विवाद हुए और हिन्दू समाज का ज्ञानवर्धन हुआ। शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानन्द जी द्वारा इस विषय पर आपत्ति करने का भी एक विशिष्ट इतिहास है जो मैं अपने आगे आने वाले लेखों में प्रस्तुत करूंगा।पाठकों में से कई लोगों ने उस समय मुझे भी अपने अध्ययन के आधार पर इस विषय पर विचार देते देखा-सुना होगा। आज भी यदा कदा यह विषय पुनः चर्चा में आता है और संवाद-विवाद होते रहते हैं। आपको आश्चर्य होगा कि मैं जून वर्ष 2014 तक भी लगभग 2 वर्ष से इस विषय पर एक हिन्दू कार्यकर्ता होने के कारण काम कर रहा था और इस विषय पर मेरी कई विशिष्ट संतो से इस विषय पर भेंट हुई थी और सभी ने इस पर पूर्ण समर्थन दिया था। वह विवरण भी मेरे आने वाले लेखों में अवश्य मिलेगा। मेरा इस विषय पर कार्य करने का कारण था-शिर्डी साई संस्थान द्वारा पिछले कई दशकों से प्रकाशित साई बाबा की जीवनी “श्री साई सतचरित्र” के मेरे सामने आए हुए वे अंश जो साई बाबा का एक दूसरा ही चरित्र प्रस्तुत करते थे एवं आज भी करते हैं। मुझे उन अंशों से ये समझ आता है कि साई बाबा की जो छवि हम लोग आज तक देखते आए हैं वह वैसी नहीं है और हमें पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। सत्य तो ये है कि साई समर्थको ने भी कभी उन अंशों पर ध्यान ही नहीं दिया जिनसे उन्हे साई बाबा का शुद्ध चरित्र दिखाई दे और सम्पूर्ण हिन्दू समाज को भी पता चले। आज भी ये समझ आता है कि लाखों करोड़ों लोग साई बाबा के जीवन के बारे में वो बातें नहीं जान पाये हैं।

आगे बड़ने से पहले मैं ये बताना चाहता हूँ कि साई बाबा की जीवनी “श्री साई सतचरित्र” पुस्तक के रूप में साई बाबा के जीवित रहते की उन्ही आज्ञा लेकर उन्ही के एक भक्त “श्री कै.गोविंद रघुनाथ दाभोलकर” द्वारा लिखी गई थी जिन्हे साई बाबा “हेमाडपंत” के नाम से भी पुकारते थे। आज साई बाबा पर छप रही अनेकों पुस्तकों का आधार लगभग यही पुस्तक होती है। साई बाबा के समर्थकों एवं भक्तों की इन अंशों से अज्ञानता का मुख्य कारण है कि जिन सज्जनों ने शिर्डी साई बाबा पर फिल्म अथवा टीवी सिरीयल आदि बनाए उन लोगो ने कभी भी इन अंशों को उनमें दिखाया ही नहीं और वे अंश पूरी तरह छुपा गए। अब ये अंश ना दिखाने का क्या कारण हो सकता है वह तो वे सज्जन ही बता सकते हैं किन्तु एक बात स्पष्ट है कि वे फिल्म व टीवी सिरियल व्यवसायिक कारणों से बनाए गए थे और उनकी प्रस्तुति में शिर्डी साई बाबा का चरित्र हिन्दू धर्म के अधिक निकट प्रतीत होता है। अब पूरे तथ्य जानने के बाद पाठक ये निर्णय करेंगे कि सत्य क्या है। हालांकि फिल्म व टीवी सिरियल बनाने वाले स्वयं भी शिर्डी साई संस्थान द्वारा छापी गई “श्री साई सतचरित्र” को ही साई बाबा की पुष्ट जीवनी मानते हैं और उसी के आधार पर अपनी प्रस्तुतियाँ बनाई किन्तु फिर भी स्वयं ही अपने कार्यक्रमों में वे “श्री साई सतचरित्र” के अनेकों अंश छुपा गए।

हिन्दू समाज दूसरों पर विश्वास करता है विशेषकर धार्मिक आस्था के विषय में। साई बाबा पर बनी फिल्म और सिरियल के कारण ही शिर्डी साई बाबा का विशाल स्तर प्रचार भी हुआ और जनता की आस्था भी बनी। किन्तु अब ये मेरे उन हिन्दू भाई-बहनों का भोलापन ही है कि उनमें से अधिकतर ने साई बाबा की जीवनी स्वयं तो नहीं पड़ी किन्तु देखी-दिखाई और सुनी सुनाई बातों पर विश्वास कर लिया। न साई समर्थक मुझसे अलग हैं एवं न मैं उनसे। मुझे कोई अधिकार नहीं है कि मैं किसी को साई बाबा की पूजा करने से मना करूँ किन्तु मेरा इतना अधिकार है कि मैं लोगो तक सत्य पहुंचाऊँ। मेरा यह भी अधिकार है कि कुछ लोगो का विचार पूरे हिन्दू समाज द्वारा क्यो माना जाए ये प्रश्न करूँ। मेरा अधिकार है कि मैं हिन्दू मंदिरो मे शुद्ध वैदिक हिन्दू धर्म से संबंध न रखने वाले किसी कार्य अथवा धर्म मे किसी प्रकार के वैचारिक मिश्रण का विरोध करूँ। साई बाबा के समर्थक मेरे ही अपने भाई बंधु व बहने है। निस्संदेह वे साई बाबा को मानने मे स्वतंत्र है किन्तु साई बाबा को श्रीराम, श्रीकृष्ण और भगवान शिव आदि से जोड़ने का कोई कारण नहीं है।

मैं इस लेख में अपने विचार अधिक प्रकट नहीं करना चाहता एवं ना ही पाठकों के लिए निर्णय लेना चाहता हूँ और इस लेख को एक शुद्ध सूचनापत्र के रूप में प्रस्तुत करना चाहता हूँ जिससे वे अपना निर्णय स्वयं लें। इस संदेश में साई समर्थकों से ये ही प्रार्थना है कि सत्य की गहराई में जाएँ एवं सत्य को सहजता से अपनाएं। मैं महान हिन्दू धर्म के अपने परिवार में ही श्रीसाई सतचरित्र के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ और आप सबसे आदरसहित प्रश्न करना चाहता हूँ कि क्या साई बाबा की पूजा हिन्दू मंदिरो मे की जा सकती है? क्या साई बाबा के कोई गुण, कार्यकलाप श्री राम, श्री कृष्ण और भगवान शिव से मिलते हैं? नीचे दिये कुछ अंशो को पड़ कर सभी सज्जन निर्णय करें। श्री साई सतचरित्र (हिन्दी )मूल ग्रंथ (मराठी भाषा) के रचयिता के. श्री. गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकार उर्फ हेमाड्पंतहिन्दी अनुवाद, श्री साईबाबा संस्थान विश्ववस्त व्यवस्था, शिर्डी, प्रकाशक ज मु ससाणे अध्यक्ष श्री

 अध्याय 7, पृष्ठ 51- फकीरो के साथ वे आमिष और मछली का सेवन भी कर लेते थे।

(आमिष अर्थात मांसाहारी)

 अध्याय 11, पृष्ठ 86-(साई बोले)-मैं मस्जिद मे एक बकरा हलाल करने वाला हूँ, उससे पूछो कि उसे क्या रुचिकर होगा-बकरे का मांस, नाध या अंडकोश?

 अध्याय 14, पृष्ठ 106- यदि किसी ने उनके सामने एक पैसा रख दिया तो वे उसे स्वीकार करके तंबाकू अथवा तेल आदि खरीद लिया करते थे, वे प्रायः बीड़ी या चिलम पिया करते थे।

 अध्याय 23- मस्जिद मे एक बकरा बलि देने लाया गया। वह अत्यंत दुर्बल, बूड़ा और मरने ही वाला था…बाबा ने उन्हे बकरा काटकर बलि चड़ाने को कहा। …..(पृष्ठ 161 पर पूरा पड़े,

फिर निर्णय करें)

 तब बाबा ने काका साहेब से कहा कि मैं स्वयं ही बलि चड़ाने का कार्य करूंगा ……जब बकरा वहाँ से ले जाया जा रहा था, तभी रास्ते मे गिर कर वह मर गया। (पृष्ठ 162 पर पूरा पड़े, फिर निर्णय करें)

 अध्याय 28- मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैं तो एक फकीर हूँ। मुझे गंगाजल से क्या प्रयोजन? (पृष्ठ 198)

 अध्याय 32 – बाबा ने स्वयं कभी उपवास नहीं किया, न ही उन्होने दूसरों को करने दिया। (पृष्ठ 228)

 अध्याय 38- कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल (पुलाव) बनाते थे। (पृष्ठ 269)

 जब भोजन तैयार हो जाता, तब वे मस्जिद से बर्तन मंगवाकर मौलवी से फातिहा पड़ने को कहते थे……..यहाँ कोई यह शंका कर सकता है कि क्या वे शाकाहारी और मांसाहारी भोज्य पदार्थो का प्रसाद सभी को बांटा करते थे? इसका उत्तर बिलकुल सीधा और सरल है। जो लोग मांसाहारी थे उन्हे हांडी मे से दिया जाता था। (पृष्ठ 270 पर पूरा पड़े)

 एक एकादशी के दिन उन्होने दादा केलकर को कुछ रुपए देकर कुछ मांस खरीद लाने को कहा। दादा केलकर पूरे कर्मकांडी थे और प्रायः सभी नियमों का जीवन मे पालन किया करते थे। (पृष्ठ 270 पर पूरा पड़े)

 ऐसे ही एक अन्य अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि, देखो तो नमकीन #पुलाव कैसा पका है? दादा ने यो नहीं मुहदेखी कह दिया कि अच्छा है। तब वे कहने लगे कि तुमने न अपनी आंखो से ही देखा और न ही जिहवा से स्वाद लिया, फिर तुमने ये कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बांह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मे डाल कर बोले-थोड़ा सा इसमे से निकालो और अपना कट्टरपन छोडकर चख कर देखो। (पृष्ठ 271 पर पूरा पड़े)

इसके अतिरिक्त श्रीसाई सतचरित्र मे अनेकों हिन्दू धर्म विरोधी बाते भी लिखी हुई है। उनमे से कुछ ही मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।

 अध्याय 10, पृष्ठ 75- श्री साई बाबा का सदा ही प्रेमपूर्वक स्मरण करो, क्योंकि वे सदैव दूसरों के कल्याणार्थ तत्पर तथा आत्मलीन रहते हैं।……. अन्य सब देवी देवता तो भ्रमित करने वाले हैं, केवल गुरु ही ईश्वर हैं।

 न्याय अथवा मीमांसा या दर्शनशास्त्र पड़ने की भी कोई आवश्यकता नहीं है। (पृष्ठ 75 पर पूरा पड़े)

 पृष्ठ 80-भक्तो के हेतु वे अपने श्रीमुख से ऐसे वचन कहते, जिनका वर्णन करने का सरस्वती भी साहस न कर सकती।

 अध्याय 13, पृष्ठ 95- (साई कह रहे है) मेरी पूजा के निमित्त कोई सामग्री या अष्टांग योग की भी आवश्यकता नहीं है।

 अध्याय 22, पृष्ठ 150- श्री साई बाबा का ध्यान कैसे किया जाए? उस सर्वशक्तिमान की प्रकृति अगाध है, जिसका वर्णन करने मे वेद और सहस्त्रमुखी शेषनाग भी अपने को असमर्थ पाते हैं।

इसके अतिरिक्त साई बाबा का इस्लाम की ओर झुकाव के विषय मे प्रस्तुत है।

 अध्याय 5, पृष्ठ 37- वे “अल्लाह मालिक” का सदा उच्चारण किया करते थे।

 अध्याय 7, पृष्ठ 51- “अल्लाह मालिक” सदैव उनके होठो पर था।

 अध्याय 10, पृष्ठ 77- “अल्लाह मालिक” सदैव उनके होठो पर रहता था।

 अध्याय 23, पृष्ठ 204- अल्ला तुम्हें बहुत देगा और अब सब अच्छा ही करेगा।

साई समर्थको ने टीवी चेनेलो पर साई के समर्थन में कहा कि “हमने स्वयं साई को पूजना आरंभ किया एवं साई को भगवान माना, साई ने तो कभी स्वयं को भगवान नहीं कहा और अपनी पूजा करने के लिए नहीं कहा”। उसके संदर्भ मे ये पड़ें कि “साई बाबा ने स्वयं को ईश्वर घोषित किया

 अध्याय 3, पृष्ठ 18 : बाबा के मधुर अमृतोपदेश – (साई बोले) मैं ही समस्त प्राणियों का प्रभु और घट घट मे व्याप्त हूँ। मेरे ही उदर मे समस्त जड़ व चेतन प्राणी समाये हुए हैं। मैं ही
समस्त ब्रह्मांड का नियंत्रणकर्ता व संचालक हूँ। मैं ही उत्पत्ति, स्थिति व संहारकर्ता हूँ। मेरी भक्ति करने वालों को कोई हानि नहीं पहुंचा सकता। मेरे ध्यान की उपेक्षा करने वाला माया के पाश मे फंस जाता है। समस्त जन्तु, चींटियाँ तथा दृश्यमान, परीवर्तमान और स्थायी विश्व मेरे ही स्वरूप हैं।

 अध्याय 3 पृष्ठ 14- वह मेरा ही वैशिष्ट्य है कि कोई अनन्य भाव से मेरी शरण मे आता है, जो श्रद्धापूर्वक मेरा पूजन, निरंतर स्मरण और मेरा ही ध्यान करता है उसको मैं मुक्ति प्रदान

कर देता हूँ।

 अंत में ये कहूँगा कि अध्याय 43-44 पृष्ठ 308 पर देखें कि साई बाबा दमे से पीड़ित थे। मेरा लेख यहीं समाप्त होता हैं किन्तु प्रश्न आरंभ होते हैं। उत्तर आपके हृदय में है एवं स्मरण रहे कि इस जीवन में आपका एवं सनातन धर्म अर्थात हिन्दू धर्म के भगवान एवं देवी-देवताओं के बीच एक संबंध है एवं उनके सम्मान व शुद्ध स्वरूप की रक्षा करना आपका भी दायित्व है। और सभी को अपनी पूजा करने के लिए कहा”।

(Subjected to Delhi Jurisdiction Only)

लेखक-जितेन्द्र खुराना,हिन्दू जागरण अभियान के संयोजक हैं आप इनसे yesjitender@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

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