कोरोना तांडव या प्लासी को वापिसी : उत्तर उन प्रश्नों के जिन्हें आप चाह कर भी डर से नहीं पूछ पा रहे
An Interview With Rajiv Upadhyay by Meenu
- प्रश्न १ – उपाध्याय जी आपका खरी खरी कार्यक्रम के तीसरे एपिसोड में स्वागत है . आज हम उन प्रश्नों को उठाएंगे जो देश की जनता का ह्रदय व्यथित किये हुए हैं .
- प्रश्न – १ सामान्य प्रश्नों पर आ जाते हैं जो जनता के मन को दुखी किये हुए हैं . यह बताइये कि इसी वर्ष जनवरी मैं ही तो प्रधान मंत्रीजी ने दावोस के अभिभाषण में कहा था की भारत ने कोरोना पर विजय पा ली है . भारत की अर्थ व्यवस्था ११ प्रतिशत की दर से बढ़ने की बात हो रही थी . सारा विश्व भारत का आभारी हो गया था क्योंकि सिर्फ भारत वैक्सीन गरीब देशों को दे रहा था . ब्राज़ील के राष्ट्रपति ने हनुमान जी की संजीवनी वाली तस्वीर भी ट्विटर पर भेज दी थी . तो सिर्फ तीन महीने मैं ऐसा क्या हो गया की सारा विश्व का मीडिया प्रधान मंत्री की बुराई करने लगा . देश मैं कोरोना की मौतें आसमान छूने लगीं . अस्पताल मैं बेड नहीं रहे . ऑक्सीजन की कमी से अस्पताल तक मैं लोगो की मौत होने लगी . और बड़े तो बड़े अब की बार तो युवा व् बच्चे भी इसका शिकार हो गए ?
- उत्तर मीनू जी उत्तर से पहले मैं श्रद्धांजली देना चाहूँगा उन ६2० डोक्टरों को जो कोरोना के मरीजों का इलाज़ करते हुए स्वयं काल ग्रसित हो गए .
दुसरे बड़ी विनम्रता से मैं यह भी कहना चाहूंगा की किसी विषय पर चर्चा उसकी सम्पूर्णता मैं होनी चाहिए किसी छोटे से हिस्से पर नहीं . भारत मैं ३१ मई तक कोरोना के 2.81 करोड़ केसेस हुए जिन मैं २.५ करोड़ मरीज़ इलाज़ से ठीक हो गए या करा रहे हैं . कुल मृत्यु ३.२१ लाख हुईं . हम सब मृतुयों से अत्यधिक दुखी हैं परन्तु सरकार के प्रयासों से २.२ करोड़ लोगों का इलाज़ संभव हो पाया यह भी सत्य है जिसे हमें ध्यान मैं रखना चाहिए. अब सन्दर्भ के लिए पह्ले विश्व व् भारत मैं कोरोना की पहली लहर की थोड़ी चर्चा कर लें —- )
विश्व मैं कोरोना की पहली मृत्यु चीन मैं 11जनवरी २०२० को हुई थी को हुयी थी .
24 मार्च २०२० को को प्रधान मंत्री ने पूरे देश मैं लोक डाउन लगा दिया था . तब तक भारत मैं मात्र ५०० कोरोना केस थे . अनलॉकिंग ३० मई से शुरू हुई थी जो दिसम्बर तक चली . पहली लहर बहुत धीरे चढी और बहुत धीरे गयी .इस मैं भारत मैं सबसे ज्यादा दैनिक केस सितम्बर मैं लगभग एक लाख थे . और सबसे अधिक १२०० मौतें १५ सितम्बर को हुईं थीं . धीरे धीरे केस कम होने शुरू हो गए और सबसे कम ११००० केस ८ फरवरी ’२१ को हुए थे . पड़ोसियों में पाकिस्तान की हालत हमसे कुछ खराब थी बांग्लादेश व् श्री लंका हमसे अच्छे थे .
केस कम होते देख हमें लगा की हमने कोरोना पर विजय पा ली है . इस बीच भारत ने ६.५ करोड वैक्सीन निर्यात भी किये और एक वैक्सीन मैत्री अभियान भी सफलता से चलाया जिस मैं हमने पड़ोसियों व् ९९ देशों को वैक्सीन भेजी .इसके अलावा हमने कोरोना के लिए पीपीई किट, ग्लव्स , इंजेक्शन सिरिंज , मास्क , दवाएं इत्यादी सब विश्व भर मैं सप्लाई किये . इससे भारत विश्व मैं एक मेडिकल महाशक्ति के रूप मैं उभरा जो नितांत आवश्यक था . पर इस सब रंग मैं भंग डालने के लिए कोरोना की दूसरी लहर आ गयी जिसने हमें राजा से रैंक बन दिया .
- प्रश्न २ — पर यह तो समझाएं कि कोरोना रोग तो वही था तो भारत मैं इसकी दूसरी लहर इतनी घातक क्यूँ हो गयी जब की अमरीका मैं दूसरी लहर पहली से छोटी थी
मीनू जी आपने ठीक ही प्रश्न किया है . इसके लिए पहले भारत व् अमरीका की पहली व् दूसरी का ग्राफ देख लें
देख लें . जैसा की आप देख सकती हैं की जबकी अमरीका की दूसरी लहर पहली से छोटी थी .परन्तु भारत मैं दूसरी लहर अत्यंत घातक सिद्ध हुयी . इसके क्या कारण थे यह तो हम अंत तक देखने के बाद ही कह सकेंगे परन्तु इसका प्रमुख कारण कोरोना का B1.167. DOUBLE MUTANT strain ही था . यह स्ट्रेन बहुत ज्यादा संक्रामक था और बहुत कम समय मैं फेफड़े तक पहुँच जाता था . यह पहले महाराष्ट्र मैं October ’२० मैं पकड़ा गया था .कहते हैं की दिल्ली के ४८ प्रतिशत केस इसकी वजह से हुए हैं . कोरोना की प्रथम व् दूसरी लहर के फैलने की गति का कम्पेरिजन देखें . दूसरी लहर मैं मरीज ज्यादा दिन तक अस्पताल मैं रहे इसलिए नए केस के लिए बीएड खाली नहीं हुए . और उनको ऑक्सीजन की भी जरूरत ज्यादा हुयी और मौतें भी ज्यादा हुयी .
६.प्रश्न -३ — – विपक्षी दल एक स्वर में प्रधान मंत्री जी को दोष दे रहे हैं की जब भारत मैं स्थिति इतनी भयंकर थी तो हमने अपनी वैक्सीन का निर्यात क्यों किया ? क्या यह निर्यात रोक कर हम देश को इस त्रासदी से बचा नहीं सकते थे .
उत्तर – मीनू जी मैं राजनीती पर कोई कमेंट नहीं करूंगा . परन्तु वैक्सीन के सम्बन्ध मैं पूरे तथ्य आप के व् दर्शकों के सन्मुख अवश्य रखूंगा .विश्व मैं सिर्फ पांच देशों ने अपनी वैक्सीन बनायी है अमरीका , रूस , इंग्लैंड , चीन व् भारत . इसलिए पहले तो हमारे वैज्ञानिक विशेषतः भारत बायो टेक के डा कृष्णमुर्ती और सीरम इंस्टिट्यूट के पूनावाला बधाई के पात्र हैं जिन्होंने भारत को विकसित देशों के समकक्ष ला दिया . अमरीका ने Pfizer व् Moderna की वैक्सीन को दिसम्बर २० मैं मान्यता दी . इंग्लैंड ने अस्त्राज़ेनेका को 30 दिसम्बर 2020 मैं मान्यता दी . भारत ने भी अस्त्रा ज़ेनेका की Serum Institute द्वारा निर्मित भारतीय वैक्सीन कोविशिएल्द व् भारत बायो टेक द्वारा निर्मित कोवाक्सिन को जनवरी ’२० मैं मान्यता दे दी . मान्यता देने मैं भारत ने देरी नहीं की थी . उसी समय भारत सरकार ने एक करोड़ कोविशिएल्द वैक्सीन का आर्डर SIL को दे दिया . विश्व मैं सबसे तेजीसे एक करोड़ वैक्सीन भारत ने ८५ दिनों मैं लगाई जब की अमरीका ने ८९ , चीन ने १०२ दिन लिए थे .
परन्तु समस्या भारत की विशाल जनसंख्या , सीमित बजट व् सीमित स्वास्थ्य सुविधाओं का है . जापान व् कोरिया मैं एक लाख आबादी के लिए अस्पतालों में १२००-१३०० बेड्स हैं . भारत से तो बांग्लादेश भी आगे है जहाँ एक लाख आबादी के लिए ८० अस्पताल मैं बेड हैं जबकि हमारे यहाँ मात्र 55 हैं . तो कहाँ जापान के १३०० और कहाँ भारत के ५५ बेड ! हमारे यहाँ एक लाख आबादी पर 90 डॉक्टर हैं जब की इंग्लैंड मैं 280 डॉक्टर हैं . इसलिए हमको अपनी गरीबी की वास्तिव्क्ताओं का पता होना चाहिए .
अब वैक्सीन का दूसरा पहलू भी देखें . हमें वैक्सीन मात्र भाग्यवश व् सिर्फ एक व्यक्ति Adaar Poonawala की पहल से मिल गयी है .कोविशिएल्द वैक्सीन भारत की एक प्राइवेट कंपनी सीरम इंस्टिट्यूट इंग्लैंड की कंपनी अस्त्र ज़ेनेका के लिए से ठेके पर बना रही थी . जिसकी शर्तों के अनुसार उसे प्रारंभ मैं 40 करोड़ वैक्सीन इस वर्ष बना कर इंग्लैंड की कंपनी को देनी थी जिसे बाद मैं १०० करोड़ कर दिया . इसके बाद कंपनी ने Novavax से 100 करोड़ डोज़ का ठेका लिया . वैक्सीन पर इतराने वाले बडबोले देशवासियों को पता होना चाहिए कि न तो वैक्सीन बनाने की तकनीक व् न ही त इसका रॉ मेटीरिअल भारतीय था . भारत सरकार ने इस कम्पनी को वैक्सीन विकसित करने के लिए कोई सरकारी आर्डर , अनुदान या सहयता भी नहीं दी थी . तो इन परिस्थितियों मैं भारत सरकार का वैक्सीन पर कितना अधिकार था ? यदि कंपनी अस्त्राज़ेनेका को ठेके की शर्तों के हिसाब से वैक्सीन न देती तो बड़ा दंड भोगती और भविष्य मैं भारत पर कोई विश्वास नहीं करता . इन कठिन परिस्थितियों मैं भी आज तक भारत मैं 22 करोड़ वैक्सीन लग चुकी हैं जो एक बड़ी उपलब्धि है . सरकार की चूक हुयी कि शुरू मैं बहुत कम आर्डर दिए जिस की चर्चा हम बाद मैं करेंगे .
परन्तु मुख्य बात याद रखिये बीमार को बचाने के लिए इलाज चाहिये , दवा चाहिए, ओक्सिजन चाहिए . वैक्सीन कोरोना रोग की दवा नहीं है . यह सिर्फ रोग ग्रसित होने से बचा सकती है . इससे बीमार मरीज़ ठीक नहीं किये जा सकते . इस लिए भारत की ६.६ करोड़ वैक्सीन यदि न भी निर्यात होतीं तो भी १२० करोड़ देशवासी बिना वैक्सीन के ही रहते . इससे जनता की जान बचने मैं य ऑक्सीजन या बेड की समस्या सुलझाने मैं कोई मदद नहीं मिलती .
९ प्रश्न ४ – अंतर राष्ट्रीय मीडिया व विपक्षी दल प्रधान मंत्री जी को कुम्भ मेला व् चुनावी रालियों को न रोकने के लिए दोषी ठहरा रहे हैं . उनके अनुसार दूसरी लहर की तीव्रता व् मौतों के लिए के लिए चुनावी मीटिंग व् कुम्भ मेला उत्तरदायी हैं . क्या आप इस से सहमत हैं . यदि हाँ तो क्या चुनाव व् कुम्भ रोके नहीं जा सकते थे ?
उत्तर – मीनू जी सरकार जो भी कहे मेरा मत स्पष्ट है कि इन परिस्थितियों में कुम्भ मेला सिर्फ नागा व् अन्य साधुओं व् अधिक से अधिक दिन मैं एक हज़ार लोगों के लिए आयोजित होना चाहिए था . किसी को भी अपनी धार्मिक आस्था के लिए किसी दुसरे का जीवन खतरे में डालने का अधिकार नहीं है . हरिद्वार के व्यापारी कुम्भ से ४००० करोड़ की आय का अनुमान लगा रहे थे जो धुल धूसरित हो गयीं . इसी प्रकार चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है की उसकी जिम्मेवारी चुनाव करवाने की है . कोरोना से बचाव के लिए निर्देशों का पालन करना राज्य सरकारों का दायित्व है . परन्तु आज यदि श्री सेशन चुनाव आयोग के अध्यक्ष होते तो कोरोना के फैलते ही बिना किसी की परवाह किये वह चुनावी रेलियों की संख्या पर प्रतिबन्ध लगा देते .
परन्तु इस सब के बावजूद सिर्फ कुम्भ या चुनावी रालिओं को कोरोना के लिए पूर्णतः जिम्मेवार ठहराना बिलकुल अनुचित है . इनका योगदान है तो, पर कम है .
क्यों? मैं आपको समझाता हूँ .
पहले भारत के साइज़ को समझिये . कोरोना से पहले सवा दो करोड़ लोग रेल से रोज़ यात्रा करते थे जिसमें सवा करोड़ यात्री सब अर्बन होते थे . दिल्ली में 40 लाख लोग मेट्रो से रोज़ सफ़र करते थे . पूरे देश मैं इतने ही लोग बसों से भी सफ़र करते होंगे . चान्दिनी चौक या सब्जी मंडी मैं लोग कंधे से कंधा रगड़ते हुए चलते है . इस देश मैं बिना मास्क के संक्रमण रोकना असंभव है .
यदि आप कोरोना के विस्तार के ग्राफ को देखेंगी तो जिन २१ राज्यों मैं चुनाव नहीं थे वहां कोरोना जल्दी फैलने लगा था और जिन पांच राज्यों में चुनाव थे वहां पंद्रह दिन बाद फैलना शुरू हुआ . चित्र मैं बाएं तरफ वह राज्य हैं जहाँ चुनाव नहीं हुए और दायीं तरफ वह राज्य हैं जहां चुनाव हुए . आप व् दर्शक स्वयं इन दोनों ग्राफ मैं अंतर देख सकते हैं .
इसी प्रकार बंगाल का यह चरण बद्ध ग्राफ व् कोरोना के केसेस देखिये और इस के बाद झारखंड का ग्राफ देखिये .अंतर साफ़ स्पष्ट हो जाएगा . बाकी राज्यों की भी ऐसी ही कहानी है .
कोरोना की दूसरी लहर महाराष्ट्र से शुरू हुई थी जहां न चुनाव था न कुम्भ . इसके पूरे देश मैं फैलने का ग्राफ देखिये . २५ जनवरी को २० डिस्ट्रिक्ट , २५ फरवरी को ३३ डिस्ट्रिक्ट , २५ मार्च को ८९ डिस्ट्रिक्ट और २५ अप्रैल को ४७१ डिस्ट्रिक्ट .
यही हाल कुम्भ मेले का है . कुम्भ मेला जनवरी से अप्रेल तक होना था . कोरोना के चलते इसे शुरू मैं ही काट कर अप्रैल मैं एक महीने का कर दिया गया था .उस पर भी प्रधान मंत्रीजी के अनुरोध पर बैसाखी के बाद तो इसे जनता के लिए लगभग समाप्त ही कर दिया था . यदि आप उत्तरा खंड व् देहरादून हरिद्वार मैं कोरोना के विस्तार को देखें व् महाराष्ट्र के नागपुर या नासिक मैं कोरोना का प्रकोप देखें तो पाएंगी की कुम्भ काल मैं नागपुर या नासिक मैं कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ .अन्य राज्यों की भी यही परिस्थति है . दिल्ली , मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों ने कुम्भ से लौटने वालों पर प्रतिबन्ध की घोषणा कर दी थी . इस लिए इन राज्यों से बहुत लोग हरिद्वार नहीं गए .
प्रश्न ५ — उपाध्याय जी आप के उत्तर तो ईशोपनिषद के नेति नेति यानी नहीं नहीं की भांति प्रतीत हो रहे हैं . यदि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया व् विपक्षी दलों की कुम्भ व् चुनाव की विवेचना ठीक नहीं है तो आप ही दूसरी लहर के इतनी जल्दी फैलने का कारण बताएं ? सरकार ने ऑक्सीजन की सप्लाई व् दवाओं की उपलब्धि को क्यों सुनिश्चित नहीं किया ?
उत्तर — मीनू जी जिस अन्तराष्ट्रीय मीडिया की आप बात जिसमें न्यू यॉर्क टाइम्स , एकोनोमिस्ट , सी एन एन, बी बी सी इत्यादि शामिल हैं वह तो सदा से राष्ट्रवादी भारत के विरुद्ध रहे हैं विशेषतः BBC.
भारत अपने वैक्सीन मैत्री प्रोग्राम से एक अंतर्राष्ट्रीय मोरल पॉवर के रूप मैं उभरा था जब की अमरीका , युरोप इत्यादि की शक्तियों का अत्यंत स्वार्थी रूप जगत को दीख गया. इससे जर्मनी जैसे कई देश बहुत जल गए थे .
पर आपके दो प्रश्न दवा व् ऑक्सीजन मैं यदि हॉस्पिटल बेड्स की कमी जोड़ दी जाय तो पूरे व्यापक जन आक्रोश के कारण उसमे आ जाते हैं . इस लिए तीन विषयों पर चर्चा आवश्यक है .
देश मैं ऑक्सीजन बनाने के करीब बारह बड़े व् कई सौ छोटे छोटे कारखाने हैं और उसके ट्रांसपोर्ट के लिए १२०० विशेष ठन्डे ट्रक हैं . कोरोना से पहले देश में मात्र ७५० टन मेडिकल ऑक्सीजन का उत्पादन होता था. देश का ऑक्सीजन का सारे उत्पादन का अस्सी प्रतिशत वेल्डिंग , स्टील व् अन्य उद्योगों के लिए होता था . पहली कोरोना लहर में ऑक्सीजन की खपत ३००० टन हो गयी . मार्च तक सरकार को अमरीका की तरह दूसरी लहर में रोजाना नए केसेस की संख्या अधिक से अधिक एक लाख होने का अनुमान था . सरकार ने ३२००० वेंटीलेटर और १०२००० ऑक्सीजन सिलिंडर का आयात किया और राज्यों को बाँट दिया . १५ मार्च को देश मैं नए केस 25000 हो गए . मार्च अंत मैं उद्योग 3000 टन मेडिकल ऑक्सीजन की खपत के लिए तैयार था . पर ३१ मार्च को 72,000 और दस अप्रैल को 1,50,000 केसेस ने सबको सकते मैं डाल दिया . कोरोना का एक मरीज़ दिन मैं ८६००० लीटर ओक्सिजन खर्च कर देता है . सब उद्योगों की ऑक्सीजन बंद कर देश का मेडिकल ऑक्सीजन उत्पादन ९००० टन कर दिया गया . अब ऑक्सीजन ट्रांसपोर्ट की समस्या उभर कर आ यी .पहले ट्रक दो सौ किलोमीटर तक जाते थी अब १२०० किलोमीटर तक भी जाने लगे . रेलवे और एयरफोर्स को ऑक्सीजन की सप्लाई मैं लगा दिया . १२०० नाइट्रोजन व् आर्गोंन के ट्रकों को ऑक्सीजन के ट्रकों में बदला . पर ७ मई २०२१ को रिकॉर्ड ४.१४ लाख नए केस आये .
इतनी बड़ी त्रासदी के लिए भारत तैयार नहीं था . यही कहानी दवाओं की है . जब चार लाख नए केस रोज़ आने लगे तो देश में हर चीज़ की कमी हो गयी . भयंकर कमी में हर आवश्यक वस्तु का ब्लैक मार्किट शुरू हो गया . ऑक्सीजन सिलिंडर ५५ हज़ार व् रेम्देस्विर के पांच इंजेक्शन दो लाख रूपये में बिक गए .
देश की राजधानी दिल्ली की हालत सबसे अधिक खराब थी . १९ अप्रैल को दिल्ली मैं पूर्ण लॉक डाउन लगा दिया गया जो उसके बाद हर राज्य सरकार ने लगाना शुरू कर दिया . ४९ दिन के लॉक डाउन ने दिल्ली रोज़ के नए केसेस की संख्या को 29000 से घटा कर मात्र ४०० कर दिया—–. देश के नए केस आज भी १.५ लाख हैं व् दैनिक मृत्यु 3000 हैं जो पिछली कोरोना लहर के अधिकतम केस एक लाख से अब भी ज्यादा है . देश अब ९००० टन मेडिकल ऑक्सीजन बना रहा है . स्टील समेत सब ओक्सिजन पर आश्रित उद्योग बंद हैं .
पर असली बात यह है कि चाहे वह ऑक्सीजन हो या दवाएं या अस्पताल के बेड, चार लाख केस रोज़ आने से सारा तंत्र चूर चूर हो गया
प्रश्न – ६ — उपाध्याय जी देखिये आप तो सरकार पर हर आरोप को गलत सिद्ध कर रहे हैं तो फिर यह बताइये कि सरकार की किस चूक से कोरोना इतना बढ़ गया अन्यथा क्या यह अकाल ,चेचक हैजे की तरह मात्र एक प्राकृतिक आपदा है?
उत्तर – मीनू जी अब हम सब तथ्यों को जान चुके हैं और अब सही विवेचना कर सकते हैं . केंद्र व् राज्य सरकारों की बहुत बड़ी गलतियां हें जो इस मिथ्या आरोप प्रत्यारोप के धुंए मैं छुप गयीं हैं .
कोरोना की दूसरी लहर ने हमारी शासन प्रणाली की हर कमजोरी को उजागर कर दिया है.
पहली सबसे बड़ी गलती तो सरकार में सर्व व्याप्त बाबूगिरी की है . कोविद Mutant सितम्बर मैं England मैं दक्षिण अफ्रीका का अक्टूबर मैं व् ब्राज़ील का दिसम्बर मैं प्रकाश मैं आया था .भारतीय वैज्ञानिकों ने कोरोना के Genome sequencing का महत्व समझाते हुए मैं इसके ५ प्रतिशत केसेस को गहन अध्ययन करने का का प्रस्ताव रखा . सरकारी बाबू तब गिरते कोरोना केसेस के नशे मैं थे . इस सरकार मैं वैज्ञानिकों , इन्जीनीरों डोक्टरों का कोई महत्त्व नहीं है . सर्व ज्ञानी व् सर्व शक्तिमान बाबूओं को २१ दिसम्बर समझ आया और दस प्रयोगशालाओं / लेब्स को स्टडी करने का कार्य सौंपा गया . पर उनको पैसा नहीं दिया गया दिया और ३१ मार्च को पैसा रिलीज़ किया गया . राज्य सरकारों को सैंपल फ्रिज वाले वाहनों में प्रयोगशालाओं में भेजने थे . किसी राज्य सरकार ने इसे मह्त्व् नहीं दिया . इस लिए समय रहते हम यह स्टडी नहीं कर पाए . फरवरी तक ८०००० के बदले मात्र ३५०० सैंपल टेस्ट किये जा सके .
दूसरी गलती हमारी वैक्सीन सम्बन्धी बड़े व् खतरनाक निर्णय शीघ्र न ले पाने की है . यह हमारे बाबुओं की राष्ट्रीय समस्या है .
राष्ट्रपति ट्रम्प साहसिक व्यक्ति थे . उन्होंने अपने वैज्ञानिकों पर विश्वास किया कि वैक्सीन के अलावा इस बीमारी का कोई उपचार नहीं है . JULY 2020 मैं उन्होंने Pfizer कंपनी को १० करोड़ नयी प्रकार की वैक्सीन बनाने का आर्डर दे दिया व् १.९ बिलियन डॉलर पैसा एडवांस मैं दे दिया . Pfizer ने उनके विश्वास का आदर रखते हुए अमरीका को जनवरी मैं विश्व की सबसे अच्छी वैक्सीन दे दी . रूस के राष्ट्रपति Putin एक और साहसिक नेता हैं . उन्होंने अपने वैज्ञानिकों पर विश्वास कर बिना पूरे टेस्ट के देश मैं अगस्त मैं ही वैक्सीन लगाना शुरू कर दिया . इंग्लैंड मैं बोरिस जॉनसन ने और जर्मनी की चंसलोर मेर्केल ने भी बिना किसी प्रूफ के Bio N को प्फिजेर के साथ मिलकर वैक्सीन बनाने व् ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी व् अस्तरा ज़ेनेका को पैसे दे दिए .
हमारी सरकारी बाबू संस्कृति मैं तो इस दुस्साहस के लिए प्राण दंड दे दिया जाता . १२५ करोड़ की आबादी वाले देश के लिए मात्र एक करोड़ वैक्सीन का जनवरी ’२१ मैं आर्डर दिया जो ऊंट के मुंह मैं जीरा भी नहीं था . इस आर्डर के बाद दूसरा आर्डर पूरा करने के लिए भी तो समय चाहिए . सारा विश्व सीरम इंस्टिट्यूट से वैक्सीन मांग रहा था . कंपनी कैपसिटी बढाने के लिए सरकारी अनुदान चाह रही थी . सरकार ने APRIL ’21 मैं 10 करोड़ कोविशिएल्द व् ५ करोड़ कोवाक्सिने का आर्डर दिया . इसके लिए तीन हज़ार करोड़ की ग्रांट दी .कोई भारतीय बड़ा बाबु आज के माहौल मैं दस करोड़ रूपये के लिए भी कोई खतरा नहीं उठाएगा . सर्व व्यापी डर से ग्रस्त यह देश कभी भी कोई बड़ा फैसला नहीं ले पायेगा .इस लिए जब पानी सर नाक के ऊपर चला गया तो सारे फैसले ले लिए गए .फिर चीन की बेकार वैक्सीन को छोड़ कर कोई वैक्सीन देने वाला था ही नहीं .
हर उद्योगपति ,वैज्ञानिक व् इंजिनियर या विशेषग्य को हीन व् बेईमान मानने का दुखद परिणाम देश भुगत रहा है .
पर इससे भी बड़ी भूल तो राज्य सरकारों ने की . दिल्ली का ही उदाहरण लें . दिल्ली ने लॉक डाउन १९ अप्रैल’२१ को लगाया जब दैनिक नए केस 25000 तक पहुँच चुके थे . पहली लहर के लिए जो अस्थायी अस्पताल बनाये गए थे वह फरवरी मैं तोड़े जा चुके थे . अस्पतालों मैं एक्स्ट्रा बेड नहीं हैं साकार को पता था . तो लॉक डाउन ५ अप्रैल को क्यों नहीं लगाया जब दैनिक केस ५००० थे और पिछली लहर की अधिकतम सीमा दिल्ली में नवम्बर मैं ८५०० थी . यदि यह लॉक डाउन पहले लगा दिया होता तो दिल्ली की यह दुर्दशा न होती .
पर ऐसा करने पर अंतर्राष्ट्रीय अखबारों को भारत को व् मोदी जी को घेरने का मौक़ा नहीं मिलता .
पर केंद्र सरकार भी दोष मुक्त नहीं है . जब पिछली बार हमने १८९७ के पुराने एपिडेमिक डिजीज एक्ट को लागू कर सब फैसले केंद्र मैं ले लिए थे तो अब की बार राज्य सरकारों पर क्यों आश्रित रहे ? राज्य सरकारें इस काम के लिए पुर्णतःअनुपयुक्त हैं और युद्ध के समय उन पर कोई बड़े फैसले नहीं छोड़ने चाहिए .
दूसरी बड़ी गलती अपने को सक्षम नेता सिद्ध करने के लिए कोरोना के झूठे आंकड़ों बनाने की थी . निरा झूठ परोसा जाने लगा . गंगा में बहती लाशों के साथ सरकारों की विश्वसनीयता भी बह गयी और अब वह कुछ भी कहें जनता उन पर विश्वास नहीं करेगी.
प्रश्न ७ — क्या आपको इसमें कोई अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र भी नज़र आता है ?
उत्तर — मुझे चीन को व् उस के किसी मित्र देश को इतने बड़े नुक्सान न होने पर संदेह है . कृत्रिम कोरोना वायरस की इजाद चीन की वुहान की लेब मैं ही हुयी है . अंतर्राष्ट्रीय ड्रग कंपनियां वैक्सीन से मोटा लाभ कमाने की उम्मीद मैं थीं जिन्हें भारत ने तोड़ दिया . उन्ही के कारण ब्राज़ील को कोवाक्सिने का आर्डर कैंसिल करना पडा .इसे व रूस की बेहतर वैक्सीन स्पुतनिक को अभी तक WHO का अनुमोदन नहीं मिला है .
कोरोना का कहर संपन्न राष्ट्रों पर क्यों इतना अधिक है . बांग्लादेश भारत से इतना अधिक सुरक्षित क्यों है ? क्या नए स्ट्रेन प्राकृतिक हैं या कोई सुपर केरीयर लाये हैं ?
यह सब तो राष्ट्रीय व् अंतर राष्ट्रीय जासूसी संस्थाएं ही बता सकती हैं . पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की चीन को मदद देने के लिए गिरफ्तारी के बाद शायद पूर्ण सत्य कभी नहीं पता लगेगा . मैं तो इस सब मैं षड्यंत्र मानता हूँ पर यह मेरी नितांत व्यक्तिगत राय है और मेरे पास कोई सबूत भी नहीं हैं .
इसी प्रकार मुझे दिल्ली मैं मुंबई से इतने अधिक केस व् मौत होने का कारण नहीं समझ आया जबकी कोरोना की दूसरी लहर तो महराष्ट्र से शुरू हुयी थी और मुंबई दिल्ली से बड़ा शहर है . इसी तरह अलीगढ विश्व विद्यालय के सत्रह प्रोफेसर की मौत रहस्मयी प्रतीत होती है . उस की समय रहते जेनोसोम स्टडी होती तो शायद कुछ पता चलता . अब नए आन्ध्र प्रदेश व् बंगाल वैरिएंट पकडे गए हैं . उनका तो कम से कम वैज्ञानिक अध्ययन आवश्यक है कि वह कहाँ से आये और कितने घातक हैं . कहीं हम लॉक डाउन हटने के बाद कोरोना की तीसरी लहर मैं न फंस जाएँ .
प्रश्न ८ — तो अब आखिर मैं यह भी बता दीजिये कि इस सब आपको प्लासी का युद्ध कहाँ नज़र आ गया?
मीनू जी प्लासी के युद्ध मैं सिर्फ दो सौ गोरे सैनिकों ने भारतियों को लालच से बाँट कर हरा दिया था और दो सौ साल हम पर राज्य किया . आज जब मैं ३ लाख मौतों के बाद भी राजनितिक स्वार्थ वश, मीर जाफ़र की तरह षड्यंत्रकारी व् झगड़ते हुए नेताओं को देखता हूँ, तो मुझे भविष्य के किसी अचानक हुए बायोलॉजिकल युद्ध मैं देश की हार ही नज़र आती है . देश में तमिलनाडु की डी एम् के सरकार ने कोरोना पर राजनीती से ऊपर उठ एक सर्व दलीय कोरोना समिति बना कर देश को अच्छा मार्ग दिखाया है जिसका केंद्र मैं भी अनुकरण किया जाना चाहिए .
१४ प्रश्न १० उपाध्याय जी अब कोरोना फिर कम होता नज़र आ रहा है . अब हम क्या करें की यह त्रासदी दुबारा न हो ?
मीनू जी अभी भी देश दैनिक सवा लाख केस से कोरोना पहली लहर के शीर्ष जितना है . जब हम देश मैं पांच हज़ार केस प्रतिदिन पर आ जाएँ तब ही इस प्रश्न को पूछिएगा . कोई नहीं जानता कि तीसरी लहर कब आयेगी . अगले एक साल तक बिना धोये कुछ न खाएं और आवश्यक होने पर घर के बाहर मास्क पहन कर ही निकलें चाहे वैक्सीन ले रखी हो . अच्छा तो होगा कि हम इस समय का उपयोग तीसरी लहर को रोकने के लिए करें .
अभी तो मैं सिर्फ इश्वर , जनता व् सरकार से प्रार्थना ही कर सकता हूँ .
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Khari Khari – Episode 3: Covid Pandemic or Return of Plassey? – YouTube