Poorly Drafted Farm Laws : किसानों ने देश को चंपारण को भावी नक्सली गाँधी व जनता को धन्ना सेठों की गुलामी से बचा लिया
देश में खेती के तरीकों मैं आमूल चूल परिवर्तन करने को सरकार के इरादों को देश के किसानों ने धराशयी कर दिया . इसके लिए देश की जनता को सदा के लिए किसानों आभारी होना चाहिए . उन्होंने अपनी ही नहीं बल्कि देश की जनता की भूख व् धन्ना सेठों की गुलामी से रक्षा की है . अगर यह आन्दोलन न हुआ होता तो २०३५ मैं कोई नक्सली गांधी दुबारा चंपारण मैं स्वदेशी धन्ना सेठों की ज़मींदारी से मुक्ति का हिंसक आन्दोलन करने को मजबूर हो जाता .
नोटबंदी व् जी एस टी की तरह सरकार के कथित इरादे नेक थे . पर जी एस टी व् नोट बंदी जो देश की बर्बादी की है उससे देश को उबरने मैं दस साल से ज्यादा ही लग जायेंगे . इसी तरह सरकार ठीक कह रही है कि भारत में खेती मैं आधुनिक तकनीक लाने की आवश्यकता है . भारत की एक एकड़ की उपज विश्व के मुकाबले बहुत कम है . ऍफ़ सी आई के गोदामों मैं बहुत खाद्य सामग्री बर्बाद हो जाती है .सब्जी व् फलों की फसल मैं बहुत ज्यादा दिन न रख पाने के कारण बहुत बर्बादी हो जाती है .इसे कोल्ड स्टोर की एक श्रंखला से बचाया जा सकता है . उन्नत किस्म के बीज आयात किये जा सकते हैं . व्यापारिक फसलों से किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है . फ़ूड प्रोसेसिंग से बहुत आय हो सकती है .इसके अलावा देश मैं सिचाई के लिए पानी की कमी होने वाली है . नयी ड्रिप टेक्नोलॉजी बहुत कम पानी से खेती हो सकती है . पर ड्रिप प्रणाली मंहगी है . मुफ्त बिजली व् सस्ते रासायनिक खाद के चलते ट्यूबवेल से सिंचाई कर चावल का बहुत उत्पादन किया जा रहा है जो उनकी ज़मीनों को खराब कर रहा है .ज़मीन के नीचे पानी का स्तर भी बहुत तेज़ी से घट रहा है. इन सब को सुधारने के लिए किये सरकार द्वारा सुधार नहीं हो पा रहा है . इसलिए सरकार खेती मैं बड़ी बड़ी कंपनियों को आने देना चाहती है .
सरकार की इच्छाएं ठीक हैं पर धन्ना सेठ तो बिना विकास करे फायदा कमाना भी तो चाह सकते हैं जिसे पुरानी भाषा मैं जमाखोरी व काला बाजारी कहते थे और जो हमने २००६ मैं गेहूं व् २०१४ मैं दाल के साथ होता देखा है . जीएसटी व नोट बंदी की ही तरह ही सरकार इन कानूनों के दुरूपयोग के खतरों से बेखबर है या कम आंक रही है .परन्तु यह देश के लिए कहीं अधिक घातक सिद्ध हो सकते हैं और सरकार ने दुरूपयोग से कोई बचाव का रास्ता भी नहीं रखा है . याद रहे की अकेले पश्चिम बंगाल मैं नोट बंदी के समय ख़बरों के अनुसार २६००० करोड़ रूपये जन धन खातों मैं जमा कर दिया गया था . इसी तरह का दुरूपयोग नए कानूनों का भी हो सकता है और सरकार को इन संभावनाओं को पहले से ही सोचना चाहिए था .
परन्तु सीधी भाषा मैं इन नए कानूनों से सरकार जनता व किसानों की आढतियों जैसे छोटे चूहों से रक्षा के लिए र्कोपोरेट के परम विषैले कोबरा साँपों को कानून की टोकरी मैं छुपा कर ला रही थी . यह कोबरा सांप चूहों के नुक्सान को तो अवश्य कम कर देंगे . परन्तु चूहे तो थोड़ा सा नुक्सान कर सकते थे परन्तु महा धन्ना सेठों जैसे नागों की काटी जनता तो पानी भी नहीं मांग पायेगी . इन जहरीले साँपों के डर से चूहे तो क्या किसान भी अपनी जमीन छोड़ने को मजबूर हो जायेंगे .गांधीजी के नील की खेती करने वालों के खिलाफ चंपारण आन्दोलन से कहीं अधिक भयंकर नुक्सान लालच वश यह धन्ना सेठ कर सकते हैं . भला हो किसानों का जिन्होंने देश को इन नागों के चुंगल से बचा लिया . अन्यथा २०३५ मैं किसी नक्सली गांधी को व्यापक हिंसक आन्दोलन के सहारे इन नागों की ज़मींदारी खत्म करने आना पड़ सकता था .
यह नहीं है की चूहे मारने की और दवाएं नहीं थीं पर सरकार के कुछ लोग कोबरा के जहर का व्यापार भी करना चाहते थी . इसके लिए उनहोंने पूरे देश की खाद्य सुरक्षा को भी दांव पर लगा दिया . अन्यथा किसानों की सामान्य मांगें क्या कानून बनाने वाले बाबुओं को पहले नहीं पता थी .सरकारी बाबू नहीं समझ पा रहे की ज़मीन व खेती किसानों के लिए जीवन मरण का प्रश्न है . वह इस पर सरकारी बाबुओं या धन्ना सेठों पर विश्वास नहीं कर सकते . मित्रवत व्यवहार करने वाला पुराना जाना पहचाना आढतिया किसानों के लिए फालतू का रौब ज़माने वाले बैंक मेनेजर , दरोगा या या तहसील दार से ज्यादा प्रिय है .जो किसान मुश्किल से फसल मंडी तक ला पाता है वह सैकड़ों मील जाकर उसे क्या बेचेगा ? यह सारी वैश्विक बाज़ार की कल्पना छोटे किसान के लिए आधारहीन है .फिर रिलायंस ने जिओ के लिए जो सारी टेलिकॉम कंपनियों की दुर्गती की है वह जग विदित है . सब की सब या तो बंद हो गयीं या भयंकर उधार मैं हैं .जनता भी देख रही की कभी १९९ रूपये वाली प्लान अब कहीं अधिक मंहगी है . यही हाल गेहूं और चावल का होगा . खाद्यान्नों मैं पहले लम्बे समय से प्रतिबंधित सट्टे की वाजपेयी जी के काल मैं खोलने की अनुमति देने से , शरद पवार जी के काल मैं सरकारी बेईमानी द्वारा गेहूं व बाद मैं दालों की कीमतों जो व्यर्थ की वृद्धि हुयी थी वह आज भी सबको याद है . प्रोपर्टी डीलर की तरह धन्ना सेठ हर साल कीमत बढ़ा कर जनता का ही खून चूसेंगे . पारिवारिक समझौते के बाद भी गैस की कीमत दुगनी करने वाले इन बड़े धन्ना सेठों पर कौन आश्रित होना चाहेगा जो हर सरकार को अपनी जेब में रख सकते हैं .
यह सच है कि एम् एस पी या समर्थन मूल्य फायदा मुख्यतः पंजाब व हरयाणा के बड़े किसानों को हो रहा है या थोड़ा बहुत मध्य प्रदेश को होने लगा है. बाक़ी देश मैं तो गेहूं मात्र १ू६०े० रूपये क्विंटल बिक रहा है . अधिकाँश किसानों को इसका फायदा नहीं मिल रहा है . पर पहले ही शाहीन बाग़ से जूझ रही सरकार क्या एक और खलिस्तान आन्दोलन झेल पायेगी . पंजाब जैसी राज्य सरकारें मंडी टैक्स पर चलती हैं . उनका विरोध उचित है विशेषतः क्योंकि पंजाब को इस क़ानून से कोई फायदा नहीं होगा . राज्यों की आय जीएसटी से पहले ही कम हो गयी है . प्राइवेट सेक्टर को मंडी टैक्स व एम् एस पी से अलग क्यों रखा गया है ? उस पर भी मंडी टैक्स लगना चाहिए . परन्तु यदि बराबर टैक्स लग गया तो इस बिना लाभ के सौदे मैं कोई सेठ पूंजी क्यों लगाएगा ? पूरे वित्तीय मॉडल को ठीक से परखा नहीं गया है और बहुत जल्दी मैं जबरदस्ती कानून बना दिया गया है . सोने में सुहागा तो न्यायालयों को इसके बाहर रखना था . इससे तो सेठों का काटा पानी भी नहीं मांग पायेगा . सेठ को तो फायदे से मतलब होगा विकास से नहीं .असली बात है की गत वर्षों मैं सरकार के चुनिन्दा सर्वज्ञानी बड़े बाबू भी अब डंडे के जोर पर अकेले सरकार चलाने के इतने आदि हो गए हैं कि सब की सहमती से व्यापक संपर्क के बाद कानून बनाने की पुरानी प्रक्रिया को तो तिलांजली ही दे दी गयी प्रतीत होती है . इसी गुप चुप जबरदस्ती के चलते सरकार की सब बड़ी स्कीम एक के बाद एक असफल हो रही हैं . सरकार व देश को जगाना जरूरी था .
इस लिए भीषण सर्दी में ठिठुर कर .देश को बचाने वाले किसानों का देश की जनता को शत शत धन्यवाद देना चाहिए .
सरकार के इरादे नेक हैं . इन समस्यायों का सरल इलाज़ भी संभव है . किसी धन्ना सेठ को दो लाख टन से ज्यादा अनाज खरीदने की अनुमति नहीं होनी चाहिए जिससे कोई एक सेठ देश की सरकार व् जनता को ब्लैक मेल न कर सके . जमीन गिरवी लेने पर रोक होनी चाहिए . फसलों का बीमा शत प्रतिशत होना चाहिए. सरकार को पंजाब हरयाणा के किसानों को पानी के दुरूपयोग के खतरों के बारों में व्यापक प्रचार कर के धीरे धीरे ट्यूब वेल से पैदा किये चावल की खरीद कम करनी चाहिए . ऍफ़ सी आई द्वारा गेहूं की खरीद सब राज्यों से की जानी चाहिए . इन सब के करने लिए राजनैतिक पटुता की आवश्यकता है , पुलिसया डंडे की नहीं . राज्य सरकार के सहयोग के बिना यह संभव नहीं है . सरकार आज कल राज्यों के क्षेत्र मैं हस्तक्षेप कर रही है और कोर्ट सरकार के क्षेत्र मैं . इन परिस्स्थितियों मैं सामंजस्य फिर स्थापित करना होगा .
अब की परिस्थितियों में, प्रारम्भ मैं सरकार का वर्तमान प्रयास ,स्वेच्छा से बिना जोर जबरदस्ती के जितना हो सके बिहार जैसे राज्यों से शुरू किया जा सकता है जहां मंडी कानून पहले से ही निरस्त हो चुका है . यह एक और रूप से भी लाभदायक होगा . पूरे देश में नोट बंदी की तरह कोई बड़ा भूचाल नहीं आयेगा और छोटे मोटे झटके सहे जा सकते हैं . अंततः गहन चिंतन के बाद एक व्यापारिक रूप से उपयोगी व सर्व हितीय न्याय पूर्ण क़ानून बनाने के लिए सब को साथ लेकर चलना ही श्रेष्ठ होगा .
जो देश सरकार व किसानों के सम्मलित प्रयास से पहली हरित क्रांति ला कर देश को खाद्यान का निर्यातक देश बना सकता है वह दूसरी हरित क्रांति के लिए इतना असहाय क्यों हो गया की उसे धन्ना सेठों की बैसाखियों के बिना यह असंभव दीख रही है. सरकार को इस पर गंभीर पुनर्विचार करना चाहिए .