क्या पाकिस्तान को भारत की दोस्ती से चीन की दोस्ती से ज्यादा फायदा होगा ? Will Pakistan Benefit More By Indian Friendship Than Chinese
Rajiv Upadhyay
A dispassionate analysis indicates that Pakistan will gain more by Indian friendship than Chinese . Chinese CPEC is a project aimed for Chinese exports and will not benefit Pakistan significantly . Its returns imposed on Pakistan are exploitative . Pakistan does not need road to Kashgar or Gwadar port .The American aid in contrast was far more beneficial as it lead to Mangla , Tarbela dam and canal network being made in Ayub Khan’s time or record growth in Gen Musharraf ‘s time .Exploitative electricity rates will damage Pakistan’s agriculture and exports . It also comes with a huge risk of Chinese Colonisation of Pakistan .
In fact a slower and self reliant growth model of India , which can pick up momentum in five years is a far better solution . India can help in vital sectors of Railway , education ,health ,agriculture and cheap electricity which will give immediate relief to suffering population .
India is a make believe enemy of Pakistan to preserve undue benefits to its unnecessary large armed force like large land grants to retiring generals , not done any where in world . Otherwise if all three ie India , Pakistan and Afghanistan accept to maintain status quo for thirty years and not interfere in each other’s internal affairs and proxy wars while promoting free trade and travel , it will lead to rapid economic growth also for the entire subcontinent .
Pakistan’s army is the true enemy of Pakistan and needs to be tamed by its population .
क्या पाकिस्तान को भारत की दोस्ती से चीन की दोस्ती से ज्यादा फायदा होगा ? Will Pakistan Benefit More By Indian Friendship Than Chinese
आज जब पाकिस्तान चीन के सीपेक मंसूबे से आर्थिक प्रगति के बड़े बड़े सपने देख रहा है उसे सच बताना या मनवाना बहुत कठिन है की उसे चीन के मुकाबले भारत से दोस्ती मैं ज्यादा फायदा है .आज के पाकिस्तान को इस बात की चिंता नहीं है की सीपेक श्री लंका के हम्बम्तोता बंदरगाह की तरह बेकार सफेद हाथी होगा और पाकिस्तान कभी भी चीन के कर्जे नहीं अदा कर पायेगा और अंततः इन बे इंतिहा कर्जों से उसके सारे प्रगति के मनसूबे धुल धूसरित हो जायेंगे . श्री लंका की तरह उसे भी सीपेक के सारे प्रोजेक्ट,ज़मीन व् हवाई अड्डे ,रेलवे इत्यादि चीन को बेचने पड़ेगे . जैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने कलकत्ता से शुरू हो कर सारे भारत पर हुकूमत बढ़ा ली थी इसी तरह चीन भी ग्वादर से शुरू होकर अंततः सारे पकिस्तान पर हुकूमत फैला लेगा जो की अंग्रेज़ी हुकूमत से कहीं अधिक बदतर होगी . चीनी सेना पहले अपने बनाए प्रोजेक्ट के लिए पाकिस्तान मैं घुसेगी और उसके मुकाबले पाकिस्तान की सेना क्या कर लेगी ? कहने को तो यह सेना बड़ी और बहादुर है परन्तु पाकिस्तान मैं तो मीर जाफ़र के वंशज इस्कंदर मिर्ज़ा भी शासन कर चुके हैं .उसकी फौज मैं चीनी रिश्वतों से कितने नए मीर जाफर पैदा हो जायेंगे किसने देखा है और प्लासी की लड़ाई चीन ही जीतेगा . अब तक के पाकिस्तानी नेतृत्व व् सर्वव्यापी भर्ष्टाचार को देखते हुए उसकी फौज या नागरिक नेताओं से विशुद्ध देश भक्ति की आशा रखना व्यर्थ ही होगा. यदि अमरीका ने चीन के विरुद्ध तहरीके पकिस्तान को मदद देनी शुरू कर दी तो पाकिस्तान अफगानिस्तान की तरह भयंकर गृह युद्ध मैं फंस जाएगा . इसलिए यह बात शत प्रतिशत सच है की एक बार पकिस्तान पर सीपेक के ज़रिये चीनियों का राज्य शुरू हो गया तो वह अंग्रेजों के राज्य की तरह सैकड़ों वर्ष चलेगा .
आर्थिक रूप से चीन का सीपेक के ज़रिये पाकिस्तान का शोषण का प्लान अति खेदजनक है . उसने अमरीका की भांति अपने मित्र पाकिस्तान को कोई अरबों डॉलर की आर्थिक अनुदान या मदद नहीं दी है जिससे अयूब खान ने तरबेला व् मंगला डेम बनवा लिए या पूरे पकिस्तान मैं सिंचाई की नहरों का जाल बिछा लिया . अमरीका के मुफ्त मदद के विपरीत चीन ने कुछ राशि छः प्रतिशत के ऋण पर दी है और शेष राशी के निवेश पर पर १९ – ३७ % वार्षिक फायदा मांगा है . चीनी कारखानों के बिजली की दर आठ रूपये यूनिट होगी जो की भारत की दर से दुगनी है . कोयले के पुराने बिजली बनाने वाले प्लान्ट चीन से उठा कर पाकिस्तान मैं बिठाए जायेंगे जो की आयातित कोयले से चलेंगे. सीपेक मैं सब कुछ चीनी होगा ; मशीनें , मजदूर व् सामान इत्यादि सब चीनी होगा .सीपेक से सिर्फ चीन को असली फायदा होगा . पाकिस्तान के पास तो पहले ही कराची बंदरगाह है उसे ग्वादर की जरूरत नहीं है . सिंध मैं कोयला है जिससे बिजली बन सकती है .कशगार तक की सड़क की पाकिस्तान को कोई जरूरत नहीं है वह चीन को कुछ नहीं बेच सकता . चीन से पिटके धीरे धीरे पाकिस्तान के बचे हुए उद्योग ख़तम हो जायेंगे और उसकी खेती पानी की कमी,मंहगी बिजली व् खाद से डूब जायेगी .पाकिस्तानी सिर्फ सड़क के किनारे चीनी ट्रकों के लिए ढाबे चलाएंगे व् पंचर लगायेंगे .विश्व मैं कहीं भी इतनी बड़ी लूट की मिसाल नहीं है .
परन्तु पाकिस्तान की जनता को सच भी नहीं बताया जा रहा है .यहाँ तक की संधि के कागज़ात भी चीन के कब्ज़े मैं कहे जा रहे हैं . चीन पकिस्तान को सिर्फ अपने हथियार सस्ते कर्जे पर बेचता है .
यह सब पाकिस्तानी सेना की करतूत है जो बिना बात भारत को जानी दुश्मन व् सिर्फ सस्ते हथियारों , परमाणु बमों , मिसाइलों के लिए चीन की हमदर्द है और उसे सच्चा मित्र बताती है .पाकिस्तानी सेना अपने जंगी जूनून मैं भारत का झूटा डर दिखा के नागरिक प्रधान मंत्रियों की कनपटी पर बन्दूक रख पाकिस्तान को बेतहाशा सैन्य खर्च करा के उसे अब बंगलादेश से भी पीछे कर दिया और अब ग्रीस जैसे उसका दिवाला निकलना लगभग निश्चित है . देश का आधा बजट खा कर बनाए उसके सैकड़ों परमाणु बम व् मिस्साइल उसे डूबने से नहीं बचा पाएंगे .
इसके विपरीत सब सच्चे व् जिम्मेवार नेता बेनजीर व् आसिफ ज़रदारी से इमरान खान तक सब समझते हैं की भारत पकिस्तान का दुश्मन नहीं है और भारत की मित्रता से पकिस्तान को बहुत फायदा होगा ..नवाज़ शरीफ का कथन की सरहद के दोनों तरफ एक जैसे लोग हैं जिनका एक खाना और एक संस्कृति है, एक बड़ी सच्चाई है. पकिस्तान के भूत पूर्व एयर मार्शल असगर खान समेत अनेक जानकार मानते हैं की हर युद्ध पकिस्तान ने शुरु किया था. फिर पकिस्तान का असली दुश्मन कौन हुआ भारत या उसकी सेना जिसने १९४७ से कारगिल तक हर युद्ध को शुरू किया और हर युद्ध मैं उसे हार मिली .इस चक्कर मैं देश भी टूटा और अर्थव्यवस्था भी डूब गयी .पाकिस्तान को जिन्नाह के स्वपनों का एक आधुनिक धर्म निरपेक्ष देश बनाना होगा जो अयूब खान के समय तक था .
यदि भारत की तरह पाकिस्तान उधार व् इमदाद के बजाय अपनी मेहनत व् लगन से अपना विकास करना चाहे तो भारत की मित्रता इसका सबसे अच्छा रास्ता है . पाकिस्तान की लोग मेहनती हैं और वह चीन की गुलामी के बजाय स्वाभिमान के साथ अपनी मेहनत से आर्थिक प्रगति चाहेंगे चाहे वह थोड़ी धीरे क्यों न हो . पाकिस्तानी जनता भारत से अच्छे सम्बन्ध चाहती है . कश्मीर किसी के पास हो वह बेकार ,बेहद खर्चीला व् किसी के काम का नहीं है .जिसके पास जितना है वह काफी है .
यदि भारत ,पाकिस्तान अफगानिस्तान तीस साल के लिए हर समस्या को यथा स्थिति के रूप मैं रखने को स्वीकार कर ले और तीनों देश लड़ाई का रास्ता छोड़ सिर्फ आर्थिक विकास को चुन लें तो पाकिस्तान का आर्थिक विकास भारत की मदद से बड़ी तेज़ी से हो सकता है जैसा की अफगानिस्तान व् बँगला देश का हो रहा है .तेल व् गैस को छोड़ कर पाकिस्तान की हर औद्योगिक आवश्यकता भारत पूरी कर सकता है . पाकिस्तान अपने से दस गुनी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले भारत से बराबरी नहीं मांग सकता .व्यापार बराबर तो १९४७ से पहले भी नहीं था न अब हो सकता है . न तो पाकिस्तान की खेती ,न उद्योगपति और न ही उसके व्यापारी अभी भारत का मुकाबला कर पाएंगे .परन्तु भारत तमिल नाडू और उत्तर प्रदेश भी तो बराबर नहीं रहे .भारत के मुकाबले पाकिस्तान भी तो उत्तर प्रदेश जैसा ही है . पर भारत पकिस्तान को वह सब दे सकता है जिसकी उसको आवश्यकता है जैसे बिजली ,खेती ,शिक्षा , रेलवे व् स्वस्थ के क्षेत्र मैं तो पाकिस्तान को तुरंत बहुत फायदा पहुंचा सकता है . इस के बाद धीरे धीरे भारत व् बांग्लादेश की तरह स्वाबलंबी बनने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है .पाकिस्तान अपने रक्षा बजट को कम कर उसे शिक्षा व् विकास पर खर्च कर सकता है . यदि कुल दस बिलियन डॉलर की अमरीकी मदद से पाकिस्तान ने जनरल मुशर्रफ के काल मैं बहुत प्रगति कर ली थी . पाकिस्तानी जनता बहुत मेहनती है और उसे फिर दोहराया जा सकता है . शुरू मैं विकास धीरे होगा पर बाद मैं रफ़्तार पकड़ लेगा .
रही बात भारत से सुरक्षा की तो सत्तर साल से नेपाल या श्रीलंका या भूटान को भारत ने नहीं निगल लिया है . बंगला देश को आज़ादी ही नहीं बल्कि एक हज़ार किलोमीटर ज़मीन भी मोदी जी ने दे दी . आतंकवाद से बिखरते पाकिस्तान मैं लेने लायक है ही क्या जो भारत उसे निगलेगा . हमें तो सिर्फ शांति चाहिए जिससे हम अपना ध्यान आर्थिक प्रगति पर लगा सकें .
सिर्फ पाकिस्तानी फौज अपने निजी स्वार्थ के लिए अपने देशवासियों को उल्लू बना रही है.
यदि फौज बीच से हट जाए तो पाकिस्तान को भारत की मित्रता से बहुत फायदा हो जाएगा .