रक्षा समझौतों मैं पारदर्शिता की आवश्यकता : लड़ाकू हवाई जहाज डील मै देरी
डोकलाम के बाद अब भारत को रक्षा मामलों मैं चौकन्ना रहने की आवश्यकता बहुत अधिक हो गयी है . उधर नवाज शरीफ के हटने से पाकिस्तान भी अस्थिर हो गया है. इतिहास साक्षी है की हर पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष ने अपनी गिरती साख को बचाने के लिए भारत पर पहले १९६५ बाद में आतंकी या कारगिल जैसी लड़ाए छेड़ी है. सीपेक के बाद से चीन मोंगोलों की भांति काराकोरम के रस्ते से पानीपत तक युद्ध के लिए आ सकता है और इसमें पाकिस्तानी सेना उसकी मदद कर सकती है.इस बढे हुए खतरे से निपटने के लिए बहुत सोच समझ कर रणनीति बनाने की आवश्यकता है .
पहले तो कांग्रेसी सरकार की ढिलाई के चलते रक्षा सौदों मैं बहुत सुस्ती आ गयी थी और रक्षा सामग्री की खरीददारी बहुत धीरे कर दी थी . अप्रन्तु अब उस सरकार को गए तीन वर्ष हो चुके हैं . जनता ने उसे उसके पापों की सज़ा दे दी .प्रश्न है की क्या नयी सरकार तो उसी अनिश्चितता के चक्र मैं तो नहीं फँस गयी है ?
पहले तो फ़्रांस से रफल ह्वैजहाज की संख्या घटा कर हवाई जहाजों के स्कुँद्रनों मैं और कमी अवश्यम्भावी हो गयी . शायद उसमें फ़्रांस की गलती भी थी .उसने भारत को टेक्नोलॉजी देने को मना कर दिया . इस मामले मैं समझौते मैं कुछ कमी थी .एक अच्छी पहल मैं सरकार ने तेजस हवाई जहाज़ों के निर्माण के लिए एक नयी अस्सेम्ब्ली लाइन बना दी . अब अस्सी तेजस हवाई जहाज अगले छः साल मैं बन जायेंगे जिससे मिग २१ जहाज़ों के समाप्त होने से समस्या और अधिक विकराल नहीं होगी .परन्तु भारत इस क्षेत्र मैं इतना पिछड़ गया है की इस कमी को तुरंत भरने की आवश्यकता है .
परन्तु इसमें सरकार फिर से अनिश्चितता से ग्रस्त हो गयी है और बड़ी कंपनियों की लड़ाई मैं रक्षा सौदों को फिर प्रश्न चिन्ह के घेरों मैं ला दिया है .तीन साल के अन्दर रफाल के बदले किसी अन्य जहाज पर फैसला कर लेना चाहिए था . परन्तु सुनने मैं आ रहा है की अब दो इजिन के बजाय एक इंजन वाले जहाज खरीदे जायेंगे . इसका मुख्य कारण संभवतः अमरीकी ऍफ़ -१६ व् ग्रिपेन के एक इंजन वाले हवाई जहाज का होना है . प्रश्न है कि यदि भारत को पहले दो इंजिन वाले बड़े हवाई जहाज चाहिए थे तो अब छोटे एक इंजन वाले हवाई जहाज क्यों चाहिए ? सौदों मैं इतनी देर क्यों हो रही है .प्रश्न का उत्तर पारदर्शी रूप से दिया जाना आवश्यक है . अन्यथा जनता का विश्वास हट जाएगा .
पकिस्तान तो जे ऍफ़ १७ जहाज के बाद चीन का पांचवी जेनरैशन का हवाई जहाज बना सकता है . हमारा रूस के साथ पांचवी जेनेराशन के हवाई जहाज संयुक्त रूप से विकसित करने का समझौता खटाई मैं है .हमारा अपना पांचवीं जेनेर्शन का जहाज भी विकसित नहीं हुआ है . सुखोई ३० एम् के का परिस्कृत मॉडल जिसमें ब्रह्मोस मिसाइल लग जाई और अधिक संख्या मैं आवश्यक है क्योंकि चीन का तिब्बत की सीमा पर सड़कों का बड़ा जाल है . तवांग की चीन के हमले से रक्षा कर पाना बहुत कठिन है . इसके लिए अधिक लम्बी दूरी के सुखोई हवाई अहाजों , मोंटेंन स्ट्राइक कोर , व् होइटसर तोपों की आवश्यकता है .चीन से सीमा वर्ती इलाकों मैं सड़कों को बनाना भी आवश्यक है .
इसी तरह हम अभी मिसाइल के क्षत्र मैं पीछे हैं . हमारे अधिकांश मिसाइल अभी टेस्ट हो तहे हैं और सेना मैं प्रविष्ट नहीं हुए हैं . चीन हम पर मिस्सैलों की बौछार कर सकता है .माउंटेन स्ट्राइक कोर को जल्दी पूरा करना होगा .. पनडुब्बियों मैं भी हम बहुत पीछे हैं . चीन हवाई जहाज वाले युद्ध पोतों को खत्म करने वाले मिसाइल बहुत तेजी से विकसित कर रहा है . हमें भी सचेत् रहना होगा .
अब जब हमने इस क्षेत्र की एक बड़ी ताकत की तरह चीन का प्रभुत्व मानने से मना कर दिया है और पाकिस्तानी गोलीबारी का मुंहतोड़ जबाब देना शुरू कर दिया है तो उनसे युद्ध होने की संभावनाओं के लिए तैयार रहना होगा . दुसरे हमारे जापान व् औसट्रेलिया के साथ मिलने से चीन , पाकिस्तान , तुर्की और बाद मैं ईरान व् उत्तर कोरिया के एक सैनिक ब्लाक बनाने की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता . इसलिए भारत को अपनी आर्थिक व् सामरिक स्थिति को शीघ्र सुधारना होगा . देश की रक्षा से कोई समझौता देश को स्वीकार नहीं होगा. इसमें कूटनीति का भी अपना महत्व है जिमें दक्षता की आवश्यकता है .
एक हज़ार वर्षों की गुलामी से त्रस्त रहने वाले देश को इतिहास से इतनी सीख तो लेनी चाहिए .