नोट बंदी के बाद : अच्छी राजनीती परन्तु बुरे अर्थशास्त्र व् इंस्पेक्टर राज के इंदिरा युग की वापसी
सरकार द्वारा लगाई नोट बंदी समाप्त होने के बाद नव वर्ष कहने को तो गरीबों के लिए सुन्दर झुनझुने लाया है.
गरीब इस नए झुन झूने को बजा कर शायद अपनी गरीबी कुछ क्षणों के लिए भूल जाये परन्तु वास्तव मैं कांग्रेस व् केजरीवाल के झूठे प्रचार के दबाब में आकर मोदी सरकार ने देश के त्वरित औद्योगिक व् आर्थिक विकास के सपने को को पूर्णतः तिलांजलि दे दी . इस प्रकार प्रधान मंत्री मोदी ने इंदिरा गाँधी युग की पुनः वापिसी कर दी जिसमें गरीबी हटाओ का खोखला परन्तु सफल राजनितिक नारा था परन्तु वास्तव में इंस्पेक्टर और लाइसेंस राज ने देश को अपने शिकंजे मैं जकड़ा हुआ था जिसकी बड़ी कीमत अवरुद्ध आर्थिक विकास के रूप में देश ने चुकाई .
कांग्रेस , वाम पंथी दल व् केजरीवाल इससे हतप्रभ हैं .रातों रात मोदीजी ने उनकी गरीब नवाजी की राजनितिक जमीन पर कब्ज़ा कर न केवल उत्तर प्रदेश व् पंजाब के चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित कर ली बल्कि २०१९ के चुनावों मैं अपने को आर एस एस से मुक्त कर इंदिरा गाँधी की तरह अकेले दम पर चुनावी जीत की नींव भी डाल दी है . अब बजट मैं टैक्स कम कर वह तीन साल से उपेक्षित पूरे मध्यम वर्ग को अपनी तरफ कर लेंगे . पैसे कमी से मंहगाई भी नहीं बढ़ेगी इसलिए अवरुद्ध औद्योगिक व् आर्थिक विकास का किसी को पता नहीं चलेगा . अम्बानी से अदानी तक सब धन्ना सेठ सरकार पर आश्रित रहेंगे और बीजेपी को ही चन्दा देते रहेंगे. इस बीच यदि पकिस्तान ने पठानकोट जैसा कोई हमला किया तो भारत इंदिरा गाँधी जैसी जोरदार प्रतिक्रया देगा उर मोदी जी उन्हीं की तरह इतिहास मैं अमर हो जायेंगे.
इस तरह इंदिरागांधी युग पूरी तरह से वापिस आ जाएगा .
जिस राजनितिक पटुता का प्रधान मंत्री ने प्रदर्शन किया है उससे सोनिया कांग्रेस व् विरोधी दल किंकर्तव्य विमूढ़ हो कर रह गए हैं और अब उन्हें ही नहीं बल्कि आर एस एस को भी अपने लिए नयी ज़मीन खोजनी होगी .
परन्तु इस राजनितिक दौड़ को जीतने में हम बहुत कुछ खो देंगे .
इसमें सबसे प्रमुख है गिरती हुआ औद्योगिक व् आर्थिक विकास जिसके वायदे पर मोदीजी ने पहला चुनाव जीता था . अब चुनावी माहौल मैं औद्योगिक व् आर्थिक विकास के त्वरित होने की कोई संभावना भी नहीं है . विकास के झूठे आंकड़ों की ओट मैं न केवल हम चीन से लगातार पिछड़ रहे हैं बल्कि पिछले बीस सालों की हमारी सबसे बड़ी आर्थिक विकास की उपलब्धि धुल धूसरित हो रही है. झूठे आंकड़े यह छुपा नहीं सकते कि जो नौ जवान पहले आई आई टी व् आई आई एम् से तीन तीन नौकरियों का ऑफर ले कर निकलते थे अब अपने पढाई का महंगा खर्च भी वापिस करने असमर्थ हैं .देश के आई एस बी जैसे महंगे पढ़ाई के संस्थान अब फीस कम करने को मजबूर होंगे .प्राइवेट इंजिनीरिंग कॉलेज़ की सीट अब नहीं भर रहीं है. हमारी कंप्यूटर सॉफ्टवेर का उद्योग भी अब खतरे मैं है. टीसीएस मैं छटनी शुरू हो गयी है . निर्यात गिरते जा रहे हैं . औद्योगिक प्रगति की दर जीरो तक भी हो चुकी है. झूठे चमकीले प्रचार के पीछे भारतीय रेलवे का एयर इंडिया वाला हाल किया जा रहा है और वह कंगाली की ओर बढ़ रही है .उसका अपना बजट समाप्त कर जनता से उसका बदहाल छुपा लिया जाएगा परन्तु कब तक . आर्थिक अवनति की तरह झूठे प्रचार की चमक में उस पर भी उलटे सीधे प्राबंधिक परिवर्तन लादे जा रहे हैं जो उसे अंत मैं रुग्ण कर देश की सबसे बड़ी व् गौरवमयी इकाई को प्राइवेट संस्था बनाने की ओर धकेलेंगे .बाकि बड़े उद्योगों का भी कमोवेश यही हाल है. हमारी सेनाओं का भी जो राजनितिक व् बाबुओं के हस्तक्षेप से अवमूल्यन हुआ है उसके दूर गामी परिणाम बुरे ही होंगे . क्या जनता नहीं देख रही की वर्षों से भ्रष्टाचार मैं संलिप्त रक्षा मंत्रालय के बाबु जनता को दिग्भ्रमित कर रहे हैं.
इंस्पेक्टर राज जो कुछ वर्षों से कम हो रहा था अब फिर अपनी चरम सीमा पर पहुंचेगा . इसमें एक बड़ा व् नया नाम बैंकों का जुडा है. नोट बंदी ने बैंकों को भ्रष्टाचार की नयी राह दिखा दी है . वह भी अब सरकारी संस्थानों की तरह जनता से बाबुओं की तरह निरंकुश व्यवहार करने लगेंगे .जो वर्षों से ग्राहकों की सेवा की कुछ परम्परा बनी थीं अब चूर चूर हो जायेंगी . आय कर विभाग तो अब आदमखोर शेर बन गया है. उसे तो अब कोई नहीं पिंजरे मैं बंद कर सकता . वित्त मंत्री कुछ भी कहें अगले कई वर्षों तक टैक्स आतंकवाद से जनता त्रस्त रहेगी क्योंकि जो गृहणी वर्षों से अपनी लडकी की शादी के लिए धन इकट्ठा कर रही थी अब वह काले धन वाली हो गयी है.व् वित्त मंत्री मात्र संसद मैं लम्बे भाषण दे कर उसे इनकम टैक्स के बाबुओं के चुंगुल से कैसे बचायेंगे ? इनकम टैक्स जो अब तक सिर्फ व्यपारियों व् उद्योगपतियों का खून चूसता था अब नोट बंदी के आंकड़ों से मध्यम वर्ग को भी अपना शिकार बनाएगा .
कुल मिला कर इंदिरा गाँधी काल देश के आर्थिक विकास के लिए अहितकर था जिसकी पराकाष्ठा देश के सोने की गिरवी रखे जाने मैं हुई थी . उसकी पुनः वापसी देश को विनाश की ओर धकेल देगी .
ऐसा नहीं है की जनता मोदीजी व् इंदिरा गाँधी के के व्यक्तित्व का अंतर नहीं जानती . उनकी इमानदारी पर देश को विश्वास है .वह यदि उत्तर प्रदेश व् पंजाब का चुनाव जीत जाएँ यह देश के लिए अच्छा ही होगा . २०१९ मैं कोई भी सोनिया गाँधी के भ्रष्ट युग की वापिसी नहीं चाहता .परन्तु इस सबके बीच भी त्वरित औद्योगिक विकास संभव है. चीन से आर्थिक रूप से बहुत पिछड़ना देश की सुरक्षा के लिए घातक है.इसलिए राजनीती से औद्योगिक विकास को बचाना अब बहुत आवश्यक हो गया है.
आर्थिक व् औद्योगिक विकास की अवरुद्धता का एक कारण यह भी है की मोदी जी को जिस बाबुओं के जाल ने जकड रखा है वह किसी नए मनमोहन सिंह , शौकत अज़ीज़ या या सैम पित्रोदा को नहीं प्रकट होने दे रहे . उनकी सब घोषणाएं राजनितिक रूप से ठीक हैं परन्तु देश के औद्योगिक विकास के लिए बिलकुल अपर्याप्त हैं . उनमें बड़ा परिवर्तन लाने की कोई क्षमता नहीं है .उसके लिए नए चिंतन की आवश्यकता है जो बड़ेबाबुओं के पूर्ण वर्चस्व के वातावरण मैं संभव नहीं है.
मोदी जी के कल के भाषण ने यह सिद्ध कर दिया है कि आर्थिक मंत्रालयों को बड़े बाबुओं के चुंगुल से मुक्त किये बिना किसी नए औद्योगिक विकास के युग की शरुआत संभव नहीं है.
इश्वर राजनीती मैं फंसे हमारे देश को आर्थिक अवनति से बचाए हम इस की अब प्रार्थना ही कर सकते हैं .