५६ इंच की छाती : सिक्किम , बांग्लादेश के बाद आज कश्मीर आज़ाद : इस अहल्या उद्धार मैं इतना समय क्यों लगा ?
आज कश्मीर से धरा ३७० को समाप्त कर कश्मीर के बंटवारे से सारा देश खुश है . प्रश्न सिर्फ इतना है इसमें सत्तर साल क्यों लगे ?
पिछले साठ वर्षों से जब से मैं बच्चा था कश्मीर की समस्या का वर्णन सुन रहा हूँ और अनेकों बार प्रयास किये गए परन्तु यह समस्या सुलझ न सकी . क्योंकि इस समस्या को जीवित रख कर ही वहां की राजनीती की दूकान चलती थी .
नेहरु जी कश्मीर के थे . उन्होंने सस्ता राशन भी देकर देखा . अब एक धुंधली सी याद है की जब मैं राशन की चीनी एक रूपये बारह पैसे किलो लाता था कश्मीर मैं सुनता था की छह आने किलो बिकती है . पर उससे कुछ फायदा नहीं हुआ . फिर १९53 मैं नेहरु जी ने अपने मित्र व् मुख्य मंत्रि शेख अब्दुल्ला को ग्यारह वर्षों तक नज़र बंद रखा . पर स्वतंत्र होते ही उन्होंने अपना अलगवाद का राग अलापना शुरू कर दिया और इसी बीच नेहरु जी की मृत्यु हो गयी .
.इंदिरा गाँधी जी ने भी कश्मीरियों को मनाने की कोशिश की परन्तु सफल नहीं हुईं .अंत मैं चतुर जगमोहन को १९९० मैं फिर दुबारा गवर्नर नियुक्त किया जिन्होंने पहली बार कश्मीर की जमीनी स्थिती को बदला परन्तु राजीव गाँधी को गलत सलाह देकर उनको मई १९९० में हटा दिया . फारूक अब्दुल्लाह को सीख देने के लिए उनके जीजा जी एम् शाह को सन १९८४ मैं मुख्य मंत्रि नियुक्त कर दिया पर उनको सफल नहीं होने दिया गया . सरकार ने अनेकों बार कश्मीर पैकेज की घोषणा की पर सब भ्रष्ट नेताओं के झोली में जाते रहे . अनेकों संवाद समितियां बनी पर कुछ नहीं बदला क्योंकि अलगवाद से ही तो राजनीती चलती थी .
काश्मिरी अपने को विशेष व् भारतीयों से श्रेष्ठ मानने लगे थे .
मुफ़्ती सईद ने मुख्य मंत्रि कार्यकाल मैं अलगवाद को और बढ़ावा दिया और केंद्र सरकार के विकास प्रोजेक्ट मैं कश्मीरी पार्टनर अलग लगने लगा जैसे कश्मीर कोई अलग देश है . परन्तु सबसे निम्न स्तर तब हुआ जब १९८९ मैं देश के प्रथम मुसलिम गृह मंत्रि मुफ्ती साहिब की बेटी रुबिया का अपहरण कर लिया गया और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने उसकी रिहाई के बदले पाँच खूंखार आतंकवादियों को छुड़वा दिया .
कश्मीरी पंडितों के निष्कासन के बाद देश के सब्र का पैमाना भर गया . इस में हर कश्मीरी पार्टी की मिली भगत थी हालाँकि झूठे आंसू कई बहाते रहते हैं . इसी तरह १९४७ मैं पाकिस्तानी कश्मीर से आये हिन्दुओं को नागरिकता न देने का प्रश्न था .पत्थर् बाजों को राजनितिक पार्टियों का संरक्षण मिल रहा था . कहते हैं भगवान् के यहाँ देर है अंधेर नहीं . सब पुराने पापों को जेल मैं बैठ कर वह सब नेता सोचें जिन्होंने पत्थर बाजों को बच्चे गलती करते हैं कह कर बढ़ावा दिया था .कोई कह रहा है की हम पलेस्टाइन बना रहे हैं . क्या पंडितों को निकलने वाले कभी डरे थे ? हम ही डर से पतले हुए जा रहे हैं .इमानदारी से किया गया न्याय व् विकास देर सवेर जनता को दीखेगा .
जब इन्डियन एयरलाइन के आई सी 814 के हवाई जहाज का अपहरण किया गया तो वाजपेयी जी मसूद अजहर समेत अनेकों कश्मीरी आतंकवादियों को जेल से छोड़ दिया जो आज तक हमारे सिरदर्द बने हुए हैं .अफज़ल गुरु को समर्थ देने वाले सोचें की क्या किसी भारत वासी को यह फैसला करने का अधिकार है की वह कौन सा कानून मानेगा . तो कश्मीरियों मैं ऐसे क्या सुर्ख़ाब के पर लगे हैं .
मोदीजी ने २०१४ की बाढ़ मैं पुरे देश की सेनाओं को झोंक दिया पर कश्मीरी उससे भी नहीं पसीजे .
इतने सालों तक देश की हर सरकार सब तरह के प्रयास कर के देख लिया . कुत्ते की दम टेढ़ी की टेढ़ी ही रही .
इसलिए आज जो हुआ वह बहुत पहले होना चाहिए था पर इसके लिए राजनीतिक साहस नहीं था .
अब प्रश्न यह है की इस के क्या बुरे परिणाम होंगे और क्या सरकार उससे निपट सकती है ?
कोई कह रहा है की हमने पलेस्टाइन बनने का रास्ता खोल दिया है तो यह उन्हें क्यों नहीं लगा जिन्होंने रातों रात पंडितों को निकाला था . वह तो इतने बुरे कदम लेने से पहले नहीं डरे थे .
हल्ला तो अवश्य होगा .जिलानी , अब्दुल्ला व् मुफ्ती परिवार को तो लम्बे काल तक नजर बंद रखना पडेगा . मुख्य समस्या पाकिस्तानी आतंकवाद की है . इसमें बहुत से भारतीय अलगवादी भी मदद देंगे . उनसे निपटने के लिए अन्तराष्ट्रीय मदद की आवश्यकता पड़ सकती है .जब इतने उपाय कर लिए तो यह भी सही !
ज्योतिषी दिसम्बर मैं भारत पाक झड़प की भविष्य वाणी कर रहे हैं .
पर कल की कल देखि जायेगी आज तो देश बहुत खुश है .