भ्रष्टाचार नियन्त्रण लिए म्युनसिपालिटी से संसद तक एक जिले मे पांच साल में एक बार और एक दिन ही चुनाव हों और दुसरे अविश्वास प्रस्ताव के बाद राष्ट्रपति या गवर्नर शासन लागू हो .
इस सच को हर एक अर्थ शास्त्र समझने वाला पाठक जानता है कि पिछले दस वर्षों में भारत में आर्थिक विकास की दर बहुत घट गयी है और बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है . इसके लिए कोरोना ही जिम्मेवार नहीं है . कोरोना से पहले सन २०१८-१९ की आर्थिक विकास दर सरकार के नए माप दंडों से भी मात्र लगभग ५.5 प्रतिशत थी और पुराने मनमोहन सरकार के फोर्मुले से ४.५ प्रतिशत ही थी . यह सिर्फ एन डी ए सरकार की समस्या नहीं है क्योंकि यू पी ए सरकार के अंतिम वर्षों मैं भी विकास दर थम ही गयी थी और २०१२ की विकास दर मात्र 5.5% थी. सिर्फ आर्थिक विकास ही नहीं भारत का निर्यात भी सन २०१२ मैं ३०६ बिलियन डॉलर था जो घटते घटते मात्र २७० बिलियन रह गया था . सिर्फ दस साल बाद पिछले वर्ष यूक्रेन युद्ध के चलते पहली बार चार सौ बिलियन पार कर सका है. बेरोजगारी भी बहुत बढ़ गयी है . औद्योगिक प्रगति के थम जाने से बिजली का उत्पादन व् खपत दोनों की बढ़ोतरी में कमी आयी है .
दूसरी तरफ सरकार ने खुद स्वीकार किया है की पिछले छः वर्षों में बैंकों ने ग्यारह लाख करोड़ रूपये के ऋण माफ़ किया हैं .किसी चन्दा कोचार को गिरफ्तार कर कोई बेवकूफ नहीं बनेगा क्योंकि यह प्रश्न अनुत्तारित है की विडियो कोन के वेणु गोपाल धूत दिए गए ३९००० करोड़ रूपये गए कहाँ ? सवाल क़र्ज़ देने वाले का का नहीं है वह तो बीस बैंकों ने दिया था सवाल पैसे डकारने का है ? स्टाम्प घोटाले के अभियुक्त तेलगी ने सज़ा के बाद जेल जाते हुए पूछा था कि क्या मैं २३०० करोड़ रूपये खा सकता हूँ ? पर हमारी राजनितिक व्यवस्था ने एक तेलगी की जेल में रहस्य माय मृत्यु के बाद इस २०००० करोड़ रूपये के घोटाले को भुला दिया .विजय माल्या , नीरव मोदी सरीखे कितने सरकारी पैसे खाने वाले ऐश कर रहे हैं . परन्तु वह भी तेलगी की तरह कितना पैसा खुद खा सकते हैं ?
अंततः इस सुरसा के मुख की तरह बढ़ते भ्रष्टाचार की जड़ हमारी चुनावों पर खर्च हो रही अपरिमित धन राशि ही है .विशेषतः वोट खरीदने की प्रथा आने के बाद हर पार्टी को हज़ारों करोड़ रूपये चाहिए. इतनी राशि कमीशन खोरी से नहीं कमाई जा सकती इस लिए स्टाम्प घोटाला व् चारा घोटाले की तरह सीधे सरकारी खजाने को लूटा जाता है या कि जो खबर आठ वर्ष पहले आयी थी कि पाकिस्तान से भारतीय मुद्रा छाप चुनावों के लिए आनी थी . सरकार ने न तेलगी घोटाले के धन का पता लगाया न ही बैंकों के कर्जों का राज़ कभी खुलेगा. इन सब को सुलभ करने के लिए सरकारें पसंदीदा अफसरों कू खोजती हैं और सारा तंत्र भ्रष्ट हो जाता है .
इसी तरह देश की अर्थ व्यवस्था को सुधरने के लिए जिन साहसिक क़दमों की आवश्यकता है वह हर वर्ष किसी राज्य मैं हो रहे चुनावों के चलते नहीं लिए जा पा रहे हैं . भारतीय फैक्ट्री व लेबर के कानूनों को बदलना बहुत आवश्यक हो गया है . इनके चलते बंग्लादेश व् विएतनाम हमसे आगे निक्स्लते जा रहे हें . हमारी लेबर प्रोडक्टिविटी बहुत कम है .
इसलिए सबसे पहले चुनावों की संख्या घटाना आवश्यक हो गया है . एक जिले में एक दिन नगर निगम से लेकर संसद तक सारे चुनाव होने चाहिए .एक महीने मैं सरे देश मैं चुनाव संपन्न हो जाएँ . पांच वर्ष तक कोई और चुनाव नहीं होने चाहिए. यदि कोई निगम या विधान सभा या लोक सभा में मैं दो से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जाय तो राष्ट्रपति या गवर्नर शासन कागू कर दिया जाय पर दुसरे चुनाव पांच साल बाद ही हों . इससे भ्रष्टाचार कम होगा और आर्थिक प्रगति की दर भी बढ़ेगी .अंततः इससे बेरोजगारी भी पांच साल में कम होगी .
इस लिए सभी दलों को इस पर साहस कर देश में लागू करने को समर्थन देना चाहिए .