भारत को किस कुचक्र में फंसाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय जाल फैका जा रहा है
इस बार जी – ७ की मीटिंग और उसके बाद जी – २० की मीटिंग की व अन्य कुछ घटनाएं कान खड़े करने वालीं हें .
जिस भारत का कुछ ही दिन पहले गाय के साथ अन्तरिक्ष क्लब मैं घुसने वाले कार्टून बनाने वाले अमरीका ने प्रधान मंत्री मोदी को राजकीय यात्रा का निमन्त्रण भेजा है जो पहले कभी नहीं हुआ.पापुआ न्यू गिनी
के प्रधान मंत्री उनके पैर छूते हें .ऑस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री उनका भव्य स्वागत करते हें .न्यूज़ी लैंड के प्रधान मंत्री उनसे मिलने पापुआ गिनी आते हें .ऐसा प्रतीत होता है की भारत के दिन फिर गए हें पर पैनी दृष्टि से गहराई में देखें तो बिलकुल उल्टी तस्वीर सामने आती है.
भारत को वीटो देने पर सब सुरक्षा परिषद् के सदस्यों ने मना कर दिया . जीई का F- 414 इंजिन भारत में बनाने की स्वीकृति अमरीकी सरकार रोके रखी है. फ्रांस और इंग्लैंड भी पूरी इंजन की सिर्फ तकनीक नहीं देना चाहते. सब हमें हथियार बेच कर फायदा लेना चाहते हें .
अमरीका ने हमारे निर्यात को विकासशील देशों को मिलने वाली छूट से अलग कर दिया . सऊदी अरेबिया , तुर्की , मिस्र जी- ७ की मीटिंग मैं कश्मीर नहीं आये .चीन हमारी हथयायी जमीन खाली करने से मना कर रहा है . भूटान भी चीन के हिंडोले पर बैठना चाहता है . नेपाल हम से आर्थिक सहयता लेता है पर बड़े हथियार चीन से खरीद रहा है . बांग्लादेश हमें ज़मीन से रास्ता नहीं दे रहा जब की हमने तीन बीघा मैं वर्षों पहले उसे रास्ता दे दिया . रूस भी चीन को व्लादिसतोव पोर्ट देने जा रहा है .ईरान तो पहले ही चीन की गोद मैं जा कर बैठ गया है .यूरोपियन यूनियन हमारे निर्यात पर कार्बन टैक्स लगाना चाह रही है . श्री लंका हम सी इतना पैसा लेकर भी जाफना पोर्ट नहीं बनाने दे रहा . अमरीका श्री लंका , नेपाल , पापुआ गिनी में बेस बनाना चाह रहा है जो हम भी चाहते थे .बर्मा ने हमसे गिफ्ट में पाया हुआ कोको द्वीप चीन को सैन्य उपयोग के लिए दे दिया जो अंडमान द्वीप कि बिलकुल पास है और हमारे लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकता है .. रूस भी हमें गैस व तेल अब सस्ते दाम पर नहीं देना चाह रहा है .वह रूपये में व्यापार भी नहीं करना चाहता है .अफगानिस्तान हमसे गेहूं लेकर ताम्बे इत्यादि की खानें चीन को दे देता है .
कुछ तो कहीं गलत है .क्या हम गुब्बारे कि तरह सिर्फ फूले हुए हें और असली ताकत नहीं है ?
मोदी जी ने भारत को उपनिवेश वाली परिस्थिति व मानसिकता से तो निकाल लिया परन्तु असली माल अभी भी दुसरे ही ले रहे हैं. हमारे विदेश मंत्री बहुत सक्षम हें. हमारे पास चीन जितना पैसा नहीं है पर तब भी भूटान नेपाल बंगला देश को तो हमने बहुत पैसा दिया है . चीन संभवतः बड़ी बोली लगा देता हैऔर रिश्वत से नेताओं को खरीद लेता है .पश्चिमी देश अब पहले से बहुत कम मदद देते हें पर अब भी राजा बने हुए हें.
इन सब को देख कर यह सिद्ध हो जाता है कि पश्चिम की नीति भारत को झूठी प्रशंसा के चने के झाड पर चढ़ा कर उल्लू बनाने की है .तत्कालीन हिलेरी क्लिंटन ने तो यह बात खुल कर कही थी कि भारत को ऐसे झुनझुने से चुप कराया जा सकता है .
चीन मुफ्त मैं कुछ नहीं देता . इसलिए अंत मैं हमसे अधिक सफल हो जाता है .अब हम गरीबों के देशों के नेता बनना चाह रहे हें. कम से कम किसी वर्ग का नेता होना भी शायद अच्छा हो. पर पापुआ गिनी कि ही तरह भिखारी तो कौड़ी मैं बिक जाते हें .अंत में चीन ही सारी मलाई खा जायेगा .
हमारी चीन से आर्थिक पिछड़े पन कि तरह इस समस्या का कोई आसान समाधान नहीं है .परन्तु यदि हमारे वैज्ञानिक इतने सस्ते मैं मंगल ग्रह जा सकते है तो अब भारत के वास्तविक अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव को बढाने के भी तो कोई सस्ते उपाय होंगे ? हमारे विदेश सेवा व मूर्धन्य चिंतकों को इस बारे में गंभीरता से विचार करना होगा.
भारत को अब और चने के झाड पर चढ़ा कर उल्लू नहीं बनाया जा सकता !