दोस्त दी गड्डी—— शुभ्रांशु

family picnicएक मेरे मित्र हैं, शौकीन और मिलनसार| हाल ही में उन्होंने एक नई मोटर गाड़ी खरीदी (Maruti Ertiga)| अब गाड़ी क्या खरीदी, जान का जंजाल मोल ले लिया| आस पड़ोस वाले जल भुन गये उनकी बड़ी सी चमकदार सवारी को देख कर| मित्र परेशान, कैसे सुंदर गाड़ी को बुरी नज़रों से बचाएँ, कैसे शैतान छोकरों से रक्षा करें| इसी कश्मकश में पड़े रहते हैं, डरते-डरते मोटर को बाहर निकालते हैं, धीरे-धीरे चलाते हैं, तिरपाल से ढँक कर रखते हैं| उन्हीं की मनोदशा पर प्रस्तुत है एक छोटी सी कविता:

——दोस्त दी गड्डी——

एक हमारे मित्र हैं हुनरमंद होशियार
लाए खरीद बाज़ार से एक बड़ी सी कार
एक बड़ी सी कार नाम अर्टिगा राख्या
आस पड़ोस के सीने नागा लोटन लाग्या

नयी चमकती कार नवेली दुल्हन लागे
फीकी पड़ी पुरानी टाटा इसके आगे
दो गाड़ी की फेमिली बड़ी बात है
भारत के संभ्रांत वर्ग से लग गये आके

ई एम आइ चुकाएँगे रोज़ घूमने जाएँगे
अपने रथ में बैठ प्रात निश
पिकनिक मंदिर इंडिया गेट
होटल शॉपिंग और आखेट
हमको खूब जलाएँगे

दोस्त बंधु सब बगल खड़े हैं मुँह को बाये
सुंदर गाड़ी में भाई जी सैर कराएँ
जबसे गाड़ी द्वार लगी है शान बढ़ी
मन ही मन मियाँ बीबी फूले न समाएँ

पर नयी गाड़ी साबोटाज ना हो जाए
अभी अभी जो लिया ताज ना खो जाए
कोई नटखट कौआ चिड़िया चोंच ना मारे
और गुज़रता छोरा कोई खरोंच ना मारे

ऐसे हैं भयभीत हमारे मित्र बहादुर
जैसे होली में घिर गयी सुंदरी नारी हो
बुरी नज़र ना लग जाए इस प्यारी को
कंबल से ढँक कर रखते हैं गाड़ी को
—ooo—

Shubhranshu
Filed in: Entertainment

No comments yet.

Leave a Reply