नवोदित मध्यम वर्ग प्रेम : अश्वत्थामा हतो नरो न कुंजरो सरीखे आयकर रिबेट का सम्पूर्ण सच : देश की पांच प्रतिशत जनता ही सारा टैक्स देती है और नयी टैक्स स्कीम को तो सिर्फ पांच लाख लोगों ने चुना था .
नयी सरकार ने इस कार्यकाल के अंतिम बजट मैं ,आठ साल बाद , तेज़ी से गरीबी की और बढ़ते नोट व वोट विहीन वेतन भोगी मध्यम वर्ग पर , बहुत देर से बहुत थोड़ी ही कृपा दृष्टि डाली इसके लिए धन्यवाद करना आवश्यक है .पर आयकर पर सरकार व् समर्पित मीडिया जो महभारत के अश्वत्थामा हतो नरो न कुंजरो जैसे अर्ध सत्यों का अति प्रसार कर रही है वह उचित नहीं प्रतीत होता . अरुण जेटली जी के कार्य काल से वित्तीय मामलों मैं जनता को अर्ध सत्य बताने की व भ्रम प्रसारित करने की परम्परा जो शुरू हुयी उसको समाप्त करने का साहस होना चाहिए क्योंकि इससे अब सरकार की विश्वसनीयता ही समाप्त हो रही है .
यह बढ़ा लिखा वेतन भोगी वर्ग सरकार की इस वैश्विक कठिन काल की उपलब्धियां व वित्तीय मजबूरियाँ समझ सकता है . युक्रेन युद्ध , corona काल व महंगाई को नियंत्रण करना बहुत बड़ी उपलब्धी थी. देश के विकास के लिए सड़क , रेल , बिजली , बंदरगाह बनाने की आवश्यकता का भान है .पर देश की आर्थिक प्रगति के फल से सिर्फ उसको ही क्यों वंचित रखा जा रहा है . सिर्फ उसकी रोटी छीन कर दूसरों को क्यों दी जा रही है ? पिछले आठ सालों मैं उसके साथ जो अन्याय हो रहा है उस का कोई प्रतिकार क्यों नहीं कर रहा ? सिर्फ इस लिए की कि यह वर्ग संगठित नहीं है और न ही इसके पास नोट या वोट हैं . उदाहरण के लिए वर्ष के बजट को ही देखें .
दो वर्ष पहले सरकार ने एक नयी टैक्स स्कीम निकली ( New Tax Regime ) जिसमें पांच लाख तक की आय को करमुक्त कर दिया परन्तु सारी रिबेट हटा दीं . पुरानी टैक्स स्कीम मै जिस ने घर का लोन लिया हो , किराये के घर मैं रहता हो , मेडिकल इन्सुरांस लिया हो और १.५ लाख तक बचत करता हो उसको दस लाख तक की आय पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था . इसलिए सरकार की नई स्कीम सिर्फ नए नौकरी मैं आये बच्चों को तो ठीक थी पर बाक़ी पारिवारिक जिम्मेवारियों वाले वर्ग के लिए बेकार थी . इसलिए अत्यधिक प्रचार के बावजूद पहले वर्ष ५.५ करोड़ कर दाताओं मैं से सिर्फ पांच लाख लोगों ने नयी स्कीम को चुना . इसकी अत्यंत नापसंदगी को हटाने के लिए सरकार ने इसमें इस वर्ष कई नयी सुविधाएं दे दीं . इसमें ५०००० हज़ार रूपये का स्टैण्डर्ड डिडक्शन भी दे दिया . इसके अलावा सात लाख तक की आय को करमुक्त कर दिया .टैक्स स्लैब भी घटा दिए परन्तु पुरानी स्कीम के अंतर्गत जिसके के पास लोन है , इन्सुरांस है , HRA है , १.५ लाख की सेविंग है उसे कोई फायदा नहीं दिया .इसलिए अधिकाँश मध्यम वर्ग के करदाताओं को बहुत कम फायदा हुआ . बाकी लोगों को कोई भी फायदा नहीं मिला . वृद्ध लोगों को सेविंग स्कीम की राशी १५ से तीस लाख की जिससे थोड़ा सा ब्याज और मिल जाएगा .
नई स्कीम मैं बाकी आय पर भी टैक्स स्लैब कम कर दिया . परन्तु आज भी अधिकाँश वेतन भोगी , ३५ वर्ष से अधिक आयु वाला वर्ग पुरानी स्कीम पर ही चलेगा और उसे इस बजट मैं भी पूर्णतः निराश कर दिया . आठ साल से प्रतीक्षा कर रहे इस वेतन भोगी वर्ग पर ही कुछ कृपा दृष्टि कर इस के लिए तीस प्रतिशत कर का स्लैब ही पंद्रह लाख रूपये कर देना चाहिए था . इसके विपरीत अत्यधिक अमीर आय वालों को कर मैं राहत दी है . इस सरकार के आधार ,सेठ व दूकानदार चिन्तक, मध्यम वर्ग को दिए हुए हर फायदे की कीमत तो निकाल लेते हैं पर बाकी सब को दिए जाये फायदों को नज़रंदाज़ कर देते हैं .
अब इस को सोचिये की १३० करोड़ की आबादी वाले इतने बड़े देश जो आज विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार उत्पादक बन गया है वहां सिर्फ ५.५ करोड़ लोग ही टैक्स देते हैं . और इनमें से असल मैं मात्र ९५ लाख लोग ही इनकम टैक्स की अधिकाँश धन राशि देते हैं .व्यापारी , वकील , डॉक्टर , चार्टर्ड अकाउंटेंट तो नाम मात्र का टैक्स देते हैं . वह तो पार्टियों को चन्दा देते हैं, उनके केस लड़ते हैं , टैक्स रिटर्न भरते हैं इसलिए उन पर हर किसी की कृपा दृष्टि बनी रहती है . किसान तो सबसे बड़ा वोट बैंक हैं और श्रद्धेय भी हैं . इसरो या DRDO का वैज्ञानिक या सेना का अफसर या रेलवे का इंजिनियर तो किसी पार्टी के काम का नहीं इसलिए नयी वास्तविकता में वह किसी का प्रिय नहीं होता . यही नए भारत का कटु सत्य है .वेतन भोगी वर्ग बाकियों से औसतन तीन गुना अधिक टैक्स देता है जब की उसकी आय वेतन भोगियों से दुगनी होती है. इस अन्याय की कोई चर्चा नहीं करता !
अंततः अमरीका की तरह यह वर्ग गरीब होता जाएगा और यह राष्ट्र्हित मै नहीं होगा .
आज के स्वार्थी समाज की जो व्यापक आदर्श हीनता है , नोट व वोट परस्ती में देश की प्रगति के वास्तविक आधार ,पढ़े लिखे वर्ग की उपेक्षा उसी का एक प्रतिबिम्ब है .अंततः देश ,सरकार व राजनीती पर स्वार्थी सेठों और व्यापारियों के वर्चस्व की बहुत बड़ी कीमत चुकाएगा . सरस्वती उपासकों की इस अवहेलना से तीस वर्षों बाद भारत भी अमरीका की तरह बुद्धिमान व्यक्तियों के प्रयासों व् योगदान से वंचित हो जाएगा.
अब तो गीता के ‘ यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानी भाव भारतः ‘ के भगवान् कृष्ण के उदय की प्रतीक्षा ही हमारी नियति है और अब कोई विकल्प नज़र नहीं आता .