२०२४-२५ के महंगाई बम से जनता को बचाने के लिए सरकार को खाद्यान्नों का निर्यात अगली फसल के आने तक बंद रखना चाहिए – सेठों,व्यापारियों व भ्रष्ट बाबुओं की गलत सलाह से बचें !
पिछले वर्ष रूस युक्रेन युद्ध के चलते विश्व के खाय संकट को सुलझाने के लिए भारत ने 7.2 मिलियन टन गेहूं का निर्यात कर दिया . इससे कीमतों पर बहुत प्रभाव नहीं पडा क्योंकि हमारे गोदामों में गेहूं चावल के पर्याप्त भण्डार थे . परन्तु बढ़ती कीमतों को भांप कर व्यापारियों ने किसानों से सारा गेहूं खरीद लिया और सरकार मात्र 18.7 टन गेहूं जन वितरण के लिए खरीद सकी जब की २०२१ मैं ४३ मिलियन टन खरीदा था . जल्दी गर्मी आ जाने के कारण गेहूं का उत्पादन दस प्रतिशत घाट गया . घट गया था . खाद्यानों का भण्डार घट कर मात्र १८ मिलियन टन रह गया . इसलिए सरकार ने बाद में रूस से गेहूं आयात करना पड़ सकता है .
इस साल फिर जल्दी गर्मी बढ़ने के आसार दीख रहे हैं . हमारे गोदाम भी खाली हैं और खाद्यान गेहूं का भण्डार मात्र १८ मिलियन टन है . इस लिए यदि हमने गेहूं का निर्यात खोल दिया तो जब कम फसल आने पर कीमत बढेंगी तो FCI फिर गेहूं बाज़ार से नहीं खरीद पायेगी . इस कमी से पहले गेहूं के और उसके कारण सब खाने की चीज़ों के दाम बेतहाशा बढ़ जायेंगे . चुनाव के बाद २०२४- २५ में कीमतें बेहद बढ़ जायेंगी .
व्यापारियों को अपने मुनाफे से मतलब होता है इस लिए प्रेस में लालच वश लिखे गए लेखों द्वारा किसानों के हित में निर्यात खोलने की मांग की जा रही है जो नितांत झूठ है . इससे सिर्फ व्यपारियों को फायदा होगा किसान को नहीं ! पर बेतहाशा मंहगाई से देश की अर्थ व्यवस्था व विशेषतः मध्यम वर्ग को बहुत नुक्सान होगा .
पर स्वार्थी सेठ , व्यापारी व भ्रष्ट भ्रष्ट बाबु के मुंह में असीमित कमाई का खून लग गया है . इसी वर्ग ने २००५ – 6 में मनमोहन सरकार के कृषि मंत्री शरद पवार के कार्य काल में नयी गेहूं की फसल के समय मई में FCI गेहूं की खरीद रोक दी थी . मजबूर किसानों ने औने पौने दाम पर फसल व्यापारियों को बेच दी थी . उन्होंने रेल के बजाय ट्रक से छोटे शहरों में सीधा माल बहुत मंहगे दामों पर बेच दिया . बाद मैं FCI ने गेहूं की खरीद के दाम बढ़ा दिए . व्यापारियों ने अपना स्टॉक मंहगे दाम पर सरकार को बेच करोड़ों का फायदा कमा लिया . बाद में गेहूं का आयात करना पडा था .परन्तु इसी बीच गेहूं के दाम बढ़ने से सारे खाने के सामान के दाम बढ़ गए . मनमोहन सरकार इस मंहगाई को रोकने के लिए उद्योगों के ऋण की ब्याज दर बढ़ा दी .इस एक गलत कदम से देश की अर्थ व्यवस्था को बेहद नुक्सान हुआ . श्रीमती वृंदा कराट ने इस घोटाले का पूर्ण विवरण तब अपने एक लेख में दिया था .How the Wheat Crisis of 2006 Was Created Aspects of India’s Economy No. 42 (rupe-india.org)
यही कहानी २०१४ मैं अरहर दाल के साथ हुयी . भारत मैं फसल कम हुयी थी और विश्व मैं दाल की कीमत बढ़ने लगी थी . भ्रष्ट बाबुओं ने दाल के आयात का टेंडर मंहगे दाम के नाम पर ख़ारिज कर दिया .जब तक नया टेंडर निकाल कर खरीदते अरहर के दाम आकाश छू गए और देश मैं 2015 मंहगाई का बम फिर फूट गया .
Surge in 2015 Pulse Prices Was a Result of Cartellisation (thewire.in)
अब फिर यही वर्ग नए तर्क लेकर गेहूं के निर्यात खोलने पर सरकार को धोखा देना चाहता है .रूस युक्रेन के युद्ध के चलते यदि बेतहाशा मंहगाई बढी तो देश की अर्थ व्यवस्था फिर चरमरा जायेगी .
इस लिए सरकार जब तक नयी फसल से अपने गोदाम नहीं भर लेती तब तक खाद्यान्नों का निर्यात बंद ही रखना चाहिए .

