ओरंगजेब शायद भारत का सबसे समर्थ , वीर व् कुशल शासक था जिसने काबुल से बंगाल व् कश्मीर से दक्षिण तक विशाल साम्राज्य पर राज किया। उसके काल भारत की समृद्धि का स्वर्णिम युग था. उसके काल मैं भारत का राजस्व फ्रांस के राजस्व से दस गुना अधिक था. किसी विदेशी आक्रांता ने भारत पर हमला करने की हिम्मत नहीं की. वह बहुत धार्मिक व् सरल जीवन बिताता था व् राजस्व का उपयोग व्यर्थ की शानो शौकत पर बिलकुल नहीं खर्च करता था. इतने गुणों के बावजूद वह प्रजा द्वारा भारतीय इतिहास के सबसे अधिक नफरत किये जाने वाला राजा था। उसकी कट्टरता व् धर्मान्धता ने उसे सबसे शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य का वास्तविक रूप से अंतिम शासक बना दिया।हिन्दू उसे सबसे अधिक नफरत करते हैं जबकि बहुत से मुसलमान विशेषतः पाकिस्तानी उसे परम आदर्श शासक मानते हैं।
इस विरोधाभास को गहराई से समझने की आवश्यकता है।
औरंगज़ेब द्वारा अपने पिता को बंदी बनाना व् सब भाइयों को मरवा देना हिन्दुओं को बहुत क्रूर व् अक्षम्य लगता है. पिता की आज्ञा पर भगवान् राम द्वारा राज पाट छोड़ने व् भरत समान भाई की खडाऊ को सिंहासन पर रख चौदह वर्ष राज्य चलाने को कोआदर्श समझने वाले इसे कभी भी स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसी ही परिस्थितियों मैं सं ९४२ मैं गुजरात के राजा मूलराज का अपने चाचा की ह्त्या करने के कारण वहां के ब्राह्मणों ने राज्याभिषेक करने से मना कर दिया था। राजा को दूर देशों से ब्राह्मणों को राज्याभिषेक के लिए बुलाना पड़ा था. हालाँकि हिन्दू इतिहास मैं अपवाद स्वरुप अशोक व् अजातशत्रु भी हैं। परन्तु उनकी संख्या बहुत कम है।
औरंगज़ेब ने अकबर से शाहजहाँ तक चल रही धार्मिक सहिष्णुता व् सामंजस्य की निति को त्याग कर शासन को शरीयत की हिसाब से चलाया। हिन्दुओं पर जज़िया कर लगाया। उनके त्योहारों के सार्वजानिक रूप मनाने पर रोक लगा दी। तीर्थ यात्रा पर कर दुबारा लगा दिया।परन्तु हिन्दू श्रद्धा के केंद्र काशी , मथुरा व् सोमनाथ मंदिर समेत हजारों मदिरों को को तोड़ने से जनता मैं व्यापक असंतोष फ़ैल गया। इसके उपरान्त कश्मीर व् अन्य जगह बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के प्रतिरोध करने पर सिख गुरु तेग बहादुर की नृशंस ह्त्या पर सिखों ने गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व मैं विद्रोह कर दिया।
औरंगज़ेब भारत को दारुल हर्ब से दारुल इस्लाम बनाने को अपना लक्ष्य मानता था. इन हिन्दू विरोधी नीतियों से सब तरफ असंतोष फ़ैल गया.ओरछा मैं राजा झज्जर सिंह , बुन्देल खंड मैं छत्रसाल , , महाराष्ट्र मैं शिवाजी , पंजाब मैं सिख ,दवूदी बोहराओं के प्रमुख की भी ह्त्या करवा दी गयी जिससे उनमें भी असंतोष था। सं १६७२ मैं सतनामियों ने विद्रोह कर दिया। दुर्गादास राठोड को राजा न मानने से राजपूतों मैं भी बहुत असंतोष फ़ैल गया। सं १६७२ मैं पश्तूनों ने भी विद्रोह कर दिया। इतने बड़े साम्राज्य के राजा होने के बावजूद औरंगज़ेब के अंतिम वर्ष विद्रोहियों से युद्ध करने मैं ही बीत गए। इन युद्धों ने मुग़ल साम्राज्य को बहुत कमज़ोर कर दिया और औरंगज़ेब की मृत्यु के साथ ही उसका टूटना शुरू हो गया।
अकबर की सबको साथ ले कर चलने की नीतियों से उसके शासन कालमें मुग़ल साम्राज्य का तीन गुना विस्तार हुआ और वह सबका प्रिय भी रहा.