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क्या था पांडवों की अधूरी स्वर्ग यात्रा का रहस्य?
1. अद्भुत घटना
महाभारत की घटना अपने आप में हैरान कर देने वाली एक अद्भुत घटना है। चचेरे भाइयों के बीच हुए महाभारत रूपी इस भयंकर युद्ध के लिए बहुत से लोग द्रौपदी को दोष देते हैं, तो कुछ कौरवों के अहंकार और लालच को इस युद्ध की वजह मानते हैं। वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि शकुनि की वजह से महाभारत के इस युद्ध की पृष्ठभूमि का निर्माण हुआ। खैर जो भी है लेकिन इस भयंकर युद्ध में लाखों की संख्या में जानें गईं और साथ ही पूरे कुरुवंश का विनाश हो गया।
2. लाल है मिट्टी का रंग
कहते हैं कुरुक्षेत्र में हुए इस युद्ध में इतने लोगों की जाने गईं, इतना खून बहा कि यहां की मिट्टी का रंग आज तक लाल है। महाभारत की घटना के दौरान क्या हुआ इसका जवाब तो सभी के पास है लेकिन महाभारत के युद्ध की समाप्ति और इसमें पांडवों की विजय के बाद हालात क्या रहे, हस्तिनापुर के शासन का क्या हुआ, इस बात का जिक्र कम ही होता है। चलिए आज हम आपको बताते हैं कि कौरवों के अंत और कृष्ण की मृत्यु के पश्चात पांडवों के शासन का क्या हुआ।
3. महाप्रस्थानिका
महाभारत में उल्लिखित 18 पर्वों में से एक है महाप्रस्थानिका पर्व, जिसमें पांडवों की महान यात्रा अर्थात मोक्ष की ओर यात्रा का उल्लेख है। इसके अनुसार समस्त भारत वर्ष की यात्रा करने के बाद मोक्ष हासिल करने के उद्देश्य से पांडव हिमालय की गोद में चले गए। वहां मेरु पर्वत के पार उन्हें स्वर्ग का रास्ता मिल गया।
4. द्रौपदी की मृत्यु
लेकिन इस यात्रा के दौरान सबसे पहले द्रौपदी की मृत्यु हुई और एक-एक कर सारे पांडव मौत के आगोश में समाते गए। हालांकि युधिष्ठिर मात्र एक ऐसे पांडव थे जिन्हें सशरीर स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति मिली।
5. प्रश्नों के हल
क्यों सिर्फ युधिष्ठिर ही स्वर्ग पहुंच पाए और क्यों सबसे पहले द्रौपदी की मौत हुई? इन सभी प्रश्नों के उत्तर महाप्रस्थानिका पर्व में मौजूद हैं।
6. भौतिक जीवन से मोह भंग
कृष्ण की मौत के बाद पांडवों का भी भौतिक जीवन से मोह उठ गया। उन्हें ना तो हस्तिनापुर का शासन प्रसन्न कर पा रहा था और ना ही कोई बड़ी से बड़ी जीत। ऐसे में उन्होंने मोक्ष की तलाश करने के लिए अपना राजपाट त्याग दिया। परीक्षित को शासन की बागडोर सौंपकर वे सभी द्रौपदी के साथ हिमालय की ओर निकल गए। एक काला कुत्ता भी उनके साथ इस यात्रा पर निकल गया।
7. अग्निदेव
इस यात्रा के दौरान सबसे पहले पांडव दक्षिण की ओर गए जहां एक नदी के किनारे अग्निदेव प्रकट हुए। अग्निदेव ने अर्जुन से कहा कि वे अपने धनुष को उन्हें सौंप दें क्योंकि उनके धनुष का उद्देश्य पूरा हो गया है। अर्जुन ने अपना धनुष अग्निदेव को सौंप दिया।
8. हिमालय की ओर यात्रा
इसके बाद वे सब दक्षिण-पश्चिमी दिशा में गए, जहां उन्हें पानी में डूबी द्वारका नगरी दिखी। यह नजारा देखकर पांडव अवसादग्रस्त हो गए और वह ऋषिकेश होते हुए हिमालय की ओर चल पड़े।
9. स्वर्ग की अधूरी यात्रा
जैसे ही उन्होंने हिमालय को पार किया, द्रौपदी ने अपने प्राण त्याग दिए। द्रौपदी की मृत्यु के पश्चात भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि सभी लोगों में से पहले द्रौपदी ने ही अपना देह क्यों छोड़ा? इस सवाल का जवाब देते हुए युधिष्ठिर ने कहा कि पांच पतियों के होने के बावजूद द्रौपदी, अर्जुन को लेकर पक्षपात करती थीं। अर्थात वह अपने पांचों पतियों को बराबर नहीं समझती थीं। इसलिए वह स्वर्ग तक की यात्रा पूरी नहीं कर पाईं।
10. सहदेव और नकुल की मौत
इसके बाद सहदेव की मौत हुई, इसका कारण था सहदेव का अपने आप को सबसे अधिक बुद्धिमान समझना। इसके बाद नकुल ने अपने प्राण त्यागे। उसकी मौत का कारण था उसके भीतर पनप रहा अपने आकर्षक व्यक्तित्व को लेकर अहंकार।
11. अर्जुन का अभिमान
नकुल के बाद अर्जुन के देह ने उसका साथ छोड़ा। जब भीम ने युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि अर्जुन को अपने बल और दक्षता पर बेहद अभिमान था। इसलिए वह अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाया।
12. भीम की आदत
अब भीम, युधिष्ठिर और वह काला कुत्ता शेष रह गए। लेकिन इसी बीच भीम ने भी उनका साथ छोड़ दिया। भीम की मौत का कारण बना उनकी दूसरों की भूख की परवाह किए बगैर अत्याधिक भोजन करने की प्रवृत्ति।
13. युधिष्ठिर का साथी
युधिष्ठिर ने अपने आगे की यात्रा उस कुत्ते के साथ पूरी की। रास्ते में उन्हें इन्द्रदेव मिले, जिन्होंने युधिष्ठिर को उनके रथ पर आकर स्वर्ग चलने को कहा। युधिष्ठिर ने उनसे कहा कि वे अपने भाईयों और द्रौपदी के बगैर स्वर्ग नहीं जाएंगे।
14. स्वर्ग में मुलाकात
इन्द्रदेव ने उनसे कहा कि वे सभी उन्हें स्वर्ग में मिलेंगे। इन्द्र का जवाब सुनने के बाद युधिष्ठिर एक शर्त पर रथ पर चलने के लिए तैयार हुए कि वह काला कुत्ता भी उनके साथ जाएगा, क्योंकि उसने अंत तक उनका साथ नहीं छोड़ा।
15. धर्मराज
युधिष्ठिर की यह बात सुनकर उस काले कुत्ते ने अपना असली रूप धारण किया जो धर्मराज का रूप था। धर्मराज, युधिष्ठिर की इस बात से बेहद प्रसन्न हुए परिणाम स्वरूप युधिष्ठिर, इन्द्र के रथ पर बैठकर अपनी देह के साथ ही स्वर्ग पहुंच गए।
16. स्वर्ग में कौरव
हालांकि जैसे ही युधिष्ठिर स्वर्ग पहुंचे, उन्होंने वहां कौरवों को तो देखा लेकिन उन्हें कहीं भी अपने भाई पांडव नजर नहीं आए। युधिष्ठिर को पता चला कि कर्ण समेत उसके सभी भाई नर्क में हैं।
17. भीम और अर्जुन
युधिष्ठिर को जब उस स्थान पर ले जाया गया जहां कर्ण और अन्य पांडव थे, तब ईश्वर से उन्होंने उनके नर्क में होने का कारण पूछ। ईश्वर ने कहा कि कर्ण ने द्रौपदी का असम्मान किया था जिसकी वजह से उसे नर्क भोगना पड़ा। भीम और अर्जुन ने धोखे से दुर्योधन की हत्या की, नकुल और सहदेव ने उनका साथ दिया जिसकी वजह से उन्हें भी नर्क में आना पड़ा।
18. स्वर्ग में होने का कारण
इस बात पर युधिष्ठिर क्रोधित हो उठे। उन्होंने पूछा कि जिन लोगों ने ताउम्र धर्म का पालन किया है, उन्हें तो नर्क में भेज दिया गया, तो कौरवों जैसे अत्याचारियों को स्वर्ग में क्यों रखा गया है?
19. स्वर्ग और नर्क
इस पर ईश्वर ने जवाब दिया कि अपने अंत समय तक कौरव अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते रहे। इसी उद्देश्य के साथ उन्होंने एक सच्चे क्षत्रिय की तरह अपने प्राण भी त्यागे, इसलिए अपने इस सुकर्मों के लिए दुर्योधन और उसके सभी भाइयों को कुछ समय के लिए स्वर्ग में रखा गया है।
20. उदासी
युधिष्ठिर के चेहरे पर उदासी का भाव देखकर ईश्वर ने उनसे कहा कि पांडवों का नर्कवास और कौरवों का स्वर्गवास कुछ समय के लिए ही है, यह उनके कर्मों के रूप में उन्हें दिया गया है। कर्मों के अनुसार स्वर्ग और नर्क भोगकर कौरव नर्क और द्रौपदी समेत सभी पांडव स्वर्ग में युधिष्ठिर के पास चले गए।