महंगी अरहर दाल : पुनः कालाबाजारी व्यापारियों व् सरकारी बाबुओं के षड़यंत्र का शिकार
जिस देश की राजधानी दिल्ली की साहिब सिंह वर्मा की सरकार प्याज की कमी व् महंगे दामों से गिर सकती हो और जहाँ २०१५ मैं अरहर दाल व्यापारियों व् सरकारी अफसरों के एक सुनियोजित षड्यंत्र के चलते २०० रूपये किलो बिक कर जनता में हा हा कार मचा चुकी हो , उस देश की कथित इमानदार सरकार से आशा की जाती है की जनता के घोर कष्ट की पुनरावृति को अब नहीं होने देगी . परन्तु बेख़ौफ़ काला बाजारी व्यापारी मानो सिर्फ चुनाव खत्म होने का इन्तिज़ार कर रहे थे . सरकार बनते ही खाने की चीज़ों के दाम बेतहाशा बदने लगे . अरहर की दाल का दाम ६५ रूपये किलो से बढ़ कर सौ रूपये किलो हो गया है . इससे बाकि चीज़ों के दाम भी बढ़ रहे हें . सरकार ने कहने को समर्थन मूल्य लगभग ५५०० रूपये क्विंटल कर दिया पर किसान को इसका कोई फायदा नहीं मिला . फलस्वरूप उसने दाल की बुवाई कम कर दी जिससे उत्पादन कम हो गया . और चुनाव समाप्त होते ही व्यापारियों की सरकार फिर बन गयी और काला बाजारियों का डर समाप्त हो गया . कहते हैं ‘ जब सैयां हुए कोतवाल तो डर कहे का ‘ .
प्रश्न है की यह लालची व्यापारी वर्ग कैसे देश की सरकार से मिलीभगत कर कैसे दाल की कीमतों को इतना बढ़ा देते हैं और कोई पकड़ा भी नहीं जाता ?
जानकार इसे अच्छी तरह समझते हैं . हमने २०१७ मैं ही यह बता दिया था की २०१९ मैं दाल की कीमतें फिर से बढाने का षड्यंत्र हो रहा है . हमारा तब का लेख नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ें
‘ देश मैं दाल की कमी करा कर पुनः मंहगाई बढाने का षड्यंत्र : प्रधानमंत्री तुरंत जांच कर रुकवाएं ‘ https://patriotsforumindia.com/?p=8762
इस षड्यंत्र की पूरी रूप रेखा नीचे दी है .
२०१५ में यह जानते हुए भी की देश में दाल का उत्पादन बहुत कम है सरकारी बाबुओं ने दाल के आयात का टेंडर कैंसिल कर दिया क्योंकि दाम ज्यादा थे . दुबारा टेंडर मैं देरी से दाल की जो भयानक कमी हुयी और अरहर दल के २०० रूपये किलो बिकने से देश की सरकार हिल गयी . आनन् फानन मैं सरकार ने आयात कम करने के लिए २०१६ के लिए दाल का समर्थन मूल्य ४०० रूपये किलो बढ़ा कर ५५०० रूपये क्विंटल कर दिया . महाराष्ट्र में विशेषतः दाल की खेती बहुत बढ़ाई गयी .अरहर दाल का उत्पादन २.५६ मिलयन टन से बढ़ कर ४.८७ मिलयन टन हो गया . परन्तु जिस साल देश मैं दाल का उत्पादन सबसे अधिक हुआ उसी साल दाल का आयात भी सबसे अधिक हुआ .
जैसे ही दाल के सरकारी खरीद शुरू हुई व्यापारियों ने सस्ती आयातित दाल समर्थन मूल्य के महंगे दामों पर सरकार को बेच दी . जब तक भारतीय किसानों की दाल मंडी मैं आती सरकार ने बोरियों की कमी का बहाना बना कर खरीददारी धीमे कर दी . और थोड़ी ही दिनों मैं दाल खरीदने का कोटा पूरा होते ही दाल की सरकारी खरीद रोक दी . महाराष्ट्र सरकार ने १००० करोड़ रूपये की अतिरिक्त दाल खरीदने की घोषणा की . परन्तु फायदा बिचौलिए ले गए . उदाहरणतः एक बैटरी विक्रेता ने जिसके पास एक बीघा जमीन भी नहीं थी सरकार को ९९ क्विंटल दाल बेच दी. दाल उगाने वाला किसान फिर बेहद ठगा गया . व्यापारियों ने उसकी मजबूरी का फायदा उठा कर ३००० रूपये क्विंटल तक उससे दाल खरीद ली और बाज़ार में मंहगे दाम पर बेच दी .
इस षड्यंत्र से डसा हुआ दाल उगाने वाला किसान अब सरकारी तंत्र पर विश्वास खो चुका था . उसने फिर से दाल का उत्पादन कम कर दिया . इस वर्ष देश मैं अरहर दाल का उत्पादन ४.०७ मिलयन टन से घाट कर सिर्फ ३.६८ मिलीं टन रह गया . व्यापारियों ने दाल का आयात भी कम कर दिया और २०१५ वाले हालात फिर बन गए . अरहर दाल के दाम आसमान छूने लगे और देह को बारिश की कमी जैसी झूठ की घुट्टी पिलाई जाने लगी .
यह महंगाई बढाने का षड्यंत्र कोई नयी बात नहीं है . २००६ मैं शरद पवार के काल मैं गेहूं के साथ यह खेल खेला गया था . मनमोहन सिंह महंगाई से घबरा कर उद्योगों के क़र्ज़ कम कर देश का और नुक्सान कर बैठे .प्रधान मंत्रि जो प्रोपर्टी डीलरों की बेईमानी को लगाम देकर घर का दाम कम करा सकते हें वह खाद्यानों का दाम कम न करा सकें ऐसा नहीं है .परन्तु इस सरकार मैं व्यापरियों का वर्चस्व है और वह सरकार को कोई ऐसा कदम नहीं लेने देंगे जिससे उनका घाटा हो . जनता के वोट बचने के लिए बिकाऊ मीडिया असली सच को छुपा कर कोई भी झूठ फैलाता रहता है जैसे बारिश की कमी इत्यादि. असली षड्यंत्रकारियों का तो किसी को पता ही नहीं चलता .
जैसे प्रॉपर्टी डीलर बिना बिके घरों की भी कीमत कम नहीं होने देते वैसे ही कालाबाजारी मुनाफे के लिए खाद्यान्नों के दाम बढाते रहते हैं . श्रीमती इंदिरा गाँधी ने खाद्यानों के भंडारण पर बैंक लोन की मनाही कर दी थी जो की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने हटा दी थी .दूसरा पहले दाल सरकारी उपक्रमों से आयात होती थी . अब जबसे दाल का आयात निजी व्यपारी करने लगे तब से जनता इन कालाबारियों की गिरफ्त मैं बुरी तरह से फँस चुकी है . जनता व् किसान को राहत तभी मिल सकती हाँ जब कालाबाजारी व्यापरियों को इस खेती व् किसानों के चक्र से निकाला जाय .