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क्या ग्वादर बंदरगाह के बाद पाकिस्तान चीनी उपनिवेश बनने जा रहा है ?

क्या ग्वादर बंदरगाह के बाद पाकिस्तान चीनी उपनिवेश बनने जा रहा है ?

Rajiv UpadhyayRKU

आज कल पाकिस्तानियों के पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे हैं .उन्हें चीन की मदद से बनने वाला ग्वादर बंदरगाह एक सोने की खान बताई जा रही है जिससे हर हर पाकिस्तानी रातों रात आमिर हो जाएगा .एक पाकिस्तानी टीवी प्रवक्ता ने तो यहाँ तक कह दिया की ग्वादर बन जाने दो अगर पाकिस्तानियों ने डालर के नोट से नाक साफ़ नहीं करनी शुरू कर दी तो मेरा नाम नहीं !

यह पाकिस्तान का दुर्भाग्य है की उसके किसी नेता ने ने उसे यह नहीं बताया की लाटरी के टिकटों को खरीद कर कोई अमीर नहीं बनता .अमीर सिर्फ मेहनत व् लगन से बनते हैं .मेहनत कर पैसा बचा कर विकसित होने का रास्ता एशिया के हर देश की जनता जानती है . इसी लिए पाकिस्तान से १९४७ मैं निकाले गए सिख , उगांडा से निकाले गए गुजराती , पंजाब से इंग्लैंड गए पंजाबी सब ने पहले कमर तोड्मेह्ननत की , पैसे को बचाया , दूकानें खरीदें और आज सब अमीर हैं .विदेश मैं बसे पाकिस्तानी भी ये ही करते हैं .अब तो बंगलादेश भी इसी रह चल कर पाकिस्तान से दस सालों मैं आगे निकल जाएगा .

परन्तु खेद है की पाकिस्तानी नेताओं विशेषतः सेना के जनरलों ने देश  को बिना मेहनत के अमीरी के असम्भव स्वपन मैं डाल दिया .पहले अयूब खान ने अमरीकी सैन्य संगठनों को बेकार मैं पाला और उससे मिली अमरीकी धनराशी से विकास कर तालियाँ बजवाईं .फिर जिया ने अफगानिस्तान की लड़ाई मैं व्यर्थ पकिस्तान को झोंका और उससे मिली धनराशी से विकास कर तालियाँ बटोरीं . उसके बाद यही मुशारफ ने अफगानिस्तान मैं अमरीकी सैन्य सहायता कर धन राशी से विकास किया और तालियाँ बजवाईं .किसी ने देश को मेहनत से पैसे कमाना नहीं सिखाया .किसी ने पकिस्तान को भारत की तरह स्वाबलंबन का रास्ता नहीं दिखाया .

इसके दुष्परिणाम भी अब दीख रहे हैं .

जिया ने इस्लाम की जिहाद के नाम पर सस्ते मुजाहिदीन सैनिक अफगानिस्तान मैं इकठ्ठे किये .अब वही जिहादी पाकिस्तान के लिए सिर दर्द बन गए हैं .अयूब ने विदेशी धन राशि  को पूर्वी बंगाल मैं खर्च नहीं किया .जनरल याहया काले बंगालियों से नफरत करता रहा . अंततः देश के टुकड़े हुए व् बंगलादेश बन गया .अब यही भेद भाव बलूचिस्तान व् फाटा मैं किया जा रहा है कालांतर मैं वहां भी यह अलग होने की आग लगेगी .किसी ने न्याय , धरम व् समानता का रास्ता नहीं चुना, पंजाबी अपने स्वार्थ मैं डूबे हुए हैं . वहां सिंध एक कालाबाग़  डैम  नहीं बनने दे रहा . पानी समुद्र मैं जा रहा है पर डैम  नहीं बन रहा . इसलिए जब बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से खाय.

पर सब से बड़ी देश द्रोही पाकिस्तानी सेना है .पाकिस्तानी सेना अपने देश की रक्षक नहीं भक्षक है .जब मालदीव , बांग्लादेश और भूटान आज भी एक दम स्वतंत्र हैं तो पाकिस्तान को भारत से क्या विशेष खतरा था . परन्तु शुरू से सैनिक क्रांति कर सेना ने अपने को राजा बना लिया है . आज पाकिस्तान का पैंतालिस प्रतिशत बजट कर्जों की अदायगी मैं , पचीस प्रतिशत सेना पर और बाकि सरे देश की लिए खर्च होता है .

रूस अफगानिस्तान मैं समुद्र के रास्ते के लिए आया था . विएतनाम की हार के बाद अमरीका ने उससे बदला लेने के लिए पाकिस्तान की सेना को को भड़का कर अफगानिस्तान को बर्बाद कर दिया . इस आग मैं पकिस्तान भी बुरी तरह झुलस गया .अब यही रास्ता चीन अपना रहा है .

चीन खाडी  के देशों पर अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है .उसको यह डर भी है की युद्ध मैं अमरीका मलाका जल मार्ग को अवरुद्ध कर उसे हरा सकता है .इसलिए वह पाकिस्तान के ग्वादर बंदर्गाह को अपने कब्ज़े मैं ले ग्वादर तक सड़क बना कर कर पाकिस्तान को ४६ बिलयन डालर की विकास राशी देने का सपना दिखा रहा है .चीन अपनी सीमा को कश्मीर से सड़क , रेल व् पाइप लाइन के द्वारा जोड़ कर अपने आयात व् निर्यात इसी रास्ते से  से करेगा . परन्तु पाकिस्तान की बिखरी राजनीती से वह भली भांति परिचित है .इसलिए वह अमरीका की ही तरह पाकिस्तानी सेना पर डोरे डाल रहा है .अभी हाल मैं चीन , पाकिस्तान , अफगानिस्तान व् ताजीकिस्तान ने एक सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं जिसका उद्देश्य आतंकवाद को रोकना है . पाकिस्तान की सरकार को इससे बाहर रखा गया है .जनरल राहिल शरीफ को चीन  नवाजशरीफ ऊपर खडा कर रहा है .उसका उद्देश्य चीन ग्वादर के सड़क को सेना के हवाले करना है जिससे वह सुरक्षित रह सके .सेना इस लालच मैं आती प्रतीत हो रही है और सैन्य क्रांति की ज़मीन बना रही है .टीवी चैनलों पर सेना धुआ  धार का प्रचार हो रहा है.

उधर नवाज की पार्टी सारा पैसा पंजाब मैं लाना चाह रही है और अपने कब्ज़े मैं रखना चाहती है .सिंध , बलूचिस्तान व् कश्मीर अपना हिस्सा मांग रहे हैं जो पंजाबी नहीं देना च़ाह रहे . शबाज़ शरीफ  ने ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह चीन को पंजाब मैं मुफ्त ज़मीन देने का प्रस्ताव दे डाला है जो पाकिस्तान को अंततः एक चीनी उपनिवेश बना देगा .

चीन ने एक  ऐसी शर्त राखी है जो पूरी नहीं हो सकती . उसने विकास की राशि पर १७ प्रतिशत लाभ मांगा है .बिजली जैसी परियोजनाएं इतना लाभ नहीं दे सकती और इतनी मंहगी बिजली बिक नहीं पायेगी .हमारी  एनरों परियोजना की तरह यह असफ़ल हो जाएगी .चीन पकिस्तान के विकास मैं नहीं बल्कि अपने लिए ग्वादर बंदरगाह तक रस्ते के लिए उत्सुक है .एक बार सड़क बन गयी तो वह विकास राशी नहीं देगा .अपने रस्ते  की रक्षा के लिए कोई सेना मैं मीर ज़फर ढूंढ लेगा जो पाकिस्तान के हितों के विरुद्ध चीनियों का साथ देगा .

यदि पाकिस्तानी सेना मैं चीन को मीर ज़फर मिल गया तो पाकिस्तान को चीनी उपनिवेश बनने  से कोई नहीं रोक सकता. पाकिस्तान मैं मीर ज़फर ढूढना कोई विशेष कठिन काम नहीं है.पाकिस्तान मैं पहली बार मार्शल लॉ लगाने वाले राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्ज़ा मीर जाफर के पड़पोते ही थे .इसी परिपाटी को अयूब ,जिया व् मुशर्रफ़ ने निभाया .अब जनरल राहिल शरीफ चीनी बहकावे मैं आ कर इसी रस्ते पर चलने की तैयारी मैं  जुटे लगते हैं .

भारतीय  उप महाद्वीप का यह दुर्भाग्य है की चीन के लालच को कोई नहीं समझ पा रहा . हर कोई बिना मेहनत के रातों रात अमीर  होना चाह रहा है .

क्या कोई पाकिस्तानी जनता को उसका वास्तविक हित नहीं बता सकता ?

लगता है की पकिस्तान भी गीता के कृष्ण के अवतार की पर्तीक्षा कर रहा है . भगवान् उसे सद्बुद्धि  दे !

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