Reduction In Death Rate During Lockdown In India : अब अर्थ व्यवस्था व् फेक्ट्रियों को मरने से बचाइये
यह अचम्भे की ही बात है की कोरोना काल मैं सारे देश मैं मृत्यु दर बढ़ने के बजाय घट गयी . एक ओर अगर चार हजार बूढ़े व् पुराने रोगी लोग दुर्भाग्य पूर्ण कोरोना से मरे हैं वहीँ उससे कहीं ज्यादा लोगों की जिंदगी एक्सीडेंट , हार्ट अटैक इत्यादि न होने से आश्चर्य जनक रूप से बच गयी . नीचे दिए लेख मैं इसके तथ्य दिए हैं . सन २०१८ मैं १५१००० लोग सड़क दुर्घटनाओं से मरे थे जो लगभग ४१३ लोग प्रतिदिन की औसत है . लेख के अनुसार अहमदाबाद मैं मृत्यु दर ६७ प्रतिशत गिर गयी , मुंबई मैं मार्च मैं मृत्यु दर २० प्रतिशत गिर गयी .कलकत्ता मैं अंत्येष्टि करने वालों के अनुसार रोज़ पाँच के बजाय सिर्फ तीन लोगों के लिए उनको बुलाया जाता है .बाक़ी देश की भी यही कहानी है.
इसलिए प्रधान मंत्रि जी के प्रयास अंजान मैं कोरोना से कहीं अधिक देश मैं अन्य कारणों से मृत्यु दर घटने मैं अप्रत्याशित रूप से सफल हो गए .
परन्तु नोट बंदी की ही तरह अगले दो साल तक देश की अर्थ व्यवस्था इस लॉक डाउन के दुष्प्रभावों से नहीं उबर पायेगी . हम सारा ध्यान खेती पर दे रहे हैं . खेती पर लॉक डाउन का इतना प्रभाव नहीं हुआ था . गाँव के गरीबों को जो राहत दी वह ठीक ही है परन्तु यदि सरकार ने बंद होती फक्ट्रियों व् स्टार्ट अप को नहीं बचाया तो देश तीन साल पीछे चला जाएगा . सरकार अभी भी इंदिरा गांधी जी के जैसे माई बाप वाला व्यवहार कर रही है . वह कारखानों व् फक्ट्रियों को काम धेनु, गरीबों की शोषक व् व् सेठों की जायदाद समझती हैं . और इसी लिए उनपर उलटे सीधे कानून थोपती रहती है . उदाहरण के लिए लॉक डाउन के लिए मजदूरों को पूरा वेतन देने का आर्डर लीजिये . मेरे मित्र ने एक कपड़ों की नयी फैक्ट्री मना रांची के पास मैं लगाईं है . वह यूरोप के लिए कमीजें सिलती थी . यूरोप ने कोरोना काल मैं सारे आर्डर कैंसिल कर दिए . न ही अगले छः महीने तक नए आर्डर मिलेंगे . वह बैंक का ब्याज कैसे देगी और कैसे मजदूरों की तनख्वाह देगी . एक ओर सरकार पूरी तरह वोट बैंक को सहलाती रहती है दूसरी और फक्ट्रियों को मदद देना पाप समझती है जब की अब फक्ट्रियाँ ही देश की नैय्या खेवनहार हैं .. कृषि तो देश के जीडीपी का तेरह प्रतिशत ही है . कारखाने ,खनन , कंस्ट्रक्शन , सॉफ्टवेर यही तो देश की रीढ़ की हड्डी हैं . बिरला, टाटा ,अम्बानी , अदानी तो अपना लोन माफ़ करवा लेंगे छोटे छोटे कारखानों के मालिकों को कौन बचाएगा .प्रवासी मजदूरों की तरह ही , सरकार को खुल कर, बंद होती फक्ट्रियों को आर्थिक रूप से मदद देनी चाहिए जिससे कोई फैक्ट्री कोरोना व् लॉक डाउन के चलते बंद न हो . कोरोना ने नहीं बल्कि सरकार ने लोगन की जान बचने के लिए लॉक डाउन का आर्डर दिया था . इसके लिए फैक्ट्री मालिक दोषी नहीं हैं . लोगों की जान बचने के लिए फक्ट्रियों की जान नहीं ली जा सकती .यदि लॉक डाउन ने उनको बंद होने की कगार पर ला दिया है तो उनको भी आर्थिक सहयता देना सरकार का दायित्व है. जैसे सरकार ने प्रवासी मजदूरों को खाना मुफ्त मैं दिया है वैसे ही लॉक डाउन से आर्थिक रूप से कंगाल होती फक्ट्रियों का सरकार को लोन की तीन महीने की किश्त व् तीन महीने का ब्याज अनुदान से दे देना चाहिए बशर्ते इससे फैक्ट्री पुनः उठ खडी होगी. This should not be available to shopkeepers who are otherwise a very powerful lobby in this government .
इस काम को बाबुओं के ऊपर नहीं छोड़ा जाय क्योंकि वह तो लहरों के मुंशी की तरह बैल से भी दूध निकाल कर छोड़ेंगे .नहीं तो इसके दुरूपयोग का डर दिखायेंगे . दुरूपयोग तो झूठे राशन कार्डों का , झूठे बिलों का , झूठी हाजिरी का भी होता है . इससे ठीक काम करने से नहीं रुक सकते . सरकार को वाम पंथियों को साफ़ साफ़ समझाना चाहिए की छोटे व् मझोले कारखानों के मालिक बिरला टाटा तो नहीं हैं परन्तु देश की नयी पूंजी हैं . पहले ही टैक्स व् हज़ारों इंस्पेक्टरों के चलते कम सेकम दस हज़ार उद्योगपति देश छोड़ चुके हैं . यह पलायन देश के लिए घातक है . इनके मुकाबले सरकारी बाबु किसी काम के नहीं होते हैं .
इधर एक और नया शगूफा छोड़ा गया है . चीन छोड़ कर निकलने वाली फक्ट्रियों को भारत मैं लाना है . गरीबी हटाओ के समान यह भी बहुत अच्छा नारा है पर इसमें कितने वर्ष लगेंगे पता नहीं . अभी तो जो देश मैं चल रहा था और कोरोना मैं बंद होने वाला है उस को बचाओ .
इसलिए अब सरकार व् मीडिया का पूरा ध्यान अर्थव्यवस्था को पुनः सुचारू बनाने पर होना चाहिए .
Mystery of India’s lower death rates seems to defy coronavirus trend
India’s apparently lower death rates stand in contrast to what has been seen elsewhere.
MUMBAI/AHMEDABAD: Parts of India have recorded dramatic falls in mortality rates after a nationwide lockdown was imposed to fight the new coronavirus, suggesting there has not been an undetected surge in virus-related deaths.
All over the world, mortality rates are being scrutinised to determine the true impact of the Covid-19, which emerged in China late last year and is known to have infected more than 2.7 million people globally, with nearly 190,000 deaths.
While death rates in some countries have risen sharply in recent weeks, in India the opposite seems to be happening, at least in some places, leaving hospitals, funeral parlours and cremation sites wondering what is going on.
“It’s very surprising for us,” said Shruthi Reddy, chief executive officer of Anthyesti Funeral Services, which operates in the eastern city of Kolkata and the southern tech hub of Bengaluru.
The company handled about five jobs a day in January but has only had about three a day this month.
“We’ve declared employee pay cuts if revenue falls below a threshold,” Reddy said.
Other numbers tell a similar story.
Central Mumbai, home to some 12 million people, saw deaths fall by about 21% in March compared with the same month of 2019, according to municipal data.
Overall deaths plummeted 67% in Ahmedabad, the biggest city in PM Narendra Modi’s home state of Gujarat, over the same period.
Data from at least two other cities, along with accounts from state health officials, show a similar pattern. Half a dozen funeral businesses and crematoriums also reported slumps in business, especially in April.
“If we’re not seeing an increase in deaths, the suspicion that there may be more COVID-19 fatalities out there is not true,” said Giridhar Babu, professor of epidemiology at the Public Health Foundation of India.
FEWER ACCIDENTS
Modi imposed a lockdown of India’s 1.3 billion people on March 25 in a bid to stop the spread of the coronavirus, which has infected some 23,077 people, killing 718 of them, according to the latest figures.
India has tested about 525,000 people, meaning some 4% were positive. In the United Sates, about 18% of tests are positive, according to the COVID Tracking project.
India’s apparently lower death rates stands in contrast to what has been seen elsewhere.
The Netherlands recorded about 2,000 more deaths than normal in the first week of April, for example, while in Indonesia’s capital of Jakarta the number of funerals rose sharply in March.
Some towns in Italy also saw a jump in recorded deaths.
Indian doctors, officials and crematorium employees suspect the lower death rate is in large part attributable to fewer road and rail accidents.
“Road accident cases, and even patients with alcohol or drug abuse, stroke and heart attacks have been coming in fewer numbers,” said Dr Himanta Biswa Sarma, health minister for the northeastern state of Assam.
Accidents on India’s chaotic roads killed more than 151,400 people in 2018, according to official data, the world’s highest absolute number.
The coronavirus lockdown, which is due to end on May 3, will cut road deaths by at least 15% this year compared with 2018, Paresh Kumar Goel, a director at the Ministry of Road Transport & Highways, said.
With passenger trains halted, fatalities from all-too-common rail accidents have also plunged. In Mumbai alone, for example, more than half a dozen people typically die every day on the rail network.
FEWER MURDERS TOO?
Neeraj Kumar, who is in charge of a crematorium on the banks of the holy Ganges river in Uttar Pradesh state, said victims of crime were also not being brought in.
“We used to get at least 10 accident-related bodies every day and many related to murder cases. But after the lockdown we’re only receiving natural death cases,” Kumar said.
The site used to perform up to 30 cremations a day but in the month since March 22, only 43 people had been cremated, Kumar said after leafing through the crematorium’s record book.
But the lower rates might also reflect difficulties in reporting deaths during the lockdown, officials said.
“There could be an increase when the lockdown ends,” said Dr Bhavin Joshi, a senior health department official with the Ahmedabad Municipal Corporation.
Requests for India-wide data from the national registrar went unanswered, while an official at the New Delhi Municipal Council said they could not provide numbers.
Reuters was also unable to obtain data for the state of West Bengal, where some doctors have accused the government of understating coronavirus deaths.
Only a state-appointed committee is allowed to declare that a patient has died from the virus