स्वार्थी व् ध्वस्त होती पारिवारिक व्यवस्था वाले पश्चिम को अब भारत को मानवीय दया धर्म पर ज्ञान देना बंद कर देना चाहिए : Stop Preaching India
भारत को अब स्वतंत्र हुए पचहत्तर साल हो गए हैं और वह आर्थिक, तकनीकी व् सामरिक रूप से एक समर्थ राष्ट्र है और उसकी हज़ारों वर्ष पुरानी श्रेष्ठ संस्कृति है।
परन्तु पश्चिमी देशो को अक्सर इसका भान नहीं रहता है और वह समय कुसमय बेवजह भारत को बच्चे की तरह व्यर्थ का ज्ञान देने से बाज़ नहीं आते। हमारी संस्कृति तो मृत्यु शैय्या पर पड़े रावण से भी चरणों के पास जा कर ज्ञान लेने की है। इसलिए हम किसी से कभी भी ज्ञान लेने को तैयार रहते हैं। पश्चिम अभी भी विज्ञान व तकनीकी ज्ञान का स्रोत है और हम सदैव उसे गुरु दक्षिणा देकर प्राप्त करने को तैयार रहते हैं। कभी अमरीका ने हमें 1965 मैं PL 420 का गेहूं देकर अकाल से बचाया था। हम उसके आज भी कृतज्ञ हैं। रूस ने बांग्लादेश के समय हमारी मदद की थी हम उसको भूले नहीं हैं। पर अब परिस्थितियां बदल गयी हैं। सोवियत संघ के पतन के बाद पश्चिमी राष्ट्रों में बहुत घमंड आ गया। इराक , सीरिया व् लिबिया का क्रूर व व्यर्थ का विध्वंस पश्चिम की नयी उपनिवेशवादी मानसिकता का द्योतक है। मौसम के बदलाव मैं भी अपनी अत्यधिक ऊर्जा की खपत को वास्तविक कारण मानने को नहीं तैयार हैं। कोरोना ने उनके स्वार्थी चरित्र को और उजागर कर दिया जब उन्होंने प्रगति शील देशों को एक साल बाद वैक्सीन दी। इसके विपरीत भारत ने गरीब देशों की समय पर मदद की और अति गरीब देशों को मुफ्त मैं वैक्सीन तक दी। इसी तरह रूस यूक्रेन की लड़ाई मैं भारत ने गरीब देशों को गेहूं चावल दिल खोल कर दिए।
इसलिए इन देशों को भारत को दया धर्म का प्रवचन देने का अब कोई अधिकार नहीं है। जैसे जैसे हम उन्नत होगा हमारा ‘वसुधैव कुटुंबकम व दया धर्म का मूल है’ वाला हिन्दू चरित्र बढ़ेगा। हमारी गुलामी हमारी सांस्कृतिक नहीं बल्कि सामरिक पराजय के कारण हुयी थी। इसलिए हम वास्तविक ज्ञान तो सदा लेने को तत्पर रहेंगे पर पश्चिमी राष्ट्र अपना पाखंडी उपदेश अब कहीं और दें!
भारत को अब इसकी आवश्यकता नहीं है।
एक और विषय है जिस पर पश्चिम अभी अपनी झूठी श्रेष्ठतः के खुमार में है। पारिवारिक बंधन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सामंजस्य पश्चिम ने खो दिया है। शिकार व जंगल से खेती पर आने पर मनुष्य ने पारिवारिक व्यवस्था विकसित की जिस में सब सदस्य कुछ खोते थे पर हर कोई उससे अधिक पाता था । समस्त मानव विकास मुख्यतः पुरुष की दें है। पुरुष सदियों से परिवार खींचने वाला बना बैल स्वेच्छा से बना रहा. हिप्पी संस्कृति , विकृत अति नारीवाद , समलैंगिकता ,भौतिकवाद और अब Wokeism ने पश्चिमी सभ्यता को अंत तक पहुंचा दिया है। कभी मानव संस्कृति को समस्त आधुनिक ज्ञान व् विज्ञान देने वाली सभ्यता अब विनाश के कगार पर है। जहाँ कभी राजा भी निर्वंश नहीं रहना कहते थे वहां अब हेरोइन बच्चे दासी से पैदा करवा रही हैं और बिना बच्चों के शादी करना चाहती हैं। आधे परिवार शादी के २५ वर्षों मैं टूट जाते हैं और वृद्ध उपेक्षित हैं जिसका मुख्य कारण नारी की बढ़ती असहिष्णुता व घमंड है।
पर पश्चिम अब भी व्यक्तिगत स्वंत्रता व् सामाजिक बंधनों मैं सामंजस्य बनाने की आवश्यकता को नहीं समझा है।और बजाय अपनी भूल को सुधारने के दूसरों को विषाक्त ज्ञान दे कर बिगाड़ रहा है। और हम मैं से पश्चिम के अंध भक्त बिना अपनी हीरे जैसी संस्कृति को पत्थर समझ कर त्याग रहे हैं। जो भारतीय हीरे का मोल जानता है वह भी सच बोलने से डर रहा है क्योंकि अधिकाँश मूर्खों ने , जो समृद्ध व प्रभाव शाली हैं और अक्सर पश्चिमी स्कूलों मैं पढ़े हैं , अपने पर प्रगतिशीलता का ठप्पा लगा लिया है और बाकी लोग यह चुप चाप मान चुके हैं।
अब समय परिवर्तन लाने का है। परन्तु बिना तात्कालिक चिंतन के मूर्खता पूर्ण ,दकियानूसी व रूढ़िवादी परिवर्तन बहुत घातक होगा। इस सदी के बड़े परिवर्तन की अगुवायी सिर्फ ज्ञानी वर्ग ही कर सकता है जिसे विश्व के इतिहास , अर्थवयवस्था , विज्ञान , कला ,तकनीकी ज्ञान व् भारतीय व अन्य सभ्यताओं की विस्तृत जानकारी हो।
इस परिवर्तन को असरदार तरीके से प्रस्तुत कर भारत पुनः विश्व गुरु बन सकता है और अभी भी उपयोगी पश्चिमी संस्कृति को विनाश से बचा सकता है ।
क्या भारत इस तरह का विश्व गुरु बनने के लिए तैयार है ?