After Copper Afghanistan Gives Oil Exploration Rights To China आखिर अफगानी मुर्गी भारतीय दाना खा कर चीन को अंडे क्यों देती है ?

After Copper Afghanistan Gives Oil Exploration Rights To Chinaआखिर अफगानी मुर्गी भारतीय दाना खा कर चीन को अंडे क्यों देती है                     Rajiv Upadhyay

पाठकों को याद होगा कि २००७ मैं जब अमरीका अफगानिस्तान को दुबारा बनाने के लिए बेतहाशा पैसा खर्च कर रहा था उसी समय वहां के एक मंत्री ने बड़ी रिश्वत लेकर विश्व के सबसे बड़ी ताम्बे की मेस अयंक खान को ३ बिलयन डॉलर मैं चीन को दे दिया।इस खदान से २०० बिलयन डॉलर का ताम्बा निकलने का अंदाज़ है।   सुनते हैं वह अफगानी मंत्री पैसा लेकर दुबई भाग गया। अफगान सरकार भी अपने मंत्री के दुस्साहस देख कर दंग रह गयी. अमरीका के तन बदन मैं तो इतनी आग लगी कि आज तक उसने वहां से ताम्बा नहीं निकलने दिया।  बहुत दिनोंके इंतज़ार के बाद चीन ने भी अपने उस अधिकारी को भर्ष्टाचार के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया।

अब एक नयी डील साईन  हुई है जिसके अनुसार वर्तमान तालिबान चीन को अमु दरिया के ४००० किलोमीटर क्षेत्र मैं तेल खोजने का ठेका दिया है। चीन अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता है पर उससे यह डील साईन कर उसे लगभग मान्यता दे ही दी है। अभी तक भारत , रूस चीन अमरीका इत्यादि किसी देश ने भी तालिबान को मान्यता नहीं दी है। फिर यह डील किस अधिकार से साईन की गयी ? उत्तर स्पष्ट है सिर्फ हम ही नहीं समझ पा रहे है।

प्रश्न यह है की हम तो सिर्फ गेहूं , चावल खिला कर मुर्गी को जिन्दा रखते हैं और अंडे वह चीन के घर जा कर क्यों दे देती है।  दूध हम निकालते हैं मलाई चीन खा लेता है। यही हाल नेपाल , बांग्लादेश ,श्री लंका इत्यादि का है।  चीन पाकिस्तान तक को सहायता भी गिरवी रख कर ही देता है।

हमें अपने दान से पुण्य क्यों नहीं प्राप्त होता और चीन बिना पुण्य के दान नहीं देता। चीन रिश्वत का उपयोग हर स्तर पर करता है। हम भाषण देते रह जाते हैं।

कौन ठीक है हम या चीन ? इसका विकल्प क्या है ?

हमसे कोई नहीं डरता और चीन से सब डरते हैं ? क्या चाणक्य या रामायण की चौपाई

भय बिन प्रीत न होत गोसाईं

से हमें कुछ सीखने की जरूरत है ?

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